Monday 17 February 2014

प्रतिरक्षा गवाह

प्रतिरक्षा गवाह
         बचाव साक्षी के साक्ष्य को भी अभियोजन या परिवादी की साक्ष्य की तरह ही लिया जाना चाहिए ऐसा कोई नियम नहीं की बचाव साक्षी प्रायः असत्य कथन करते है या अभियुक्त को बचाने के लिए साक्ष्य देते हैं।
         जहां प्रतिरक्षा का मामला संभाव्य हो और प्रतिरक्षा साक्षी के विरूद्ध अभिलेख पर कुछ नहीं आया हो वहां अभियुक्त संदेह का लाभ पाने का पात्र होता है।
         कोई साक्षी प्रतिरक्षा की ओर से पेश हुआ हो इस आधार पर उसकी साक्ष्य खारीज नहीं की जा सकती।
         न्याय दृष्टांत जनरेल सिंह विरूद्ध स्टेट आॅफ पंजाब, ए.आई.आर. 1996 एस.सी. 755 में यह प्रतिपादित किया गया है कि दांडिक मामलों में अभियोजन पर उसका मामला युक्तियुक्त संदेह से परे प्रमाणित करने का भार रहता है और यह अभियुक्त द्वारा प्रतिरक्षा में पेश की गई साक्ष्य पर वापस नहीं आता है लेकिन प्रतिरक्षा साक्ष्य को अभियोजन साक्ष्य के विश्वसनीय होने के संबंध में प्रयोग में लिया जा सकता हैं।
         इस मामले में विचारण न्यायालय ने पहले अभियोजन साक्ष्य पर विचार किया था और उससे मामले में निष्कर्ष निकालते समय प्रतिरक्षा साक्ष्य को प्रयोग में लिया था और इसे विधिक रूप से परमिसीबल होना प्रतिपादित किया गया। निर्णय चरण 8 इस संबंध में अवलोकनीय हैं।
         न्याय दृष्टांत केशरदान विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2005 (3) एम.पी.एल.जे. 550 में यह प्रतिपादित किया गया है कि प्रतिरक्षा साक्षी की साक्ष्य को भी उतना ही महत्व दिया जाना चाहिए जितना अभियोजन साक्षी को दिया जाता हैं।
         मामले में प्रतिरक्षा साक्षी शासकीय कर्मचारी थे जिनके अधिनस्थ अपीलार्थी कार्य करता था और उन्होंने ये कथन किये थे कि घटना दिनांक और समय पर अपीलार्थी को बच्चों को पाॅलियों दवा पिलाने का कार्य दिया गया था साक्षीगण की साक्ष्य को स्पष्ट सत्य और काॅजेण्ट पाया गया और यह पाया गया कि अपीलार्थी घटना स्थल पर उपस्थित नहीं था और अभियोजन कहानी संदेहास्पद हैं।

1 comment:

  1. क्या अभियोजन द्वारा परीक्षित साक्षी को बचाव साक्षी के रूप में पेश किया जा सकता है, कृपया प्रकाश डालें

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