Friday 11 September 2015

’’ प्रतिकूल कब्जा’’ (एडवर्स पोजीशन) का कानून समाप्त करने के संबंध में।





प्रति,
                                माननीय नरेन्द्र मोदी,
                                प्रधानमंत्रीभारत सरकार
                                नईदिल्लीभारत
विषय:-                  माननीय उच्चतम न्यायालय की मंशा के अनुरूप ’’ प्रतिकूल कब्जा’’ (एडवर्स पोजीशनका कानून समाप्त करने के संबंध में।
---000---
महोदय,
                                उपरोक्त विषयांतर्गत लेख है कि इस स्वतंत्र भारत मंे अंग्रेजों की दास्तावाले कानून के अनुसार अब भी कोई दबंग व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की स्थायी सम्पत्ति (भवन/भूमि/प्लाॅटपर 12 वर्षो  तक विरोधी आधिपत्य/प्रतिकूल कब्जा  (एडवर्स पोजीशन)  कर कब्जा कर लेता है तो कानून दबंग व्यक्ति को उस सम्पत्ति का स्वामी घोषित कर देता है और यदि ऐसी स्थायी सम्पत्ति/भूमि राज्य या केन्द्रीय सरकार की है तो उस पर ऐसे दबंग व्यक्ति को 30 वर्षो तक कब्जा रखने पर स्वामित्व के अधिकार प्राप्त हो जाते हैं। स्वतंत्र भारत में अब भी ऐसे कानून भारतीयों की गुलामी की मानसिकता को प्रकट करते हैइसे तत्काल समाप्त किया जाना चाहिए। इस संबंध में यह भी अवलोकनीय है कि भारतीय न्यायालयों में लाखों प्रकरण लंबित है और दबंग व्यक्तियों द्वारा सीधे-साधे व्यक्तियों से अनेकों झगड़े दिन-प्रतिदिन किये जाते हैं।
                                इस कानून के संबंध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायदृष्टांत हेमाजी बाघजी जाट विरूद्ध भिखाभाई के.हरिजन .आई.आर 2009 सुप्रीम कोर्ट, 103 में विरोधी आधिपत्य के कानून को वास्तविक स्वामी के लिए बहुत कठोर या हास तथा बेईमान व्यक्ति के लिए हवा से गिरा हुआ फल या बिम्ब फाॅल बतलाया है और कहा है कि यह कानून अनुपातहीनविवेकहीन और असंगत है। उक्त न्यायदृष्टांत मेें माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा विरोधी आधिपत्य के इस कानून पर भारत सरकार को गंभीरता से विचार करके युक्तियुक्त परिवर्तन की अनुशंसा भी की गयी है।
                                मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने इस कानून पर अपना मत व्यक्त करते हुए न्यायदृष्टांत यशवंत राव विरूद्ध श्रीमति जहूर बी 1995(2) डब्ल्यू.एन. 92 में यह प्रतिपादित किया गया है कि ये प्रावधान एक व्यक्ति को बेईमान होने के लिए प्रोन्नत करते हैं और इस सिद्धांत का नेतृत्व करते है कि ’’हफीज पे तफीज’’ साथ ही ये प्रावधान असंवैधानिक है और संविधान के अनुच्छेद 300(1) का उल्लंघन करते हैंलेकिन अब भी विरोधी आधिपत्य में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।
                                फलतः माननीय उच्चतम न्यायालय एवं विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा विरोधी आधिपत्य के कानून को अनुपातहीनविवेकहीन और असंगत एवं संविधान के अनुच्छेद 300(1) का उल्लंघन में होना तथा दबंग व्यक्तियों के पक्ष का होना बताते हुए इसमें संशोधन करने की अनुशंसा भारत सरकार से की हैइसलिये भारतीय नागरिकों की सम्पत्ति के अधिकारों की रक्षा के लिए विरोधी आधिपत्य (एडवर्स पोजीशनके कानून को तत्काल समाप्त किये  एवं किसी अन्य व्यक्ति या राज्य या केन्द्रीय सरकार की स्थायी सम्पत्ति या भूमिभवन आदि पर विरोधी आधिपत्य करने को अपराध घोषित करते हुए कम से कम तीन साल की सजा का प्रावधान किये जाने का सादर निवेदन है।
संलग्न-
                                                                                                                लालाराम मीना (पूर्व न्यायाधीष)
प्रदेश अध्यक्ष
मकान नं-बी-43
अंबेडकर काॅलोनी ओल्ड सुभाषनगर
(गोविन्दपुरा रोडभोपाल 0प्र0 462023
               

प्रतिलिपिः-

                1.            माननीय अरूण जेटलीविधिमंत्री भारत सरकार नईदिल्ली।
                2.            माननीय शिवराज सिंह चैहानमुख्यमंत्री मध्यप्रदेश शासन    भोपाल।
                3.            विधि आयोगभारत सरकार नईदिल्ली।

लालाराम मीना (पूर्व न्यायाधीष)
प्रदेश अध्यक्ष
मकान नं-बी-43
अंबेडकर काॅलोनी ओल्ड सुभाषनगर
(गोविन्दपुरा रोडभोपाल 0प्र0 462023

हिन्दी में सभी कानूनी पुस्तकों का प्रकाशन एवं उच्चतम व उच्च न्यायालयो मे हिन्दी

प्रति,
                                माननीय नरेन्द्र मोदी,
                                प्रधानमंत्री, भारत सरकार
                                नईदिल्ली, भारत

विषय:-                  हिन्दी में सभी कानूनी पुस्तकों का प्रका एवं उच्चतम उच्च  न्यायालयो मे हिन्दी मे काम उनके निर्णयों का हिन्दी मे प्रकाषन कराने हेतु।                         
                                                             ---000---
महोदय,
                                उपरोक्त विषयांतर्गत लेख है कि पहली बार भारतीय संस्कृति की रक्षा करने वाला व्यक्ति इस देश का प्रधानमंत्री बना है और हिन्दी भाषा की रक्षा किये गये बगैर भारतीय संस्कृति की रक्षा संभव नहीं है। इस देश में सर्वाधिक हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाले व्यक्ति है। विशेष रूप से भारतीय नागरिकों कों हिन्दी में कानून की जानकारी सही रूप से प्राप्त नहीं होती है और भारतीय न्यायालयों द्वारा भी हिन्दी में निर्णय नहीं दिये जाकर अंग्रेजी में निर्णय पारित किये जाते हैं, जिसे पक्षकार जिसके लिए निर्णय होता है वह समझ ही नहीं पाते हैं और इसका फायदा उठाकर अंग्रेजी जानने वाले लोग पक्षकारों का शोषण करते हैं। निर्णय होने के बाद भी भाषा का ज्ञान नहीं होने से वह अपने अधिकारों को तो समझ पाते हैं और ही प्राप्त कर पाते है।
                                नागरिकों को अपनी  हिन्दी भाषा में कानून की पुस्तकें एवं न्यायालयों के निर्णयों से अवगत कराने के उदेद्श्य से  भारत सरकार   द्वारा पूर्व से विधि साहित्य प्रकाशन (विधायी विभाग) विधि न्याय और कंपनी कार्य मंत्रालय भारत सरकार भगवानदास मार्ग नईदिल्ली-110001 के माध्यम से विधि की पुस्तकों एवं उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालयों के निर्णयों के लिए पत्रिका का प्रकाशन किया जाता रहा है, जो अब दिखाबा मात्र होकर नाममात्र के लिए चल रहा है।
                                भारतीय उच्च एवं उच्चतम न्यायालय मे निर्णय अंग्रेजी मे करने की अनीवार्यता समाप्त कर हिन्दी मे भी निर्णय हों इसके अलावा यदि विधि साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा भारतीय नागरिकों पर लागू होने वाले सभी कानूनों की विस्तृत कामेन्ट्री वाली पुस्तकें एवं उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय की निर्णय पत्रिका  में सभी निर्णयों का प्रकाशन हिन्दी में किया जाये तो इससे बड़ी संख्या में भारतीय नागरिकों को अपने अधिकारों एवं कानून के संबंध में अच्छी जानकारी हो सकेगी और भारतीय संस्कृति की भी रक्षा में एक बड़ा कदम साबित होगा।
                                10 वे हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य मे उक्त अपेक्षा के साथ सादर सहित हमारा सुझाव आपकी ओर प्रेषित है।

लालाराम मीना (पूर्व न्यायाधीष)
प्रदेश अध्यक्ष
मकान नं-बी-43
अंबेडकर काॅलोनी ओल्ड सुभाषनगर
(गोविन्दपुरा रोड) भोपाल 0प्र0 462023