Tuesday 24 May 2022

सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि पत्नी के पास के पर्याप्त साधन हैं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

 *सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि पत्नी के पास के पर्याप्त साधन हैं: इलाहाबाद हाईकोर्ट*

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि एक पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता पाने का मौका इस आधार पर नहीं गंवा सकती है कि उसके पास अपने और अपने बच्चों के भरणपोषण के लिए पर्याप्त साधन हैं। उसे संपत्ति बेचने के बाद पैसा मिला है। जस्टिस बृज राज सिंह की खंडपीठ ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत कृष्णा देवी की याचिका को खारिज करने के फैमिली कोर्ट के फैसले और आदेश को रद्द कर दिया। उन्होंने अपने पति से मासिक भरणपोषण के रूप में कम से कम दस हजार रुपये का भुगतान करने के लिए निर्देश देने की मांग की।
कृष्णा देवी (पत्नी / याचिकाकर्ता) ने फैमिली कोर्ट, लखनऊ के समक्ष सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक आवेदन दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि उन्होंने 1967 में विवाह किया था, जिससे तीन बच्चे पैदा हुए थे। याचिका में उन्होंने कहा था कि उसके पति ने उसे 1983 तक भरणपोषण प्रदान किया, लेकिन उसके बाद रोक दिया। जिसके बाद वह अपने भाई पर निर्भर रही, जो उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करते था, लेकिन अचानक वह लापता हो गया। इसलिए, उन्होंने अपने पति से इस आधार पर भरणपोषण की मांग की कि उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है।
फैमिली कोर्ट ने उसके आवेदन को निम्नलिखित आधारों पर अस्वीकार कर दिया था- -याचिकाकर्ता ने यह प्रस्तुत नहीं किया कि वह अलग क्यों रह रही थी। - उसने फर्रुखाबाद की संपत्ति बेची थी। उसे संपत्ति बेचने के बाद धन प्राप्त हुआ था, जो यह ‌‌दिखाता है कि उसके पास पर्याप्त साधन हैं। -याचिकाकर्ता यह बताने में असमर्थ है कि उसके बच्चे साक्षर है या निरक्षर या वे कितने शिक्षित हैं... -तीनों बच्चों को उसने सैटल किया था; इस प्रकार, उसके पास भरणपोषण के साधन थे।
पति ने बताया कि याचिकाकर्ता के एक व्यक्ति के साथ अवैध संबंध थे और उक्त तथ्य को उसने अस्वीकार नहीं किया गया था। हाईकोर्ट की टिप्‍पणियां हाईकोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट अदालत ने इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया कि चूंकि उसके पति ने दूसरी शादी की है, और उसे छोड़ दिया है, इसलिए वह अलग रह रही थी। संपत्ति बेचने के बाद मिले धन के संबंध में कोर्ट ने कहा, "निचली अदालत का निष्कर्ष विकृत प्रतीत होता है क्योंकि अगर फर्रुखाबाद में कुछ संपत्ति थी और बेची गई संपत्ति के पैसे को बच्चों और याचिकाकर्ता के भरणपोषण के लिए इस्तेमाल किया गया था, यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि याचिकाकर्ता ने धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरणपोषण पाने का अपना मौका गंवा दिया है।"
पति के दावे और न्यायालय के ‌निष्कर्ष कि याचिकाकर्ता के अवैध संबंध थे, इस बारे में न्यायालय ने जोर देकर कहा कि उक्त निष्कर्ष भी विकृत था क्योंकि तथ्य का बयान साबित नहीं हुआ था। इसके अलावा, रजनेश बनाम नेहा और एक अन्य, (2021) 2 एससीसी 324 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए, कोर्ट ने कहा कि गुजारा भत्ता देते समय पति और पत्नी के स्टेटस को देखा जाना चाहिए और भले ही पत्नी काम करती है और उसके पास आय के कुछ साधन हैं, वह पति के स्टेटस के अनुसार भरणपोषण की हकदार है। नतीजतन, अदालत ने चार सप्ताह की अवधि के भीतर एक नया निर्णय लेने के लिए मामले को निचली अदालत में भेज दिया। 

केस टाइटल- श्रीमती कृष्णा देवी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्‍य [CRIMINAL REVISION No. - 205 of 2016] केस साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (एबी) 250




Sunday 22 May 2022

दोहरा बीमा: जब एक बीमाकर्ता ने नुकसान की पूरी क्षतिपूर्ति की हो तो दूसरा बीमाकर्ता दावा अस्वीकार कर सकता है- सुप्रीम कोर्ट

 दोहरा बीमा: जब एक बीमाकर्ता ने नुकसान की पूरी क्षतिपूर्ति की हो तो दूसरा बीमाकर्ता दावा अस्वीकार कर सकता है- सुप्रीम कोर्ट

 सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि ओवरलैपिंग इन्‍श्योरेंस पॉलिसी के मामलों में, जब बीमाधारक को हुई हानि (defined loss) की पूरी क्षतिपूर्ति एक बीमाकर्ता ने की हो तो दूसरा बीमाकर्ता उसी घटना के लिए किए गए क्लेम के लिए उत्तरदायी नहीं होगा। "परिभाषित नुकसान (defined loss)की क्षतिपूर्ति के लिए बीमा का अनुबंध हमेशा एक और एक ही होता है, न ज्यादा और न कम। विशिष्ट जोखिमों, जैसे कि आग के कारण हुए नुकसान आदि के लिए बीमित व्यक्ति दोहरे बीमा से लाभ नहीं उठा सकता है।" 

केस टाइटल: यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम लेविस स्ट्रॉस (इंडिया) प्रा लिमिटेड


https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/supreme-court-weekly-round-up-a-look-at-some-special-ordersjudgments-of-the-supreme-court-199755

धारा 302 को तहत सजा कम करने की शक्ति राज्य के पास है ना कि केंद्र के पास : सुप्रीम कोर्ट

 धारा 302 को तहत सजा कम करने की शक्ति राज्य के पास है ना कि केंद्र के पास : सुप्रीम कोर्ट 

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत राजीव गांधी की हत्या के दोषियों में से एक, ए जी पेरारिवलन को रिहा करते हुए कहा कि राज्यपाल के पास अनुच्छेद 161 के तहत भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 302 के तहत दी गई सजा को हटाने / कम करने / माफ करने की शक्ति है, क्योंकि राज्य की कार्यकारी शक्ति उक्त प्रावधान तक फैली हुई है। जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ए एस बोपन्ना अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज द्वारा किए गए निवेदन को स्वीकार करने में असमर्थ थे कि राष्ट्रपति के पास भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत दी गई सजा को माफ करने या छूट देने या कम करने के लिए अनुच्छेद 72 के तहत विशेष शक्ति है।

 [मामला : ए जी पेरारिवलन बनाम राज्य, पुलिस अधीक्षक सीबीआई / एसआईटी / एमएमडीए, चेन्नई, तमिलनाडु और अन्य के माध्यम से। सीआरएल ए. नंबर - 10039-10040/2016 ]


https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/supreme-court-weekly-round-up-a-look-at-some-special-ordersjudgments-of-the-supreme-court-199755?utm_source=internal-artice&utm_medium=also-read

दावों का निपटान करते समय बीमा कंपनी को उन दस्तावेजों के लिए नहीं पूछना चाहिए, जो बीमाधारक अपने नियंत्रण से बाहर की परिस्थितियों के कारण पेश करने की स्थिति में नहीं है : सुप्रीम कोर्ट

दावों का निपटान करते समय बीमा कंपनी को उन दस्तावेजों के लिए नहीं पूछना चाहिए, जो बीमाधारक अपने नियंत्रण से बाहर की परिस्थितियों के कारण पेश करने की स्थिति में नहीं है : सुप्रीम कोर्ट*

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दावों का निपटान करते समय, बीमा कंपनी को बहुत अधिक तकनीकी नहीं होना चाहिए और उन दस्तावेजों के लिए नहीं पूछना चाहिए, जो बीमाधारक अपने नियंत्रण से बाहर की परिस्थितियों के कारण पेश करने की स्थिति में नहीं है। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि कई मामलों में यह पाया गया है कि बीमा कंपनियां मामूली आधार और/या तकनीकी आधार पर दावे से इनकार कर रही हैं। पृष्ठभूमि
इस मामले में चूंकि बीमा कंपनी एक चोरी बीमा दावे का निपटान करने में विफल रही, बीमाधारक ने जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग से संपर्क किया, जिसने शिकायत का निपटारा इस निर्देश के साथ किया कि वह बीमा कंपनी को एक महीने के भीतर ट्रक के पंजीकरण के प्रमाण पत्र की डुप्लिकेट प्रमाणित प्रति प्रस्तुत करेगा और यह कि बीमा कंपनी इसे प्राप्त करने के एक महीने के भीतर बीमा पॉलिसी के नियमों और शर्तों के अनुसार दावे का निपटान करेगी।
इसके बाद उसने संबंधित ट्रक के पंजीकरण प्रमाण पत्र की डुप्लीकेट प्रमाणित प्रति प्राप्त करने के लिए आरटीओ के समक्ष एक आवेदन प्रस्तुत किया। हालांकि, आरटीओ ने पंजीकरण प्रमाण पत्र की डुप्लीकेट प्रमाणित प्रति जारी करने से इस आधार पर इनकार किया कि ट्रक की चोरी की रिपोर्ट के कारण कंप्यूटर पर पंजीकरण प्रमाण पत्र के बारे में विवरण लॉक कर दिया गया है। इसके बाद उसने आरटीओ द्वारा प्रदान किए गए पंजीकरण और पंजीकरण विवरण के प्रमाण पत्र की फोटोकॉपी के साथ बीमा कंपनी के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया। उपरोक्त के बावजूद, दावे का निपटारा नहीं हुआ और इसलिए, उसने एक नई उपभोक्ता शिकायत दर्ज की। जिला आयोग ने उक्त शिकायत को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि चूंकि उसने दावे के निपटारे के लिए प्रासंगिक दस्तावेज दाखिल नहीं किए थे, इसलिए दावे का गैर निपटान सेवा में कमी नहीं कहा जा सकता है। जिला आयोग द्वारा पारित इस आदेश की पुष्टि राज्य आयोग और उसके बाद राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग द्वारा की गई है।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अपील में कहा कि बीमा दावे का निपटारा मुख्य रूप से इस आधार पर नहीं किया गया है कि अपीलकर्ता ने पंजीकरण का मूल प्रमाण पत्र या यहां तक ​​कि आरटीओ द्वारा जारी पंजीकरण प्रमाण पत्र की डुप्लीकेट प्रमाणित प्रति भी प्रस्तुत नहीं की है। हालांकि, अपीलकर्ता ने पंजीकरण प्रमाण पत्र की फोटोकॉपी और आरटीओ द्वारा प्रदान किए गए अन्य पंजीकरण विवरण प्रस्तुत किए। पीठ ने कहा, यहां तक ​​कि बीमा पॉलिसी लेने और बीमा कराने के समय भी बीमा कंपनी को पंजीकरण प्रमाण पत्र की कॉपी जरूर मिली होगी। अतः अपीलकर्ता ने ट्रक पंजीकरण प्रमाण पत्र की डुप्लीकेट प्रमाणित प्रति प्राप्त करने का भरसक प्रयास किया था। हालांकि ट्रक चोरी की रिपोर्ट आने के कारण कंप्यूटर पर पंजीकरण की डिटेल लॉक कर दी गई है और आरटीओ ने पंजीकरण की डुप्लीकेट प्रमाणित कॉपी जारी करने से मना कर दिया है. इसलिए, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में, जब अपीलकर्ता ने पंजीकरण प्रमाण पत्र की फोटोकॉपी और आरटीओ द्वारा प्रदान किए गए पंजीकरण विवरण प्रस्तुत किए थे, केवल इस आधार पर कि पंजीकरण का मूल प्रमाण पत्र (जो चोरी हो गया है) प्रस्तुत नहीं किया गया है, तो दावे का निपटान न होने को सेवा में कमी कहा जा सकता है। बीमा कंपनियां तुच्छ आधारों और/या तकनीकी आधारों पर दावे को अस्वीकार कर रही हैं। अदालत ने यह भी कहा कि इस मामले में बीमा कंपनी दावे का निपटान करते समय बहुत तकनीकी हो गई है और उसने मनमाने ढंग से काम किया है। "अपीलकर्ता को उन दस्तावेजों को प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है जो अपीलकर्ता के लिए प्रस्तुत करने के लिए नियंत्रण से बाहर थे। एक बार, प्रीमियम के रूप में बड़ी राशि के भुगतान पर एक वैध बीमा हुआ और ट्रक चोरी हो गया था, बीमा कंपनी को बहुत अधिक तकनीकी नहीं होना चाहिए और पंजीकरण प्रमाण पत्र की डुप्लीकेट प्रमाणित प्रति प्रस्तुत न करने पर दावे को निपटाने से इनकार नहीं करना चाहिए था, जिसे अपीलकर्ता अपने नियंत्रण से बाहर की परिस्थितियों के कारण पेश नहीं कर सका। कई मामलों में, यह पाया जाता है कि बीमा कंपनियां तुच्छ आधारों और/या तकनीकी आधारों पर दावे को अस्वीकार कर रही हैं। दावों का निपटान करते समय, बीमा कंपनी को बहुत अधिक तकनीकी नहीं होना चाहिए और उन दस्तावेजों के लिए नहीं पूछना चाहिए, जो बीमाधारक अपने नियंत्रण से परे परिस्थितियों के कारण प्रस्तुत करने की स्थिति में नहीं है।" अपील की अनुमति देते हुए, अदालत ने माना कि अपीलकर्ता दावा दाखिल करने की तारीख से ब्याज @ 7 प्रतिशत के साथ 12 लाख रुपये की बीमा राशि का हकदार है। अदालत ने बीमा कंपनी को अपीलकर्ता को 25,000 रुपये बतौर मुकदमेबाजी लागत का भुगतान करने का भी निर्देश दिया।

मामले का विवरण गुरमेल सिंह बनाम शाखा प्रबंधक, नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड लिमिटेड | 2022 लाइव लॉ (SC) 506 | सीए 4071/ 2022 | 20 मई 2022
पीठ: जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना

हेडनोट्स

बीमा - बीमा कंपनियां तुच्छ आधारों और/या तकनीकी आधारों पर दावे से इनकार करती हैं - दावों का निपटान करते समय, बीमा कंपनी को बहुत अधिक तकनीकी नहीं होना चाहिए और उन दस्तावेजों की मांग नहीं करनी चाहिए, जो बीमित व्यक्ति उसके नियंत्रण से परे परिस्थितियों के चलते पेश करने की स्थिति में नहीं है। (पैरा 4.1) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986; धारा 2 (जी) - बीमा - सेवा में कमी - जब बीमाधारक ने पंजीकरण के प्रमाण पत्र की फोटोकॉपी और आरटीओ द्वारा प्रदान किए गए पंजीकरण विवरण को केवल इस आधार पर प्रस्तुत किया था कि पंजीकरण का मूल प्रमाण पत्र (जो चोरी हो गया है) प्रस्तुत नहीं किया गया है, तो दावे का निपटान न होने को सेवा में कमी कहा जा सकता है। ( पैरा 4 )

https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/while-settling-claims-insurance-company-should-not-seek-documents-supreme-court-199798

Wednesday 18 May 2022

आदेश IX नियम 13 सीपीसी - ये ट्रायल कोर्ट पर छोड़ देना चाहिए कि एकपक्षीय डिक्री को खारिज करने पर प्रतिवादियों को लिखित बयान दाखिल करने की अनुमति दी जाए या नहीं : सुप्रीम कोर्ट

आदेश IX नियम 13 सीपीसी - ये ट्रायल कोर्ट पर छोड़ देना चाहिए कि एकपक्षीय डिक्री को खारिज करने पर प्रतिवादियों को लिखित बयान दाखिल करने की अनुमति दी जाए या नहीं : सुप्रीम कोर्ट*

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब एक पक्षीय डिक्री को रद्द कर दिया जाता है और वाद दायर करने के लिए बहाल किया जाता है, तो प्रतिवादी को वाद की सुनवाई की तारीख से पहले की स्थिति में वापस नहीं लाया जा सकता है जब उसे एक पक्षीय रखा गया था। जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने इस मामले में कहा कि एक निचली अदालत इस बात पर विचार कर सकती है कि क्या एकपक्षीय डिक्री को खारिज करने पर प्रतिवादियों की लिखित बयान दाखिल करने की प्रार्थना को अनुमति दी जा सकती है? इस मामले में, प्रतिवादी, जिन्हें एक वाद में एक पक्षीय सेट किया गया था, ने सीपीसी के आदेश IX नियम 13 के तहत एक पक्षीय डिक्री को रद्द करने के लिए एक आवेदन दायर किया और लिखित बयान दाखिल करने की अनुमति देने की भी प्रार्थना की। ट्रायल कोर्ट ने एकपक्षीय डिक्री को रद्द करते हुए उक्त आवेदन को स्वीकार कर लिया। इस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका का निपटारा करते हुए,हाईकोर्ट ने, हालांकि ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा, लेकिन यह माना कि प्रतिवादियों को अपना लिखित बयान दर्ज करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है और वे केवल अपने मामले को प्रस्तुत किए बिना ही ट्रायल की सुनवाई में भाग ले सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, अपीलकर्ताओं-प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि एक बार एकपक्षीय डिक्री को रद्द करके ट्रायल दायर करने के लिए बहाल किया गया था और ट्रायल कोर्ट द्वारा कोई आदेश पारित नहीं किया गया था कि लिखित बयान को रिकॉर्ड पर लेने की अनुमति दी जाए या नहीं, हाईकोर्ट को उस पर कुछ भी नहीं देखना चाहिए था और इसे ट्रायल कोर्ट पर छोड़ देना चाहिए था। प्रतिवादी-वादी ने संग्राम सिंह बनाम चुनाव ट्रिब्यूनल, कोटा और अन्य; AIR 1955 SC 425 और अर्जुन सिंह बनाम मोहिन्द्रा कुमार और अन्य; AIR 1964 SC 993 पर यह तर्क देने के लिए भरोसा किया कि जब एक पक्षीय डिक्री को रद्द कर दिया जाता है और वाद दायर करने के लिए बहाल किया जाता है, तो प्रतिवादियों को ट्रायल की सुनवाई की तारीख से पहले स्थिति में वापस नहीं लाया जा सकता है और उन्हें वाद में कोई भी लिखित बयान दाखिल करने से वंचित कर दिया जाएगा।

उपरोक्त निर्णयों का उल्लेख करते हुए, अदालत ने इस प्रकार नोट किया:-

"यह सच है कि संग्राम सिंह (सुप्रा) और अर्जुन सिंह (सुप्रा) के मामले में इस न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून के अनुसार जब एक पक्षीय डिक्री को रद्द कर दिया जाता है और वाद दायर करने के लिए बहाल किया जाता है, तो तो प्रतिवादियों को ट्रायल की सुनवाई की तारीख से पहले स्थिति में वापस नहीं लाया जा सकता है और उन्हें वाद में कोई भी लिखित बयान दाखिल करने से वंचित कर दिया जाएगा, लेकिन फिर वह वादी के गवाह से जिरह करने व तर्कों को संबोधित करने के लिए वाद की सुनवाई में भाग ले सकता है। " अदालत ने, हालांकि, नोट किया कि, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में, ये निर्णय संग्राम सिंह (सुप्रा) और अर्जुन सिंह (सुप्रा) का मामला पूरी तरह से लागू नहीं होगा। "दूसरी प्रार्थना पर विद्वान ट्रायल कोर्ट द्वारा कोई आदेश और / या निर्णय नहीं था, अर्थात्, प्रतिवादी संख्या 2 और 3 को लिखित बयान दाखिल करने की अनुमति देने के लिए या ना देने के लिए। इसलिए, एक बार एकपक्षीय डिक्री को रद्द कर दिया जाता है और वाद दायर करने के लिए बहाल हो जाता है और यहां तक कि संग्राम सिंह (सुप्रा) और अर्जुन सिंह (सुप्रा) के मामले में इस न्यायालय के निर्णयों के अनुसार, प्रतिवादियों को उस मामले में भी वाद की सुनवाई की तारीख से पहले स्थिति में वापस नहीं लाया जा सकता है, यह प्रतिवादी संख्या 2 और 3 की प्रार्थना पर विचार करने के लिए विद्वान ट्रायल कोर्ट पर छोड़ दिया जाना चाहिए था कि उन्हें लिखित बयान दाखिल करने की अनुमति दी जाए या नहीं, जिसकी सीएमए संख्या 31/2018 में भी प्रार्थना की गई थी।" इसलिए अदालत ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह प्रतिवादियों की प्रार्थना के संबंध में इस मुद्दे पर विचार करे कि उन्हें अपना लिखित बयान दाखिल करने की अनुमति दी जाए।

मामले का विवरण सुधीर रंजन पात्रा (डी) बनाम हिमांशु शेखर श्रीचंदन | 2022 लाइव लॉ (SC) 492 | 2022 की सीए 3641 | 17 मई 2022
पीठ: जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस बी वी नागरत्ना

हेडनोट्सः सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908; आदेश IX नियम 13 - जब एक पक्षीय डिक्री को रद्द कर दिया जाता है और वाद दायर करने के लिए बहाल किया जाता है, तो प्रतिवादी को वाद की सुनवाई की तारीख से पहले की स्थिति में वापस नहीं लाया जा सकता जब उसे रद्द किया गया और उन्हें वाद में कोई भी लिखित बयान दाखिल करने से वंचित कर दिया जाएगा, लेकिन फिर वह वादी के गवाह से जिरह करने व तर्कों को संबोधित करने के लिए वाद की सुनवाई में भाग ले सकता है।। [संग्राम सिंह बनाम चुनाव ट्रिब्यूनल, कोटा और अन्य; AIR 1955 SC 425 और अर्जुन सिंह बनाम मोहिन्द्रा कुमार और अन्य; AIR 1964 SC 993 ] (पैरा 6) सारांश - हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील, जिसने एक पक्षीय डिक्री को रद्द करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश की पुष्टि की, लेकिन यह माना कि प्रतिवादियों को अपना लिखित बयान दर्ज करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है - अनुमति दी गई - इसे विचार करने के लिए ट्रायल कोर्ट पर छोड़ दिया जाना चाहिए था कि प्रतिवादी को लिखित बयान दाखिल करने की अनुमति दे या नहीं।

https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/order-ix-rule-13-cpc-trial-court-can-decide-prayer-of-defendants-to-permit-filing-of-written-statement-after-setting-aside-ex-parte-decree-supreme-court-199423?infinitescroll=1

Tuesday 3 May 2022

सामान्य श्रेणी के अंतिम उम्मीदवारों की तुलना में अधिक अंक हासिल करने वाले आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार सामान्य श्रेणी में सीट पाने के हकदार : सुप्रीम कोर्ट

 *सामान्य श्रेणी के अंतिम उम्मीदवारों की तुलना में अधिक अंक हासिल करने वाले आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार सामान्य श्रेणी में सीट पाने के हकदार : सुप्रीम कोर्ट*


 सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सामान्य श्रेणी के अंतिम उम्मीदवारों की तुलना में अधिक अंक हासिल करने वाले आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार सामान्य श्रेणी में सीट / पद पाने के हकदार हैं। जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि आरक्षित श्रेणियों से संबंधित उम्मीदवार अनारक्षित श्रेणियों में सीटों के लिए दावा कर सकते हैं यदि मेरिट सूची में उनकी योग्यता और स्थिति उन्हें ऐसा करने का अधिकार देती है तो।

 भारत संचार निगम लिमिटेड बनाम संदीप चौधरी | 2022 लाइव लॉ (SC) 419 | 2015 की सीए 8717 | 28 अप्रैल 2022


https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/supreme-court-weekly-round-up-a-look-at-some-special-ordersjudgments-of-the-supreme-court-197970

नियोक्ता अपने कर्मचारी की सेवा के अंत में जन्म तिथि से संबंधित विवाद नहीं उठा सकते : सुप्रीम कोर्ट

 *नियोक्ता अपने कर्मचारी की सेवा के अंत में जन्म तिथि से संबंधित विवाद नहीं उठा सकते : सुप्रीम कोर्ट*


 सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि यह नियम कि कर्मचारी अपनी सेवा के अंत में जन्म तिथि से संबंधित विवाद नहीं उठा सकते हैं, नियोक्ताओं पर भी समान रूप से लागू होता है। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने एक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें एक कर्मचारी को उसकी जन्मतिथि में बदलाव करके वीआरएस लाभ कम करने का फैसला किया गया था। 

केस: शंकर लाल बनाम हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड और अन्य


https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/supreme-court-weekly-round-up-a-look-at-some-special-ordersjudgments-of-the-supreme-court-197970

एक आपराधिक मुकदमे में एक गवाह की गवाही को केवल मामूली विरोधाभासों या चूक के कारण खारिज नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

 *एक आपराधिक मुकदमे में एक गवाह की गवाही को केवल मामूली विरोधाभासों या चूक के कारण खारिज नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट*


 सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक आपराधिक मुकदमे में एक गवाह की गवाही को केवल मामूली विरोधाभासों या चूक के कारण खारिज नहीं किया जा सकता है। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए चिकित्सा साक्ष्य का बहुत अधिक पुष्टिकारक महत्व है। कोर्ट पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर विचार कर रही थी, जिसमें ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित निर्णय को संशोधित करते हुए अपीलकर्ता-आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 307 से धारा 324 (धारा 34 के साथ पठित) के तहत दोषी ठहराया गया था और शस्त्र अधिनियम की धारा 27 के तहत उनकी सजा की पुष्टि की गई थी। 

अनुज सिंह @ रामानुज सिंह @ सेठ सिंह बनाम बिहार सरकार | 2022 लाइव लॉ (एससी) 402 | सीआरए 150/2020 | 22 अप्रैल 2022


https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/supreme-court-weekly-round-up-a-look-at-some-special-ordersjudgments-of-the-supreme-court-197970

एडहॉक कर्मचारी को किसी अन्य एडहॉक कर्मचारी द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता; केवल नियमित कर्मचारी द्वारा ही बदला जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

 *एडहॉक कर्मचारी को किसी अन्य एडहॉक कर्मचारी द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता; केवल नियमित कर्मचारी द्वारा ही बदला जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट*


 सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि एक एडहॉक कर्मचारी को दूसरे एडहॉक कर्मचारी द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता, उसे केवल एक नियमित रूप से नियुक्त उम्मीदवार द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा, "यह कानून का एक स्थापित सिद्धांत है कि एक एडहॉक कर्मचारी को किसी अन्य एडहॉक कर्मचारी द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता और उसे केवल एक अन्य उम्मीदवार द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसे नियमित रूप से निर्धारित नियमित प्रक्रिया का पालन करके नियुक्त किया जाता है।" 

केस शीर्षक : मनीष गुप्ता और अन्य बनाम जनभागीदारी समिति और अन्य |


https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/supreme-court-weekly-round-up-a-look-at-some-special-ordersjudgments-of-the-supreme-court-197970

बकाया वेतन पाने के लिए कर्मचारी को अनुरोध करना होगा कि वो लाभप्रद रूप से नियुक्त नहीं था, तभी भार नियोक्ता पर शिफ्ट होगा : सुप्रीम कोर्ट

 *बकाया वेतन पाने के लिए कर्मचारी को अनुरोध करना होगा कि वो लाभप्रद रूप से नियुक्त नहीं था, तभी भार नियोक्ता पर शिफ्ट होगा : सुप्रीम कोर्ट*


 सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को माना कि जिस कर्मचारी की सेवाएं समाप्त कर दी गई हैं और वो बकाया वेतन (Back wages) पाने का इच्छुक है तो वो या तो अनुरोध करने के लिए बाध्य है या कम से कम पहली बार में एक बयान दे कि वो लाभप्रद रूप से नियुक्त नहीं था या सेवा से बर्खास्त होने के बाद कम वेतन पर कार्यरत था। इसमें कहा गया है कि इसके बाद ही यह बोझ नियोक्ता पर होगा कि वह अन्यथा साबित करे। जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश का विरोध करने वाली अपील को खारिज कर दिया, जिसने इलाहाबाद बैंक के अनुशासनात्मक प्राधिकरण द्वारा पारित दंड आदेश को रद्द कर दिया था और अपने दोषी अधिकारी को 50% पिछले वेतन और सभी परिणामी लाभ के साथ बहाल करने का निर्देश दिया था। 

केस: इलाहाबाद बैंक और अन्य बनाम अवतार भूषण भरतीय


https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/supreme-court-weekly-round-up-a-look-at-some-special-ordersjudgments-of-the-supreme-court-197970

वक्फ एक्ट - समर्पण के सबूत के अभाव में एक जर्जर ढांचे को धार्मिक स्थल की मान्यता नहीं दी जा सकती : सुप्रीम कोर्ट

 वक्फ एक्ट - समर्पण के सबूत के अभाव में एक जर्जर ढांचे को धार्मिक स्थल की मान्यता नहीं दी जा सकती : सुप्रीम कोर्ट 

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि 'समर्पण' या 'उपयोगकर्ता' या 'अनुदान' के सबूत के अभाव में, जिसके जरिए वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 3 (आर) के संदर्भ में एक जीर्ण दीवार या प्लेटफॉर्म को 'वक्फ' माना जाएगा, उक्त ढांचे को नमाज अदा करने के लिए धार्मिक स्‍थल के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती है।

जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की खंडपीठ ने राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर एक अपील को खारिज कर दिया, जिसके तहत जिंदल सॉ लिमिटेड को खनन के लिए आवंटित भूखंड से एक ढांचे को हटाने की अनुमति दी गई थी, जिस पर वक्फ बोर्ड, राजस्थान ने दावा किया था कि यह एक धार्मिक स्थल है। केस शीर्षक: वक्फ बोर्ड, राजस्थान बनाम जिंदल सॉ लिमिटेड और अन्य।

https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/supreme-court-weekly-round-up-a-look-at-some-special-ordersjudgments-of-the-supreme-court-197970