Friday 29 November 2013

S.315 CRPC अभियुक्त सक्षम साक्षी

                  धारा 315 दण्ड प्रक्रिया संहिता अभियुक्त सक्षम साक्षी

 
        भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20  (3) में यह उपबंधित किया गया है, कि किसी भी व्यक्ति को जिस पर कोई अपराध लगाया गया है, स्वयं अपने विस्द्ध साक्ष्य देने के लिये बाध्य नहीं किया जायेगा। यह मूल अधिकार इस सिद्धांत पर आधारित है, कि प्रत्येक व्यक्ति तब तक निर्दाेष माना जाएगा, जब तक उसे अपराधी सिद्ध न कर दिया जाए। अपराधी के अपराध सिद्ध करने का भार अभियोजक पर होता है। अभियुक्त को अपनी इच्छा के विरूद्ध कोई स्वीकृति या बयान देने की आवश्यकता नहीं होती है। 


        इसी सिद्धांत को आधार मानते हुए दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा- 315 (1) में उपबंधित किया गया है, कि कोई व्यक्ति, जो किसी अपराध के लिए किसी दण्ड न्यायालय के समक्ष अभियुक्त है, प्रतिरक्षा के लिए सक्षम साक्षी होगा और अपने विरूद्ध या उसी विचारण में उसके साथ आरोपित किसी व्यक्ति के विरूद्ध लगाए गए आरोपों को नासाबित करने के लिए शपथ पर साक्ष्य दे सकता है:-
    परन्तु -

(क) वह स्वयं अपनी लिखित प्रार्थना के बिना साक्षी के रूप में न बुलाया जाएगा,
(ख) उसका स्वयं साक्ष्य न देना पक्षकारों में से किसी के द्वारा या न्यायालय
    द्वारा किसी टीका-टिप्पणी का विषय न बनाया जाएगा और न उसे उसके, या उसी विचारण में उसके साथ आरोपित किसी व्यक्ति के विरूद्ध कोई उपधारणा ही की जाएगी।
    (2) कोई व्यक्ति जिसके विरूद्ध किसी दंड न्यायालय में धारा 98, या धारा  107, या धारा 108, या धारा 109, या धारा 110 के अधीन या अध्याय 9 के अधीन या अध्याय 10 के भाग ख, भाग ग या भाग घ के अधीन  कार्यवाही संस्थित की जाती, ऐसी कार्यवाही में अपने आपको साक्षी के रूप में पेश कर सकता है:

    परन्तु धारा 108, धारा 109 या धारा 110 के अधीन कार्यवाही में ऐसे व्यक्ति द्वारा साक्ष्य न देना पक्षकारों में से किसी के द्वारा या न्यायालय के द्वारा किसी टीका-टिप्पणी का विषय नहीं बनाया जाएगा और न उसे उसके या किसी अन्य व्यक्ति के विरूद्ध जिसके विरूद्ध उसी जाच में ऐसे व्यक्ति के साथ कार्यवाही की गई है, कोई  उपधारणा ही की जाएगी। 

        भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20-3- में दिये गये मूल अधिकार के समकक्ष धारा-315 दं0प्र0सं0 है। अनुच्छेद 20-3- का संरक्षण तब मिलेगा जब निम्नलिखितें शर्तें पूरी होगी:-

    1-    व्यक्ति पर अपराध करने का आरोप लगाया गया हो।
    2-    उसे अपने विरूद्ध गवाही देने के लिये बाध्य किया गया हो
    3-    उसे अपने विरूद्ध गवाही देने के लिये बाध्य किया जाये

        यह संरक्षण केवल आपराधिक मामले में अपराध के अभियुक्त को प्राप्त है,  सिविल कार्यवाही में लागू नहीं होता है।

        एम.पी. शर्मा बनाम सतीशचंद्र ए.आई.आर. 1954 सुप्रीम कोर्ट 300 एवं वीरा इब्राहिम महाराष्ट््र राज्य ए.आई.आर. 1976 एस.सी. 1167 में अभिनिर्धारित किया गया है, कि यदि किसी व्यक्ति के विरूद्ध एफ.आई.आर. दर्ज की गई है, तो भी उसे अपने विरूद्ध साक्ष्य देने के लिये बाध्य नहीं किया जायेगा। गवाह बनने के लिये वाक्यांश की व्याख्या करते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है, कि ऐसी साक्ष्य प्रस्तुत करना या न्यायालय में किसी विलेख को प्रस्तुत करना जो विवादास्पद विषय पर प्रकाश डालता हो। इसमें अभियुक्त के ऐसे बयान शामिल नहीं है जो उसके व्यक्तिगत ज्ञान पर आधारित है।

        माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा स्टेट आफ बाम्बे बनाम काथूकाली ए.आई.आर. -1961 सुप्रीम कोर्ट 1808 और परसादी बनाम उत्तरप्रदेश ए.आई.आर. 1973 सुप्रीम कोर्ट 210 में भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा-27 को वैध घोषित किया है। 

        माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है, कि यदि कोई अभियुक्त से स्वेच्छया से साक्ष्य देता है तो वह वर्जित नहीं है किन्तु उस पर यदि शारीरिक, मानसिक दबाव डाला जाता है तो इस प्रकार का साक्ष्य दबावपूर्ण साक्ष्य माना जाएगा इसलिए नंदनी सतपती बनाम पी.एल. धनी ए.आई.आर. 1978 सुप्रीम कोर्ट 1025 के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया कि दं0प्र0सं0 की धारा-161 (2) में अभियुक्त से पूछताछ के दौरान ही उसे अपने लिये साक्ष्य देने बाध्य नहीं किया जा सकता। 


        दं0प्र0सं0 संहिता की धारा-315 यह नियम प्रतिपादित करती है, कि अभियुक्त व्यक्ति प्रतिरक्षा (कममिदबम) के लिए सक्षम साक्षी होता है और किसी अन्य साक्षी तरह वह अभियोजन द्वारा अपने विरूद्ध लगाए गए आरोपों को नासाबित करने के लिए शपथ पर साक्ष्य देने का हकदार होता है। 

        यह धारा यह भी उपबन्ध करती है कि साक्षी के रूप में उसकी परीक्षा न किए जाने से न्यायालय इससे कोई प्रतिकूल निष्कर्ष नहीं निकाल सकता। परन्तु यदि अभियुक्त अपनी परीक्षा प्रतिरक्षा के साक्षी के रूप में स्वेच्छा से करता है तो अभियोजन उसकी आगे की परीक्षा करने का हकदार होगा और ऐसा साक्ष्य सह-अभियुक्त के विरूद्ध उपयोग किया जा सकता है। 

        धारा-315 दं0प्र0सं0 के अंतर्गत आरोपी से सक्षम साक्षी के रूप में प्रस्तुत होने संबंधी प्रक्रिया:-
        1-     यह कि आरोपी न्यायालय के समक्ष लिखित आवेदन प्रस्तुत करेगा।
        2-    यह कि आरोपी को न्यायालय द्वारा साक्ष्य लेने के पूर्व शपथ दिलाई जाएगी।
        3-     यह कि अभियोजन उसकी प्रतिपरीक्षा करेगा और प्रतिपरीक्षण में  उसके विरूद्ध आए तथ्यों को प्रस्तुत कर सकेगा।
        4-    यह कि आरोपी इस सम्पूर्ण साक्ष्य के बाद उसके विरूद्ध साबित तथ्य साक्ष्य में ग्राह्य होगे। 

        अभियुक्त को शपथ दिलाने या प्रतिज्ञान कराने के विरूद्ध सृजित शपथ अधिनियम, 1969 की धारा 4(2) के अधीन वर्जन केवल दांडिक विचारण पर ही लागू होता है। शब्द ‘‘दांडिक कार्यवाही’’ की परिधि का विस्तार पुनरीक्षणों या अपीलों में दिए गए अन्तरिम आवेदन-पत्रों के समर्थन में शपथ-पत्रों के दाखिल किए जाने पर विस्तारित नहीं किया जा सकता। 

        माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा मोहम्मद शरीफ बनामा स्टेट  आफ झारखण्ड 2006 क्रिमनल लाॅ जनरल 4498 झारखण्ड, काशीराम बनाम स्टेट आफ एम.पी. ए.आई.आर. 2001 सुप्रीम कोर्ट 2902 में  अभिनिर्धारित किया गया है, कि यदि अभियुक्त व्यक्ति साक्षी कक्ष में नहीं आता है तो इससे विपरीत आशय का निष्कर्ष नहीं निकाला जाना चाहिए। यह प्राथमिक आपराधिक विधिशास्त्र है कि किसी अभियुक्त को साक्षी बनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। इसी प्रकार यह प्रतिरक्षा हेतु समुचित अवसर प्रदान किया गया परन्तु प्रतिरक्षा प्रस्तुत नहीं की जाती है तो प्रतिरक्षा का अधिकार आरोपी का समाप्त किया जा सकता है इसे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के विपरित नहीं माना जा सकता है।

        यदि अभियुक्त साक्षी बन कर पेश हुआ और उसे उस दस्तावेज को पेश करने से नहीं रोका जाना चाहिए जिसपर वह भरोसा करके आया है। उसे इस आधार पर ऐसा करने से नहीं रोका जाना चाहिए कि उसने ऐसा साक्ष्य अभिलेखन के पूर्व नहीं किया था।  ऐसी  स्थिति में  माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा- गजेन्द्रसिंह विरूद्ध स्टेट आॅफ राजस्थान 1998 भाग-8 एस.एस.सी.-612 में अभिनिर्धारित किया है, कि उसे साक्ष्य-सम्बंधी दस्तावेज़ पेश करने की अनुमति दे देनी चाहिए।  

        विधि का यह सर्वमान्य सिद्धांत है, कि अभियोजन को अपना मामला साबित करना चाहिए और आपराधिक मामलों में सबूत का भार अभियोजन पर आरोपित किया गया है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा-103 में विशिष्ट तथ्य के सबूत का भार उस व्यक्ति पर होता है जो न्यायालय से यह चाहता है, कि उसके अस्तित्व में विश्वास करें। जब तक कि किसी विधि द्वारा यह उपबंधित न हो कि उस तथ्य के सबूत का भार किसी विशिष्ट व्यक्ति पर होगा। ऐसे मामलों में आरोपी अभियोजन साक्षियों को प्रतिपरीक्षण में सुझाव देकर बचाव में दस्तावेज पेश कर और स्वयं उपस्थित होकर विशिष्ट तथ्य को साबित कर सकता है किन्तु उसे बाध्य नहीं किया जा सकता।

        भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा-105 में अभिनिर्धारित है, कि यह साबित करने का भार कि अभियुक्त का मामला अपवादों के अंतर्गत आता है, उस व्यक्ति पर है और न्यायालय ऐसी परिस्थितियों के अभाव की उपधारणा करेगा। ऐसे मामलों में आरोपी स्वयं को प्रस्तुत कर तथ्य साबित कर सकता है, परन्तु उसे इसके लिये बाध्य नहीं किया जा सकता। 

        भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा-106 इस बात का अपवाद है, कि अभियोजन को अपना मामला संदेह के परे साबित करना चाहिए। धारा-106 भा0सा0अधि0 के अनुसार जबकि कोई तथ्य विशेषतः किसी व्यक्ति के ज्ञान में है, तब उस तथ्य को साबित करने का भार उस पर है। जबकि कोई व्यक्ति किसी कार्य को उस आशय से भिन्न किसी आशय से करता है जिसे उस कार्य का स्वरूप और परिस्थितिया  इंगित करती है तब उस आशय को साबित करने का भार उस व्यक्ति पर है।

        इस प्रकार यह धारा-101 भा.सा.अधि. का अपवाद है। आरोपी को जब कोई विशेष ज्ञान किसी वस्तु अथवा तथ्य के संबंध में है तो उसे साबित करने का भार उस पर है।
        इसी प्रकार जब अभियुक्त के कब्जे में कोई वस्तु प्रतिबंधित पाई जाती है तो विशेष ज्ञान के द्वारा यह स्पष्ट कर सकता है, कि वह वस्तु उसके पास किस प्रकार आई। उसके नहीं बताने पर उसे अवैध रूप से प्राप्त मानकर उसे संदेह का लाभ नहीं दिया जा सकता। जहाॅ पर आरोपी को विशेष ज्ञान और जानकारी साबित करना है वहाॅ पर वह खुद को प्रस्तुत करके उसे स्पष्ट कर सकता है। यदि उसके द्वारा अभियोजन साक्षियों को बचाव में सुझाव अथवा दस्तावेज और स्पष्टीकरण नहीं दिया जाता है, तो उसके विरूद्ध उपधारणा की जा सकती है।
 
         सी प्रकार अपने विरूद्ध हस्तलिपि के मिलान हेतु नमूना देने, रक्त सेम्पल देना, नार्काे टेस्ट देना, मेमोरेण्डम कथन देना, तलाशी पंचनामा देना, हस्ताक्षर करना आदि भौतिक एवं रासायनिक परीक्षण अपने विरूद्ध साक्ष्य देने की श्रेणी में नहीं आते हैं क्योंकि ये वस्तुएॅ केवल तुलना के उद्देश्य से ली जाती है। 
 
        इस प्रकार धारा-315 दं0प्र0सं0 इस मूल अधिकार पर आधारित है, कि किसी भी व्यक्ति को अपने विरूद्ध साक्ष्य देने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता और अभियोजन को अपना मामला संदेह के परे खुद साबित करना चाहिए। इसके लिये आरोपी को अपने विरूद्ध साक्ष्य देने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता है।

                                                                       LALARAM MEENA; BHOPAL (MP)

Thursday 28 November 2013

आरुषि हत्या और परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार


नई दिल्ली के आरुषि और नौकर हेमराज की हत्या में मां-बाप राजेश तलवार और नूपुर तलवार को उम्र कैद दी गई है। क्या हैं जज की नजर में वो  परिस्थितिजन्य साक्ष्य जो बनी हैं तलवार दंपति की उम्र कैद का आधार?
1-लास्ट सीन थ्योरी यानि मारा गया इंसान आखिरी बार किसके साथ देखा गया। एडिशनल सेशन जज श्याम लाल ने तलवार दंपति को उम्र कैद देने के लिए पहला आधार इसी को चुना। ये आधार बेहद मजबूत था। 15-16 मई की जिस रात आरुषि और हेमराज की हत्या हुई थी उस दिन दोनों को आखिरी बार नोएडा के जलवायु विहार के फ्लैट नंबर एल-32 में डॉ. राजेश तलवार के ड्राइवर उमेश शर्मा ने रात 930 बजे तलवार दंपति के साथ देखा था।
2-जज ने माना कि साढ़े पांच साल पहले उस अभागी रात को जलवायु विहार के उस फ्लैट में सिर्फ चार ही लोग थे। दो की हत्या हो गई और दो बच गए। लिहाजा शक सीधे बचे हुए लोगों पर ही जाएगा। इसी लिहाज से तलवार दंपति पर कत्ल का शक गया। बाहर से किसी व्यक्ति के आने के सबूत नहीं थे। यही बना सजा का दूसरा आधार।
3-16 मई की सुबह 6 बजे आरुषि का शव उसके बेडरूम में पड़ा था। शव पर चादर ढंकी थी और बगल में ही तलवार दंपति का कमरा था। दोनों कमरों के बीच सिर्फ एक दीवार थी। आखिर दंपति को हत्या की सूरत में कोई आवाज कैसे सुनाई नहीं पड़ी।
4-17 मई 2008 को तब तक लापता बताए जा रहे घर के नौकर हेमराज का शव भी घर की छत पर मिल गया। छत पर जाने का दरवाजा अंदर से बंद था। उसपर ताला जड़ा था। आखिर किसने ये ताला बंद किया। ताले की चाभी तलवार दंपति के पास ही रहती थी। ये बना उन्हें इस केस में उम्रकैद का चौथा आधार।
5-आरुषि का दरवाजा भीतर से ऑटोमैटिक लॉक से बंद था। यानि उसे या तो भीतर से बिना चाभी के खोला जा सकता था या फिर बाहर से चाभी से। नोएडा पुलिस के मुताबिक खुद राजेश तलवार ने रात में दरवाजा बंद कर सोने जाने की बात कही थी तो फिर आरुषि का दरवाजा खुला कैसे। उसे सिर्फ बाहर से चाभी से ही खोला जा सकता था। सजा का ये पांचवां आधार भी तलवार दंपति पर भारी पड़ा।
6-हत्या की पूरी रात घर का इंटरनेट चालू रहा। जज के आदेश के मुताबिक ये भी उनके फैसले का आधार बना क्योंकि घर का इंटरनेट चालू रहना ये साबित कर रहा था कि घर में मौजूद दो सदस्यों में से एक पूरी रात जगा हुआ था।
7-अदालत में तलवार दंपति ने बचने के लिए कई तर्क दिए। उसमें एक तर्क ये भी दिया गया था कि रात में बिजली चली गई थी और इसी वजह से इंटरनेट का राउटर बंद हो गया था लेकिन जांच के दौरान ये साबित हो गया कि उस इलाके में उस रोज बिजली नहीं गई थी और सुबह तक इंटरनेट चलता रहा था।
8-घर के नौकरों के साथ कुछ और लोगों ने मिलकर हत्या की, ये थ्योरी भी कोर्ट में धराशायी हो गई। जज साहब ने इसे भी अपने फैसले का एक आधार बनाया। उन्होंने अपने फैसले में साफ कहा कि उस रात फ्लैट के आसपास किसी अवांछित व्यक्ति के नजर आने या पाए जाने की कोई बात सामने नहीं आई।
9-हत्या की रात किसी बाहरी व्यक्ति के जबरन घर में घुसने की थ्योरी भी अदालत में ठहर नहीं पाई। फैसले में साफ लिखा गया है कि जबरन घर में घुसकर कत्ल करने का कोई सबूत पेश नहीं किया जा सका है। ये बात भी तलवार दंपति को सजा का आधार बनी।
10-चोरी के लिए घर में कुछ लोग घुसे और उन्होंने चोरी के लिए ही आरुषि और हेमराज को मार डाला। ये कहानी भी अदालत में फुस्स हो गई। जज साहब ने अपने आदेश में साफ लिखा है कि जलवायु विहार के एल-32 फ्लैट में किसी तरह की चोरी की या सामान गायब करवाने का कोई साक्ष्य नहीं मिला।
11-आरुषि हेमराज हत्याकांड में घर की नौकरानी भारती की गवाही सबसे अहम साबित हुई। भारती ने साफ कहा था कि घर में घुसते ही उससे आरुषि की मां नूपुर तलवार ने ये नहीं कहा कि उनकी बेटी की हत्या हो गई है, बल्कि उन्होंने ये कहा कि हेमराज बाहर से दरवाजा बंद कर शायद दूध लेने गया हुआ है। जज साहब ने आदेश में इसका जिक्र किया है। अदालती जंग में ये बयान झूठा साबित हुआ।
12-किसी के घर में भी अगर बेटी मार डाली गई हो तो आखिर वो बेहद सामान्य कैसे रह सकता है। इसबात पर अदालत में खासी बहसबाजी हुई थी। जज साहब ने नौकरानी भारती के इस बयान का जिक्र अपने आदेश में किया है कि जिस वक्त वो घर में गई तो उसने तलवार दंपति को रोते हुए नहीं देखा। इस बयान को फैसले का एक आधार बनाया गया।
13-नौकरानी भारती मंडल के बयान के आधार पर ही इस केस के कई सच सामने सके। जज श्याम लाल के आदेश में भारती के एक और बयान का साफ जिक्र है। भारती ने बताया कि जब आरुषि के कत्ल की बात सामने आई तो नूपुर तलवार ने उससे कहा था कि हेमराज आरुषि को मार कर भाग गया है, जबकि हेमराज का शव बाद में खुद छत से मिला। कोर्ट ने इस गवाही को तलवार दंपति के झूठ को साबित करने वाला करार दिया।
14-आरुषि के मां बाप के कपड़ों पर कहीं भी खून के धब्बे नहीं मिले। कोर्ट में इसपर भी बहस हुई। जज ने अपने आदेश में इसे भी सजा का आधार बनाया। कहा कि ये बड़ा अजीब है कि जिन मां-बाप को सुबह अपनी बेटी की हत्या का पता चला हो उन्होंने बेटी के जिस्म को गले तक लगाया हो, साफ था दाल में कुछ काला है।
15-टेरेस की चाभी तलवार दंपति के पास रहती थी। आखिर ये कैसे मुमकिन है कि कोई बाहरी व्यक्ति आए, कत्ल करे और हेमराज की खून से लथपथ लाश को छत पर घसीटता हुआ ले जाए। फिर लौटे छत का दरवाजा भीतर से बंद करे। ताला मारे और निकल जाए। जज साहब ने इसे अहम माना और अपने फैसले का एक आधार भी बनाया।
16-तलवार दंपति के खाने की मेज पर बिना ग्लास स्कॉच की बोतल मिली थी। बोतल पर खून के निशान भी थे। केस में बहस के दौरान ये कहा गया कि कातिल अगर बाहरी होता तो कत्ल के बाद घर में आराम से बैठकर शराब पीता बल्कि भागता। जज ने इस तर्क को भी अहम माना और इसे अपने फैसले का आधार बनाया। कहा कि ऐसा तो घर का कोई करीबी सदस्य ही कर सकता है।
17-मारा गया हेमराज शरीर से तगड़ा था और किसी भी बाहरी व्यक्ति के लिए अकेले उसे मार कर उसके शरीर को घसीटते हुए ऊपर सीढ़ियों से लेकर टेरेस पर ले जाना संभव नहीं था। बिना किसी की मदद के ये लगभग नामुमकिन था। अदालत ने अभियोजन पक्ष का ये तर्क भी माना। इशारा तलवार दंपति की ओर था कि उन्होंने हेमराज को मारा और मिलकर उसे ऊपर खींचकर ले गए।
18-तलवार दंपति के फ्लैट में छत का गेट हमेशा खुला रहता था। जज ने अपने आदेश में साफ लिखा है कि गवाहों के मुताबिक इसगेट पर पहली बार 16 मई की सुबह ताला लगा हुआ देखा गया। आरुषि के कत्ल के बाद पुलिस आई और उसने छत के ताले की चाभी मांगी मगर डॉ. राजेश तलवार ने उसे टाल दिया, जबकि छत के दरवाजे पर खून के धब्बे नजर रहे थे।
19-आरोपियों ने अपने बयान में कहा था कि घर में पुताई का काम शुरू हुआ था और इसी वजह से हेमराज ने छत के दरवाजे को लॉक करना शुरू कर दिया था लेकिन अगर कोई बाहरी व्यक्ति हत्या के इरादे से आता तो वो हेमराज को मार कर आखिर उसके पास से चाभी खोजकर शव को छत पर रखकर दोबारा छत का दरवाजा लॉक क्यों करता। ये सवाल भी फैसले का एक आधार बना।
20-सबूतों को छिपाने की तलवार दंपति की कई कोशिशें अदालत में सामने रखी गईं। जज ने अपने फैसले में भी उनका जिक्र किया। साफ लिखा कि छत पर हेमराज के शव को घसीटकर उसे कूलर के पैनल से ढंकने के साथ ही सामने की लोहे की रेलिंग पर एक चादर फैला दी गई थी ताकि कूलर तक किसी की नजर पड़ सके।
21-इतना ही नहीं जज श्याम लाल ने अपने फैसले में घटनास्थल से साक्ष्य मिटाने की एक और कोशिश का भी जिक्र किया है। उन्होंने साफ कहा कि सीढ़ियों पर खून के धब्बे धोने की कोशिश की गई थी। उन्हें साफ किया गया था।
22-किसी भी हत्या को साबित करने के लिए मकसद या वजह का होना बेहद जरूरी है। आरुषि-हेमराज के कत्ल के पीछे भी वजह थी। जज श्याम लाल ने अपने फैसले में साफ लिखा कि केस की सुनवाई के दौरान ये वजह साबित हो चुकी है और ये वजह भी उनके फैसले का आधार बनी है।
23-जज ने इस बात पर हैरत जताई कि आखिर कोई शख्स अपने ही घर में काम करने वाले नौकर को पहचानने से कैसे इनकार कर सकता है। उन्होंने अपने फैसले में लिखा कि घर की छत पर हेमराज का शव मिलने के बाद जब डॉ. राजेश तलवार को बुलाया गया तो उन्होंने उसे पहचानने से ही इनकार कर दिया, बाद में दूसरे नौकर ने उसकी शिनाख्त की।
24-सबूतों को गायब करने, उनकी जानकारी देने का जिक्र रह-रहकर आरुषि हेमराज हत्याकांड के फैसले में आया। जज श्याम लाल ने हत्या में इस्तेमाल की गई गोल्फ स्टिक का भी जिक्र किया। साफ कहा कि वो स्टिक जिसे डॉ. राजेश तलवार गायब बता रहे थे, वही उन्हें कुछ दिनों बाद घर में अचानक मिल गई लेकिन उन्होंने इसकी सूचना साल भर बाद जांच अधिकारी को दी।
25-जज श्याम लाल ने अपने फैसले का आधार परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को बनाया। उन्होंने साफ कहा कि ये हत्याएं परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के मुताबिक गोल्फ स्टिक से की गईं, जो ये साबित करता है कि हत्याएं अचानक किसी बात से उत्तेजित होकर की गईं।
26-आरुषि-हेमराज की हत्या के बाद उनके गले जिस सफाई से सर्जिकल औजार से रेते गए वो कोई प्रशिक्षित व्यक्ति ही कर सकता है। जज श्याम लाल ने तलवार दंपति को सजा देने के लिए इसे भी आधार माना। उन्होंने अपने आदेश में साफ लिखा कि तलवार दंपति डॉक्टर होने के नाते ऐसा कर सकते हैं।
                                                                              LALARAM MEENA; BHOPAL (MP)