Thursday 25 July 2019

अपंजीकृत भागीदारी विलेख पर आधारित वाद पोषणीय नहीं है

अपंजीकृत भागीदारी विलेख पर आधारित वाद पोषणीय नहीं है

      भागीदारी अधिनियम 1932 धारा 69(2) एवं सिविल प्रक्रिया संहिता आदेश 7 नियम 11 सीपीसी के अंतर्गत प्रस्तुत आवेदन की खारिजी के विरुद्ध  पुनरीक्षण - अभिनिर्धारित - वादपत्र में यह अभिवाक् किया गया कि करार, भागीदारी विलेख के स्वरूप का है - यह भी स्वीकार किया गया कि उक्त भागीदारी विलेख पंजीकृत नहीं है, अतः 1932 के अधिनियम की धारा 69 के अनुसार, उक्त पंजीकृत भागीदारी विलेख पर आधारित वाद पोषणीय नहीं है - आदेश 7 नियम 11 सीपीसी के अंतर्गत आवेदन मंजूर - वाद खारिज- याचिका मंजूर।
निर्मला देवी श्रीदेवी विरुद्ध श्रीमती भारती देवी, सार्ट नोट 129 आई.एल.आर.( 2017) मध्य प्रदेश

Saturday 20 July 2019

पूर्व पति से भरण-पोषण नहीं ले सकते, धारा 125 CrPC

पूर्व पति से भरण-पोषण नहीं ले सकते
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 धारा 125 -भरण-पोषण - हकदारी - शब्द "पत्नी" - आवेदक द्वारा धारा 125 के अंतर्गत प्रस्तुत आवेदन निचले न्यायालयों द्वारा खारिज किया गया था - को चुनौती - अभिनिर्धारित - निचले न्यायालयों के समवर्ती निष्कर्ष है कि आवेदिका /पत्नी का प्रचलित रूढ़ियों के अनुसार प्रतिवादी से विवाह विच्छेद हुआ था तथा तत्पश्चात पत्नी का किसी अन्य व्यक्ति से पुनर्विवाह हुआ था - वह "पत्नी" की परिभाषा की परिधि में नहीं आती तथा प्रत्यर्थी क्रमांक दो/पूर्व पति से दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत भरण पोषण प्राप्त करने की हकदार नहीं है।
नत्थीबाई विरुध मध्य प्रदेश राज्य आई एल आर 2017 मध्य प्रदेश 128

Tuesday 9 July 2019

माध्यस्थम और सुलस अधिनियम 1996 धारा 34, 36 भू राजस्व का बकाया के रूप में अवार्ड राशि की वसूली

माध्यस्थम और सुलस अधिनियम 1996 धारा 34, 36 भू राजस्व का बकाया के रूप में अवार्ड राशि की वसूली

ए-   सूक्ष्म एवं लघु उद्यम सुविधा परिषद नियम मध्यप्रदेश 2006 नियम 5,  सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम 2006 धारा 30 व 18 एवं  माध्यस्थम और सुलह अधिनियम 1996 धारा 34 व 36 - भूमि राजस्व का बकाया के रूप में अवार्ड राशि की वसूली -  2006 के नियमों के नियम 5 को अधिकारातीत घोषित किए जाने हेतु उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत याचिका खारिज की गई - को चुनौती - अभिनिर्धारित - एक बार जब माध्यस्थम अवार्ड पारित किया गया है, 1996 के अधिनियम की धारा 34 के अंतर्गत समय व्यपगत होने के पश्चात अपीलार्थीगण से उसके आदर की अपेक्षा थी - नियम 5, निष्पादन की प्रक्रिया को सरल बनाना आशयीत करता है जो कि भेदभाव पूर्ण, कठोर या भीषण एवं अपीलार्थी गण पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला नहीं है बल्कि काफी युक्ति युक्त प्रक्रिया है तथा उपचारात्मक उपबंद होने के नाते आनुषंगिक है - नियम 5, वर्ष 2006, के अधिनियम के उद्देश्य को पूरा करने के लिए एक अतिरिक्त त्वरित उपचार है - राज्य सरकार द्वारा उक्त नियम विरचित किया जाना यह प्रकट नहीं करता कि पाधिकारी अतिलंघन किया गया है या अधिनियम की व्याप्ति का विस्तार किया गया है - उपबंध का उद्देश्य वसूली को सुनिश्चित करना है - नियम 5 को उचित रूप से अधिनियमित किया गया है, यह सुनिश्चित करने के लिए की लघु सूक्ष्म एवं मध्यम उद्योगों को सहना ना पड़े - नियम 5 को अधिकारातीत नहीं ठहराया जा सकता - अपील खारिज ।

बी-   संविधान - अनुच्छेद 14 - सूक्ष्म एवं लघु उद्यम सुविधा परिषद नियम, मध्यप्रदेश, 2006, नियम 5 एवं माध्यस्थम और सुलह अधिनियम 1996 धारा 34 - अभिनिर्धारित - माध्यस्थम अवार्ड पारित किए जाने के पश्चात तथा जब 1996 के अधिनियम की धारा 34 के अंतर्गत विहित समयावधि के भीतर उस पर आगे आक्षेप नहीं लिया गया, वसूली प्रक्रिया का अवलंब लिया गया है - अतः प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 14 के उल्लंघन में नहीं है - सिविल प्रक्रिया संहिता एकमात्र उपचार नहीं हो सकता, सिविल न्यायालय के हस्तक्षेप के बिना वसूली प्रक्रिया का विधान बनाया जा सकता है।

सी-   सूक्ष्म एवं लघु उद्यम सुविधा परिषद नियम मध्यप्रदेश, 2006, नियम 5 एवं माध्यस्थम और सुलह अधिनियम 1996, धारा 36 - उपचारों की विधि मानता एवं पसंद - अभिनिर्धारित - अनेक उपचार उप बंधित करना विधिमान्य है जब व्यक्ति को दो या अधिक उपचार उपलब्ध है, यदि असंगत हो तब भी - यह व्यक्ति पर है कि वह उनमें से एक का चुनाव करें - उक्त उपचार उपबंधित करने में प्रतिकूलता का कोई प्रश्न नहीं ।

आई एल आर (2017) मध्य प्रदेश 2043 सुप्रीम कोर्ट
न्यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति श्री सैयद अब्दुल नजीर
सिविल अपील नंबर CA. 5317/2017
निर्णय 17 अप्रैल 2017
पावर मशीन्स इंडिया लिमिटेड बिरुद्ध मध्य प्रदेश राज्य अन्य