Friday 1 November 2019

प्रतिकूल कब्जे से मालिक होंगे - सुप्रीम कोर्ट - लालाराम मीणा (पूर्व न्यायाधीश)

*प्रतिकूल कब्जा  सुप्रीम कोर्ट*

 Supreme Court Judgemnet on Adverse Possassion

*रविंद्र कौर ग्रेवाल एवं अन्य विरुद्ध मनजीत कौर कि मामले में  3 सदस्य फुल बेंच  ने सिविल अपील 7764 वर्ष 2014* निर्णय दिनांक 7 अगस्त 2019


         *जस्टिस अरूण मिश्रा, जस्टिस एस.अब्दुल नजीर और जस्टिस एम.आर शाह की पीठ ने रविंदर कौर ग्रेवाल बनाम मंजीत कौर के मामले में* तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि-  संपत्ति पर जिसका कब्जा है, उसे कोई दूसरा व्यक्ति बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के वहां से हटा नहीं सकता है. अगर किसी ने 12 साल से अवैध कब्जा कर रखा है तो कानूनी मालिक के पास भी उसे हटाने का अधिकार भी नहीं रह जाएगा। ऐसी स्थिति में अवैध कब्जे वाले को ही कानूनी अधिकार, मालिकाना हक मिल जाएगा।
             हमारे विचार से इसका परिणाम यह होगा कि एक बार अधिकार (राइट), मालिकाना हक (टाइटल) या हिस्सा (इंट्रेस्ट) मिल जाने पर उसे वादी कानून के अनुच्छेद 65 के दायरे में तलवार की तरह इस्तेमाल कर सकता है, वहीं प्रतिवादी के लिए यह एक सुरक्षा कवच होगा। 
             अगर किसी व्यक्ति ने कानून के तहत अवैध कब्जे को भी कानूनी कब्जे में तब्दील कर लिया, तो जबर्दस्ती हटाये जाने पर वह कानून की मदद ले सकता है।
        *पीठ ने लिमिटेशन एक्ट, 1963 की धारा 65 का हवाला देते हुए कहा कि इसमें यह कहीं नहीं कहा गया है कि एडवर्स कब्जाधारी व्यक्ति अपनी भूमि को बचाने के लिए मुकदमा दायर नहीं कर सकता है। ऐसा व्यक्ति कब्जा बचाने के लिए मुकदमा दायर कर सकता है और एडवर्स कब्जे की भूमि का अधिकार घोषित करने का दावा भी कर सकता है।* इस फैसले के साथ ही *कोर्ट ने गुरुद्वारा साहिब बनाम ग्राम पंचायत श्रीथला(2014), उत्तराखंड बनाम मंदिर श्रीलक्षमी सिद्ध महाराज (2017) और धर्मपाल बनाम पंजाब वक्फ बोर्ड (2018) में दिए गए फैसलों को निरस्त (ओवररुल) कर दिया।*
         किसी अन्य व्यक्ति द्वारा कानून हाथ में लेने के कारण बेदखली किए जाने के मामले में, अनुच्छेद 64 के तहत कब्जे के लिए दायर सूट या केस सुनवाई योग्य है, भले ही वो व्यक्ति उस प्रॉपर्टी पर प्रतिकूल कब्जे के तहत ही वो मालिक क्यों न बना हो।
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*12 साल प्रॉपर्टी पर रहने से आप उसके मालिक बन जाते है- सुप्रीम कोर्ट का अहम् फैसला  Supreme Court Judgemnet on Adverse Possassion*

Case Number C.A. No.- 007764 -007764  – 201407 -08-2019

Petitioner- RAVINDER KAUR GREWAL
Respondent- MANJIT KAUR

Bench Judgment ByHON’BLE MR. JUSTICE ARUN MISHRA

क्या है एडवर्स पोजेशन का कानून:

संपत्ति का मालिकाना हक कौन नहीं पाना चाहता | लेकिन यह स्थिति बहुत मुश्किलों को पार करने के बाद आती है। उदाहरण के तौर पर राम का किसी भी शहर में एक घर है, जिसे उन्होंने रहने के लिए अपने भाई श्याम को या किसी दूसरे व्यक्ति को रहने के लिए दिया हुआ है। तो कानून ये है की 12 साल बाद श्याम को ये जो भी उस प्रॉपर्टी पर रहता है उसको प्रॉपर्टी बेचने का अधिकार है कानून के मुताबिक पोजेशन श्याम को मिलेगा। इसके कहते हैं प्रतिकूल कब्जा यानी एडवर्स पोजेशन।

लेकिन कब्ज़ा सामान्य है तो इस स्थिति में जमीन का स्वामित्व नहीं मिलता, लेकिन प्रतिकूल कब्जे के मामले में वह संपत्ति के मालिकाना हक पर दावा कर सकता है। जब ऐसी स्थिति होती है तो उसे साबित होने तक यह माना जाता है कि पोजेशन कानूनी है और इसकी इजाजत दी गई है। प्रतिकूल कब्जे के तहत जरूरतें सिर्फ यही हैं कि पोजेशन जबरदस्ती या गैर कानूनी तरीकों से हासिल न किया गया हो।

यानि कहने का मतलब है वैध मालिक अपनी अचल संपत्ति को दूसरे के कब्जे से वापस पाने के लिए 12 साल के अंदर कदम नहीं उठा पाएंगे, तो उनका मालिकाना हक समाप्त हो जाएगा और उस अचल संपत्ति पर जिसने 12 साल तक कब्जा कर रखा है, उसी को कानूनी तौर पर मालिकाना हक दे दिया जाएगा. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में एक बड़ा फैसला दिया है | जजमेंट जानने से पहले सबसे पहले जानते है लिमिटेशन एक्ट को-

 इसके लिए बेहद जरुरी है जानना लिमिटेशन एक्ट :-

लिमिटेशन एक्ट, 1963 कानून का अहम हिस्सा है, जो प्रतिकूल कब्जे के बारे में विस्तार से बताता है। इस कानून में प्राइवेट प्रॉपर्टी के लिए 12 साल और सरकारी प्रॉपर्टी के लिए 30 साल की अवधि बताई गयी है, जिसमें आप संपत्ति का मालिकाना हक ले सकते हैं।  इस कानून के अनुसार  समय रहते अपनी प्रॉपर्टी के कब्जे को नहीं हटते है तो किसी भी तरह की देरी भविष्य में परेशानियां पैदा कर सकती है।

‘लिमिटेशन उपाय को खत्म कर देता है, जो आपके लिए सही नहीं है’, यही सिद्धांत लिमिटेशन एक्ट का आधार है। इसका मतलब है कि प्रतिकूल कब्जे के मामले में असली मालिक के पास प्रॉपर्टी टाइटल हो सकता है, लेकिन कानून के जरिए वह इस तरह दावा करने का अधिकार खो देता है।
इससे पहले 2014 में उच्चतम न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ ने फैसला दिया था कि एडवर्स कब्जाधारी व्यक्ति जमीन का अधिकार नहीं ले सकता है. साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा था कि अगर मालिक जमीन मांग रहा है तो उसे यह वापस करनी होगी. इसके साथ ही कोर्ट ने इस फैसले में यह भी कहा था कि सरकार एडवर्स पजेशन के कानून की समीक्षा करे और इसे समाप्त करने पर विचार करे |

मालिक के पास कब्जाधारी को हटाने का हक नहीं रह जाता

जस्टिस अरूण मिश्रा ,जस्टिस एस.अब्दुल नजीर और जस्टिस एम.आर शाह की पीठ ने रविंदर कौर ग्रेवाल बनाम मंजीत कौर के मामले में कहा कितीन सदस्यीय पीठ ने कहा- हमारा फैसला है कि संपत्ति पर जिसका कब्जा है, उसे कोई दूसरा व्यक्ति बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के वहां से हटा नहीं सकता है. अगर किसी ने 12 साल से अवैध कब्जा कर रखा है तो कानूनी मालिक के पास भी उसे हटाने का अधिकार भी नहीं रह जाएगा. ऐसी स्थिति में अवैध कब्जे वाले को ही कानूनी अधिकार, मालिकाना हक मिल जाएगा. हमारे विचार से इसका परिणाम यह होगा कि एक बार अधिकार (राइट), मालिकाना हक (टाइटल) या हिस्सा (इंट्रेस्ट) मिल जाने पर उसे वादी कानून के अनुच्छेद 65 के दायरे में तलवार की तरह इस्तेमाल कर सकता है, वहीं प्रतिवादी के लिए यह एक सुरक्षा कवच होगा. अगर किसी व्यक्ति ने कानून के तहत अवैध कब्जे को भी कानूनी कब्जे में तब्दील कर लिया, तो जबर्दस्ती हटाये जाने पर वह कानून की मदद ले सकता है |

पीठ ने लिमिटेशन एक्ट, 1963 की धारा 65 का हवाला देते हुए कहा कि इसमें यह कहीं नहीं कहा गया है कि एडवर्स कब्जाधारी व्यक्ति अपनी भूमि को बचाने के लिए मुकदमा दायर नहीं कर सकता है. ऐसा व्यक्ति कब्जा बचाने के लिए मुकदमा दायर कर सकता है और एडवर्स कब्जे की भूमि का अधिकार घोषित करने का दावा भी कर सकता है. इस फैसले के साथ ही कोर्ट ने गुरुद्वारा साहिब बनाम ग्राम पंचायत श्रीथला(2014), उत्तराखंड बनाम मंदिर श्रीलक्षमी सिद्ध महाराज (2017) और धर्मपाल बनाम पंजाब वक्फ बोर्ड (2018) में दिए गए फैसलों को निरस्त कर दिया |

किसी अन्य व्यक्ति द्वारा कानून हाथ में लेने के कारण बेदखली किए जाने के मामले में,अनुच्छेद 64 के तहत कब्जे के लिए दायर सूट या केस सुनवाई योग्य है,भले ही वो व्यक्ति उस प्रॉपर्टी पर प्रतिकूल कब्जे के तहत ही वो मालिक क्यों न बना हो।