Friday 4 January 2019

जांच के दौरान कर्मचारी का निलंबन आदेश 90 दिन के भीतर नहीं, हमेशा निलंबन स्वतः वापिस नहीं होता

अनुशासनिक जांच एवं दंड अन्वेषण जांच के दौरान कर्मचारी का निलंबन आदेश 90 दिन के भीतर प्रस्तुत नहीं करने पर स्वत: समाप्त /वापसी के संबंध में अभी निर्धारित- इन नियमों को एक साथ पढ़े जाने पर यह स्पष्ट है कि निलंबन आदेश की स्वत: वापसी का प्रश्न तब उत्पन्न होगा जब कर्मचारी को नियमों के नियम 9(1) ए के अनुसार अनुशासनिक कार्रवाई के कारण निलंबन में रखा गया है परंतु वर्तमान प्रकरण में याची को किसी अनुशासनिक कार्रवाई के कारण निलंबित नहीं किया गया था बल्कि इसलिए निलंबित किया गया था कि एक दांडिक प्रकरण हेतु अन्वेषण चल रहा था, उक्त परिस्थितियों में नियमों में कोई उपबंध नहीं है कि 90 दिनों के पश्चात निलंबन स्वेता वापस होगा। उमेश शुक्ला विरुद्ध मध्य प्रदेश राज्य ILR 2017 म.प्र. 807

परिसीमा अधिनियम, सहमति डिग्री के 17 वर्ष पश्चात दावा पैश

*परिसीमा अधिनियम, सहमति डिग्री के 17 वर्ष पश्चात दावा पैश*
 - दावा प्रस्तुत करने के लिए परिसीमा 1982 में वादीगण ने सहमति डिग्री के 17 वर्ष पश्चात वर्ष 1965 में पारित सहमति डिग्री को 1982 मे उसे कपट द्वारा अभीप्राप्त किए जाने के आधार पर अपास्त करने की प्रार्थना के साथ दावा प्रस्तुत किया,  विचारण न्यायालय ने परिसीमा अधिनियम के अनुच्छेद 59 के आधार पर दावा स्वीकार किया गया।
        जिसकी अपील करने पर अपील स्वीकार कर दावा निरस्त किया गया और द्वितीय अपील खारिज की जा कर दावा अस्वीकार किया।
        अभीनिर्धारित किया कि- यदि वादी क्रमांक 1 व 2 सहमति डिग्री से अवगत नहीं थे या उक्त डिग्री से व्यथित थे तब उन्हें कदाचार/ घोर उपेक्षा जैसा कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 32 नियम 3 (ए) के अंतर्गत उपबंधित है, अभिवाक्  करते हुए अथवा कपट या दुरभिसंधि हेतु साक्ष्य अधिनियम की धारा 44 के अंतर्गत प्रकरण लेकर आना चाहिए था परंतु अभिलेख दर्शाता है कि अपिलार्थी गण द्वारा ऐसे कोई अभिवचन/निवेदन नहीं किए गए - आगे  अभिनिर्धारित- वादी गण ने सहमति डिग्री के 17 वर्ष पश्चात बाद प्रस्तुत किया - परिसीमा अधिनियम की धारा 6,7,8 को एक साथ पढ़ने पर दर्शित होता है कि मुकदमे बाज परिसीमा की नई अवधि का हकदार है अर्थात अक्षमता समाप्त होने की तिथि से 3 वर्ष - वयस्कता प्राप्त करने के पश्चात 3 वर्षों के भीतर वाद प्रस्तुत नहीं किया गया है और इसलिए समय द्वारा वर्जित है - अपीली न्यायालय ने उचित रूप से अपील खारिज की- द्वितीय अपील भी खारिज की गई ।

*चिरौंजी बाई विरुद्ध नारायण सिंह आईएलआर 2017 मध्य प्रदेश 1135*