Monday 17 February 2014

धोषणा का वाद



धोषणा

1. धारा 34 विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 के तहत कोई व्यक्ति किसी विधिक हैसियत या किसी संपत्ति के बारे में कोई अधिकार के लिये किसी अन्य व्यक्ति के विरूद्ध वाद संस्थित कर सकता है जो उसकी ऐसी विधिक हैसियत या संपत्ति पर उसके अधिकार से इंकार करता है या इंकार करने में हितबद्ध हो तब न्यायालय विवेकानुसार धोषणा कर सकेगा की वह व्यक्ति ऐसी विधिक हैसियत रखता है या संपत्ति पर अधिकार रखता है और वादी के लिये यह आवश्यक नहीं की वह किसी अतिरिक्त अनुतोष की मांग करे:

परंतु न्यायालय ऐसी कोई धोषणा नहीं करेगी जहां वादी मात्र हक की धोषणा के अतिरिक्त अनुतोष मांगने के लिये समर्थ होते हुये भी ऐसा करने में लोप करे।

2. धारा 35 विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 के तहत् धारा 34 के तहत् की गई धोषणा केवल वाद के पक्षकारों, उनके माध्यम से दावा करने वाले व्यक्तियों पर ही आबद्ध कर होती है अर्थात उक्त डिक्लेरेशन या धोषणा इनपरसोनम होती है।

3. निम्नलिखित तथ्य ऐसे है जिनके बारे में धोषणा का वाद लाया जा सकता है:-

1. जन्म तिथि संबंधी धोषणा।

2. विधिक मृत्यु संबंधी धोषणा।

3. पुत्र या पिता होने या न होने संबंधी धोषणा।

4. दत्तक संबंधी धोषणा।

5. उप नाम या सरनेम बदलने की धोषणा।

6. नागरिक होने की धोषणा।

7. किसी कंपनी में संचालक या शेयर होल्डर न होने संबंधी धोषणा।

8. विक्रय पत्र के शून्य व वादी पर बंधनकारक न होने संबंधी धोषणा।

9. किसी कर्मचारी का अन्य कर्मचारी या कर्मचारीगण से वरिष्ठ होने और अन्य कर्मचारी की पदोन्नति अवैध होने संबंधी धोषणा।

10. सेवा समाप्ति को शून्य घोषित करने की घोषणा।

11. किसी व्यक्ति का वैध किरायेदार होने संबंधी घेाषणा।

12. किसी व्यक्ति का किसी संपत्ति का स्वामी होने संबंधी धोषणा।

13. किसी संपत्ति में स्वयं के अंश संबंधी धोषणा।

14. विवाह के शून्य होने संबंधी घोषणा।

15. पेंशन का अधिकारी होने की घोषणा।

उक्त कुछ उदाहरण दिये हैं जिनमें घोषणा का वाद लाया जा सकता है ऐसे अन्य कई विधिक हैसियत या अधिकार है जिनके संबंध में कोई भी व्यक्ति धोषणा का वाद ला सकता है।

4. निम्नलिखित तथ्य ऐसे है जिनके बारे में घोषणा का वाद नहीं लाया जा सकता है:-

1. किसी स्थान विशेष पर खड़े रहकर भीख मांगने के अधिकार की घोषणा।

भीख मांगना कोई अधिकार नहीं है और भिखारी होना कोई विधिक हैसियत भी नहीं रखता है अतः ऐसे मामले में घोषणा नहीं ली जा सकती है।

2. किसी व्यक्ति का किसी जाति विशेष का होने संबंधी घोषणा।

क्योंकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की सूची दी गई है जो इस संबंध में निश्चायक है अतः जाति संबंधी घाोषणा कोई भी व्यक्ति नहीं पा सकता है।

3. किसी ऐसे कृत्य के संबंध में घोषणा जो अपने आप में अवैध है या ऐसे संविदा जो शून्य है उनको लेकर कोई धोषणा।

उक्त कुछ उदाहरण है जहां घोषणा का अनुतोष नहीं दिया जा सकता इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि जहां किसी व्यक्ति की कोई विधिक हैसियत या वैधानिक अधिकार उस तथ्य के संबंध में न हो या वह तथ्य अपने आप में ही वैध हो वहां न्यायालय धोषणा का अनुतोष नहीं देती है।

5. अतिरिक्त अनुतोष की आवश्यकता:- धारा 34 का परंतुक समझना इन मामलों में अत्यंत आवश्यक है जिसके अनुसार जहां वादी धोषणा के अतिरिक्त अनुतोष मांगने के लिये समर्थ होते हुये भी वैसा करने में लोप करता है तब उसे घोषणा नहीं दी जाती है इसका मूल कारण यह है कि यदि केवल घोषणा दे भी दी जाये तो उससे वादी को कोई लाभ नहीं होना है और इससे वाद बहुलता भी बढ़ती है इसे कुछ उदाहरणों द्वारा समझा जा सकता है जैसेः-

1. न्याय दृष्टांत प्रकाश चन्द्र विरूद्ध एस.एस. ग्रेवाल, 1975 सी.आर.एल.जे. 679 में माननीय पंजाब उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने यह प्रतिपादित किया है कि केवल घोषणा की डिक्री निष्पादन योग्य नहीं होती है क्योंकि उसमें वादी के अधिकारों की केवल घोषणा की जाती है प्रतिवादी को कुछ करने या न करने का आदेश उसमें नहीं रहता है निष्पादन में भी प्रतिवादी /निर्णीत ऋणी के विरूद्ध कोई आदेशिका जारी नहीं की जा सकती है डिक्री धारी को उक्त घोषणा के आधार पर शेष अनुतोषों के लिये अन्य वाद ही लाना पड़ता है । इस संबंध में इस निर्णय का चरण आठ अवलोकनीय है।

2. न्याय दृष्टांत रंगनाथ राय विरूद्ध पी. साहनी, 1968 सी.आर.एल.जे. 704 में यह प्रतिपादित किया गया है कि जहां केवल घोषणा की डिक्री हो और प्रतिवादी को कुछ करने का नहीं कहां गया हो वहां न्यायालय के आदेश के अवमान का मामला भी नहीं बनेगा।

3. न्याय दृष्टांत ए.आई.आर. 1957, इलाहाबाद 575 में माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय की खण्ड पीठ ने यह प्रतिपादित किया है कि एक डिक्री में किसी संपत्ति पर वार्षिक भत्ते का भार या चार्ज करने की धोषणा की गई उन भत्तों के लिये संपत्ति नीलाम की जा सकेगी ऐसा कोई अनुतोष नहीं था ऐसी डिक्री निष्पादन योग्य नहीं है बल्कि भत्तों की वसूली के लिये अन्य वाद लाना होगा।

4. निष्पादन न्यायालय डिक्री की शर्तो से बाध्य होते हैं वे डिक्री में कुछ जोड़ या परिवर्तित नहीं कर सकते। शासकीय सेवक सेवा में निरंतर रहने का अधिकारी है ऐसी धोषणा की डिक्री दी गई है पारिणामिक अनुतोष जैसे वेतन का एरियर्स और ब्याज क्लेम नहीं किया गया निष्पादन न्यायालय ने दिला दिया इसे अनुचित माना गया इस संबंध में न्याय दृष्टांत स्टेट आॅफ एम.पी. विरूद्ध मांगी लाल शर्मा, ए.आई.आर. 1998 एस.सी. 743 अवलोकनीय है।

5. ट्रक के स्वामी ने ट्रक न लौटने के कारण घोषणा का वाद पेश किया कि वह ट्रक न लौटाने के कारण हुई नुकसानी पाने का अधिकारी है। वादी ने यह पारिणामिक अनुतोष अर्थात क्वानटिफाई एमाउंट का भुगतान का अनुतोष नहीं चाहा वाद द्वितीय अपील तक निरस्त हुआ माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने संशोधन आवेदन दिया चूंकि अनुतोष समय बाधित हो चुका था और अनुतोष प्रारंभ से ही मांगा जा सकता था संशोधन आवेदन निरस्त किया गया। न्याय दृष्टांत मुन्नी लाल विरूद्ध आॅरियण्टल फायर एण्ड जनरल इंश्योरेंश।

6. न्याय दृष्टांत मेहर चंद दास विरूद्ध लाल बाबू सिद्धकी, ए.आई.आर. 2007 एस.सी. 1499 में वादी ने ऐसी धोषणा का वाद पेश किया कि कलेक्टर द्वारा प्रतिवादी को दिया गया पर्चा कपट पूर्वक प्राप्त किया गया है प्रतिवादी स्वीकृत रूप से वादी का किरायेदार था व संपत्ति के आधिपत्य में था वादी ने केवल घोषणा का वाद पेश किया आधिपत्य की सहायता नहीं चाही गई वाद चलने योग्य नहीं पाया गया।

7. न्याय दृष्टांत रोड ट्रांसपोर्ट विरूद्ध श्याम बिहारी, ए.आई.आर. 2005 एस.सी. 3476 में कर्मचारी ने सेवा समाप्ति के आदेश को शून्य घोषित करवाने का वाद पेश किया सेवा समाप्ति आदेश को डिक्री में शून्य घोषित किया गया डिक्री में वित्तीय लाभ के बारे में कुछ नहीं कहां गया कर्मचारी पूर्व का वेतन नहीं पा सकता है।

8. न्याय दृष्टांत विनय कृष्ण विरूद्ध केशव चंद, ए.आई.आर. 1993 एस.सी. 957 में वादी ने संपत्ति में अपने अंश की धोषणा का वाद पेश किया वादी संपत्ति के एक मेव आधिपत्य में नहीं था दो व्यक्ति किरोयदार के रूप में कब्जे में थे आधिपत्य का अनुतोष नहीं मांगा। अन्य अनुतोष जो उचित हो दिलाया जावे इसमें आधिपत्य की सहायता कवर नहीं होती है यह विधि प्रतिपादित की गई वाद निरस्त किया गया।

9. वादी ने पदोन्नति का अधिकारी होने की घोषणा का वाद पेश किया उसमें पारिणामिक सहायता जैसे अन्य लाभ वेतन वगैरह भी मांगे निष्पादन न्यायालय ने राशि पर ब्याज दिलवा दिया ब्याज न तो मांगा गया था न मूल डिक्री में दिलवाया गया था ऐसे आदेश को अवैध माना गया न्याय दृष्टांत स्टेट आॅफ पंजाब विरूद्ध कृष्ण दयाल शर्मा, ए.आई.आर. 1996 एस.सी. 2117।

10. विक्रय करार करने वाले वादी ने अतिक्रामक के विरूद्ध आधिपत्य वापस पाने धोषणा और निषेधाज्ञा का वाद पेश किया। अनुबंध पालन का अनुतोष नहीं मांगने के कारण वाद विफल नहीं होगा क्योंकि ऐसा अनुतोष प्रतिवादी अतिक्रामक से नहीं मांगा जा सकता था न्यायालय वादी को केवल आधिपत्य वापस दिला सकती है उसे स्वामी घोषित नहीं कर सकती है इस संबंध में न्याय दृष्टांत रमेश चंद्र विरूद्ध अनिल पंजवानी ए.आई.आर. 2003 एस.सी. 2508 अवलोकनीय है।

11. वादी ने स्वत्व घोषणा और निषेधाज्ञा का वाद पेश किया लेकिन संविदा के विशिष्ठ पालन का अनुतोष नहीं मांगा यद्यपि उसका भी वाद कारण उत्पन्न हो चुका था क्योंकि प्रतिवादी ने विशिष्ठ रूप से अनुबंध के पालन से इंकार कर दिया था ऐसे में वादी द्वारा संविदा के विशिष्ठ पालन की मांग न करने यह माना जायेगा कि वादी ने संविदा के विशिष्ठ पालन के क्लेम का त्याग कर दिया है ऐसे मामले में आदेश 2 नियम 2 सी.पी.सी. भी लागू होगी वादी 11 वर्ष बाद संविदा के विशिष्ठ पालन का अनुतोष जोड़ना चाहता है अनुच्छेद 54 परिसीमा अधिनियम, 1963 के तहत् उसका अनुतोष अवधि वादित है और नहीं जोड़ा जा सकता न्याय दृष्टांत वन विभाग कर्मचारी गृह निर्माण सहकारी संस्था मर्यादित विरूद्ध रमेश चंद, ए.आई.आर. 2011 एस.सी. 41 इस संबंध में अवलोकनीय है।

12. न्याय दृष्टांत दरबारी विरूद्ध सुनवा 2004 (2) एम.पी.एच.टी. 111 में यह प्रतिपादित किया गया है कि यदि वादी अन्य अनुतोष की मांग के लिये सक्षम न हो तो केवल घोषणा का वाद भी चलने योग्य होता है।

13. वादी के आधिपत्य में हस्तक्षेप रोकने का निषेधाज्ञा का वाद - वाद के अनुतोष के भाग में स्वत्व घोषणा का अनुतोष विशिष्ठ रूप से उल्लेखित नहीं किया गया वाद इस आधार पर निरस्त नहीं किया जा सकता वाद पत्र के पूरे तथ्य देखना चाहिये इस मामले में वाद पत्र के पूरे तथ्यों में वादी स्वत्व और आधिपत्य बतलाते हुये आया था न्याय दृष्टांत कार्पोरेशन आॅफ सिटी बैंगलोर विरूद्ध एम. पापेश, ए.आई.आर. 1989 एस.सी. 1809 अवलोकनीय है।

14. प्रोबेशन या परिविक्षा काल के बाद नियमित नियुक्ति आदेश जारी नहीं किया गया वादी सेवा में सतत् रहने की घोषणा नहीं पा सकता है न्याय दृष्टांत अशोक कुमार विरूद्ध नेशनल इंश्योरेंश कंपनी ए.आई.आर. 1998 एस.सी. 2046 इस संबंध में अवलोकनीय है।

उक्त उदाहरणों से धारा विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम के परंतुक को समझा जा सकता है।

6. परंतुक बावत् आपत्ति का समय:- ऐसा अभिवाक कि वादी अन्य अनुतोष मांगने में सक्षम है फिर भी उसने नहीं मांगा अर्थात वाद को धारा 34 के परंतुक की बाधा आती है, सर्वप्रथम अवसर पर लेना चाहिये ताकि वादी आवश्यक संशोधन कर सके प्रथम बार सर्वोच्च न्यायालय में ऐसा अभिवाक मान्य नहीं किया जा सकता इस संबंध में न्याय दृष्टांत रूकमणी बाई विरूद्ध लाला लक्ष्मी नारायण, ए.आई.आर. 1960 एस.सी. 335 तीन न्याय मूर्तिगण की पीठ का न्याय दृष्टांत निर्णय चरण 30 अवलोकनीय है।

विचारण न्यायालय को भी इस संबंध में सतर्क रहना चाहिये और यदि परंतुक लागू होता है तो इस बारे में वादी का ध्यान आकृर्षित कराया जा सकता है।

7. परंतुक लागू होने पर प्रक्रिया:- वादी अन्य अनुतोष मांगने में सक्षम होते हुये भी नहीं मांगता है तब वाद खारिज नहीं करना चाहिये वादी को संशोधन का एक अवसर देना चाहिये।

जहां प्रतिवादी की लिखित कथन में आपत्ति के बाद भी वाद भी वादी का वाद वैसे ही जारी रखता है वहां सामान्यतः वादी को संशोधन का अवसर देने की आवश्यकता नहीं मानी गई इस संबंध में न्याय दृष्टांत आई.एल.आर. (1955) 2 कलकत्ता 109 डी.बी. अवलोकनीय हैं

सामान्यतः न्यायालय को एक अवसर संशोधन का दे देना चाहिये ताकि अपील न्यायालय से वाद प्रति प्रेषित या रिमांड होने की स्थिति नहीं बनती है।

8. वाद प्रश्न:- घोषणा के मामले में सामान्यतः वाद प्रश्न इस प्रकार बनाने चाहिये की वादी का घोषणा का आधार वाद प्रश्नों में आ जावे जैसे:-

1. क्या वादी विक्रय पत्र दिनांक 01-01-2011 के आधार पर /दान पत्र दिनांक 01-01-2011 के आधार पर / बिल दिनांक 01-01-2011 के आधार पर वाद ग्रस्त संपत्ति का स्वामी है।

या

2. क्या वादी का वाद ग्रस्त संपत्ति पर खुले रूप से, लगातार, 12 वर्ष/ 30 वर्ष से अधिक समय से, अबाध, वादी की जानकारी में और स्वत्वों को नकारते हुये आधिपत्य चला आ रहा है।

या

3. क्या वादी की सही जन्म तिथि 01-01-2011 है।

या

4. क्या एक्स के बारे में पिछले 7 वर्षो से वादी ने या एक्स के रिश्तेदारों ने एक्स के जीवित रहने के बारे में कुछ नहीं सुना है।

या

5. क्या वादी भारत का नागरिक है।

या

6. क्या वादी का उपनाम श्रीवास्तव /शर्मा/ गुप्ता है।

या

7. क्या विक्रय पत्र दिनांक 01-01-2011 वादी के स्वत्वों के मुकाबले शून्य है /वादी पर बंधनकारी नहीं है।

घोषणा के मामलों में या किसी भी मामले में न्यायालय को यह सावधानी रखना चाहिये कि कोई भी ऐसा तात्विक वाद प्रश्न जो अनुतोष पर प्रभाव डालने वाला हो या अनुतोष के निराकरण के लिये महत्वपूर्ण हो वह आवश्यक बनाना चाहिये न्याय दृष्टांत हरियाणा स्टेट इलेक्ट्राॅनिक डवलपमेंट कार्पोरेशन विरूद्ध सीमा शर्मा, ए.आई.आर. 2009 एस.सी. 2592 में वादी ने उसके प्रतिवादीगण से वरिष्ठ होने और प्रतिवादीगण की पदोन्नति अवैध होने की घोषणा का वाद पेश किया था प्रतिवादी का अभिवाक था की पदोन्नति मेरिट कम सीनियारटी के आधार पर की गई है। पदोन्नति की रीति या प्रकार पर कोई वाद प्रश्न विरचित नहीं किया गया था मामले में यह प्रश्न अत्यंत महत्व का था की पदोन्नति क्या मेरिट कम सीनयारिटी पर की गई है इस प्रश्न के निराकरण के लिय सर्वोच्च न्यायालय से इस मामलों को रिमांड करना पड़ा था।

इस उदाहरण से यह समझा जा सकता है की वाद प्रश्न बनाते समय कितनी सावधानी अपेक्षित है और मामले में कौन सा वाद प्रश्न अनुतोष को जड़ तक प्रभावित करेगा।

इस मामले में न्यायालय ने यह भी प्रतिपादित किया है कि जहां पदोन्नति मेरिट कम सीनयारटी पर होती है वहां मेरिट का महत्व होता है और जहां पदोन्नति सीनयारिटी कम मेरिट पर होती है वहां सीनयारटी का महत्व होता है जब तक की वरिष्ठ कर्मचारी पदोन्नति के योग्य न हो।

9. आवश्यक पक्षकार:- आदेश 1 नियम 3 बी सी.पी.सी. में मध्यप्रदेश के स्थानीय संशोधन द्वारा यह प्रावधान जोड़ा गया है कि:-

’’ 3 बी वादों को ग्रहण करने की लिये तीन शर्ते -1-

ए. किसी कृषि भूमि पर हक या किसी अधिकार की घोषणा के लिये, किसी अन्य अनुतोष सहित या अन्य अनुतोष के बिना,

बी. किसी कृषि भूमि के अंतरण के लिये किसी संविदा के विशिष्ट पालन के लिये, किसी अनुतोष सहित या अनुतोष के बिना।’’

1. कोई वाद या कार्यवाही किसी न्यायालय द्वारा ग्रहण नहीं की जावेगी, यदि वादी या आवेदक, यह जानते हुये या यह विश्वास करने का कारण रखते हुये कि उक्त भूमि के संबंध में मध्यप्रदेश कृषि अधिकतम जोत सीमा आरोपण अधिनियम, 1960 या म.प्र. सिलिंग आॅन एग्रीकल्चरल होलडिंग एक्ट, 1960 की धारा 9 के अधीन उसके द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा इस अधिनियम के अधीन नियुक्त किये गये सक्षम प्राधिकारी के समक्ष विवरणी दाखिल किये जाने की अपेक्षा की गई है या अपेक्षा की जाती है, ऐसे वाद या कार्यवाही में म.प्र. राज्य को प्रतिवादी या अनावेदक के रूप में पक्षकार नहीं बनाया गया है।

2. कोई न्यायालय उप नियम 1 में उल्लेखित लंबित वाद या कार्यवाही में आगे कार्यवाही नहीं करेगा यदि राज्य सरकार को यथाशीध्र प्रतिवादी या अनावेदक के रूप में इस प्रकार पक्षकार नहीं बनाया गया है।

स्पष्टीकरण:- वाद या कार्यवाही में अपील, निर्देश या पुनरीक्षण शामिल होगा किन्तु ऐसे वाद या कार्यवाही में पारित किसी डिक्री या अंतिम आदेश के निष्पादन की कार्यवाही शामिल नहीं होगी।

उक्त प्रावधान से यह स्पष्ट है कि कृषि भूमि संबंधी घोषणा, अंतरण या विनिर्दिष्ट के मामले में उक्त प्रकार के मामले में मध्यप्रदेश राज्य एक आवश्यक पक्षकार होता है अतः विचारण न्यायालय को इस संबंध में अत्यंत सावधानी रखना चाहिये।

10. विविध तथ्य:- संपत्ति के संबंध मंे सक्षम न्यायालय ने प्रोबेट दे दिया है यह तथ्य उसी संपत्ति के संबंध में घोषणा व निषेधाज्ञा के वाद के लिये रोक या बार नहीं है प्रोबेट न्यायालय स्वत्व के निराकरण के लिये सक्षम नहीं होते है न यह प्रश्न तय कर सकते है कि क्या संपत्ति संयुक्त परिवार की पैत्रक संपत्ति है प्रोबेट न्यायालय का क्षेत्राधिकार सीमित होता है वे विल का निष्पादन स्वस्थ्य मानसिक दशा में दो गवाहों के सामने किया या नहीं मात्र इतना देखती है इस संबंध में न्याय दृष्टांत कवर जीत सिंह विरूद्ध हरदयाल सिंह, ए.आई.आर. 2008 एस.सी. 306 अवलोकनीय है।

2. धारा 34 का अनुतोष विवेकाधिकार का अनुतोष है इसे देने में दोनों पक्षकारों का आचरण, पारस्परिकता या म्यूचूलिटि की उपस्थिति, आॅबलिगेशन की प्रकृति, न्यायालय की डिक्री का प्रभाव आदि पर विचार करना चाहिये इस संबंध में न्याय दृष्टांत एम.पी. माथुर विरूद्ध डी.टी.सी., ए.आई.आर. 2007 एस.सी. 424 अवलोकनीय है।

3. वादी ने प्रतिवादी से संपत्ति क्रय की प्रतिवादी संपत्ति को पंजीकृत विक्रय पत्र से पहले ही विक्रय कर चुका था वह वादी के पक्ष में विक्रय पत्र निष्पादित करने में समक्ष नहीं था क्योंकि वह संपत्ति पहले ही बेच चुका था ऐसे मामले में पश्चातवर्ती क्रेता को कोई स्वत्व नहीं मिलता है न्याय दृष्टांत ए.एस. रेड्डी विरूद्ध बी.एस. रेड्डी (2010) 6 एस.सी.सी. 68 अवलोकनीय है।

4. ऐसी घोषणा का वाद की वादी के पिता द्वारा निष्पादित विक्रय पत्र नल एण्ड वाईड है यह विक्रय पत्र के निरस्तीकरण का वाद नहीं है विक्रय प्रतिफल के हिसाब से न्याय शुल्क देना जरूरी नहीं है ऐसे मामले में धारा 7 (4) (सी) लागू होगी न्याय दृष्टांत सुधीर विरूद्ध रणधीर, ए.आई.आर. 2010 एस.सी. 2807 अवलोकनीय है।

5. आधिपत्य का वाद - वादी का क्लेम की प्रतिवादी अतिक्रमक है - प्रतिवादी का अभिवाक अंशिक पालन का है उसने भुगतान रसीद पेश की जिसे वादी ने स्वीकार किया प्रतिवादी द्वारा बाउंडरी वाल का बनाना भी स्वीकार किया इन परिस्थितियों में वाद निरस्त किया गया न्याय दृष्टांत स्वर्ण कुमार विरूद्ध रवी महाजन, ए.आई.आर. 2008 एस.सी. 2101 अवलोकनीय है।

6. वादी द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज संदेहास्पद पाये गये वादी ने बाउंडरी वाल बनाने की अनुमति देने का दस्तावेज पेश किया ऐसा दस्तावेज स्वत्व प्रमाणित करने के लिये पर्याप्त नहीं है क्योंकि ऐसी अनुमति पट्टा ग्रहिता या किरायेदार को भी मिल सकती है वादी नगर निगम का मेयर था ऐसा दस्तावेज पाने की स्थिति में था भूमि अनुदान या ग्रंट ने वादी को दी गई यह प्रमाणित नहीं किया गया घोषणा का वाद निरस्त किया गया न्याय दृष्टांत प्रभाकर अडसूले विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी. ए.आई.आर. 2004 एस.सी. 3557 अवलोकनीय है।

7. स्वत्व घोषणा का वाद वादी का क्लेम आलटमेंट लेटर व आधिपत्य प्रमाण पत्र पर आधारित था जो विकास प्राधिकरण द्वारा वाद ग्रस्त परिसर के संबंध में जारी किये गये थे प्रतिवादी अतिक्रमक ने उसका स्वत्व नहीं दर्शाया वादी को पसेसरी टाईटल के आधार पर वाद ग्रस्त परिसर के आधिपत्य का अधिकारी पाया गया न्याय दृष्टांत मनोजी राय विरूद्ध टी. कृष्णा, ए.आई.आर. 2011 एस.सी. 623 अवलोकनीय है।

8. सोसायटी रजिस्टेªशन एक्ट, 1860 के तहत् पंजीकृत प्राईवेट शिक्षण संस्थान - प्रिंसिपल सेवा से पर्यवसित या टर्मिनेट किया गया वह ऐसी घोषणा नहीं पा सकता की उसे सेवा निरंतर रखा जावे क्षति पूर्ति पा सकते है न्याय दृष्टांत जे. तिवारी विरूद्ध श्रीमती ज्वाला देवी विद्या मंदिर, ए.आई.आर. 1981 एस.सी. 122 तीन न्याय मूर्तिगण की पीठ का न्याय दृष्टांत अवलोकनीय है।

9. किरायेदार द्वारा घोषणा या निषेधाज्ञा का वाद पेश किया गया कि वह वैध किरायेदार है और निष्पादन रोकने की निषेधाज्ञा चाहिये मकान मालिक /वादी ने मकान बेच दिया था क्रेता विक्रय करार के आधार पर निष्काषन की आज्ञप्ति का निष्पादन करवा रहा था विक्रय पत्र पेश नहीं किया गया विक्रय करार के आधार पर निष्पादन चलने योग्य नहीं पाया गया न्याय दृष्टांत मेसर्स धन लक्ष्मी विरूद्ध मिस सुशीला, ए.आई.आर. 1981 एस.सी. 478 अवलोकनीय है।

10. शासन को विधिवत अधिकृत व्यक्ति को धन अदा करना था वादी ऐसा धन चाहता था केवल घोषणा का वाद चलने योग्य पाया गया और नियत न्याय शुल्क देय होगी यह प्रतिपादित किया गया न्याय दृष्टांत श्रीमती साहिस्ता कुरेशी विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी. 2003 (1) एम.पी.एच.टी. 184 अवलोकनीय है।

11. क्षेत्राधिकार के बारे में:- दत्तक के आधार पर अनुवांशिक हित या अधिकार का प्रश्न यह किसी व्यक्ति के विधिक हैसियत की घोषणा से संबंधित है वह व्यवहार न्यायालय के क्षेत्राधिकार का है न्याय दृष्टांत रमेश चंद विरूद्ध विथू हिरा, ए.आई.आर. 2010 एस.सी. 818 तीन न्याय मूर्तिगण की पीठ का न्याय दृष्टांत अवलोकनीय है।

न्याय दृष्टांत स्टेट आॅफ बिहार विरूद्ध धीरेन्द्र कुमार, 1995 एम.पी.एल.जे. 751 में यह प्रतिपादित किया गया है कि धारा 4 के तहत् जारी अधिसूचना और धारा 6 के तहत् जारी सूचना जो भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत् जारी होती है उनके वैधता के बारे में कोई वाद व्यवहार न्यायालय में चलने योग्य नहीं होता है न्याय दृष्टांत एस.पी. सुब्रमण्यम सेट्टी विरूद्ध कर्नाटक स्टेट रोड़ ट्रांसपोर्ट, ए.आई.आर. 1997 एस.सी. 2076 में भी यह प्रतिपादित किया गया है कि आज्ञापक व्यादेश का वाद कि अधिग्रहण को डीनोटीफाई किया जाये चलने योग्य नहीं है न्याय दृष्टांत देव कुमार विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी. 2005 (4) एम.पी.एल.जे. 147 डी.बी. भी इसी संबंध में अवलोकनीय है।

न्याय दृष्टांत हुकुम सिंह विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी. (2005) 10 एस.सी.सी. 124 में यह प्रतिपादित किया है कि कृषि भूमि के संबंध में घोषणा और आधिपत्य का वाद व्यवहार न्यायालय के क्षेत्राधिकार का है व्यवहार न्यायालय में सीधे वाद पेश किया जा सकता है इस संबंध में न्याय दृष्टांत राम गोपाल विरूद्ध चेटू, ए.आई.आर. 1976 एम.पी. 160 पूर्ण पीठ भी अवलोकनीय है।

12. प्रमाण भार:- इन मामलों में वादी को उसका मामला अधिसंभाव्य रूप से प्रमाणित करना होता है एक पक्षीय कार्यवाही में भी जहां प्रतिवादी अनुपस्थित हो वहां न्यायालय को विचारणीय प्रश्न बनाकर वादी की मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य की छानबीन करके निष्कर्ष देना चाहिये प्रतिवादी अनुपस्थित है मात्र इस कारण से ऐसी साक्ष्य जो विधि अनुसार ग्राह्य नहीं है न्यायालय गा्रह्य नहीं करेगी इस संबंध में न्याय दृष्टांत रमेश चंद विरूद्ध अनिल पंजवानी, ए.आई.आर. 2003 एस.सी. 2508 अवलोकनीय है।

प्रायः ऐसे मामले आते है जिनमें वादी ने विरोधी आधिपत्य के आधार पर स्वयं को भूमि स्वामी होने की घोषणा चाही होती है प्रतिवादी एकपक्षीय हो जाते है तब न्यायालय को सावधानी पूर्वक यह देखना चाहिये कि क्या वादी का मामला मौखिक व दस्तावेजी साक्ष्य है प्रमाणित होता है या नहीं क्या वादी का आधिपत्य दस्तावेजी साक्ष्य से पुष्ट है क्या स्टाम्प ड्यूटी या पंजीकरण शुल्क से बचने के लिये दुरभी संधीपूर्ण वाद तो नहीं है इस सब तथ्यों पर विचार करना चाहिये क्योंकि यह एक विवेकाधिकार पर आधारित अनुतोष है।

स्वत्व के आधार पर आधिपत्य वापसी के वाद में वादी ने एक उच्च स्तर की अधिसंभावना निर्मित की ऐसे में आॅनस प्रतिवादी पर अंतरित हो जायेगा प्रतिवादी यदि उक्त आॅनस को उनमोचित नहीं करता है तब यह माना जायेगा की वादी ने उसका स्वत्व प्रमाणित किया है क्योंकि ऐसे मामले युक्तियुक्त संदेह से प्रमाणित नहीं करने होते है इस संबंध में न्याय दृष्टांत आर.वी.ई. वेंकटचल्ला विरूद्ध अरूलिमगू विश्वेश्वर स्वामी, ए.आई.आर. 2003 एस.सी. 4358 भी अवलोकनीय है इस मामले में यह भी प्रतिपादित किया गया है की नगर निगम के अभिलेख इंदराज स्वत्व की साक्ष्य नहीं होते है ये केवल यह देखने के लिए होते है कि नगर निगम का कर अदा करने के लिए कौन उत्तरदायी है।

13. परिसीमा:- घोषणा के मामलों में परिसीमा अधिनियम, 1963 कि अनुसूची का अनुच्छेद 56 से 58 लागू होता है जिसके अनुसार घोषणा के वाद के लिये तीन वर्ष की परिसीमा वाद कारण उत्पन्न होने से तीन वर्ष बताई गई है।

कर्मचारी की सेवा से बर्खास्ती का आदेश अवैध है ऐसी घोषणा के वाद में परिसीमा अधिनियम, 1963 का आर्टिकल 113 लागू होगा इस संबंध में न्याय दृष्टांत स्टेट आॅफ पंजाब विरूद्ध गुरूदेव सिंह, ए.आई.आर. 1992 एस.सी. 333 तीन न्याय मूर्तिगण की पीठ का न्याय दृष्टांत अवलोकनीय है।

14. डिक्री का स्वरूप:- न्यायालय को निर्णय के अंतिम पैरा में स्पष्ट घोषणा करना चाहिये ताकि उसी अनुरूप डिक्री बन सके जैसे:-

1. यह घोषित किया जाता है कि वादी /वादीगण वाद ग्रस्त संपत्ति स्थित ग्राम बिलावली, तहसील सोनकच्छ, जिला देवास म.प्र. सर्वे नंबर ...................... क्षेत्रफल ..................... का भूमि स्वामी है।

या

2. यह घोषित किया जाता है कि वादी की सही जन्म तिथि 01-01-1990 है।

या

3. यह घोषित किया जाता है कि एक्स की सिविल मृत्यु हो चुकी है।

या

4. यह घोषित किया जाता है कि वाद ग्रस्त संपत्ति स्थित ग्राम बिलावली, तहसील सोनकच्छ, जिला देवास सर्वे नंम्बर ............................. क्षेत्रफल ........................ में वादी का 1/4 स्वत्व है।

4 comments:

  1. Sir aisa koi nirnay hai kya jisme agreement me samay ki nishchit ta nahi Hone se vaad kharij kiya gaya ho

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  2. restitution to conjugal rights can be move under 34 sra kindly

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  3. क्या पशु कुरता अधिनियम की धारा 11 मे जप्त पाडे सुपुर्द गी पर दिये जा सकते हैं?

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