Thursday 5 June 2014

शव-परीक्षण प्रतिवेदन (Post Mortem Report) स्वीकार कर लिया गया है वहां चिकित्सक की परीक्षा के बिना पढ़ा जा सकता है?

अभियुक्त द्वारा जहां चिकित्सा विधिक
प्रमाणपत्र अथवा शव-परीक्षण प्रतिवेदन
 

(Post Mortem Report) असली होना
स्वीकार कर लिया गया है वहां संबंधित
चिकित्सक की परीक्षा के बिना क्या उन्हें
सारभूत साक्ष्य के रूप में पढ़ा जा सकता है?

इस समस्या के समाधान हेतु दं.प्र.सं. की धारा
294 सुसंगत है जो निम्नवत् है -
‘‘294. कुछ दस्तावेजों का औपचारिक सबूत
आवश्यक न होना -
(1) जहां अभियोजन या अभियुक्त द्वारा किसी
न्यायालय के समक्ष कोई दस्तावेज फाइल की
गई है, वहां ऐसी प्रत्येक दस्तावेज की
विशिष्टियां एक सूची में सम्मिलित की जाएंगी
और, यथास्थिति, अभियोजन या अभियुक्त अथवा
अभियोजन या अभियुक्त के प्लीडर से, यदि कोई
हों, ऐसी प्रत्येक दस्तावेजों का असली होना
स्वीकार या इंकार करने की अपेक्षा की जाएगी।
(2) दस्तावेजों की सूची ऐसे प्ररूप में होगी जो
राज्य सरकार द्वारा विहित की जाए।
(3) जहां किसी दस्तावेज का असली होना
विवादग्रस्त नहीं है वहां ऐसी दस्तावेज उस
व्यक्ति के जिसके द्वारा हस्ताक्षरित होना
तात्पर्यित है, हस्ताक्षर के सबूत के बिना इस
संहिता के अधीन किसी जांच, विचारण या अन्य
कार्यवाही में साक्ष्य में पढ़ी जा सकेगीः
परंतु न्यायालय, स्वविवेकानुसार, यह अपेक्षा कर
सकता है कि ऐसे हस्ताक्षर साबित किए जाएं।’’
इस प्रकार अभियोजन/अभियुक्त की ओर से
विहित प्ररूप में सूची के साथ प्रस्तुत दस्तावेजों
के असली होने की स्वीकृति या अस्वीकृति करने
की अपेक्षा प्रतिपक्ष से की जाएगी। यदि
प्रतिपक्ष द्वारा किसी दस्तावेज का असली होना
(Genuineness of document) स्वीकार कर
लिया जाता है वहां उसे दं.प्र.सं. की धारा-294(3)

 के अधीन, उस दस्तावेज के हस्ताक्षरकर्ता
की परीक्षा के बिना, उस दस्तावेज की
विशिष्टियों की सत्यता साबित करने हेतु सारभूत
साक्ष्य के रूप में पढ़ा जा सकता है।
स्पष्ट है कि जहां अभियुक्त द्वारा चिकित्सा
विधिक प्रमाण पत्र (Medico-legal Certificate)
या उपहति प्रतिवेदन (Injury Report) 

अथवा शव परीक्षण प्रतिवेदन (Post
Mortem Report)  की सत्यता को स्वीकार कर
लिया गया है वहां ऐसे
प्रतिवेदन की विशिष्टियों
की सत्यता प्रमाणित करने हेतु, ऐसे प्रतिवेदन
को सारभूत साक्ष्य के रूप में पढ़ा जा सकता है।
इस हेतु संबंधित चिकित्सक की परीक्षा किए
जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। इस बिन्दु
पर Akhtar v. State of Uttaranchal (2009)
13 SCC 722
  के न्यायदृष्टांत में उच्चतम
न्यायालय द्वारा प्रतिपादित निम्नलिखित विधि
अवलोकनीय है -
"It has been argued that non-examination of
the medical officers concerned is fatal for
the prosecution. However, there is no denial
of the fact that the defence admitted the
genuineness of the injury reports and the
post-mortem examination reports before the
trial court. So the genuineness and
authenticity of the documents stands proved
and shall be treated as valid evidence under
Section 294 Cr.P.C. It is settled position of
law that if the genuineness of any document
filed by a party is not disputed by the
opposite party it can be read as substantive
evidence under sub-section (3) of Section
294 Cr.P.C. Accordingly, the post-mortem
report, if its genuineness is not disputed by
the opposite party, the said post-mortem
report can be read as substantive evidence to
prove the correctness of its contents without
the doctor concerned being examined.

No comments:

Post a Comment