Saturday 7 June 2014

क्या शासकीय सेवकों से संबंधित सेवा विवाद के मामलों में सिविल न्यायालय की अधिकारिता बाधित हैं ?

क्या शासकीय सेवकों से संबंधित सेवा
विवाद के मामलों में सिविल न्यायालय की
अधिकारिता बाधित हैं ?

 
धारा 9 व्यवहार प्रक्रिया संहिता, 1908 के
अनुसार न्यायालयों को उन व्यवहार वादों को
छोड़कर जिनका संज्ञान लेने से वे प्रत्यक्ष या
विवक्षित रूप से बाधित हैं, हर प्रकार के व्यवहार
प्रकृति के वादों को श्रवण करने की अधिकारिता
है।
प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम, 1985 के
अंतर्गत दिनांक 02.08.1988 को मध्यप्रदेश में
राज्य प्रशासनिक अधिकरण के गठन के साथ ही
उक्त अधिनियम की धारा 28 के प्रभाव स्वरूप
मध्यप्रदेश के शासकीय सेवकों के सेवा विवादों
के विषय में सिविल न्यायालयों की
श्रवणाधिकारिता तद्दिनांक से समाप्त हो गयी
तथा धारा 29 के प्रभावस्वरूप सिविल न्यायालयों
में शासकीय सेवकों के सेवा विवादों से सम्बंधित
सभी मामले भी स्वमेव राज्य प्रशासनिक
अधिकरण को अन्तरित हो गये।
केन्द्र सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग से
संबंधित मंत्रालय द्वारा दिनांक 17.04.03 को
प्रकाशित अधिसूचना (क्रमांक GSR  753 (E)
दिनांक 29.06.1988 भारत के असाधारण राजपत्र
में प्रकाशित)
के अनुसार मध्यप्रदेश के राज्य
प्रशासनिक अधिकरण को उत्सादित कर दिया
गया है। अतः शासकीय सेवकों के सेवा विवाद
से जुड़े मामलों के विषय में सिविल न्यायालय
की अधिकारिता बाधित करने के विषय में
प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम, 1985 की धारा
28 के प्रावधान प्रयोज्य नहीं रह जाते हैं।
परिणामस्वरूप शासकीय सेवकों के सेवा संबंधी
वादों का श्रवणाधिकार सिविल न्यायालय को पुन:

 प्राप्त हो गया हैं

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