Friday 6 June 2014

क्या वरिष्ठ न्यायालय से प्रकरण की अग्रिम सुनवाई को स्थगित कर दिये जाने पर विचारण न्यायालय को कोई भी कार्यवाही करने का अधिकार षेष नहीं रहता है?

क्या विचारण न्यायालय में लंबित
किसी सांपतिक प्रकरण मे
अपीलीय/पुनरीक्षण/वरिष्ठ न्यायालय
से प्रकरण की अग्रिम सुनवाई को
स्थगित कर दिये जाने पर विचारण
न्यायालय को उसके अन्तर्गत कोई भी
कार्यवाही करने का अधिकार षेष नहीं
रहता है?

सामान्यतः यह भ्रांति होती है कि किसी लंबित
सांपत्तिक प्रकरण में किसी अंतरिम आदेश के
विरूद्ध अपील/पुनरीक्षण/रिट याचिका संस्थित
होने पर अपीलीय/ उच्च न्यायालय द्वारा लंबित
प्रकरण की अग्रिम कार्यवाही स्थगित किये जने
पर उसमें विचारण/अधीनस्थ न्यायालय को
अन्य कोई कार्यवाही करने का कोई अधिकार
नहीं रहता है लेकिन यह पूर्णतः स्वीकार योग्य
नहीं है।
सामान्यतः अपीलीय/ उच्च न्यायलाय द्वारा
पारित स्थगन आदेष आंषिक अथवा पूर्णतः
प्रकृति के होते हैं जैसे प्रवर्तन प्रकरण में स्थगन
पूर्णतः होने से उसके अन्तर्गत कोई कार्यवाही
किया जा सकना प्रवर्तन न्यायालय के लिए
संभव नहीं रहता है लेकिन जब किसी सांपत्तिक
प्रकरण में उसके अन्तर्गत अग्रिम कार्यवाही
स्थगित किये जने का आदेष दिया जाता है तो
उसका तात्पर्य ऐसे प्रकरण में मूलतः विचारण
की अग्रिम कार्यवाही को ही स्थगित किया जाना
है। ऐसी स्थिति में विचारण/ अधीनस्थ
न्यायालय को प्रकरण में ऐसी कोई कार्यवाही या
कार्य करने का अधिकार नहीं रहता है जिसे
विचारण का गुण दोषों पर निराकरण के लिए
अग्रसर होने के सदृश्य माना जावे, लेकिन
इसका तात्पर्य विचारण /अधीनस्थ न्यायालय
को ऐसे प्रकरण के संबंध में किसी आवश्यक
सम्पाश्र्विक सहायक कार्य को कर सकने के
अधिकार से भी विरत रहना नहीं माना जा
सकता है।
इस संबंध में माननीय मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय
की खंडपीठ द्वारा विधि दृष्टांत मदन लाल
अग्रवाल विरूद्ध श्रीमती कमलेश निगम,
ए.आई.आर. 1975 मध्यप्रदेश पृष्ठ 132
में
विचार करते हुए प्रतिपादित किया गया है कि
इस प्रकार के स्थगन के मामलों में विचारण
/अधीनस्थ न्यायालय को किसी पक्षकार की
मृत्यु होने की स्थिति में उसके वैद्य
उत्तराधिकारियों को अभिलेख पर लिये जाने के
संबंध में आदेश 22 नियम- 3 अथवा 4 सिविल
प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत प्रस्तुत आवेदन पत्र
का निराकरण कर सकने का अधिकार है। इसी
प्रकार इन्ही परिस्थितियों में आवश्यकतानुसार
सिविल प्रक्रिया संहिता के अधीन आदेश 39
नियम 1 या 2 के अन्तर्गत अस्थायी निषेधाज्ञा
बाबत्, ओदश 40 नियम 1 के अन्तर्गत रिसीवर
नियुक्ति बाबत् और आदेश 38 नियम 5 के
अन्तर्गत निर्णय पूर्व कुर्की के आवेदन पत्र प्रस्तुती
और प्रचलन योग्य हैं क्योंकि इस प्रकार की
कार्यवाही को स्थगित सांपत्तिक प्रकरण के गुण
दोषों पर निराकरण की ओर अग्रसर होना नहीं
माना जा सकता है बल्कि ऐसी कार्यवाही
सम्पाश्र्विक अथवा विवाद की विषय वस्तु का
संरक्षण करने वाली या उसे जीवित रखने वाली
मानी जा सकती है।

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