Saturday 7 June 2014

स्वत्व घोषणा के वाद में प्रतिवादी द्वारा प्रतिकूल आधिपत्य का अभिवचन किए जाने की दशा में क्या तद्विषयक वाद प्रश्न विरचित किया जाना चाहिए ?

स्वत्व घोषणा के वाद में प्रतिवादी द्वारा
प्रतिकूल आधिपत्य का अभिवचन किए जाने
की दशा में क्या तद्विषयक वाद प्रश्न
विरचित किया जाना चाहिए ?

स्वत्व घोषणा के वाद में, स्वत्व का महत्वपूर्ण
प्रश्न अन्तवर्लित होता है अतः स्वत्व संबंधी
वादप्रश्न विरचित किया जाना उचित ही है,
लेकिन चूंकि प्रतिवादी द्वारा प्रतिकूल (विरोधी)
आधिपत्य के अभिवचन किये गये है अतः यह भी
समीचीन है कि उक्त अभिवाक् संबंधी वाद प्रश्न
पृथक से विरचित किया जाए, क्योंकि प्रतिकूल
आधिपत्य संबंधी अभिवाक् तथ्य एवं विधि
की एक तात्विक प्रतिपादना जो एक पक्ष द्वारा
प्रतिज्ञात करने एवं दूसरे पक्ष द्वारा प्रत्याखान
करने से एक विवाद्यक को जन्म देती हैं तथा
आदेश 14 नियम (1) सिविल प्रक्रिया संहिता के
अनुसार ऐसी प्रत्येक तात्विक प्रतिपादना पर
वादप्रश्न विरचित होना चाहिये। तदानुसार स्वत्व
घोषणा के वाद में प्रतिवादी द्वारा प्रतिकूल
आधिपत्य के अभिवचन किए जाने की दशा में
तद्विषयक वाद प्रश्न विरचित किया जाना न
केवल उचित अपितु आवश्यक है।
उक्त विषय में न्याय दृष्टांत वी. सीथा रामा
राजु विरूद्ध वेंकट नरसम्मा, ए.आई.आर.
1971 आंध्रप्रदेश - 408
अवलोकनीय है
जिसमें वादी द्वारा स्वत्व के आधार पर आधिपत्य
प्राप्ति का वाद प्रस्तुत किये जाने पर प्रतिवादी द्धारा

 विवादित सम्पत्ति पर विरोधी आधिपत्य के
आधार पर अपने स्वत्व परिपक्व हो जाने संबंधी
अभिवचन किये गए थे। इस प्रकरण में विचारण
न्यायालय द्वारा विवादित सम्पत्ति पर प्रतिवादी
के विरोधी आधिपत्य के आधार स्वत्व अर्जन के
अभिवचन के विषय में वाद प्रश्न विरचित किया
गया था। माननीय आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय द्धारा

 प्रकरण में विरचित वाद प्रश्नों को उचित
ठहराया गया।

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