Saturday 7 June 2014

व्यवहार मामलों में लोक प्रलेख साक्ष्य में आहूत किए जाने संबंध में विधिक स्थिति क्या है ?

व्यवहार मामलों में लोक प्रलेख साक्ष्य में
आहूत किए जाने संबंध में विधिक स्थिति
क्या है ?

लोक प्रलेख को भारतीय साक्ष्य अधिनियम,
1872 की धारा 74 में परिभाषित किया गया है।

 साक्ष्य अधिनियम की धारा 77 लोक प्रलेख
की प्रमाणित प्रतिलिपि का साक्ष्य में ग्राहय
होना अनुज्ञात करती है । सामान्यतः मूल
लोक प्रलेख को साक्ष्य में आहूत करने के
बजाय उसकी प्रमाणित प्रतिलिपि ही
न्यायालय में प्रस्तुत की जानी चाहिये । नियम
एवं आदेश (सिविल) के नियम 104 में यह
निर्दिष्ट किया गया है कि लोक प्रलेखों का
आहूत किए जाने के बारे में आदेश 13 नियम
10 (2) व्यवहार प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों
का उपयोग किया जाना चाहिए जो यह
निर्दिष्ट करते हैं कि किसी न्यायालयीन प्रलेख
को आहूत कराए जाने के लिये संबंधित
व्यक्ति को, जिसने ऐसी याचना की है, इस
आशय का शपथ पत्र प्रस्तुत करना चाहिए
कि ऐसा प्रलेख न केवल मूलतः बुलाया जाना
आवश्यक है अपितु अयुक्तियुक्त विलंब या
व्यय के बिना उसकी प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त
करना संभव नहीं है । नियम एवं आदेश
(सिविल) का नियम 105 स्पष्ट रूप से यह
निर्दिष्ट करता है कि सामान्यतः एवं अन्यथा
प्रावधित न होने की दशा में मूल लोक प्रलेख
तथा नगरपालिक (Municipal) प्रलेख आहूत
करने की बजाय ऐसे प्रलेखों की यथा विधि
अभिप्रमाणित प्रतिलिपि के द्वारा संबंधित तथ्य
को प्रमाणित किया जाना चाहिये ।
यदि अपवाद की स्थिति में मूल प्रलेख आहूत
किया भी जाता है तो नियम 107 के अनुसार
उसे अविलंब वापस किया जाना चाहिए तथा
आहूतकर्ता के व्यय पर ऐसे प्रलेख की
प्रतिलिपि तैयार कर अभिलेख में रखी जानी
चाहिये ।
उक्त प्रावधानों का यदि सावधानीपूर्वक पालन
किया जाए तो न केवल लोक प्रलेखों को
साक्ष्य में आहूत करने में होने वाले विलंब को
निवारित किया जा सकता है अपितु लोक
प्रलेखों को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने
में शासकीय मशीनरी पर पड़ने वाले भार को
भी कम किया जा सकता है।

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