Friday 6 June 2014

क्या ग्रीष्मकाल एवं शीतकालीन अवकाश के रहते हुए आवश्यक प्रकृति के सिविल कार्यों को निष्पादित करने के लिये DJ की पूर्व अनुमति की आवश्यकता है ?

क्या ग्रीष्मकाल एवं शीतकालीन अवकाश के
रहते हुए आवश्यक प्रकृति के सिविल कार्यों
को निष्पादित करने के लिये किसी
अधीनस्थ सिविल न्यायालय को जिला
न्यायाधीश की पूर्व अनुमति की आवश्यकता
है ?

इस समस्या के निदान के लिये हमें म.प्र.
सिविल न्यायालय अधिनियम, 1958 (जिसे
आगे अधिनियम कहा जायेगा) की धारा 21
पर दृष्टिपात करना होगा ।
अधिनियम की धारा 21 (1) प्रावधान करती है
कि उच्च न्यायाल राज्य सरकार के अनुमोदन
से अपने अधीनस्थ सिविल न्यायालयों के वर्ष
की अनुसरित की जाने वाली अवकाश की
तिथियों की सूची तैयार करेगा । उप धारा
(2) 
यह प्रावधान करती है कि ऐसी सूची
गजट में प्रकाशित की जायेगी । उपधारा

(3) यह प्रावधान करती है कि कोई न्यायिक कार्य
मात्र इसीलिये अवैध नहीं होगा क्योंकि वह
अवकाश के दिन निष्पादित किया गया है ।
उपधारा 4 यह प्रावधान करती है कि जिला
न्यायाधीश जैसा उचित समझे अवकाश के
दिनों में आवश्यक (urgent nature) सिविल
प्रकरणों के निराकरण के लिये व्यवस्था कर
सकेंगे ।
इस पर विवाद नहीं किया जा सकता कि
ग्रीष्मकालीन अथवा शीतकालीन अवकाश
(vacation)
धारा 21 (4) में निर्धारित अवकाश
है । यदि जिला न्यायाधीश धारा 21 (4) के
अनुरूप अवकश के दिन आवश्यक सिविल
कार्य को निराकृत करने के लिये कार्य
विभाजन पत्रक निर्मित करते हैं तो कोई
समस्या नहीं है उसी अनुरूप कार्य निष्पादित
किया जायेगा ।
अवकाश के दिन सिविल मामलों की सुनवाई
प्रक्रियात्मक विधि का क्षेत्र है । विधि इस
संबंध में सुस्थापित है कि अन्यथा उपबंधों के
अभावों में न्यायाल उन समस्त प्रक्रिया का
पालन कर सकती है जो प्रकरण की
न्यायोचित उद्देश्य की प्राप्ति के लिये
आवश्यक है । धारा 21 (3) स्पष्ट रूप से
अवकाश के दिन किए गये कार्या को
वैधानिकता प्रदान करती है। यह प्रावधान
इसलिये समाहित किया गया है कि ऐसी
परिस्थितियों से निपटा जा सके ।
Webster  Universal Dictionary

ने ’’अवकाश’’ इस
प्रकार परिभाषित किया है
Day on which
work is wholly or partially suspended”

इससे स्पष्ट है कि अवकाश के दिन कार्य
स्थगित होता है । अवकाश अधिकारिता
समाप्त नहीं करता । धारा 151 सिविल
प्रक्रिया संहिता भी अन्यथा उपबंधों के अभाव
में न्यायालय को अधिकारिता प्रदान करती है
कि न्यायोचित उददेश्य की प्राप्ति के लिये
कोई भी प्रक्रिया अपना सकती है । मध्यप्रदेश
सामान्य खण्ड निर्वचन अधिनियम, 1957
की धारा 8 भी ऐसा ही प्रावधान करती है कि
कोई न्यायिक कार्य मात्र इसलिये अवैधानिक
नहीं होगा कि कार्य अवकाश के दिन
निष्पादित किया गया ।
नगर पालिका महेश्वर विरूद्ध द्वारकादास,
ए.आइ.आर. 1981 म.प्र. 166
में उच्च
न्यायालय के समक्ष ऐसा ही प्रश्न निहित था
जिसमें माननीय न्यायालय ने यह निर्धारित
किया था कि किसी स्पष्ट
उपबंधों के अभावों
में न्यायालय ग्रीष्मकालीन अवकाश में भी
आवश्यक प्रकृति के कार्य निष्पादित कर
सकते हैं । माननीय इलाहाबाद उच्च
न्यायालय ने भी ऐसा ही मत नरसिंहदास
विरूद्ध मंगलदास दुबे, (1882) आई.एल.
आर. 5 इलाहाबाद 163
में निर्धारित किया
है ।
माननीय म.प्र. उच्च न्यायालय द्वारा नगर
पालिका महेश्वर (उपरोक्त)
मामले के बाद वर्ष
1982 में म.प्र. सिविल कोर्ट अधिनियम में
संशोधन हुआ और धारा 21 (4) समाहित की
गई जिसके द्वारा जिला न्यायाधीश को
अधिकारिता दी गई कि वह अवकाश के दिन
आवश्यक कार्य उचित रूप से निष्पादित हो
सके इसकी व्यवस्था कर सकेंगे । इसका यह
अर्थ नहीं है कि इस संशोधन द्वारा न्यायालय
की शक्तियों को सीमित किया गया है।
संशोधन उपरोक्त मामले के निष्कर्ष को
प्रभावहीन करने के लिये नहीं किया गया
अपितु माननीय उच्च न्यायालय द्वारा धारा 21
म.प्र. सिविल कोर्ट अधिनियम, 1958 का जो
निर्वचन किया गया था उसको विधिक
अस्तित्व प्रदान करना था । वास्तव में
संशोधन इसी उददेश्य से लाया गया कि
अवकाश के दिन आवश्यक कार्यों की व्यवस्था
बनी रहे ।
उक्त संशोधन का यदि इसके विपरीत आशय
होता तो विधायिका ने स्पष्ट उल्लेख किया
होता कि जिला न्यायाधीश की अनुमति के
पश्चात अवकाश के दिन किया गया कार्य
अवैधानिक नहीं होगा, न तो सिविल कोर्ट
अधिनियम, 1958 न ही सिविल प्रक्रिया
संहिता, 1908 और न ही म.प्र. सामान्य खण्ड
निर्वचन अधिनियम न्यायिक कार्य करने के पूर्व
किसी से अनुमति की आवश्यकता है। सिविल
आदेश व नियम, 1961 का नियम (3) भी यह
प्रावधान करती है कि न्यायालय अवकाश के
दिन पक्षकारों की सहमति से एवं उपस्थिति
साक्षियों की सहमति से कार्य या साक्ष्य
अंकित कर सकेगा इससे स्थिति पूर्णतः स्पष्ट
हो जाती है कि सामान्यतः अवकाश के दिन
न्यायिक कार्य निष्पादित नहीं किया जाना हे
परंतु यदि आवश्यकता हुई तो न्यायालय
पक्षका
रों की सहमति पर ऐसा कर सकता है,
जिला न्यायाधीश की अनुमति की आवश्यकता
नहीं है ।
इसके अतिरिक्त ‘कार्य’ त्वरित प्रकृति का
है या नहीं, इसको जिला न्यायाधीश कैसे
निर्धारित कर सकेंगे, संबंधित न्यायालय ही
इस पर विचार करेगी यदि जिला न्यायाधीश
ने अनुमति दे दी और न्यायालय की राय
इसके विपरीत है तो विरोधाभास उत्पन्न होने
की संभावना निर्मित हो जावेगी।
इसलिये यदि जिला न्यायाधीश ने धारा 21
(4) के अधीन कोई व्यवस्था नहीं बनाई है तो
इस दशा में नगरपालिका महेश्वर
विरूद्ध द्वारकादास (उपरोक्त)
मामले में
दिये गये दिशा निर्देश प्रभावी होंगे और
न्यायालय को ग्रीष्मकालीन अथवा शीतकालीन
अवकाश में कार्य निष्पादित करने के लिये
जिला न्यायाधीश की अनुमति की आवश्यकता
न होगी । यदि जिला न्यायाधीश ने धारा
21
(4) के तहत अवकाश के दिनों में कार्य की
कोई व्यवस्था बना रखी है तो उसी अनुरूप
कार्य निष्पादित होगा । धारा 21
(4) की
अपेक्षा भी यह है कि जिला न्यायाधीश
सामान्य या विशेष आदेश द्वारा इस संबंध में
कोई व्यवस्था करें । कई स्थानों पर जिला
न्यायाधीशों द्वारा कार्य विभाजन पत्रक में यह
व्यवस्था की है।

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