Saturday 7 June 2014

आदेश 23 नियम 3 CPC में पारित आज्ञप्ति को समझौते के अविधिपूर्ण होने के आधार पर अपास्त कराना?

आदेश 23 नियम 3 व्यवहार प्रक्रिया
संहिता के अन्तर्गत पारित आज्ञप्ति को
समझौते के अविधिपूर्ण होने के आधार
पर अपास्त कराने हेतु अनुज्ञेय विधिक
प्रक्रिया क्या है?

व्यवहार प्रक्रिया संहिता (अत्रपश्चात् ’संहिता’) के
आदेश 23 नियम 3 (ए) के अनुसार किसी
आज्ञप्ति को इस आधार पर अपास्त कराने के
लिये वाद संधारणीय नहीं होगा कि जिस
समझौते पर आज्ञप्ति आधारित है, वह अविधिपूर्ण
था। संहिता की धारा 96 (3) प्रावधित करती है
कि पक्षकारों की सहमति से पारित आज्ञप्ति के
विरूद्ध अपील संधारणीय नहीं है।
उपरोक्त प्रावधानों के परिप्रेक्ष्य में यह प्रश्न
उठना स्वाभाविक है कि समझौता आज्ञप्ति के
अविधिपूर्ण समझौते पर आधारित होने के आधार
पर उसे कहां और किस प्रकार चुनौती दी जा
सकती है।
संहिता में वर्ष 1976 में किये गये संशोधन के
पूर्व आदेश 43 नियम 1 (एम) के अंतर्गत
समझौता संबंधी आदेश को चुनौती दी जा
सकती थी लेकिन इस प्रावधान को वर्ष 1976 के
संशोधन द्वारा विलोपित कर दिया गया। इसके
साथ-साथ ही आदेश 43 में नियम 1 (अ)
संयोजित किया गया जिसका उपनियम (2)
प्रावधित करता है कि समझौते के आधार पर
पारित आज्ञप्ति को अपीलार्थी इस आधार पर
चुनौती दे सकता है कि समझौता स्वीकार नहीं
किया जाना चाहिये था अथवा स्वीकार किया
जाना चाहिये था।
आदेश 23 नियम 3 के परन्तुक में यह भी
उल्लेख किया गया है कि जहां दो पक्षों के मध्य
इस बारे में विवाद है कि समझौते के आधार पर
समायोजन अथवा संतुष्टि हुई है या नहीं, वहां
न्यायालय कारण अभिलिखित करते हुए ऐसे
प्रश्न का विनिश्चय कर सकेगा। उक्त नियम 3
के स्पष्टीकरण में यह भी उल्लेखित है कि
भारतीय संविदा अधिनियम की परिधि में शून्य
अथवा शून्यकरणीय समझौते या अनुबंध को
नियम 3 प्रयोजन हेतु विधिपूर्ण नहीं माना
जायेगा।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने बनवारीलाल
विरूद्ध चन्दो देवी, ए.आई.आर. 1993 एस.
सी. 1139
के मामले में उक्त प्रावधानों के
प्रकाश में विधिक स्थिति की समीक्षा करते
हुए यह अभिनिर्धारित किया है कि अविधिपूर्ण
होने के आधार पर समझौते को चुनौती देने
वाला पक्ष या तो संहिता के आदेश 23 नियम 3
के परन्तुक के अन्तर्गत याचिका प्रस्तुत कर
उसकी वैधता को चुनौती दे सकता है अथवा
धारा 96 नियम 1 के अन्तर्गत अपील में ऐसी
समझौता आज्ञप्ति को आदेश 43 नियम 1 (ए) के
प्रकाश में चुनौती दे सकता है।
आदेश 23 नियम 3 के परन्तुक के अन्तर्गत
प्रस्तुत याचिका उसी न्यायालय के समक्ष, जिसने
समझौता आज्ञप्ति पारित की है, उक्त परन्तुक
अथवा धारा 151 के अन्तर्गत प्रस्तुत की जा
सकती है तथा ऐसा न्यायालय यदि यह पाता है
कि समझौता विधिपूर्ण नहीं था तो ऐसी आज्ञप्ति
को अपास्त करने के अलावा और कोई विकल्प
नहीं होगा।
इस क्रम में न्याय दृष्टांत भगवती प्रसाद वि.
राधाचरण, 2001 (3) एम.पी.एल.जे.387,
बाबूलाल वि. श्रीमती चातुरिया, 2000
(3) एम.पी.एल.जे. 204 एवं न्याय दृष्टांत
बालमुकुंद वि. भुजबल सिंह आदि, 2002
(2) विधि भास्वर 45
भी अवलोकनीय हैं।

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