Sunday 21 April 2024

यदि मजिस्ट्रेट विरोध याचिका के साथ अतिरिक्त सामग्री का संज्ञान लेता है तो मामला निजी शिकायत के रूप में आगे बढ़ना होगा: सुप्रीम कोर्ट

 

यदि मजिस्ट्रेट विरोध याचिका के साथ अतिरिक्त सामग्री का संज्ञान लेता है तो मामला निजी शिकायत के रूप में आगे बढ़ना होगा: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि मजिस्ट्रेट अपराध का संज्ञान लेता है और शिकायतकर्ता द्वारा दायर विरोध याचिका के माध्यम से प्रस्तुत अतिरिक्त सबूतों के आधार पर संतुष्टि दर्ज करके आरोपी को समन जारी करता है तो ऐसी विरोध याचिका को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 200 के तहत निजी शिकायत मामले के रूप में माना जाना चाहिए।

हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के निष्कर्षों को पलटते हुए, जिन्होंने विरोध याचिका को निजी शिकायत के रूप में मानने से इनकार कर दिया, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि यदि विरोध के आधार पर संतुष्टि दर्ज करके मजिस्ट्रेट द्वारा समन जारी किया गया तो मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी के अध्याय XV के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए था।

जस्टिस विक्रम नाथ द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया,

"वर्तमान मामले में चूंकि मजिस्ट्रेट ने पहले ही अपनी संतुष्टि दर्ज कर ली थी कि यह मामला संज्ञान लेने लायक है और आरोपी को बुलाने के लिए उपयुक्त है। हमारा विचार है कि मजिस्ट्रेट को अध्याय XV के तहत निर्धारित प्रावधानों और प्रक्रिया का पालन करना चाहिए था। तदनुसार, हम इस अपील को स्वीकार करते हैं, हाईकोर्ट और सीजेएम, अलीगढ़ द्वारा पारित आदेशों को रद्द करते हैं।''

मामले की पृष्ठभूमि

वर्तमान मामले में सीआरपीसी की धारा 173 के तहत प्रस्तुत पुलिस रिपोर्ट को खारिज करते हुए मजिस्ट्रेट द्वारा मुखबिर द्वारा दायर विरोध याचिका के आधार पर आरोपी को समन जारी किया गया, जिसमें कहा गया कि पुलिस द्वारा दी गई क्लोजर रिपोर्ट खराब जांच का परिणाम थी।

अभियुक्तों को समन जारी करते समय मजिस्ट्रेट ने शिकायतकर्ता द्वारा दायर विरोध याचिका के आधार पर आईपीसी की धारा 147, 342, 323, 307, 506 का संज्ञान लेने पर संतुष्टि दर्ज की। हालांकि, मजिस्ट्रेट ने मामले को शिकायत मामले के रूप में मानने से इनकार कर दिया। लेकिन निर्देश दिया कि यह मामला सीआरपीसी की धारा 190 (1) (बी) के तहत राज्य के मामले के रूप में जारी रहेगा।

राज्य मामले के आधार पर समन जारी करने के मजिस्ट्रेट के फैसले को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई, जिसके परिणामस्वरूप बर्खास्तगी हुई। इसके अनुसरण में अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

बहस

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता ने दलील दी कि विरोध याचिका को निजी शिकायत न मानकर मजिस्ट्रेट और हाईकोर्ट ने गंभीर गलती की। उन्होंने कहा कि एक बार जब मजिस्ट्रेट विरोध याचिका के साथ शिकायतकर्ता द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य के रूप में अतिरिक्त सामग्री पर भरोसा कर रहा था तो मजिस्ट्रेट के लिए एकमात्र विकल्प इसे सीआरपीसी की धारा 200 के तहत शिकायत के रूप में मानना है।

जबकि, राज्य द्वारा यह प्रस्तुत किया गया कि मजिस्ट्रेट ने विरोध याचिका के साथ हलफनामे के रूप में दायर किए गए किसी भी अतिरिक्त सबूत पर विचार नहीं किया और केवल केस डायरी में निहित और जांच के दौरान एकत्र की गई सामग्री पर भरोसा किया। मजिस्ट्रेट द्वारा पुलिस रिपोर्ट को अस्वीकार करने और संज्ञान लेने की दर्ज की गई संतुष्टि उसके अधिकार क्षेत्र में है और ऐसा संज्ञान धारा 190(1)(बी) सीआरपीसी के अंतर्गत आएगा।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

अपीलकर्ता के तर्क में बल पाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी की धारा 200 के तहत विरोध याचिका को निजी शिकायत के रूप में निपटाना चाहिए और संहिता के अध्याय XV के तहत निहित प्रक्रियाओं का पालन करना चाहिए।

कोर्ट ने विष्णु कुमार तिवारी बनाम यूपी राज्य के अपने पिछले फैसले पर भरोसा करते हुए कहा कि यदि मजिस्ट्रेट विरोध याचिका के साथ अतिरिक्त दस्तावेज/सामग्री लेता है तो वह सीआरपीसी की धारा 190(1)(बी) के तहत संज्ञान नहीं ले सकता है। लेकिन सीआरपीसी की धारा 200 के तहत एक शिकायत मामले के रूप में आगे बढ़ना होगा।

कोर्ट ने विष्णु कुमार तिवारी में कहा,

"यदि विरोध याचिका शिकायत की आवश्यकताओं को पूरा करती है तो मजिस्ट्रेट विरोध याचिका को शिकायत के रूप में मान सकता है और संहिता की धारा 202 सपठित धारा 200 के तहत आवश्यक तरीके से निपट सकता है।"

यह दर्ज करने के बाद कि मजिस्ट्रेट ने अपराध का संज्ञान लिया और प्रतिवादी-सूचनाकर्ता द्वारा दायर विरोध याचिका के रूप में अतिरिक्त दस्तावेजों के आधार पर अपीलकर्ता को समन जारी किया, अदालत ने माना कि मजिस्ट्रेट को प्रावधानों का पालन करना चाहिए और सीआरपीसी के अध्याय XV के तहत निर्धारित प्रक्रिया निजी शिकायतों से निपटना चाहिए।

विरोध याचिका की अस्वीकृति सीआरपीसी की धारा 200 के तहत नई शिकायत दर्ज करने पर कोई रोक नहीं है।

न्यायालय ने माना कि मजिस्ट्रेट को विरोध याचिका के साथ-साथ उसके समर्थन में दायर की गई सभी अन्य सामग्री को भी खारिज करने की स्वतंत्रता है और स्पष्ट किया कि सीआरपीसी की धारा 200 के तहत याचिका दायर करने का शिकायतकर्ता का अधिकार है। भले ही संबंधित मजिस्ट्रेट यह निर्देश न दे कि ऐसी विरोध याचिका को शिकायत के रूप में माना जाए, तब भी इसे वापस नहीं लिया जाता है।

केस टाइटल: मुख्तार जैदी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

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