Union of India v. Tarsem Singh (2025 INSC 146)
⚖️ सुप्रीम कोर्ट का फैसला
निर्णय का सारांश:
अवधि | देने योग्य लाभ |
---|---|
1997 – 2015 | |
- ।
🧠 अन्य हाई कोर्ट संबंधी प्रासंगिक निर्णय
✅ निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट के 4 फरवरी 2025 के निर्णय (2025 INSC 146) ने 1997–2015 की अवधि में NHAI अधिनियम के तहत अधिग्रहित जमीनों के लिए landowners को solatium और interest का स्पष्ट अधिकार सुनिश्चित किया। सरकार द्वारा इसका retrospective लाभ देने की मांग को खारिज करते हुए, यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 14 और 300A का पालन कराता है और लंबित मामलों में तुरंत न्याय देने का आदेश देता है।
यदि आप किसी एक राज्य या विशेष अधिग्रहण परियोजना से सम्बंधित मामले (जैसे स्थान, तारीख, हाई कोर्ट आदेश) जानना चाहते हैं, तो कृपया और विवरण बताएं — मैं वह भी आपको विश्लेषित करके दे सकता हूँ।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले (Union of India v. Tarsem Singh, 2025 INSC 146) का विस्तृत विश्लेषण, जो भूमि अधिग्रहण और मुआवज़े को लेकर बहुत महत्वपूर्ण है।
🏛 सुप्रीम कोर्ट जजमेंट का विस्तृत विवरण
यह मामला National Highways Authority of India (NHAI) द्वारा 1997 से 2015 के बीच भूमि अधिग्रहण से संबंधित था।
अधिग्रहण National Highways Act, 1956 के तहत किया गया, जिसमें Section 3J स्पष्ट करता है कि solatium (30% अतिरिक्त मुआवज़ा) और interest (ब्याज) नहीं दिया जाएगा।
परंतु, भूमि मालिकों ने दावा किया कि यह भेदभावपूर्ण है, क्योंकि अन्य अधिग्रहणों में ये लाभ मिलते हैं।
🔹 मुख्य कानूनी प्रश्न:
> क्या NHAI अधिनियम के तहत अधिग्रहण में भूमि मालिकों को भी solatium और interest मिलना चाहिए, विशेषकर तब जब अन्य अधिनियमों में यह दिया जाता है?
🔹 सुप्रीम कोर्ट का निष्कर्ष:
1. Section 3J असंवैधानिक रूप से भेदभावपूर्ण है।
यह Article 14 (समानता का अधिकार) और Article 300A (संविधान द्वारा प्रदत्त संपत्ति का अधिकार) का उल्लंघन करता है।
2. मुआवज़ा समान रूप से देना आवश्यक है।
जिन भूमि मालिकों की ज़मीन National Highways Act के तहत ली गई है, उन्हें भी वही लाभ मिलेंगे जो Land Acquisition Act, 2013 या 1894 Act में दिए जाते हैं:
30% Solatium
9% या 15% Interest, विलंब के अनुसार
3. यह फैसला रेट्रोस्पेक्टिव (पूर्वलाभकारी) होगा।
सरकार की यह दलील खारिज कर दी गई कि लाभ केवल भविष्य में (prospectively) लागू होने चाहिए।
इसका लाभ 1997 से 2015 के बीच के सभी मामलों पर लागू होगा।
4. राजकोषीय बोझ (financial burden) कोई बहाना नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि सरकार “बजट में बोझ पड़ेगा” कहकर संवैधानिक अधिकारों से इनकार नहीं कर सकती।
🔹 कोर्ट का स्पष्ट निर्देश:
NHAI और भारत सरकार सभी मामलों में भूमि मालिकों को पुनर्गणना कर उचित मुआवज़ा दें।
जिन मामलों में पूर्व में मुआवज़ा दिया जा चुका है, लेकिन solatium और interest नहीं मिला, वहाँ उसका भुगतान तुरंत किया जाए।
🔹 महत्व:
✅ यह निर्णय हजारों ज़मीन मालिकों को सीधा लाभ देगा।
✅ यह स्पष्ट करता है कि सभी अधिग्रहणों में मुआवज़ा का मापदंड एकसमान होना चाहिए।
✅ यह एक संवैधानिक समानता और संपत्ति के अधिकार की मजबूत व्याख्या है।
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