पेंशन संवैधानिक अधिकार, उचित प्रक्रिया के बिना इसे कम नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व कर्मचारी को राहत प्रदान की, जिसकी पेंशन निदेशक मंडल से परामर्श किए बिना एक-तिहाई कम कर दी गई थी। तर्क दिया गया कि सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (कर्मचारी) पेंशन विनियम, 1995 ("विनियम") के तहत अनिवार्य है। न्यायालय ने दोहराया कि पेंशन कर्मचारी का संपत्ति पर अधिकार है, जो संवैधानिक अधिकार है, जिसे कानून के अधिकार के बिना अस्वीकार नहीं किया जा सकता, भले ही किसी कर्मचारी को कदाचार के कारण अनिवार्य रूप से रिटायर कर दिया गया हो।
बैंक के विनियम 33 में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया कि निदेशक मंडल से पूर्व परामर्श के बिना पेंशन में कोई कमी नहीं की जाएगी तो न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ता की पेंशन में एक-तिहाई की कटौती करने का बैंक का कार्य मनमाना और अनुचित था। अदालत ने कहा, "इसमें कोई संदेह नहीं है कि पेंशन नियोक्ता का विवेकाधिकार नहीं है, बल्कि संपत्ति का एक मूल्यवान अधिकार है। इसे केवल कानूनी अधिकार के माध्यम से ही अस्वीकार किया जा सकता है। जब किसी प्राधिकारी को पेंशन विनियमों के तहत स्वीकार्य पूर्ण पेंशन से कम पेंशन देने का विवेकाधिकार प्राप्त होता है तो कर्मचारी के पक्ष में पूर्व परामर्श सहित सभी प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए।"
कोर्ट अदालत ने आगे कहा, "विनियम 33 को सरलता से पढ़ने पर पता चलता है कि पूर्ण पेंशन से कम पेंशन देने का कार्य निदेशक मंडल के पूर्व परामर्श से किया जाना चाहिए। बैंक के सर्वोच्च प्राधिकारी, अर्थात् निदेशक मंडल के साथ इस प्रकार के पूर्व परामर्श को किसी कर्मचारी के पेंशन के संवैधानिक अधिकार में कटौती करने से पहले मूल्यवान अनिवार्य सुरक्षा उपाय के रूप में समझा जाना चाहिए। इन परिस्थितियों में निर्णय लेने से पहले बोर्ड के साथ पूर्व परामर्श के स्थान पर कार्योत्तर अनुमोदन नहीं लिया जा सकता।"
जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने एक अपीलकर्ता से जुड़े मामले की सुनवाई की, जिसे प्रक्रियात्मक मानदंडों का उल्लंघन करते हुए 12 आवास और बंधक ऋण स्वीकृत करने का दोषी पाया गया था, जिससे बैंक को ₹3.26 करोड़ का संभावित नुकसान हुआ था। सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया अधिकारी कर्मचारी सेवा विनियम के विनियम 20(3)(iii) के तहत शुरू की गई विभागीय जांच उसकी सेवानिवृत्ति के बाद भी जारी रही। उसे उसकी सेवानिवृत्ति तिथि (30.11.2014) से अनिवार्य रूप से रिटायर कर दिया गया था।
इसके बाद बैंक ने निदेशक मंडल से परामर्श किए बिना अपीलीय प्राधिकारी के माध्यम से उसकी पेंशन में एक-तिहाई की कटौती का आदेश दिया। पटना हाईकोर्ट ने इस कार्रवाई को बरकरार रखा, जिसके बाद अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट का निर्णय रद्द करते हुए जस्टिस बागची द्वारा विनियम 33 के खंड (1) और (2) की व्याख्या करते हुए लिखे गए निर्णय में कहा गया कि यद्यपि खंड 1 के अंतर्गत उच्च प्राधिकारी को पूर्ण पेंशन के "दो-तिहाई से कम नहीं" पेंशन प्रदान करने की शक्ति प्राप्त है, परंतु यदि कोई सक्षम प्राधिकारी (अनुशासनात्मक, अपीलीय, या पुनरीक्षण प्राधिकारी) पूर्ण पेंशन से कम पेंशन प्रदान करने का इरादा रखता है, तो उसे खंड 2 के अनुसार पहले निदेशक मंडल से परामर्श करना होगा। तदनुसार, अपील स्वीकार कर ली गई और हाईकोर्ट का आदेश तथा बैंक का पेंशन कटौती आदेश रद्द कर दिया गया।
न्यायालय ने बैंक को निर्देश दिया कि वह अपीलकर्ता को सुनवाई का अवसर देते हुए और निदेशक मंडल से पूर्व अनुमोदन प्राप्त करते हुए, दो महीने के भीतर मामले पर पुनर्विचार करे।
Cause Title: Vijay Kumar VERSUS Central Bank of India & Ors.
https://hindi.livelaw.in/supreme-court/pension-a-constitutional-right-cant-be-reduced-without-proper-procedure-supreme-court-297827
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