Monday 3 March 2014

पुलिस अभिरक्षा किस अवधि में एवं अधिकतम कितनी अवधि के लिये ?

किसी अभियुक्त की पुलिस अभिरक्षा किस
अवधि में एवं अधिकतम कितनी अवधि के
लिये प्राधिकृत की जा सकती है ?

दण्ड प्रक्रिया संहिता  ⁄एतत्मिन पश्चात् मात्र
संहिता⁄  की धारा 167(1) एंव (2) तथा उसके
परन्तुक ⁄क⁄ की भाषा से यह स्पष्ट होता है कि
किसी अभियुक्त की कुल मिलाकर अधिकतम 15
दिवस की अवधि के लिये ही पुलिस अभिरक्षा
प्राधिकृत की जा सकती हैं।
धारा 167(2) में प्रयुक्त शब्दावली ‘‘जो कुल
मिलाकर पन्द्रह दिन से अधिक न होगी‘‘ एवं
उसके परन्तुक ⁄क⁄ की शब्दावली‘‘ पुलिस
अभिरक्षा से अन्यथा निरोध पन्द्रह दिन से अवधि
से आगे के लिये‘‘ के सूक्ष्म अध्ययन एवं उनके
संविद प्रभाव से यह प्रकट होता है कि किसी
अभियुक्त की पुलिस अभिरक्षा मात्र अभिरक्षा के
प्रथम 15 दिवसों की अवधि के अन्दर ही
प्राधिकृत हो सकती है एवं अपराध के लिये
प्रावधानित कारावास की अवधि के अनुसार
विहित 60 या 90 दिन की अवधि को दृष्टिगत
रखते हुए आगे की शेष अवधि के लिये मात्र
न्यायिक अभिरक्षा ही प्राधिकृत की जा सकती है।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सी.बी.आई. स्पेशल
इन्वेस्टिगेशन सेल-1, नई दिल्ली विरूद्ध
अनुपम जे. कुलकर्णी ए.आई.आर. 1992 सु.
को. 1768
के प्रकरण में संहिता की धारा 167
(2) के प्रावधान के सभी पहलुओं पर विचारोंपरांत
पद क्रमांक 13 मंे उक्त प्रावधान के अंतर्गत
मजिस्टेंट से अपेक्षित कार्यवाही का सुस्पष्ट
क्रमवार विश्लेषण दिया गया है एवं पद क्रमांक
8 तथा 13 में यह अभिनिर्धारित किया गया है
कि आवश्यक प्रतीत होने पर पुलिस अभिरक्षा
मात्र प्रथम पन्द्रह दिवस की अवधि में ही
प्राधिकृत की जा सकती है एवं प्रथम पन्द्रह
दिवस की अभिरक्षा की अवधि के अवसान
उपरांत 60 या 90 दिन की अवधि के शेष दिवस
के लिये किसी अभियुक्त की मात्र न्यायिक
अभिरक्षा ही प्राधिकृत हो सकती है।
यद्यपि न्याय दृष्टांत मौलवी हुसैन हाजी
अब्राहम उमरजी, ए.आई.आर. 2004 सु.को.
3946
में सर्वोच्च न्यायालय ने आतंकवाद
निवारण अधिनियम की धारा 49 (2) ⁄ख⁄ में
जोड़े गये परन्तुक की विवेचना करते हुए यह
विनिश्चित किया है कि उक्त अधिनियम की
धारा 49 (2) ⁄ख⁄ का पुलिस अभिरक्षा के लिये
प्रयोग मात्र 30 दिवस की अवधि तक सीमित
नहीं होंगा। किन्तु उक्त न्याय दृष्टांत में सर्वोच्च
न्यायालय द्वारा उक्त अधिनियम की धारा 49 (2)⁄ख⁄ 
में जोड़े गये परन्तुक के प्रभाव की व्याख्या
की गई है न कि संहिता की धारा 167  (2) और
उसके परन्तुक की।
अतः विचारणीय प्रश्न के संबंध में विधिक स्थिति
वही रहेगी जो न्याय दृष्टांत सी.बी.आई.
स्पेशल इन्वेस्टिगेशन सेल-1 (उपरोक्त ) 
में
प्रतिपादित की गई हैं कि प्रकरण विशेष की
परिस्थितियों में आवश्यकता होने पर यद्यपि
पुलिस अभिरक्षा प्राधिकृत की जा सकती हैं
किन्तु पुलिस अभिरक्षा कुल मिलाकर अधिकतम
15 दिवस की अवधि के लिये और अभिरक्षा की
मात्र प्रथम पन्द्रह दिवस की अवधि में ही
प्राधिकृत हो सकती है।

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क्या किसी अभियुक्त को न्यायिक अभिरक्षा
में भेजे जाने के उपरांत उसी अपराध में
पुलिस अभिरक्षा में सौंपा जा सकता हैं ?
इस संबंध में सामान्यतः यह भ्रांति पायी जाती है
कि यदि किसी अभियुक्त को न्यायिक अभिरक्षा
में भेजा जा चुका हो तो उसी अपराध के संबंध
में उसकी पुलिस अभिरक्षा स्वीकृत नहीं की जा
सकती है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता  ⁄एतत्मिन पश्चात् मात्र
संहिता⁄ की धारा 167
(1) एवं (2) से यह स्पष्ट
है कि यदि न्यायिक मजिस्टेंट प्रथम श्रेणी एवं
उच्च न्यायालय द्वारा विशेषतः सशक्त किये गये
न्यायिक मजिस्टेंट द्वितीय श्रेणी के लिये यह
विश्वास करने के लिये आधार है कि
अभियोग या सूचना दृढ़ आधार पर है तब वह
उसके समक्ष लाये गये किसी अभियुक्त की ,
जैसा उचित प्रतीत हो, पुलिस अभिरक्षा या
न्यायिक अभिरक्षा कुल मिलाकर 15 दिन से
अनधिक अवधि के लिए प्राधिकृत कर सकता है।
संहिता के उक्त प्रावघानों से कोई निर्बन्धन
आरोपित होना प्रकट नहीं होता है कि किसी
अभियुक्त की एक बार न्यायिक अभिरक्षा
प्राधिकृत कर दिये जाने पर उसी अपराध के
लिये उसकी पुलिस अभिरक्षा प्राधिकृत नहीं की
जा सकती।
इस संबंध में न्याय दृष्टांत कोसानपु रामरेड्डी
विरुद्ध आंध्रप्रदेश राज्य, ए आई आर

 1994 सु को. 1447 3⁄4 1994 सी आर एल जे 
 2121 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह
अभिनिर्धारित किया गया है कि न्यायिक अभिरक्षा
में निरुद्ध किसी व्यक्ति को संहिता की धारा
1671⁄421⁄2 में वर्णित 15 दिन की अवधि के अन्दर
पुलिस अभिरक्षा में सौंपा जा सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मौलवी हुसैन हाजी
अब्राहम उमरजी विरुद्ध गुजरात राज्य एवं
अन्य, ए ़आई ़आर ़ 2004 सु ़को ़ 3946 में
आतंकवाद निवारण अधिनियम से संबंधित
प्रकरण में यह स्पष्ट किया गया है कि किसी
आरोपी को न्यायिक अभिरक्षा से पुलिस अभिरक्षा
में सौंपे जाने संबंधी आवेदन पत्र स्वीकार किया
जाना सामान्य प्रक्रिया नहीं हैं बल्कि इसके पूर्व
सभी पहलुओं एवं अधिनियम विशेष के पारित
किये जाने के उद्देश्यों पर विचार करना
चाहिये।
इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि प्रकरण विशेष
की परिस्थितियों के समग्र परिशीलन से
उचित एवं आवश्यक प्रतीत होने पर किसी
अपराध के लिये न्यायिक अभिरक्षा में निरुद्व
किसी अभियुक्त को उसी अपराध के संबंध में
संहिता की धारा 1671⁄421⁄2 में वर्णित 15 दिवस की
कालावधि में पुलिस अभिरक्षा में सौंपा जा सकता
है और ऐसी कोई विधि नहीं है कि एक बार
न्यायिक अभिरक्षा प्राधिकृत हो जाने पर उसी
अपराध के संबंध में आरोपी की पुलिस अभिरक्षा
प्राधिकृत नहीं हो सकती है।

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