Monday 3 March 2014

संशोधन समाविष्ट करने संबंधी प्रक्रिया वाद पत्र एवं लिखित कथन में

न्यायालय द्वारा अनुज्ञात संशोधन वाद
पत्र एवं लिखित कथन में समाविष्ट करने
की प्रक्रिया क्या होगी ?
न्यायालय द्वारा वाद पत्र अथवा लिखित कथन में
अनुज्ञात संशोधन किस प्रकार समाविष्ट किये
जाएंगे?
 

इस संबंध में सिविल प्रक्रिया संहिता,
1908 या म.प्र. सिविल न्यायालय नियम, 1961 में
कोई विशिष्ट प्रक्रिया विहित नहीं है तथापि
नियम 1961 का नियम 14 मात्र यह प्रावधान
करता है किः-
‘‘14. (1) अभिवचन अथवा याचिका में की गयी
कोई शुद्धि अथवा
काट-छाँट प्रस्तुतकर्ता पक्षकार अथवा उसके
मान्यता प्राप्त अभिकर्ता अभिभावक द्वारा तथा
न्यायालय के उस अधिकारी, जिसके कि समक्ष
वह प्रस्तुत किया जावे, के द्वारा संक्षिप्त
हस्ताक्षरित किए जाएँगे । शपथ-पत्र की स्थिति
में यह प्रमाणीकरण शपथ दिलाने वाले अधिकारी
के संक्षिप्त हस्ताक्षर द्वारा किया जायेगा। संख्या
अंकों में लिखी जाएगी तथा जहाँ अभिवचन,
याचिका या शपथ-पत्र आदि मंे भारतीय तिथि
अंकित हो, वहाँ उसके तत्सम अंग्रेजी तारीख
तथा राष्टंीय तिथि पत्र के अनुसार भी दी जाना
चाहिए।
टिप्पणी - सामान्यतः संक्षिप्त हस्ताक्षर अधिकारी
द्वारा प्रस्तुति के समय किए जाना चाहिए, किन्तु
यदि किसी दिन अधिक संख्या में वादों के
प्रस्तुतिकरण के कारण यदि यह संभव न हो
तो ऐसे हस्ताक्षर पंजीयन के पूर्व किसी भी समय
किये जा सकते हैं ।
(2) जहाँ कोई अंक में संशोधन किया जाना हो,
उस पर रेखा खींचकर उसे इस प्रकार निरस्त
किया जाएगा कि वह स्पष्ट रूप से पढ़ने योग्य
रहे, उस निरस्त अंक के स्थान पर लिखा जाने
वाला अंक उस निरस्त अंक के ऊपर नीचे
अथवा बगल में लिखा जाएगा तथा ऐसे परिवर्तन
पर परिवर्तन करने वाले व्यक्ति द्वारा संक्षिप्त
हस्ताक्षर कर प्रमाणित किया जाएगा। अंकों को
संशोधित करने के लिए अंकों को मिटाने, उन्हें
अन्य अंकों में परिवर्तित करने तथा बिगाड़ने की
प्रथा सर्वत्र वर्जित है।‘‘
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्याय दृष्टांत गुरूदयाल
सिंह विरूद्ध राजकुमार अनेजा (2002)
445= AIR 2002 SC 1003 2 SCC
में Halsbury’s Laws
of England (4th Edn., Vol. 36, at pp. 48-49) में
एवं Stone and Iyer in Pleadings (2nd Edn.) में
अभिवचनों के संशोधन समाविष्ट करने हेतु दी
गयी विधि पर विचार करते हुए अभिवचनों में
संशोधन करने हेेतु जो प्रक्रिया प्रतिपादित की
गई है वह सारतः निम्नानुसार है:-
(1) सभी संशोधन लिखित रूप में किए जाने
चाहिए।
(2) ऐसे संशोधन मूल से सुभिन्न रंग की स्याही
से किए जाने चाहिए। प्रथम संशोधन का रंग
सामान्यतः लाल होना Highlighter
 द्वारा अथवा चाहिए। संशोधन लाल स्याही से
Underline  करते हुए प्रथक से दर्शाना चाहिए।
(3) अनुज्ञात संशोधन न्यायालय की अनुमति से
संबंधित पक्षकार द्वारा न्यायालय द्वारा नियत
समयावधि में या अन्यथा 14 दिवस की अवधि मंे,
जैसा कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 6
नियम 18 में प्रावधानित है, समाविष्ट करना चाहिए।
(4) जहाँ संशोधनों की संख्या अधिक है और ऐसे
संशोधन किए जाने पर वाद पत्र या लिखित
कथन की पठनीयता सुविधाजनक नहीं रह जाती
है वहाँ ऐसे संशोधनों को समाहित करते हुए
उन्हें सुभिन्न रंग की स्याही से या Highlighter
से पृथक से दर्शाते हुए नवीन वाद पत्र या
लिखित कथन प्रस्तुत किया जाना चाहिए ।
(5) समाहित/विलोपित संशोधन का मिलान मूल
संशोधन आवेदन एवं वह आदेश, जिसके द्वारा
संशोधन आवेदन स्वीकार किया गया है, से
न्यायाधीश या प्रवर्तन लिपिक द्वारा किया जाना
चाहिए तथा सही पाए जाने की अपने हस्ताक्षर
सहित टीप वाद पत्र/लिखित कथन पर अंकित
की जानी चाहिए ।
(6) संबंधित न्यायाधीश द्वारा ऐसी टीप की जांच
कर अपने हस्ताक्षर एवं मुद्रा द्वारा ऐसे संशोधन
सत्यापित किए जाने चाहिए ।
संशोधन समाविष्ट करने संबंधी शेष
प्रक्रिया
(1) आदेश पत्रिका में संशोधन समाविष्ट किए
जाने एवं न्यायालय द्वारा सत्यापित किए जाने
का तथ्य संबंधित तिथि पर उल्लिखित किया
जाना चाहिए ।
(2) वाद पत्र में  संशोधन की दशा में वाद पत्र
की दोनों प्रतियों में संशोधन समाविष्ट किए जाने
चाहिए ।
(3) संशोधित अभिवचन के समर्थन में सिविल
प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 6 नियम 15 (4)
के अधीन संबंधित पक्षकार का पृथक से
शपथ-पत्र अपेक्षित है ।

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