Monday 3 March 2014

सजा के साथ धारा 357 (3) दं.प्र.सं. के अंतर्गत प्रतिकर धारा 389 (3) में स्थगित ?

किसी आपराधिक मामले में दोषसिद्धी पर
कारावास की सजा के साथ धारा 357
(3)
दं.प्र.सं. के अंतर्गत व्यथित पक्षकार को
प्रतिकर राशि अदायगी का आदेश देने पर
विचारण न्यायालय की धारा 389
(3) द.प्र.
सं. के अंतर्गत ऐसे आदेश को निलंबित
करने या अन्यथा उसे स्थगित करने की
अधिकारिता के उपयोग की सीमा क्या है ?

जब भी विचारण न्यायालय द्वारा किसी अभियुक्त
को दोषसिद्ध ठहराये जाने के उपरांत कारावास
की सजा के साथ अर्थदण्ड की सजा देते हुए
व्यथित पक्षकार को धारा 357
(3) दं.प्र.सं. के
अंतर्गत प्रतिकर राशि देने का आदेश दिया जाता
है तो अभियुक्त की ओर से धारा 389
(3) दं.प्र.सं.
के अंतर्गत आवेदन पत्र प्रस्तुत कर अपील प्रस्तुत
करने के संबंध में विचारण न्यायालय का
समाधान करते हुए कारावास एवं प्रतिकर
अदायगी के आदेश को निलंबित किये जाने की
प्रार्थना की जाती है ।
धारा 389
(3) दं.प्र.सं. के प्रावधान को देखें तो
जब ऐसा अभियुक्त जमानत पर होते हुए तीन
वर्ष से अनधिक की अवधि के लिये कारावास से
दण्डादिष्ट किया गया है या जिस अपराध के
लिये वह दोषसिद्ध किया गया वह जमानतीय है
और वह जमानत पर है, तो विचारण न्यायालय
उसे अपील न्यायालय से धारा 389
(1) के
अधीन आदेश प्राप्त करने के लिये पर्याप्त समय
देते हुए जमानत पर रिहा कर सकता है और
जब तक वह ऐसे जमानत पर रिहा रहता है तब
तक कारावास का दण्डादेश निलंबित समझा
जायेगा ।
उपरोक्त स्थिति से यह स्पष्ट है कि विचारण
न्यायालय को केवल मूल कारावास के दण्डादेश
को ही निलंबित करने का अधिकार है। इसके
साथ ही यदि अर्थदण्ड का दण्डादेश भी दिया
गया है तो उसे निलंबित नहीं किया जा सकता
है । ऐसी स्थिति में यदि अभियुक्त द्वारा
अर्थदण्ड की राशि तत्काल जमा नहीं करायी
जाती है तो विचारण न्यायालय को उसके
व्यतिक्रम में दी गई कारावास की सजा भुगताये
जाने हेतु ऐसे अभियुक्त को कारावास भेजना ही
हेागा । केवल अर्थदण्ड का ही दण्डादेश दिया
गया हो तो ही उसके निलंबन का प्रावधान धारा
424 दं.प्र.सं. में है ।
धारा 357
(3) दं.प्र.सं. के अंतर्गत प्रतिकर
अदायगी के आदेश के साथ उसके व्यतिक्रम के
कारावास की सजा का आदेश भी दिया जा
सकता है। देखें हरिकिशन एवं हरियाणा
राज्य विरूद्ध सुखबीर सिंह एवं अन्य,
ए.आई.आर. 1988 सु.को. 2127
प्रतिकर राशि की वसूली धारा 431 दं.प्र.सं. के
अनुसार अर्थदण्ड की वसूली के प्रावधान अंतर्गत
धारा 421 दं.प्र.सं. के अनुसार ही की जा सकती
है ।
इसी परिप्रेक्ष्य में देखें तो जहां धारा 357
(1) दं.प्र.
सं. के अंतर्गत अर्थदण्ड के दण्डादेश में से
व्यथित पक्षकार को प्रतिकर अदायगी का आदेश
देने का प्रावधान है, वहीं धारा 357
(2) दं.प्र.सं.
के अंतर्गत यह स्पष्ट कर दिया गया है कि यदि
अर्थदण्ड ऐसे मामलें में किया गया है जो
अपीलनीय है तो ऐसा कोई संदाय अपील प्रस्तुत
करने के लिये अनुज्ञात अवधि के व्यतीत होने के
पूर्व या यदि अपील प्रस्तुत की जाती है तो
उसके विनिश्चय के पूर्व, नहीं किया जायेगा ।
लेकिन धारा 357
(3) दं.प्र.सं. के अंतर्गत प्रतिकर
अदायगी के आदेश के संबंध में धारा 357
(2)
 दं.प्र.सं. के समान अन्य कोई विशिष्ट प्रावधान
नहीं होने से विचारण न्यायालय के समक्ष यह
भ्रमूपर्ण स्थिति उत्पन्न होती है कि क्या धारा
389
(3) दं.प्र.सं. के अंतर्गत जब विचारण
न्यायालय को कारावास के साथ दिये गये
अर्थदण्ड को निलंबित करने का अधिकार नहीं है
तो धारा 357
(3) दं.प्र.सं. के अंतर्गत प्रतिकर
अदायगी के आदेश को भी आदेश के साथ ही
तत्काल प्रवर्तित करवाया जाना और ऐसा न हो
तो अभियुक्त को इसके व्यतिक्रम में दिये गये
कारावास की सजा भुगताये जाने हेतु कारावास
भेजना होगा ।
यह सही है कि प्रतिकर राशि की वसूली धारा
421 दं.प्र.सं. के प्रावधान अनुसार ही किया जाना
है लेकिन अर्थदण्ड और प्रतिकर मंे अंतर है ।
जहां कारावास के साथ अधिरोपित अर्थदण्ड की
अदायगी तत्काल होना आवश्यक है वहीं धारा
357
(3) दं.प्र.सं. के अंतर्गत आदेशित प्रतिकर
राशि प्रकरण की परिस्थिति को देखते युक्तियुक्त
होने के साथ इसके भुगतान हेतु समय दिये
जाने के साथ ही यदि आवश्ययक हो तो इसकी
अदायगी किश्तों में करने की सुविधा भी दी जा
सकती है । देखें हरिकिशन एवं हरियाणा
राज्य विरूद्ध सुखबीर सिंह एवं अन्य,
ए.आई.आर. 1988 सु.को. 2127
माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विधि दृष्टांत
दिलीप एस. दहानुकर विरूद्ध कोटक
महिन्द्रा क.लि. एवं अन्य
(2007) 6 एस.सी.
सी. 528 में स्पष्टतया प्रतिपादित किया गया है
कि जब धारा 357
(1) दं.प्र.सं. के अंतर्गत
अर्थदंड में से प्रतिकर अदायगी का आदेश धारा
357
(2) दं.प्र.सं. की सीमा में रहते हुए ही लागू
हो सकेगा तो उसी प्रकार से धारा 357
(3) दं.प्र.
सं. के अंतर्गत प्रतिकर अदायगी के मामले में भी
धारा 357
(2) दं.प्र.सं. का ही प्रावधान लागू हेागा
अर्थात ऐसी प्रतिकर राशि अपील अवधि
पश्चात् या अपील होेने पर उसके विनिश्चय के
पश्चात् ही व्यथित पक्षकार को संदाय होगी ।
ऐसी स्थिति में धारा 357
(3) दं.प्र.सं. के अंतर्गत
आदेशित प्रतिकर राशि को तत्काल जमा करने
की अपेक्षा प्रकरण की परिस्थिति को देखते हुए
कुछ शर्तो सहित उसकी अदायगी को अपीलीय
न्यायालय से योग्य आदेश प्राप्त कर प्रस्तुत
करने तक स्थगित किया जा सकता है अर्थात
धारा 357
(3) दं.प्र.सं. के अंतर्गत आदेशित
प्रतिकर राशि को तत्काल अदा न कर सकने पर
अभियुक्त को इसके लिये तत्काल व्यतिक्रम में
दिये गये कारावास को भुगताये जाने हेतु
कारावास में भेजना आवश्यक नहीं है अदायगी
हेतु राशि की मात्रा व अन्य परिस्थितियों को
ध्यान में रखकर युक्तियुक्त समय अभियुक्त को
प्रदान किया जा सकता है ।

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