Monday 3 March 2014

आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 अधीन अपराध जमानतीय है अथवा अजमानतीय ?

क्या आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 अधीन
अपराध जमानतीय है अथवा अजमानतीय ?

आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में
समय-समय पर संशोधन होते रहे, संशोधन
अधिनियम 1⁄4क्रं. 36/19671⁄2 1967 के द्वारा
10-ए जोडी गई और अधिनियम के अंतर्गत
सभी अपराध संज्ञेय और जमानतीय बनाये
गये । संशोधन अधिनियम 1⁄4क्रं. 30/19741⁄2 द्व
ारा धारा 10 में संशोधन करते हुए ‘‘और
जमानती’’ शब्द हटा दिया गया । आवश्यक
वस्तु 1⁄4विशेष उपबंध1⁄2 अधि. 1981 द्वारा पुनः
धारा 10 ए में संशोधन किया गया और
अपराध अजामनती बनाया गया। वर्ष 1981
का संशोधन अधि. अस्थाई व्यवस्था थी जो
पहले 5 वर्ष के लिये फिर समय-समय पर
5-5 वर्षों के लिये बढाया जाता रहा । अन्तत
ः दिनांक 25.4.1998 को संशोधन अधि. 1981
समाप्त हो गया । इसका स्वाभाविक
प्रभाव यह रहा कि जो भी संशोधन इस
अधिनियम से किये गये थे वे सभी समाप्त हो
गये । धारा 10 ए पुनः अपने मूल स्वरूप जो
1974 में था आ गया अर्थात् अपराध
जमानतीय अथवा अजमानतीय है इस संबंध
में कोई प्रावधान नहीं रह गया । ऐसी स्थिति
में दण्ड प्रक्रिया संहिता की अनुसूची -2 के
अनुसार अपराध जमानतीय है अथवा
अजमानतीय है इस पर निर्भर करेगा कि
अपराध के लिये क्या दण्ड प्रावधानित है
। यदि अपराध 3 वर्ष और उससे अधिक के
कारावास से दण्डनीय है तो अजमानतीय
होगा अथवा जमानतीय हेागा ।
यदि हम अधि. की धारा 7 पर दृष्टिपात करें
तो स्पष्ट है कि 7 ;पद्ध व ;पपद्ध एवं 7;2द्ध में
वर्णित अपराध 7 वर्ष के कारावास से
दण्डनीय है इसलिये दण्ड प्रक्रिया संहिता की
अनुसूची 2 के अनुसार उपरोक्त अपराध
अजमानती है, शेेष अपराध जमानती हेांगे और
प्रथम श्रेणी मजिस्टेंट द्वारा विचारणीय होंगे ।
दिनेश कुमार दुबे विरूद्ध म.प्र. राज्य,
2001 1⁄411⁄2 एम.पी.एच.टी. 213 एवं नेमीचंद
अग्रवाल विरूद्ध म0प्र0 राज्य
डण्ब्तण् ब्ण्
छवण् 6111ध्99
एवं
डण्ब्तण्ब्ण् छव 7681ध्2000
में
माननीय उच्च न्यायालय की एकल पीठ
ने यह मत प्रतिपादित किया है कि आवश्यक
वस्तु संशोधन 1⁄4विशेष उपबंध1⁄2 अधिनियम,
1981 के विलुप्त होने के पश्चात् अधि. के
सभी अपराध जमानती हो गये ।
बलवंत सिंह विरूद्ध म.प्र. राज्य 2001 1⁄431⁄2
एम.पी.एल.जे
168 में
माननीय
उच्च
न्यायालय की एकल पीठ ने आवश्यक वस्तु
संशोधन 1⁄4विशेष उपबंध1⁄2 अधिनियम 1981 के
विलुप्त होने के प्रभाव की विवेचना करते
हुए एवं उपरोक्त सभी न्याय दृष्टांतों को
विचार में लेते हुये यह निर्धारित किया है कि
उपरोक्त न्याय दृष्टांत में प्रतिपादित सिद्धांत
चमत पदबनतपनउ
है और सही न्याय सिद्धांत
प्रतिपादित नहीं करते। न्यायालय ने यह भी
निर्धारित किया है कि आवश्यक वस्तु संशोधन
1⁄4विशेष उपबंध1⁄2 अधिनियम, 1981 के विलुप्त
हो जाने से सभी अपराध जमानती नहीं हो
जावेंगे बल्कि इस पर निर्भर करेगा कि
अपराध में दण्ड का प्रावधान क्या है और
अपराध जमानतीय है अथवा अजमानतीय यह
प्रश्न दण्ड प्रक्रिया संहिता की अनुसूची से
नियंत्रित होगा ।
प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि यदि समान पीठ
के दो न्याय दृष्टांत जो एक दूसरे के विपरीत
हो तो उनमें से कौन सा अनुकरनीय होगा ?
जबलपुर बस आपरेटर ऐसासियेशन एवं
अन्य विरूद्ध म.प्र. राज्य एवं अन्य, 2003
1⁄411⁄2 एम.पी.जे. आर. 158 में पांच न्यायाधीशों
की पीठ ने यह प्रतिपादित किया है कि यदि
समान बल के दो न्याय दृष्टांत यदि एक
दूसरे के विरोधाभासी हैं तो पूर्व का न्याय
दृष्टांत अनुकरणीय होगा और यदि
पश्चातवर्ती न्याय दृष्टांत पूर्व के न्याय दृष्टांत
को स्पष्ट करता है और विभेदित करता है तो
पश्चातवर्ती न्याय दृष्टांत अनुकरणीय होगा।
चंूकि बलवंत सिंह 1⁄4उपरोक्त1⁄2 के मामले पूर्व
के सभी न्याय दृष्टांत विभेदित किये गये और
स्पष्ट किये गये एवं
चमत पदबनतपनउ
निर्धारित
किये गये, इसलिये बलवन्त सिंह 1⁄4उपरोक्त1⁄2
का न्याय दृष्टांत अनुकरणीय होगा ।

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