सुप्रीम कोर्ट के 4 फरवरी 2025 के निर्णय (2025 INSC 146) ने 1997–2015 की अवधि में NHAI अधिनियम के तहत अधिग्रहित जमीनों के लिए landowners को solatium और interest का स्पष्ट अधिकार सुनिश्चित किया। सरकार द्वारा इसका retrospective लाभ देने की मांग को खारिज करते हुए, यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 14 और 300A का पालन कराता है और लंबित मामलों में तुरंत न्याय देने का आदेश देता है।
यदि आप किसी एक राज्य या विशेष अधिग्रहण परियोजना से सम्बंधित मामले (जैसे स्थान, तारीख, हाई कोर्ट आदेश) जानना चाहते हैं, तो कृपया और विवरण बताएं — मैं वह भी आपको विश्लेषित करके दे सकता हूँ।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले (Union of India v. Tarsem Singh, 2025 INSC 146) का विस्तृत विश्लेषण, जो भूमि अधिग्रहण और मुआवज़े को लेकर बहुत महत्वपूर्ण है।
🏛 सुप्रीम कोर्ट जजमेंट का विस्तृत विवरण
यह मामला National Highways Authority of India (NHAI) द्वारा 1997 से 2015 के बीच भूमि अधिग्रहण से संबंधित था।
अधिग्रहण National Highways Act, 1956 के तहत किया गया, जिसमें Section 3J स्पष्ट करता है कि solatium (30% अतिरिक्त मुआवज़ा) और interest (ब्याज) नहीं दिया जाएगा।
परंतु, भूमि मालिकों ने दावा किया कि यह भेदभावपूर्ण है, क्योंकि अन्य अधिग्रहणों में ये लाभ मिलते हैं।
🔹 मुख्य कानूनी प्रश्न:
> क्या NHAI अधिनियम के तहत अधिग्रहण में भूमि मालिकों को भी solatium और interest मिलना चाहिए, विशेषकर तब जब अन्य अधिनियमों में यह दिया जाता है?
🔹 सुप्रीम कोर्ट का निष्कर्ष:
1. Section 3J असंवैधानिक रूप से भेदभावपूर्ण है।
यह Article 14 (समानता का अधिकार) और Article 300A (संविधान द्वारा प्रदत्त संपत्ति का अधिकार) का उल्लंघन करता है।
2. मुआवज़ा समान रूप से देना आवश्यक है।
जिन भूमि मालिकों की ज़मीन National Highways Act के तहत ली गई है, उन्हें भी वही लाभ मिलेंगे जो Land Acquisition Act, 2013 या 1894 Act में दिए जाते हैं:
30% Solatium
9% या 15% Interest, विलंब के अनुसार
3. यह फैसला रेट्रोस्पेक्टिव (पूर्वलाभकारी) होगा।
सरकार की यह दलील खारिज कर दी गई कि लाभ केवल भविष्य में (prospectively) लागू होने चाहिए।
इसका लाभ 1997 से 2015 के बीच के सभी मामलों पर लागू होगा।
4. राजकोषीय बोझ (financial burden) कोई बहाना नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि सरकार “बजट में बोझ पड़ेगा” कहकर संवैधानिक अधिकारों से इनकार नहीं कर सकती।
🔹 कोर्ट का स्पष्ट निर्देश:
NHAI और भारत सरकार सभी मामलों में भूमि मालिकों को पुनर्गणना कर उचित मुआवज़ा दें।
जिन मामलों में पूर्व में मुआवज़ा दिया जा चुका है, लेकिन solatium और interest नहीं मिला, वहाँ उसका भुगतान तुरंत किया जाए।
🔹 महत्व:
✅ यह निर्णय हजारों ज़मीन मालिकों को सीधा लाभ देगा।
✅ यह स्पष्ट करता है कि सभी अधिग्रहणों में मुआवज़ा का मापदंड एकसमान होना चाहिए।
✅ यह एक संवैधानिक समानता और संपत्ति के अधिकार की मजबूत व्याख्या है।
मुस्लिम निकाह का अनुबंध: विवाह की शर्तें, विघटन के तरीके और न्यायपालिका का हस्तक्षेप
भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ (Personal Law) इस्लामी शरिया कानून (Islamic Sharia Law) पर आधारित है, लेकिन इसे भारतीय अदालतों (Indian Courts) की विभिन्न कानूनी ढाँचों (Legal Frameworks) और व्याख्याओं (Interpretations) ने भी आकार दिया है। इसका मतलब है कि इसमें धार्मिक सिद्धांतों (Religious Principles) और भारतीय कानूनी मिसालों (Legal Precedents) का मिश्रण है। मुस्लिम विवाह का सार: एक पवित्र अनुबंध (The Essence of Muslim Marriage: A Sacred Contract)
मुस्लिम विवाह, जिसे "निकाह" (Nikah) के नाम से जाना जाता है, सिर्फ एक धार्मिक समारोह (Religious Ceremony) नहीं है बल्कि इसे एक पुरुष और एक महिला के बीच एक सिविल कॉन्ट्रैक्ट (Civil Contract) माना जाता है। यह एक ऐसा बंधन है जिसमें दोनों पक्षों (Both Parties) के लिए अधिकार (Rights) और दायित्व (Obligations) दोनों शामिल होते हैं। कुछ अन्य पर्सनल लॉ के विपरीत, इसे एक ऐसे कॉन्ट्रैक्ट के रूप में देखा जाता है जिसे विशिष्ट शर्तों (Specific Conditions) के तहत दर्ज किया जा सकता है और भंग (Dissolved) किया जा सकता है। एक मुस्लिम विवाह को वैध (Valid) मानने के लिए, कुछ आवश्यक शर्तें (Essential Conditions) पूरी होनी चाहिए। सबसे पहले, गवाहों (Witnesses) की उपस्थिति में एक पक्ष की ओर से "प्रस्ताव" (Offer) और दूसरे पक्ष की ओर से "स्वीकृति" (Acceptance) होनी चाहिए। इसे "इजाब और कबूल" (Ijab and Qubool) कहते हैं। दूसरे, "महर" (Mahr) या दावर (Dower) एक आवश्यक घटक (Essential Component) है। यह विवाह के समय दूल्हे (Groom) द्वारा दुल्हन (Bride) को दिया जाने वाला एक अनिवार्य भुगतान (Mandatory Payment) या उपहार (Gift) है, जो उसकी अनन्य संपत्ति (Exclusive Property) बन जाता है।
यह दुल्हन के प्रति सम्मान (Respect) और उसकी वित्तीय स्वतंत्रता (Financial Independence) की पहचान है। यह महर तुरंत (प्रॉम्प्ट दावर - Prompt Dower) या बाद में तय किए गए समय (डेफर्ड दावर - Deferred Dower) पर दिया जा सकता है। अंत में, विवाह के दोनों पक्ष स्वस्थ दिमाग (Sound Mind) के होने चाहिए और कॉन्ट्रैक्ट में प्रवेश करने में सक्षम (Competent) होने चाहिए। जबकि आम तौर पर एक मुस्लिम वयस्क (Major) अपनी सहमति (Consent) से शादी कर सकता है, कुछ विचारधाराओं (Schools of Thought) में, विशेष रूप से नाबालिग लड़कियों (Minor Girls) के लिए, अभिभावक (Wali) की सहमति शामिल हो सकती है, हालांकि लड़की की सहमति पर तेजी से जोर दिया जा रहा है।
विवाह का विघटन: विभिन्न रास्ते (Dissolution of Marriage: Various Avenues) मुस्लिम कानून विवाह को भंग करने के विभिन्न तरीके प्रदान करता है, जो निकाह के संविदात्मक (Contractual) स्वरूप को दर्शाता है। तलाक (Talaq) तलाक के सबसे प्रसिद्ध रूपों (Well-Known Forms) में से एक है, जो मुख्य रूप से पति (Husband) का एकाधिकार (Prerogative) है कि वह एकतरफा (Unilaterally) रूप से विवाह को भंग कर सके। पारंपरिक रूप से, इसका मौखिक (Orally) या लिखित (In Writing) रूप से उच्चारण किया जा सकता था। हालांकि, "ट्रिपल तलाक" (Triple Talaq) या "तलाक-ए-बिद्दत" (Talaq-e-Biddat) की प्रथा, जहां एक पति अपनी पत्नी को तुरंत तलाक देने के लिए एक ही बार में तीन बार "तलाक" कहता है, भारत में महत्वपूर्ण कानूनी सुधार (Legal Reform) का विषय रहा है। भारत के सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) ने, शायरा बानो बनाम भारत संघ (Shayara Bano v. Union of India) (2017) के ऐतिहासिक मामले (Landmark Case) में, इंस्टेंट ट्रिपल तलाक की प्रथा को असंवैधानिक (Unconstitutional) घोषित किया, मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों (Rights) की पुष्टि की और लैंगिक समानता (Gender Equality) पर जोर दिया। यह निर्णय एक महत्वपूर्ण क्षण (Pivotal Moment) था, जिससे मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 (The Muslim Women (Protection of Rights on Marriage) Act, 2019) लागू हुआ, जो इंस्टेंट ट्रिपल तलाक के कृत्य को आपराधिक (Criminalizes) बनाता है। पति के तलाक के अधिकार के अलावा, मुस्लिम कानून पत्नी (Wife) के तलाक लेने के अधिकार को भी मान्यता देता है। ऐसी ही एक विधि "खुला" (Khula) है, जहां पत्नी अपने पति से तलाक मांगती है, अक्सर महर या किसी अन्य प्रतिफल (Consideration) को उसे लौटाकर। यह आमतौर पर आपसी सहमति (Mutual Consent) से होता है, लेकिन पत्नी पति की पूर्ण सहमति के बिना भी इसकी मांग कर सकती है, हालांकि उसे वैध कारण (Valid Reasons) प्रदान करने पड़ सकते हैं। आपसी तलाक का एक अन्य रूप "मुबारत" (Mubarat) है, जहां पति और पत्नी दोनों विवाह को भंग करने के लिए सहमत होते हैं। यहां, कोई भी पक्ष दूसरे से मुआवजे (Compensation) की मांग नहीं करता है। इसके अलावा, एक मुस्लिम महिला "फसख" (Faskh) के माध्यम से न्यायिक तलाक (Judicial Divorce) की मांग कर सकती है, जैसा कि मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 (The Dissolution of Muslim Marriages Act, 1939) में निर्धारित किया गया है। इन आधारों में क्रूरता (Cruelty), परित्याग (Desertion), गुजारा भत्ता (Maintenance) प्रदान करने में विफलता, पति की नपुंसकता (Impotence), पागलपन (Insanity), या लंबे समय तक कारावास (Prolonged Imprisonment) शामिल हैं। शमीम आरा बनाम यू.पी. राज्य (Shamim Ara v. State of U.P.) (2002) के मामले ने आगे स्पष्ट किया कि पति द्वारा एक लिखित बयान (Written Statement) में तलाक की मात्र दलील (Mere Plea) एक वैध तलाक नहीं है; इसे प्रभावी ढंग से घोषित (Pronounced) और सूचित (Communicated) किया जाना चाहिए।
महर और भरण-पोषण की अवधारणा (The Concept of Mahr and Maintenance) जैसा कि उल्लेख किया गया है, महर मुस्लिम विवाह में पत्नी का एक मौलिक अधिकार (Fundamental Right) है। यह उसकी अनन्य संपत्ति है और पति का इस पर कोई दावा नहीं है। यह भुगतान शीघ्र (Prompt), जिसका अर्थ है विवाह के समय भुगतान किया गया, या स्थगित (Deferred) हो सकता है, जिसे तलाक या मृत्यु से विवाह के विघटन पर भुगतान किया जाना है। तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के भरण-पोषण (Maintenance) का मुद्दा ऐतिहासिक रूप से एक महत्वपूर्ण कानूनी लड़ाई (Legal Battle) रही है। मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम (Mohd. Ahmed Khan v. Shah Bano Begum) (1985) के ऐतिहासिक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure) की धारा 125 के तहत "इद्दत" (Iddat) अवधि से परे भरण-पोषण की हकदार थी, जो एक धर्मनिरपेक्ष कानून (Secular Law) है। इसने काफी बहस छेड़ दी और मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 (The Muslim Women (Protection of Rights on Divorce) Act, 1986) के अधिनियमन का नेतृत्व किया। जबकि इस अधिनियम ने शुरू में केवल इद्दत अवधि के दौरान भरण-पोषण का प्रावधान किया था (गर्भावस्था का पता लगाने और सुलह की अनुमति देने के लिए एक प्रतीक्षा अवधि - Waiting Period), सुप्रीम कोर्ट ने दानियल लतीफी बनाम भारत संघ (Danial Latifi v. Union of India) (2001) के मामले में 1986 के अधिनियम की वैधता को बरकरार रखा, लेकिन इसकी व्याख्या इस तरह से की कि पति की अपनी तलाकशुदा पत्नी को "उचित और उचित प्रावधान और भरण-पोषण" (Reasonable and Fair Provision and Maintenance) प्रदान करने की देयता (Liability) इद्दत अवधि से आगे बढ़ सकती है। इसमें यह भी प्रावधान किया गया कि यदि महिला इद्दत के बाद अपना भरण-पोषण नहीं कर सकती है, तो उसके रिश्तेदार (Relatives) या राज्य वक्फ बोर्ड (State Wakf Board) जिम्मेदार होंगे। बहुविवाह: एक योग्य भत्ता (Polygamy: A Qualified Allowance) मुस्लिम पर्सनल लॉ पुरुषों को एक साथ चार पत्नियों तक रखने की अनुमति देता है, जिसे बहुविवाह (Polygyny) के रूप में जाना जाता है। हालांकि, यह एक पूर्ण अधिकार (Absolute Right) नहीं है और सख्त शर्तों (Strict Conditions) के अधीन है। कुरान, जबकि बहुविवाह की अनुमति देता है, सभी पत्नियों के साथ समान और न्यायपूर्ण (Equally and Justly) व्यवहार की महत्वपूर्ण शर्त पर जोर देता है। इसका मतलब वित्तीय सहायता (Financial Support), स्नेह (Affection), और समय (Time) के मामले में समान व्यवहार है। यदि कोई व्यक्ति डरता है कि वह कई पत्नियों के साथ निष्पक्ष व्यवहार नहीं कर सकता है, तो उसे केवल एक से शादी करने के लिए कहा जाता है। कानूनी रूप से अनुमेय (Legally Permissible) होते हुए भी, भारत में, यह न्यायिक जांच (Judicial Scrutiny) के अधीन भी है, जिसमें अदालतें अक्सर यह जांच करती हैं कि निष्पक्षता और वित्तीय क्षमता (Financial Capability) की शर्तें वास्तव में पूरी होती हैं या नहीं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि बहुपतित्व (Polyandry), जिसमें एक महिला के कई पति होते हैं, मुस्लिम कानून के तहत इसकी अनुमति नहीं है।
इद्दत अवधि (The Iddat Period) "इद्दत" अवधि एक प्रतीक्षा अवधि (Waiting Period) है जिसे एक मुस्लिम महिला को अपने विवाह के विघटन के बाद, या तो तलाक (Divorce) के कारण या अपने पति की मृत्यु (Death of her Husband) के कारण, फिर से शादी करने से पहले पालन करना चाहिए। इद्दत का प्राथमिक उद्देश्य यह पता लगाना है कि क्या महिला गर्भवती (Pregnant) है, जिससे पितृत्व (Paternity) के बारे में भ्रम से बचा जा सके। यदि विवाह तलाक से भंग हो जाता है और सहवास (Consummation) हुआ है, तो इद्दत अवधि आमतौर पर तीन मासिक धर्म चक्र (Menstrual Cycles) या तीन चंद्र महीने (Lunar Months) होती है। यदि महिला गर्भवती है, तो अवधि बच्चे के जन्म तक बढ़ जाती है। पति की मृत्यु से विघटन के मामले में, इद्दत अवधि चार महीने और दस दिन है, भले ही सहवास हुआ हो या नहीं। यदि वह अपने पति की मृत्यु के समय गर्भवती है, तो उसकी इद्दत डिलीवरी तक बढ़ जाती है। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि इद्दत अवधि तलाक या मृत्यु की तारीख से शुरू होती है, न कि जब महिला को खबर मिलती है। इस अवधि के दौरान, महिला से आम तौर पर उस घर में रहने की उम्मीद की जाती है जहां वह तलाक या मृत्यु के समय रहती थी और कुछ प्रतिबंधों (Restrictions) का पालन करना चाहिए।
उच्च शिक्षित बेरोजगार पत्नी को भरण-पोषण का हक: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि कोई पत्नी अगर उच्च शिक्षित है लेकिन बेरोजगार है, तो उसे तब तक पति से भरण-पोषण पाने का अधिकार है जब तक वह खुद कमाई का कोई साधन नहीं ढूंढ लेती या कोई रोजगार नहीं पा जाती। जस्टिसी ना बंसल कृष्णा ने एक पति की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें फैमिली कोर्ट द्वारा पत्नी को प्रति माह ₹1 लाख की एड-इंटरिम मेंटेनेंस (अंतरिम भरण-पोषण) देने के आदेश को चुनौती दी गई थी।
पति, जो कि एक ऑस्ट्रेलियाई नागरिक है, ने तर्क दिया कि उसकी पत्नी बेहद योग्य और कुशल प्रोफेशनल है, जिसकी शैक्षणिक पृष्ठभूमि बहुत मजबूत रही है। उसके अनुसार, पत्नी अपनी योग्यता के बल पर अच्छी नौकरी पा सकती थी, लेकिन उसने स्वेच्छा से काम न करने का विकल्प चुना है और उसकी वित्तीय निर्भरता उसकी व्यक्तिगत पसंद है, ज़रूरत नहीं। पति ने यह भी कहा कि पत्नी पहले से ही एक आलीशान जीवनशैली जी रही है और उसे उसकी ओर से कोई आर्थिक सहयोग नहीं मिल रहा है। उसने यह भी आरोप लगाया कि फैमिली कोर्ट ने तथ्यों की समुचित समीक्षा किए बिना और दोनों पक्षों की सुविधाओं की तुलना किए बिना यह आदेश पारित कर दिया।
उसने कहा कि उसकी खुद की आर्थिक स्थिति भी ऑस्ट्रेलिया में बहुत अच्छी नहीं है और वह अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मां और दोस्तों की सहायता ले रहा है। वह अपने स्टार्टअप के लिए भी दोस्तों और परिवार से आर्थिक मदद ले रहा है। दूसरी ओर, पत्नी ने जवाब में कहा कि उसने शादी के समय अपनी नौकरी छोड़ दी थी और अब वह अपने माता-पिता के साथ रह रही है, जो उसकी देखरेख कर रहे हैं। उसका तर्क था कि केवल उच्च शिक्षित होना इस आधार पर भरण-पोषण से इनकार का कारण नहीं हो सकता, विशेष रूप से तब जब उसे रोजगार प्राप्त करने में अभी समय लग सकता है।
कोर्ट ने पति की याचिका खारिज करते हुए कहा कि भले ही पत्नी उच्च शिक्षित हो और उसके पास मानव संसाधन (HR) क्षेत्र में अच्छी योग्यता हो, लेकिन यह तथ्य नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि वह वर्तमान में बेरोजगार है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि उसने जानबूझकर नौकरी छोड़ी, क्योंकि उसने शादी के बाद ऑस्ट्रेलिया स्थानांतरित होने के कारण नौकरी छोड़ी थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया,"जब तक पत्नी आय का कोई स्रोत नहीं ढूंढ लेती या कोई लाभकारी रोजगार नहीं प्राप्त कर लेती, तब तक उसे पति से सहायता पाने का अधिकार है।” Also Read - दिल्ली डिटेंशन सेंटर में हिंसा पर एजेंसियों ने किया टालमटोल, हाईकोर्ट ने MHA से मांगी जांच रिपोर्ट, CCTV पर उठे सवाल कोर्ट ने यह भी कहा कि यह आदेश केवल एड-इंटरिम मेंटेनेंस का है, यानी अंतरिम राहत का आदेश, जो आय के हलफनामे और दोनों पक्षों की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए अंतिम रूप से तय किया जाएगा। कोर्ट ने टिप्पणी की,"यह कहना कि केवल उसकी earning capacity के आधार पर उसे भरण-पोषण देना एक 'आलसी महिलाओं का वर्ग' बना देगा, इस स्तर पर जल्दबाज़ी होगी और अनुचित भी, खासतौर पर जब यह केवल अस्थायी राहत देने वाला आदेश है।"
Sec. 223 BNSS| शिकायत के आधार पर मजिस्ट्रेट द्वारा अपराध का संज्ञान लेने से पहले आरोपी को सुनना जरूरी: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा था कि एक शिकायत के आधार पर अपराध का संज्ञान लेने से पहले एक मजिस्ट्रेट को आरोपी व्यक्ति को सुनवाई का अवसर देना चाहिए। न्यायालय ने पाया कि यह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 233 के परंतुक के तहत एक जनादेश है। जस्टिस बधारुद्दीन ने कहा,"इस प्रकार, धारा 223 (1) का महत्वपूर्ण पहलू पहला परंतुक है, जो यह कहता है कि मजिस्ट्रेट आरोपी को सुनवाई का अवसर दिए बिना अपराध का संज्ञान नहीं ले सकता है। यह सीआरपीसी के प्रावधानों से एक महत्वपूर्ण प्रस्थान है, जिसने अभियुक्तों के लिए इस पूर्व-संज्ञान सुनवाई को अनिवार्य नहीं किया था।
मामले में याचिकाकर्ता आरोपी व्यक्ति हैं जिनके खिलाफ सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा आपराधिक कार्यवाही शुरू की गई थी। आरोप यह है कि पहले याचिकाकर्ता ने सरकारी कर्मचारी के रूप में अपने 14 वर्षों में आय के ज्ञात स्रोतों से लगभग 1.5 करोड़ रुपये यानी 113.45% अधिक जमा किए। इस प्रकार, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13 (1) (e), (2) और धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 की धारा 4, 3 के तहत अपराध दर्ज किए गए थे।
वर्तमान याचिका आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग करते हुए दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि मजिस्ट्रेट ने BNSS की धारा 223 के तहत नोटिस जारी किए बिना प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दायर शिकायत का संज्ञान लिया। यह भी आग्रह किया गया था कि बीएनएसएस की धारा 218 के तहत कोई पूर्व मंजूरी नहीं ली गई थी। CrPC में इसकी संबंधित धारा के साथ BNSS धारा 223 की तुलना करते हुए, न्यायालय ने कहा,"BNSSकी धारा 223 (1) में एक महत्वपूर्ण जोड़ यह आवश्यकता है कि मजिस्ट्रेट द्वारा अपराध का संज्ञान लेने से पहले अभियुक्त को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए ...इसी तरह, शिकायतकर्ता और गवाहों की परीक्षा की आवश्यकता नहीं है यदि शिकायत किसी लोक सेवक द्वारा उनकी आधिकारिक क्षमता में या अदालत द्वारा की जाती है। इसके अतिरिक्त, यदि कोई मामला BNSS की धारा 212 के तहत स्थानांतरित किया जाता है, तो नए मजिस्ट्रेट को शिकायतकर्ता और गवाहों से फिर से पूछताछ करने की आवश्यकता नहीं है, यदि वे पहले से ही पिछले मजिस्ट्रेट द्वारा जांच की गई थीं।
इसने कुशल कुमार अग्रवाल बनाम प्रवर्तन निदेशालय में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि BNSS हत प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दायर मनी लॉन्ड्रिंग शिकायतों पर लागू होते हैं। तरसेम लाल बनाम प्रवर्तन निदेशालय जालंधर जोनल कार्यालय पर भी भरोसा किया गया था जिसमें यह माना गया था कि पीएमएलए अधिनियम के तहत दर्ज शिकायतों में CrPC/BNSS के प्रावधान लागू होंगे। इस प्रकार, न्यायालय ने याचिका की अनुमति दी और मामले को पूर्व-संज्ञान चरण में वापस भेज दिया। पीठ ने विशेष अदालत को निर्देश दिया कि वह आरोपी का पक्ष रखने का अवसर दे और इस बात पर विचार करे कि संज्ञान लेने के लिए आगे बढ़ने से पहले मंजूरी की आवश्यकता है या नहीं।
वैध ड्राइविंग लाइसेंस न होने पर भी पीड़ित की गलती नहीं मानी जा सकती: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि सड़क दुर्घटना का शिकार होने वाले मोटरसाइकिल सवार को केवल इसलिए लापरवाही के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि उसके पास अपने वाहन की सवारी करने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था। जस्टिस डॉ. चिल्लाकुर सुमालता ने कहा, "केवल इसलिए कि अपीलकर्ता के पास दुर्घटना में शामिल अपने वाहन की सवारी करने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था, यह नहीं माना जा सकता है कि दुर्घटना में उसके योगदान का योगदान था, जबकि अन्य सभी ठोस सबूत बताते हैं कि दुर्घटना में शामिल दूसरे वाहन के सवार की पूरी तरह से गलती थी।
04.01.2015 को, अपीलकर्ता शिवेगौड़ा जब वह अपने रिश्तेदार के साथ अपनी मोटरसाइकिल पर आगे बढ़ रहा था और जब वे जोडीगेट की दूध डायरी के पास पहुंचे, तो यू-टर्न लिया और हिरेहल्ली गांव की ओर बढ़ रहे थे, एक अन्य मोटरसाइकिल सवार ने मानव जीवन को खतरे में डालते हुए अपने वाहन को तेज और लापरवाही से चलाया और तेज गति से, सड़क के चरम दाईं ओर आया और अपनी मोटरसाइकिल से टकरा गया, जिससे वह नीचे गिर गया और उसे चोटें आईं।
अपीलकर्ता ने ट्रिब्यूनल के आदेश को चुनौती दी, जिसमें कहा गया था कि अपीलकर्ता ने दुर्घटना में योगदान दिया, और ऐसा योगदान 25% है। यह प्रस्तुत किया गया था कि हालांकि अपीलकर्ता ने यह दिखाने के लिए पर्याप्त सामग्री पेश की कि दुर्घटना मोटरसाइकिल के उल्लंघन करने वाले सवार की ओर से एकमात्र लापरवाही के कारण हुई, ट्रिब्यूनल ने सनकी और अस्थापित आधारों के आधार पर, अपीलकर्ता के खिलाफ अंशदायी लापरवाही को ठहराया है।
पुलिस द्वारा दायर चार्जशीट पर भरोसा किया गया था, जिसमें कहा गया था कि दुर्घटना पूरी तरह से आक्रामक मोटरसाइकिल के सवार की तेज और लापरवाही से सवारी के कारण हुई। इसके अलावा, बीमा कंपनी द्वारा यह दिखाने के लिए कोई सबूत पेश नहीं किया जाता है कि अपीलकर्ता ने दुर्घटना में योगदान दिया था। बीमा कंपनी ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि अपीलकर्ता वैध और प्रभावी ड्राइविंग लाइसेंस के बिना मोटरसाइकिल चला रहा था।
कोर्ट का निर्णय: रिकॉर्ड देखने के बाद, पीठ ने कहा कि रजिस्ट्रेशन No.KA-13-V-3715 वाले वाहन का मालिक, जिसे ट्रिब्यूनल के समक्ष प्रतिवादी नंबर 1 के रूप में पेश किया गया है, इस मामले को लड़ने में विफल रहा और इसलिए, उसे एकपक्षीय सेट किया गया था। बीमा कंपनी, बीमा की पॉलिसी का उत्पादन करने के अलावा, अपीलकर्ता की ओर से कथित अंशदायी लापरवाही के संबंध में कोई अन्य सबूत, विशेष रूप से कोई सबूत नहीं दिया। कोर्ट ने कहा, "इस प्रकार यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं है कि अपीलकर्ता ने दुर्घटना के लिए योगदान दिया ... यह न्यायालय मानता है कि ट्रिब्यूनल ने अपीलकर्ता की ओर से अंशदायी लापरवाही को जिम्मेदार ठहराने में गलती की," पीठ ने कहा कि ट्रिब्यूनल को भविष्य की कमाई के नुकसान के तहत हकदार राशि प्रदान करनी चाहिए थी। अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए, अदालत ने कहा, "इस प्रकार अपीलकर्ता भविष्य की कमाई के नुकसान के तहत 5,67,000 रुपये की राशि का हकदार है।
दहेज प्रताड़ना को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने उठाया बड़ा कदम, देशभर में ये गाइडलाइन लागू करने के आदेश
दहेज प्रताड़ना को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2022 के दिशानिर्देशों को पूरे देश में लागू करने के आदेश दिए गए हैं.
वैवाहिक विवादों में IPC की धारा 498 A यानी दहेज प्रताड़ना को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा कदम उठाया है. दहेज प्रताड़ना के दुरुपयोग को रोकने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2022 के दिशानिर्देशों को पूरे देश में लागू करने के आदेश दिए गए हैं. 498A मामलो में दो महीने तक गिरफ्तारी ना करने और परिवार कल्याण समितियों के गठन के हाईकोर्ट दिशानिर्देशों का समर्थन किया है. CJI बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने फैसले में कहा कि हाईकोर्ट द्वारा तैयार किए गए दिशानिर्देश प्रभावी रहेंगे और प्राधिकारियों द्वारा उनका क्रियान्वयन किया जाना चाहिए.
पीठ ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा 13.06.2022 के फैसले में पैरा 32 से 38 के अनुसार, 'भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के दुरुपयोग से संबंधित सुरक्षा उपायों के लिए परिवार कल्याण समितियों के गठन' के संबंध में तैयार किए गए दिशानिर्देश प्रभावी रहेंगे और उपयुक्त प्राधिकारियों द्वारा उनका क्रियान्वयन किया जाएगा. दरअसल इस फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि 2018 में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मार्गदर्शन प्राप्त करते हुए दिशानिर्देश जारी कर रहा है. इसका उद्देश्य वादियों में पति और उसके पूरे परिवार को व्यापक आरोपों के माध्यम से फंसाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना है.
हाईकोर्ट के दिशानिर्देश थे
(1) FIR या शिकायत दर्ज होने के बाद, "कूलिंग पीरियड" (जो FIR या शिकायत दर्ज होने के दो महीने बाद है) समाप्त हुए बिना, नामित अभियुक्तों की गिरफ्तारी या उन्हें पकड़ने के लिए पुलिस कार्रवाई नहीं की जाएगी..इस "कूलिंग पीरियड" के दौरान, मामला प्रत्येक जिले में तुरंत परिवार कल्याण समिति को भेजा जाएगा.
(2) केवल वे मामले परिवार कल्याण समिति को भेजे जाएंगे जिनमें धारा 498-ए, अन्य धाराओं के साथ-साथ कारावास की सजा 10 साल से कम हो.
(3) शिकायत या FIR दर्ज होने के बाद दो महीने का "कूलिंग पीरियड" समाप्त हुए बिना कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए. इस "कूलिंग पीरियड" के दौरान, मामले को प्रत्येक जिले में परिवार कल्याण समिति को भेजा जा सकता है.
(4) प्रत्येक जिले में कम से कम एक या एक से अधिक परिवार कल्याण समिति (जिला विधिक सहायता सेवा प्राधिकरण के अंतर्गत गठित उस जिले के भौगोलिक आकार और जनसंख्या के आधार पर) होगी, जिसमें कम से कम तीन सदस्य होंगे.. इसके गठन और कार्यों की समीक्षा उस जिले के जिला एवं सत्र न्यायाधीश/प्रधान न्यायाधीश, फैमिली कोर्ट द्वारा समय-समय पर की जाएगी, जो विधिक सेवा प्राधिकरण में उस जिले के अध्यक्ष या सह-अध्यक्ष होंगे.
(5) उक्त परिवार कल्याण समिति में निम्नलिखित सदस्य शामिल होंगे:-
(ए ) जिले के मध्यस्थता केंद्र से एक युवा मध्यस्थ या पांच वर्ष तक का अनुभव रखने वाला युवा वकील या राजकीय विधि महाविद्यालय या राज्य विश्वविद्यालय या राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय का पाँचवें वर्ष का वरिष्ठतम छात्र.. अच्छा शैक्षणिक रिकॉर्ड रखने वाला और लोक-हितैषी युवक, या
(बी) उस जिले का सुप्रसिद्ध और मान्यता प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता, जिसका पूर्व-पारिवारिक इतिहास साफ़-सुथरा हो, या;
(सी) जिले में या उसके आस-पास रहने वाले सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी, जो कार्यवाही के उद्देश्य के लिए समय दे सकें, या;
(डी) जिले के वरिष्ठ न्यायिक या प्रशासनिक अधिकारियों की शिक्षित पत्नियां
(6) परिवार कल्याण समिति के सदस्य को कभी भी गवाह के रूप में नहीं बुलाया जाएगा
(7) भारतीय दंड संहिता की धारा 498A और ऊपर उल्लिखित अन्य संबद्ध धाराओं के अंतर्गत प्रत्येक शिकायत या आवेदन, संबंधित मजिस्ट्रेट द्वारा तुरंत परिवार कल्याण समिति को भेजा जाएगा.. उक्त शिकायत या FIR प्राप्त होने के बाद, समिति प्रतिवादी पक्षों को उनके चार वरिष्ठ व्यक्तियों के साथ व्यक्तिगत बातचीत के लिए बुलाएगी और दर्ज होने के दो महीने के भीतर उनके बीच के विवाद/शंकाओं को सुलझाने का प्रयास करेगी. प्रतिवादी पक्षों को समिति के सदस्यों की सहायता से अपने बीच गंभीर विचार-विमर्श के लिए अपने चार वरिष्ठ व्यक्तियों (अधिकतम) के साथ समिति के समक्ष उपस्थित होना अनिवार्य है.
(8) समिति उचित विचार-विमर्श के बाद, एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेगी और मामले से संबंधित सभी तथ्यात्मक पहलुओं और अपनी राय को शामिल करते हुए, दो महीने की अवधि समाप्त होने के बाद, संबंधित मजिस्ट्रेट/पुलिस अधिकारियों को, जिनके समक्ष ऐसी शिकायतें दर्ज की जा रही हैं, भेजेगी.
(9) पुलिस अधिकारी, नामित अभियुक्तों के विरुद्ध आवेदनों या शिकायतों के आधार पर किसी भी गिरफ्तारी या किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से बचने के लिए, समिति के समक्ष विचार-विमर्श जारी रखेंगे. हालांकि, जांच अधिकारी मामले की परिधीय जाँच जारी रखेंगे, जैसे कि मेडिकल रिपोर्ट, चोट रिपोर्ट और गवाहों के बयान तैयार करना.
(10) समिति द्वारा दी गई उक्त रिपोर्ट, गुण-दोष के आधार पर, जांच अधिकारी या मजिस्ट्रेट के विचाराधीन होगी और उसके बाद दो महीने की " कूलिंग अवधि" समाप्त होने के बाद, दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के अनुसार उनके द्वारा उचित कार्रवाई की जाएगी
(11) विधिक सेवा सहायता समिति, परिवार कल्याण समिति के सदस्यों को समय-समय पर आवश्यक समझे जाने वाले बुनियादी प्रशिक्षण प्रदान करेगी.
(12) चूंकि,यह समाज में व्याप्त उन कटुताओं को दूर करने का एक नेक कार्य है जहां प्रतिवादी पक्षों की भावनाएं बहुत तीव्र होती हैं ताकि वे अपने बीच की गर्माहट को कम कर सकें और उनके बीच की गलतफहमियों को दूर करने का प्रयास कर सकें चूंकि यह कार्य व्यापक रूप से जनता के लिए है, सामाजिक कार्य है, इसलिए वे प्रत्येक जिले के जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा निर्धारित न्यूनतम मानदेय या निशुल्क आधार पर कार्य कर रहे हैं.
(13) भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए और अन्य संबद्ध धाराओं से संबंधित ऐसी FIR या शिकायतों की जांच, गतिशील जांच अधिकारियों द्वारा की जाएगी, जिनकी निष्ठा, ऐसे वैवाहिक मामलों को पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ संभालने और जांच करने के लिए कम से कम एक सप्ताह के विशेष प्रशिक्षण के बाद प्रमाणित हो.
(14) जब पक्षों के बीच समझौता हो जाता है तो जिला एवं सत्र न्यायाधीश और उनके द्वारा जिले में नामित अन्य वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी आपराधिक मामले को बंद करने सहित कार्यवाही का निपटारा करने के लिए स्वतंत्र होंगे. दरअसल मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने उस वैवाहिक मामले में फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट के सुरक्षा उपायों का समर्थन किया है, जिसमें पत्नी और उसके परिवार ने पति और उसके परिवार के खिलाफ झूठे मामले दर्ज कराए थे, जिसके कारण पति और उसके पिता को जेल की सजा हुई थी.
दहेज प्रताड़ना को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने उठाया बड़ा कदम, देशभर में ये गाइडलाइन लागू करने के आदेश
दहेज प्रताड़ना को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2022 के दिशानिर्देशों को पूरे देश में लागू करने के आदेश दिए गए हैं.
वैवाहिक विवादों में IPC की धारा 498 A यानी दहेज प्रताड़ना को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा कदम उठाया है. दहेज प्रताड़ना के दुरुपयोग को रोकने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2022 के दिशानिर्देशों को पूरे देश में लागू करने के आदेश दिए गए हैं. 498A मामलो में दो महीने तक गिरफ्तारी ना करने और परिवार कल्याण समितियों के गठन के हाईकोर्ट दिशानिर्देशों का समर्थन किया है. CJI बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने फैसले में कहा कि हाईकोर्ट द्वारा तैयार किए गए दिशानिर्देश प्रभावी रहेंगे और प्राधिकारियों द्वारा उनका क्रियान्वयन किया जाना चाहिए.
पीठ ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा 13.06.2022 के फैसले में पैरा 32 से 38 के अनुसार, 'भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के दुरुपयोग से संबंधित सुरक्षा उपायों के लिए परिवार कल्याण समितियों के गठन' के संबंध में तैयार किए गए दिशानिर्देश प्रभावी रहेंगे और उपयुक्त प्राधिकारियों द्वारा उनका क्रियान्वयन किया जाएगा. दरअसल इस फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि 2018 में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मार्गदर्शन प्राप्त करते हुए दिशानिर्देश जारी कर रहा है. इसका उद्देश्य वादियों में पति और उसके पूरे परिवार को व्यापक आरोपों के माध्यम से फंसाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना है.
हाईकोर्ट के दिशानिर्देश थे
(1) FIR या शिकायत दर्ज होने के बाद, "कूलिंग पीरियड" (जो FIR या शिकायत दर्ज होने के दो महीने बाद है) समाप्त हुए बिना, नामित अभियुक्तों की गिरफ्तारी या उन्हें पकड़ने के लिए पुलिस कार्रवाई नहीं की जाएगी..इस "कूलिंग पीरियड" के दौरान, मामला प्रत्येक जिले में तुरंत परिवार कल्याण समिति को भेजा जाएगा.
(2) केवल वे मामले परिवार कल्याण समिति को भेजे जाएंगे जिनमें धारा 498-ए, अन्य धाराओं के साथ-साथ कारावास की सजा 10 साल से कम हो.
(3) शिकायत या FIR दर्ज होने के बाद दो महीने का "कूलिंग पीरियड" समाप्त हुए बिना कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए. इस "कूलिंग पीरियड" के दौरान, मामले को प्रत्येक जिले में परिवार कल्याण समिति को भेजा जा सकता है.
(4) प्रत्येक जिले में कम से कम एक या एक से अधिक परिवार कल्याण समिति (जिला विधिक सहायता सेवा प्राधिकरण के अंतर्गत गठित उस जिले के भौगोलिक आकार और जनसंख्या के आधार पर) होगी, जिसमें कम से कम तीन सदस्य होंगे.. इसके गठन और कार्यों की समीक्षा उस जिले के जिला एवं सत्र न्यायाधीश/प्रधान न्यायाधीश, फैमिली कोर्ट द्वारा समय-समय पर की जाएगी, जो विधिक सेवा प्राधिकरण में उस जिले के अध्यक्ष या सह-अध्यक्ष होंगे.
(5) उक्त परिवार कल्याण समिति में निम्नलिखित सदस्य शामिल होंगे:-
(ए ) जिले के मध्यस्थता केंद्र से एक युवा मध्यस्थ या पांच वर्ष तक का अनुभव रखने वाला युवा वकील या राजकीय विधि महाविद्यालय या राज्य विश्वविद्यालय या राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय का पाँचवें वर्ष का वरिष्ठतम छात्र.. अच्छा शैक्षणिक रिकॉर्ड रखने वाला और लोक-हितैषी युवक, या
(बी) उस जिले का सुप्रसिद्ध और मान्यता प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता, जिसका पूर्व-पारिवारिक इतिहास साफ़-सुथरा हो, या;
(सी) जिले में या उसके आस-पास रहने वाले सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी, जो कार्यवाही के उद्देश्य के लिए समय दे सकें, या;
(डी) जिले के वरिष्ठ न्यायिक या प्रशासनिक अधिकारियों की शिक्षित पत्नियां
(6) परिवार कल्याण समिति के सदस्य को कभी भी गवाह के रूप में नहीं बुलाया जाएगा
(7) भारतीय दंड संहिता की धारा 498A और ऊपर उल्लिखित अन्य संबद्ध धाराओं के अंतर्गत प्रत्येक शिकायत या आवेदन, संबंधित मजिस्ट्रेट द्वारा तुरंत परिवार कल्याण समिति को भेजा जाएगा.. उक्त शिकायत या FIR प्राप्त होने के बाद, समिति प्रतिवादी पक्षों को उनके चार वरिष्ठ व्यक्तियों के साथ व्यक्तिगत बातचीत के लिए बुलाएगी और दर्ज होने के दो महीने के भीतर उनके बीच के विवाद/शंकाओं को सुलझाने का प्रयास करेगी. प्रतिवादी पक्षों को समिति के सदस्यों की सहायता से अपने बीच गंभीर विचार-विमर्श के लिए अपने चार वरिष्ठ व्यक्तियों (अधिकतम) के साथ समिति के समक्ष उपस्थित होना अनिवार्य है.
(8) समिति उचित विचार-विमर्श के बाद, एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेगी और मामले से संबंधित सभी तथ्यात्मक पहलुओं और अपनी राय को शामिल करते हुए, दो महीने की अवधि समाप्त होने के बाद, संबंधित मजिस्ट्रेट/पुलिस अधिकारियों को, जिनके समक्ष ऐसी शिकायतें दर्ज की जा रही हैं, भेजेगी.
(9) पुलिस अधिकारी, नामित अभियुक्तों के विरुद्ध आवेदनों या शिकायतों के आधार पर किसी भी गिरफ्तारी या किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से बचने के लिए, समिति के समक्ष विचार-विमर्श जारी रखेंगे. हालांकि, जांच अधिकारी मामले की परिधीय जाँच जारी रखेंगे, जैसे कि मेडिकल रिपोर्ट, चोट रिपोर्ट और गवाहों के बयान तैयार करना.
(10) समिति द्वारा दी गई उक्त रिपोर्ट, गुण-दोष के आधार पर, जांच अधिकारी या मजिस्ट्रेट के विचाराधीन होगी और उसके बाद दो महीने की " कूलिंग अवधि" समाप्त होने के बाद, दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के अनुसार उनके द्वारा उचित कार्रवाई की जाएगी
(11) विधिक सेवा सहायता समिति, परिवार कल्याण समिति के सदस्यों को समय-समय पर आवश्यक समझे जाने वाले बुनियादी प्रशिक्षण प्रदान करेगी.
(12) चूंकि,यह समाज में व्याप्त उन कटुताओं को दूर करने का एक नेक कार्य है जहां प्रतिवादी पक्षों की भावनाएं बहुत तीव्र होती हैं ताकि वे अपने बीच की गर्माहट को कम कर सकें और उनके बीच की गलतफहमियों को दूर करने का प्रयास कर सकें चूंकि यह कार्य व्यापक रूप से जनता के लिए है, सामाजिक कार्य है, इसलिए वे प्रत्येक जिले के जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा निर्धारित न्यूनतम मानदेय या निशुल्क आधार पर कार्य कर रहे हैं.
(13) भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए और अन्य संबद्ध धाराओं से संबंधित ऐसी FIR या शिकायतों की जांच, गतिशील जांच अधिकारियों द्वारा की जाएगी, जिनकी निष्ठा, ऐसे वैवाहिक मामलों को पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ संभालने और जांच करने के लिए कम से कम एक सप्ताह के विशेष प्रशिक्षण के बाद प्रमाणित हो.
(14) जब पक्षों के बीच समझौता हो जाता है तो जिला एवं सत्र न्यायाधीश और उनके द्वारा जिले में नामित अन्य वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी आपराधिक मामले को बंद करने सहित कार्यवाही का निपटारा करने के लिए स्वतंत्र होंगे. दरअसल मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने उस वैवाहिक मामले में फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट के सुरक्षा उपायों का समर्थन किया है, जिसमें पत्नी और उसके परिवार ने पति और उसके परिवार के खिलाफ झूठे मामले दर्ज कराए थे, जिसके कारण पति और उसके पिता को जेल की सजा हुई थी.
2025 आईएनएससी 883
गैर समाचार-योग्य
भारत के सर्वोच्च न्यायालय में
सिविल/आपराधिक मूल क्षेत्राधिकार
स्थानांतरण याचिका (सी) संख्या 2367/2023
शिवांगी बंसल...याचिकाकर्ता
बनाम
साहिब बंसल…प्रतिवादी
साथ
टीपी (सीआरएल) संख्या(एँ). 631-633/2023
एसएलपी (सीआरएल) संख्या 7869/2022
एसएलपी (सीआरएल) संख्या 11848/2022
एसएलपी (सीआरएल) संख्या 2282/2023
प्रलयऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह, जे.1. पत्नी शिवांगी बंसल/शिवांगी गोयल द्वारा एचएमए संख्या 1395/2020, जिसका शीर्षक "साहिब बंसल बनाम शिवांगी बंसल" है, के स्थानांतरण हेतु स्थानांतरण याचिका (सी) संख्या 2367/2023 दायर की गई है, जिसमें मामले को प्रधान न्यायाधीश, पारिवारिक न्यायालय, रोहिणी, हस्ताक्षर सत्यापित नहीं न्यायालय, दिल्ली से डिजिटल रूप से हस्ताक्षरित हापुड़ (उत्तर प्रदेश) स्थित सक्षम क्षेत्राधिकार वाले न्यायालय मेंस्थानांतरित करने की मांग की गई है। दूसरी ओर, टीपी (सीआरएल) रश्मि ध्यानी पंत दिनांक: 2025.07.22 17:14:34 IST कारण:
नंबर 631-633/2023 पति साहिब ट्रांसफर याचिका (सी) नंबर 2367 ऑफ 2023 पेज 1 ऑफ 19 बंसल द्वारा दायर की गई है, जिसमें (i) एसटी 19/2020 का स्थानांतरण करने की मांग की गई है, जो पीएस पिलख्वा, हापुड़ में दर्ज एफआईआर नंबर 567/2018 से उत्पन्न हुई है, जिसका शीर्षक राज्य बनाम मंजू बंसल और अन्य है। अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश, फास्ट ट्रैक कोर्ट- I, हापुड़ के समक्ष लंबित; (i) डीवी अधिनियम के तहत सीसी नंबर 248/2019 जिसका शीर्षक "शिवांगी बंसल और अन्य बनाम साहिब बंसल" है, जो न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम, हापुड़, यूपी के समक्ष लंबित है और (iii) शिकायत संख्या 3692/2020 यू/एस 406 आईपीसी जिसका शीर्षक "शिवांगी बंसल बनाम साहिब बंसल और अन्य" है। सीजेएम, हापुड़ न्यायालय, उत्तर प्रदेश के समक्ष लंबित मामले को सक्षम जिला न्यायालय, रोहिणी, दिल्ली में भेजा जाएगा।
2. इसके अतिरिक्त, इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा पारित दिनांक 13.06.2022 के आदेश के विरुद्ध शिवांगी बंसल/शिवांगी गोयल द्वारा एसएलपी(सीआरएल) संख्या 7869/2022 और 11848/2022 दायर की गई हैं, जिसमें क्रमशः मुकेश बंसल (साहिब बंसल के पिता/सीआरएल संशोधन संख्या 1122/2022) और मंजू बंसल (साहिब बंसल की माता/सीआरएल संशोधन संख्या 1187/2022) द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिकाओं को स्वीकार किया गया था। इसके अतिरिक्त, साहिब बंसल द्वारा माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा पारित दिनांक 13.06.2022 के आदेश के विरुद्ध एसएलपी(सीआरएल) संख्या 2282/2023 दायर की गई है, जिसमें साहिब बंसल द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका (सीआरएल संशोधन संख्या 1126/2022) को खारिज कर दिया गया था।
3. याचिकाओं से संबंधित संक्षिप्त तथ्य इस प्रकार हैं:
स्थानांतरण याचिका (सी) संख्या 2367/2023 पृष्ठ 2/19
3.1 याचिकाकर्ता-पत्नी और प्रतिवादी-पति का विवाह 05.12.2015 को उमराव फार्महाउस, दिल्ली में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ था। इस विवाहेतर संबंध से एक बेटी, सुश्री रैना (नाबालिग) का जन्म 23.12.2016 को फोर्टिस अस्पताल, शालीमार बाग, नई दिल्ली में हुआ, जो वर्तमान में 8 वर्ष की है। विवाह के बाद, दोनों पक्ष 44, कपिल विहार, पीतमपुरा, दिल्ली- 110034 में रहते थे, जो पति/साहिब बंसल के माता-पिता के साथ उनका वैवाहिक घर था। उसके बाद, 30.04.2017 से दोनों पक्ष अपनी बेटी के साथ 130, राजधानी एन्क्लेव, पीतमपुरा, दिल्ली 110034 में रहने लगे।
3.2 वैवाहिक कलह और पक्षों और उनके परिवार के सदस्यों के बीच उत्पन्न कई विवादों के कारण, वे 04.10.2018 को अलग हो गए, और तब से वे अलग रह रहे हैं।
4. अलग होने के बाद, पक्षों ने एक-दूसरे और अपने परिवार के सदस्यों के खिलाफ विभिन्न न्यायालयों/प्राधिकरणों के समक्ष कई मामले/शिकायतें/कानूनी कार्यवाही आदि दायर की हैं, जिनमें से कई मामले/शिकायतें/कार्यवाहियां लंबित हैं, जिनका विवरण नीचे दिया गया है।
स्थानांतरण याचिका (सी) संख्या 2367/2023 पृष्ठ 3/19
4ए. पत्नी द्वारा पति और उसके परिवार के सदस्यों/रिश्तेदारों के विरुद्ध दायर मामला:
i. राज्य बनाम मंजू बंसल एवं अन्य (एफआईआर संख्या 567/2018): आईपीसी की धारा 498ए, 323, 504, 506, 307, 376, 511, 120बी, 377, 313, 342 और दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत आपराधिक मामला; अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, फास्ट ट्रैक कोर्ट-1, हापुड़, यूपी के समक्ष लंबित। ii. शिवांगी बंसल एवं अन्य बनाम साहिब बंसल एवं अन्य ।
(सीसी संख्या 769/2019): साहिब बंसल के परिवार के सदस्यों के खिलाफ अलग से घरेलू हिंसा का मामला न्यायिक मजिस्ट्रेट, फास्ट ट्रैक द्वितीय, हापुड़, यूपी के समक्ष लंबित है।
viii. शिवांगी बंसल बनाम साहिब बंसल (तलाक याचिका संख्या 730/2022): हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1) के तहत तलाक की मांग करते हुए याचिका; प्रधान न्यायाधीश, पारिवारिक न्यायालय, हापुड़ के समक्ष दायर की गई। ix. शिवांगी बंसल बनाम साहिब बंसल (स्थानांतरण याचिका (सी) संख्या 2367/2023): पारिवारिक न्यायालय, रोहिणी, दिल्ली से पारिवारिक न्यायालय, हापुड़ में एचएमए संख्या 1395/2020 को स्थानांतरित करने की मांग वाली याचिका; भारत के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लंबित। x. शिवांगी बंसल बनाम यूपी राज्य एवं अन्य। (एसएलपी (सीआरएल) संख्या 7869/2022): मुकेश बंसल (ससुर) के खिलाफ एफआईआर को रद्द करने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली विशेष अनुमति याचिका;
xi. शिवांगी बंसल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (एसएलपी (सीआरएल) संख्या 11848/2022): मंजू बंसल (सास) के खिलाफ एफआईआर रद्द करने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली विशेष अनुमति याचिका; सर्वोच्च न्यायालय में लंबित।
स्थानांतरण याचिका (सी) संख्या 2367/2023 पृष्ठ 5/19
दिल्ली उच्च न्यायालय में पति द्वारा पत्नी के परिवार के खिलाफ दायर एफआईआर संख्या 816/2021 (थाना सुभाष प्लेस) को रद्द करने के लिए याचिका दायर की गई। xiii. आयकर नोटिस - मुकेश बंसल (आईटीबीए/आईएनवी/एस/131/2023-24/1055092506(1)152):
डीडीआईटी/एडीआईटी (आईएनवी)-7(2), नई दिल्ली द्वारा जारी आयकर जांच नोटिस।
xiv. आयकर नोटिस – मंजू बंसल (आईटीबीए/आईएनवी/एस/131/2023-24/1055092442(1)153): डीडीआईटी/एडीआईटी (आईएनवी)-7(2), नई दिल्ली द्वारा जारी आयकर जांच नोटिस।
xv. आयकर नोटिस – चिराग मुकेश बंसल (आईटीबीए/आईएनवी/एस/131/2023-24/1055002405(1)153): डीडीआईटी/एडीआईटी (आईएनवी)-7(2), नई दिल्ली द्वारा जारी आयकर जांच नोटिस।
4बी. पति द्वारा पत्नी और उसके परिवार के सदस्यों/रिश्तेदारों के खिलाफ दायर मामला:
i. राज्य बनाम गौरव गोयल और शिवांगी बंसल - एफआईआर संख्या 816/2021, आईपीसी की धारा 365, 323, 341, 506 और 34 के तहत आपराधिक मामला , महिला न्यायालय, रोहिणी, दिल्ली में लंबित है, जिसमें आरोप तय हो चुके हैं। ii. राज्य बनाम सतीश मित्तल और अन्य - एफआईआर संख्या 583/2022, आईपीसी की धारा 354, 385, 506, 509 और 34 के तहत पीएस सुभाष प्लेस, दिल्ली में दायर की गई ।
स्थानांतरण याचिका (सी) संख्या 2367/2023 पृष्ठ 6/19
iii. मुकेश बंसल बनाम शिवांगी बंसल - सीटी केस संख्या 8101/2022, धारा 500 और 501 आईपीसी के तहत मानहानि के लिए धारा 200/156 सीआरपीसी के तहत आपराधिक शिकायत , मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, रोहिणी के समक्ष लंबित है।
बनाम साहिब बंसल बनाम भारत संघ - डब्ल्यूपी(क्यू) संख्या 1470/2023, पत्नी की आईपीएस उम्मीदवारी को चुनौती देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर की गई। vi. सीआर केस संख्या 402/2019, पीएस पिलखुवा, हापुड़, यूपी;
राजेश गोयल एवं अन्य के खिलाफ धारा 323 , 504 , 506 एवं 294 आईपीसी के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया गया।
vii. साहिब बंसल बनाम शिवांगी बंसल - संरक्षकता मामला संख्या 47/2024, संरक्षकता और वार्ड अधिनियम की धारा 7 और 25 के तहत याचिका, पारिवारिक न्यायालय, रोहिणी में लंबित।
viii. साहिब बंसल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य - टीपी (सीआरएल) 631- 633/2023, तीन मामलों को हापुड़, उत्तर प्रदेश से रोहिणी, दिल्ली स्थानांतरित करने की मांग वाली सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरण याचिका; मामला लंबित।
ix. साहिब बंसल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य - एसएलपी (सीआरएल) 2282/2023, आपराधिक पुनरीक्षण को खारिज करने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका; सर्वोच्च न्यायालय में लंबित।
स्थानांतरण याचिका (सी) संख्या 2367/2023 पृष्ठ 7/19
x. साहिब बंसल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य - एसएलपी (सी) डी संख्या 35261/2024, इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा पारित भरण-पोषण आदेश के विरुद्ध सिविल विशेष अनुमति याचिका, सर्वोच्च न्यायालय में लंबित।
4सी. इसके अतिरिक्त, पक्षों के बीच वैवाहिक कलह के कारण तीसरे पक्ष द्वारा दायर किए गए आकस्मिक मामले/मुकदमे/कार्यवाहियाँ भी हैं। ये हैं:
i. शिकायत मामला संख्या 07/2020, विजय पाल गौतम, एडवोकेट, हापुड़, यूपी द्वारा पीएस हापुड़ नगर में धारा 323 , 324 , 325 , 356 , 504 , 506 आईपीसी और 3(1)(10) एससी/एसटी एक्ट के तहत दायर किया गया।
ii. शिकायत मामला संख्या 09/2022, बबीता बनाम चिराग बंसल एवं अन्य, धारा 323 , 354बी , 376 , 511 , 504 , 506 आईपीसी और एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(10) के अंतर्गत थाना हापुड़ नगर में दायर किया गया। न्यायालय: इलाहाबाद उच्च न्यायालय, उत्तर प्रदेश।
iii. मानहानि का मुकदमा संख्या 799/2023, सतीश कुमार मित्तल बनाम चिराग बंसल, मुकेश बंसल, मंजू बंसल द्वारा मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, हापुड़ के समक्ष दायर। आपराधिक पुनरीक्षण मुकदमा संख्या 170/2024, जिला एवं सत्र न्यायाधीश, हापुड़, उत्तर प्रदेश के समक्ष दायर।
iv. ओएस नंबर 15/2020, एसबीएम डेवलपर्स (पी) लिमिटेड और संध्या गोयल के बीच भूमि विवाद सिविल जज (जेडी), खैर, अलीगढ़, यूपी के समक्ष लंबित है।
स्थानांतरण याचिका (सी) संख्या 2367/2023 पृष्ठ 8/19
बनाम सिविल रिवीजन संख्या 97/2024, संध्या गोयल और एसबीएम डेवलपर्स (पी) लिमिटेड के बीच भूमि विवाद जिला न्यायालय, अलीगढ़, यूपी में लंबित है।
5. दोनों पक्ष, भविष्य में किसी भी मुकदमेबाजी से बचने और वर्तमान कार्यवाही में ही उनके बीच शांति बनाए रखने के लिए, बच्चे की हिरासत के मामलों सहित सभी विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से हल करना चाहते हैं, तथा उपरोक्त पैरा 4 में उल्लिखित सभी लंबित मुकदमों को पूर्ण और अंतिम संतुष्टि के साथ निपटाना चाहते हैं।
6. पत्नी की ओर से विद्वान वरिष्ठ अधिवक्ता श्री सिद्धार्थ लूथरा और पति की ओर से विद्वान वरिष्ठ अधिवक्ता श्री विकास सिंह को सुना गया।
7. मामले के तथ्यों और परिस्थितियों तथा प्रस्तुत प्रस्तुतियों पर विचार करते हुए निम्नलिखित टिप्पणियां और निर्देश देकर न्याय का उद्देश्य पूरा किया जाएगा।
8. हमने देखा है कि 04.10.2018 को पक्षों के अलग होने के बाद से उनकी बेटी सुश्री रैना मां/शिवांगी बंसल/शिवांगी गोयल की हिरासत में है। इस मामले को देखते हुए, एतद्द्वारा आदेश दिया जाता है कि बच्चे की हिरासत मां के पास होगी। पिता, साहिब बंसल और उनके परिवार को पहले तीन महीनों के लिए बच्चे से मिलने के लिए निगरानी में मुलाकात का अधिकार होगा और उसके बाद नाबालिग लड़की सुश्री रैना के आराम और भलाई के आधार पर हर महीने के पहले रविवार को सुबह 9:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक बच्चे की शिक्षा के स्थान पर या स्कूल के नियमों और विनियमों के तहत अनुमति के अनुसार मुलाकात की जा सकेगी। उन्हें बच्चे की छुट्टियों की आधी अवधि बच्चे के साथ बिताने का अधिकार होगा। दोनों में से कोई भी पक्ष किसी भी तरह से मुलाकात के अधिकार में कोई बाधा या रुकावट पैदा नहीं करेगा। पक्षों को निर्देश दिया जाता है कि वे नाबालिग बच्चे के कल्याण और भावनात्मक स्वास्थ्य के अनुकूल आचरण करें और उपरोक्त व्यवस्था के सुचारू कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने में अपना पूर्ण सहयोग प्रदान करें। मुलाक़ात के संबंध में किसी भी कठिनाई/परिवर्तन/विवाद की स्थिति में, दोनों पक्ष अपने-अपने वकीलों के माध्यम से परामर्श करेंगे; पक्षों द्वारा इस संबंध में किसी भी समस्या के समाधान हेतु मध्यस्थता करने हेतु श्री सुदर्शन राजन (सुश्री शिवांगी बंसल/शिवांगी गोयल की ओर से) और श्री संजीत त्रिवेदी (श्री साहिब बंसल की ओर से) को अधिकृत करने पर सहमति व्यक्त की गई है।
9. इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि पत्नी स्वेच्छा से पति से किसी भी गुजारा भत्ता या रखरखाव के लिए अपने दावे को त्यागने और माफ करने के लिए सहमत हो गई है और उसका पति और उसके परिवार के सदस्यों के स्वामित्व वाली और कब्जे वाली किसी भी चल और अचल संपत्ति या ऐसी किसी भी संपत्ति पर कोई दावा नहीं होगा जो भविष्य में पति और उसके परिवार के सदस्यों के स्वामित्व वाली और कब्जे में हो, पत्नी के पक्ष में रखरखाव के लिए कोई आदेश पारित नहीं किया जा रहा है।
10. चूंकि पत्नी स्वेच्छा से बेटी के सभी खर्चों का ध्यान रखने के लिए सहमत हो गई है और इस प्रकार वह बेटी के भरण-पोषण के लिए पति से किसी भी भरण-पोषण राशि का दावा नहीं करेगी, इसलिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय, उत्तर प्रदेश द्वारा पारित 1,50,000/- रुपये प्रति माह के भरण-पोषण का आदेश, जिसमें पति को बच्चे के भरण-पोषण के लिए पत्नी को भुगतान करने का निर्देश दिया गया था, पत्नी द्वारा निष्पादित नहीं किया जाएगा और इसके द्वारा इसे रद्द किया जाता है।
11. पक्षों के बीच लंबी कानूनी लड़ाई को समाप्त करने और पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए, किसी भी पक्ष द्वारा दूसरे के खिलाफ दायर सभी लंबित आपराधिक और सिविल मुकदमे, जिनमें पत्नी, पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ मुकदमे शामिल हैं, परंतु इन्हीं तक सीमित नहीं हैं, भारत में किसी भी अदालत या फोरम में जैसा कि ऊपर पैरा 4ए, 4बी और 4सी (i) से (iii) में उल्लेख किया गया है, एतद्द्वारा रद्द और/या वापस लिए जाते हैं। इसके अतिरिक्त, पक्षों के बीच मामलों से संबंधित/असंबंधित, पति/पत्नी और उसके/उसकी परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों के खिलाफ तीसरे पक्ष द्वारा दायर आकस्मिक मामले/मुकदमे/कार्यवाही एतद्द्वारा रद्द और/या वापस लिए जाते हैं। संबंधित अदालतों/प्राधिकारियों को निर्देश दिया जाता है कि वे इन कार्यवाहियों को समाप्त मानें और भविष्य में किसी भी अदालत में इन्हें चुनौती नहीं दी जाएगी।
12. दोनों पक्षों, अर्थात् शिवांगी बंसल/शिवांगी गोयल और साहिब बंसल, और उनके परिवारों ने यह वचन दिया है कि उनके द्वारा पति/पत्नी और उनके परिवार के सदस्यों व रिश्तेदारों के विरुद्ध आज तक कोई अन्य प्रॉक्सी कार्यवाही शुरू नहीं की गई है। यदि ऐसी कोई कार्यवाही बाद में शुरू/लंबित पाई जाती है, तो यह माननीय न्यायालय की अवमानना के समान होगी।
13. उपरोक्त पैरा 4 में उल्लिखित मामलों के अतिरिक्त, यदि पत्नी (और/या उसके परिवार) या पति (और/या उसके परिवार) द्वारा या तो उपरोक्त वैवाहिक विवादों से संबंधित या अन्यथा, किसी अन्य फोरम में एक दूसरे के विरुद्ध या उनके परिवार के सदस्यों के विरुद्ध ऐसे मामले, याचिकाएं, शिकायतें हैं, जो दूसरे पक्ष की जानकारी में नहीं हैं, तो वे इस आदेश के आधार पर निरस्त हो जाएंगी।
14. शिवांगी बंसल/शिवांगी गोयल और साहिब बंसल (क्रमशः पत्नी और पति) और पति और पत्नी दोनों के परिवार के सदस्य भविष्य में इन या संबंधित मामलों से उत्पन्न होने वाले किसी भी मुकदमे, याचिका, मामले, शिकायत या अन्यथा को किसी भी न्यायिक या अर्ध-न्यायिक या नियामक या प्रशासनिक मंच या किसी अन्य मंच पर दायर या आरंभ नहीं करेंगे। दोनों पक्षों और उनके परिवारों की व्यापक शांति और स्थानांतरण याचिका (सी) संख्या 2367 ऑफ 2023 पृष्ठ 12 का 19 शांति के लिए, पति और पत्नी ने पारस्परिक रूप से सहमति व्यक्त की है और सभी शिकायतों / दलीलों / याचिकाओं / अभ्यावेदन / दस्तावेजों में सभी आरोपों / कथनों को बिना शर्त वापस लेने का वचन दिया है जो पक्षों या उनके परिवार के सदस्यों / रिश्तेदारों या उनके प्रतिनिधियों द्वारा एक दूसरे के खिलाफ और उनके परिवार के सदस्यों / रिश्तेदारों के खिलाफ किसी भी न्यायालय / नियामक / प्रशासनिक / वैधानिक / न्यायाधिकरण मंचों और / या किसी अन्य प्राधिकरण के समक्ष तैयार और / या दायर किए गए हैं।
15. पति और पत्नी ने दोनों पक्षों और उनके परिवारों की व्यापक शांति के लिए, एक-दूसरे के जीवन, व्यवसायों, कारोबार में हस्तक्षेप न करने पर सहमति व्यक्त की है, जिसमें व्यापारिक प्रतिद्वंद्वियों, सेवा, रोजगार से कोई संबंध न रखना भी शामिल है, और उन्होंने आगे सहमति व्यक्त की है और वचन दिया है कि वे ऐसा कोई कार्य नहीं करेंगे, न ही ऐसा कोई कार्य करवाएंगे या बढ़ावा देंगे, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एक-दूसरे के व्यक्तिगत और व्यावसायिक हितों के लिए हानिकारक हो और वे ऐसे किसी भी पक्ष के साथ सहयोग नहीं करेंगे, जिससे कारोबार को नुकसान पहुंचे।
16. इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा आपराधिक पुनरीक्षण संख्या 1126/2022 में पारित अंतिम निर्णय और आदेश दिनांक 13.06.2022 में शिवांगी बंसल के विरुद्ध की गई टिप्पणियों और टिप्पणियों को एतद्द्वारा विलोपित किया जाता है।
स्थानांतरण याचिका (सी) संख्या 2367/2023 पृष्ठ 13/19
17. शिवांगी बंसल की माँ यानि श्रीमती। संध्या गोयल मौजा टप्पल, परगना-टप्पल, तहसील-खैर, जिला-अलीगढ़-खाता संख्या 258 पर स्थित गाटा संख्या में संपत्ति हस्तांतरित करेंगी। 1653/2 की माप 0.357 हेक्टेयर एवं गाटा संख्या 1656 की माप 1.060 हेक्टेयर कुल 2 किता कुल रकवा 1.417 हेक्टेयर जिसमें रकवा का हिस्सा 0.9446 हेक्टेयर एवं खाता संख्या 1101 का गाटा संख्या 1656/5क रकवा 0.153 हेक्टेयर जिसमें रकवा का हिस्सा 0.031 हेक्टर, कुल रकवा 0.97566 हेक्टर, पति साहिब बंसल को उपहार विलेख के रूप में, और उक्त हस्तांतरण के लिए सभी खर्च साहिब बंसल द्वारा वहन किए जाएंगे। उक्त संपत्ति का हस्तांतरण जहां है जैसी है के आधार पर किया जाएगा। उपर्युक्त संपत्ति के संबंध में वर्तमान में Ld. सिविल जज, खैर, अलीगढ़ और जिला न्यायालय अलीगढ़ में मुकदमेबाजी चल रही है। साहिब बंसल, श्रीमती संध्या गोयल के स्थान पर कदम रखेंगे और मुकदमेबाजी की लागत सहित उपर्युक्त संपत्ति के हस्तांतरण के बाद सभी संबंधित खर्चों को वहन करेंगे। इन मुकदमों से संबंधित संपूर्ण दलीलें और दस्तावेज आज से सात दिनों में श्री साहिब बंसल को सौंप दिए जाएंगे। दस्तावेज, अर्थात, संबंधित संपत्ति के विक्रय विलेख की मूल / प्रमाणित प्रतियां याचिकाकर्ता या उनकी मां श्रीमती संध्या गोयल के पास उपलब्ध नहीं हैं क्योंकि वे खो गए हैं। श्रीमती संध्या गोयल इस आदेश के सात दिनों के भीतर पुलिस में शिकायत दर्ज कराएंगी और उसकी प्रति साहिब बंसल को तुरंत उपलब्ध कराएंगी। संपत्ति के हस्तांतरण/रजिस्ट्री के समय, श्री सुदर्शन राजन/उनके सहयोगी (सुश्री शिवांगी बंसल/शिवांगी गोयल की ओर से) और श्री संजीत त्रिवेदी/उनके सहयोगी (श्री साहिब बंसल की ओर से) यह सुनिश्चित करने के लिए उपस्थित रहेंगे कि कोई बाधा न आए और प्रक्रिया का व्यवस्थित निष्पादन हो।
18. न्यायालय द्वारा निर्देश दिया जाता है कि पति और उसके परिवार को पुलिस सुरक्षा प्रदान की जाएगी।
19. शिवांगी बंसल/शिवांगी गोयल कभी भी आईपीएस अधिकारी के रूप में अपने पद और शक्ति या भविष्य में अपने किसी अन्य पद, अपने सहकर्मियों/वरिष्ठों या देश में कहीं भी अन्य परिचितों के पद और शक्ति का उपयोग पति, उसके परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों के खिलाफ किसी तीसरे पक्ष/अधिकारी के माध्यम से किसी भी प्राधिकरण या फोरम के समक्ष कोई कार्यवाही शुरू करने या पति और उसके परिवार को किसी भी तरह से शारीरिक या मानसिक चोट पहुंचाने के लिए नहीं करेंगी।
20. पत्नी द्वारा दायर मामलों के परिणामस्वरूप, पति 109 दिनों की अवधि के लिए और उसके पिता 103 दिनों के लिए जेल में रहे और पूरे परिवार को शारीरिक और मानसिक आघात और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। उन्होंने जो कुछ भी सहन किया है, उसकी भरपाई या क्षतिपूर्ति किसी भी तरह से नहीं की जा सकती। शिवांगी बंसल/शिवांगी गोयल और उनके माता-पिता पति और उसके परिवार के सदस्यों से बिना शर्त माफी मांगेंगे, जिसे एक प्रसिद्ध अंग्रेजी और एक हिंदी समाचार पत्र के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित किया जाएगा। ऐसी माफी फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और अन्य समान प्लेटफार्मों जैसे सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर भी प्रकाशित और प्रसारित की जाएगी। यहां माफी की अभिव्यक्ति को दायित्व की स्वीकृति के रूप में नहीं माना जाएगा और इसका कानूनी अधिकारों, दायित्वों या कानून के तहत उत्पन्न होने वाले परिणामों पर कोई असर नहीं होगा। माफी इस आदेश की तारीख से 3 दिनों के भीतर प्रकाशित की जाएगी और बिना किसी बदलाव के निम्नलिखित रूप में होनी चाहिए:
“मैं शिवांगी बंसल/शिवांगी गोयल, पुत्री श्री राजेश गोयल, निवासी आरएस-निवास, गांधी कॉलोनी, पिलकुवा, उत्तर प्रदेश, अपने और अपने माता-पिता की ओर से अपने किसी भी शब्द, कार्य या कहानी के लिए क्षमा याचना करती हूँ जिससे बंसल परिवार के सदस्यों श्री मुकेश बंसल, श्रीमती मंजू बंसल, श्री साहिब बंसल, श्री चिराग बंसल और श्रीमती शिप्रा जैन की भावनाओं को ठेस पहुँची हो या उन्हें परेशानी हुई हो। मैं समझती हूँ कि विभिन्न आरोपों और कानूनी लड़ाइयों ने दुश्मनी का माहौल पैदा कर दिया है और आपकी भलाई को गहराई से प्रभावित किया है। हालाँकि कानूनी कार्यवाही अब हमारे विवाह के विघटन और पक्षों के बीच लंबित मुकदमों को रद्द करने के साथ समाप्त हो गई है, मैं समझती हूँ कि भावनात्मक जख्मों को भरने में समय लग सकता है। मुझे पूरी उम्मीद है कि यह माफी हम सभी के लिए शांति और समापन पाने की दिशा में एक कदम हो सकती है। दोनों परिवारों की शांति, अच्छे स्वास्थ्य, समृद्धि और खुशहाली की कामना करते हुए, मुझे पूरी उम्मीद है कि बंसल परिवार मेरी इस बिना शर्त माफी को स्वीकार करेगा। अतीत चाहे कितना भी अंधकारमय क्यों न हो, वह भविष्य को बंधक नहीं बना सकता। मैं इस अवसर पर बंसल परिवार के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ कि उनके साथ अपने जीवन के अनुभवों से मैं एक अधिक आध्यात्मिक व्यक्ति बन पाया हूँ। एक बौद्ध धर्म का पालन करने वाले के रूप में, मैं सच्चे मन से बंसल परिवार के प्रत्येक सदस्य की शांति, सुरक्षा और खुशहाली की कामना और प्रार्थना करता हूँ । यहाँ, मैं दोहराता हूँ कि बंसल परिवार का विवाह से जन्मी उस बच्ची से मिलने और उसे जानने के लिए हार्दिक स्वागत है, जिसका कोई दोष नहीं है।
आदर एवं सम्मान सहित।
शिवांगी गोयल/शिवांगी बंसल”
21. उपरोक्त क्षमायाचना, लंबी कानूनी लड़ाई और उससे जुड़े भावनात्मक व मानसिक तनाव को सौहार्दपूर्ण ढंग से समाप्त करने के लिए की गई है। यह किसी भी पक्ष के प्रति/के प्रति पूर्वाग्रह से मुक्त है। इसका प्रयोग शिवांगी बंसल/शिवांगी गोयल के विरुद्ध किसी भी न्यायालय, प्रशासनिक/नियामक/अर्ध-न्यायिक निकाय/न्यायाधिकरण में, वर्तमान में या भविष्य में, उनके हितों के विरुद्ध नहीं किया जाएगा। उक्त शर्त का किसी भी प्रकार का उल्लंघन, साहिब बंसल, उनके माता-पिता और उनके परिवार के सदस्यों की ओर से माननीय न्यायालय की अवमानना माना जाएगा।
22. चूंकि यह मामला वर्तमान आदेश द्वारा निपटाया जा रहा है, इसलिए किसी भी पक्ष, उनके परिवार के सदस्यों या उनके प्रतिनिधियों द्वारा विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर एक-दूसरे के खिलाफ लगाए गए सभी आरोप, जिनमें पत्नी या पति द्वारा साक्षात्कार और बयान शामिल हैं जो सीधे एक-दूसरे और/या उनके परिवार के खिलाफ आरोप लगाते हैं, वेब से हटा दिए जाएंगे।
23. प्रत्येक पक्ष सहमत है और वचनबद्धता जताता है कि वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, जाने या अनजाने में: (i) कोई बयान या टिप्पणी प्रकाशित, दोहराना, प्रसारित या रिपोर्ट नहीं करेगा, न ही कोई कार्रवाई करेगा, प्रोत्साहित करेगा, प्रेरित करेगा या स्वेच्छा से भाग लेगा, जो नकारात्मक टिप्पणी करेगा, अपमानित करेगा, बदनाम करेगा या वर्तमान आदेश की सामग्री पर सवाल उठाएगा जिसमें उपरोक्त पैरा - 4 में उल्लिखित मामले और कार्यवाही या उसमें दायर कोई दस्तावेज या दलील या उसमें पारित आदेश शामिल हैं (ii) एक दूसरे के संबंध में किसी भी तरह से ऐसा कार्य नहीं करेगा जिससे उनकी प्रतिष्ठा और वर्तमान या भविष्य की गतिविधियों को नुकसान पहुंचे। साहिब बंसल और उनके भाई चिराग बंसल अपने विवाह और उससे संबंधित किसी भी मुद्दे के उद्देश्य के लिए इस आदेश के तथ्य का उपयोग करने और सूचित करने के लिए स्वतंत्र होंगे।
24. दोनों पक्ष, उनके माता-पिता और परिवार के सदस्य इस न्यायालय के समक्ष वचनबद्ध हैं कि वे ऊपर दर्ज नियमों, शर्तों और निर्देशों का पालन करेंगे।
किसी भी पक्ष की ओर से चूक अवमानना मानी जाएगी, जिससे दूसरे पक्ष को अवमानना के लिए सीधे इस न्यायालय में जाने का अधिकार मिल जाएगा।
25. उपरोक्त टिप्पणियों, निर्देशों और शर्तों/समझौते के संदर्भ में, हम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए शिवांगी बंसल/शिवांगी गोयल और साहिब बंसल के बीच विवाह विच्छेद का आदेश देना उचित समझते हैं। तलाक का आदेश तदनुसार तैयार किया जाएगा।
स्थानांतरण याचिका (सी) संख्या 2367/2023 पृष्ठ 18/19
26. उपरोक्त आदेश के अनुसार स्थानांतरण याचिकाओं और विशेष अनुमति याचिकाओं का निपटारा किया जाता है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दिनांक 13.06.2022 के आपराधिक पुनरीक्षण संख्या 1126/2022 के विवादित निर्णय में, पैरा 32 से 38 के अनुसार, भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के दुरुपयोग से संबंधित सुरक्षा उपायों हेतु परिवार कल्याण समितियों के गठन के संबंध में निर्धारित दिशानिर्देश प्रभावी रहेंगे और उपयुक्त प्राधिकारियों द्वारा कार्यान्वित किए जाएँगे।
27. लंबित आवेदन, यदि कोई हो, का निपटारा हो जाएगा।
.....सीजेआई.
[ बी.आर. गवई ]
…..जे. [ ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ] नई दिल्ली;
22 जुलाई, 2025.
स्थानांतरण याचिका (सी) संख्या 2367/2023 पृष्ठ 19/19