Sunday 20 March 2022

सीआरपीसी की धारा 311ए कोर्ट को यह अनुमति नहीं देती कि वह किसी शिकायतकर्ता या पीड़ित को संहिता के तहत किसी भी जांच या कार्यवाही के लिए नमूना हस्ताक्षर या लिखावट सौंपने का आदेश दे

 पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया है कि सीआरपीसी की धारा 311ए कोर्ट को यह अनुमति नहीं देती कि वह किसी शिकायतकर्ता या पीड़ित को संहिता के तहत किसी भी जांच या कार्यवाही के लिए नमूना हस्ताक्षर या लिखावट सौंपने का आदेश दे। 

गौरतलब है कि यह प्रावधान न्यायिक मजिस्ट्रेट को संहिता के तहत किसी भी जांच या कार्यवाही के उद्देश्य से, आरोपी व्यक्ति सहित किसी भी व्यक्ति को नमूना हस्ताक्षर या लिखावट देने का निर्देश देने का अधिकार देता है। Advertisement हालांकि, मजिस्ट्रेट के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह पहले स्वयं को संतुष्ट करे कि आरोपी व्यक्ति सहित किसी भी व्यक्ति को नमूना हस्ताक्षर या लिखावट देने का निर्देश देना समीचीन है, और उसके बाद, वह संबंधित व्यक्ति को समन किए जाने का आदेश दे सकता है। उसके लिए, आदेशों में निर्दिष्ट समय पर उपस्थित होकर न्यायालय में अपने नमूना हस्ताक्षर या लिखावट देने के लिए उपस्थित रहने को कहा जाता है। न्यायमूर्ति सुरेश्वर ठाकुर की पीठ ने आगे स्पष्ट किया कि एक आरोपी को भी, जिसे गिरफ्तार नहीं किया गया है (या अग्रिम जमानत दी गई है), अपने नमूना हस्ताक्षर देने के लिए निर्देशित नहीं किया जा सकता है।

संक्षेप में मामला 

आरोपी के कहने पर झूठे दस्तावेज तैयार करने के आरोप में दिसंबर 2019 में आईपीसी की धारा 420, 467, 468, 471 और 120-बी के तहत धोखाधड़ी और जालसाजी का मामला दर्ज किया गया था। जांच के दौरान संबंधित जांच अधिकारी ने न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, चंडीगढ़ के समक्ष एक आवेदन किया, जिसमें आरोपी के नमूना और स्वीकृत हस्ताक्षर को शिकायतकर्ता द्वारा उपलब्ध हस्ताक्षर के नमूने और स्वीकृत हस्ताक्षर से तुलना करने तथा फर्जी दस्तावेज पर कथित हस्ताक्षर से मिलान करने के लिए नमूना हस्ताक्षर लेने के आदेश की मांग की गयी थी। इसके अलावा, जबकि आरोपी ने उचित आदेश के अनुपालन में, संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष अपना नमूना दिया, और हस्तलेखों को स्वीकार किया, हालांकि, शिकायतकर्ता-पीड़ितों ने अपने हस्ताक्षर देने के आदेश का पालन नहीं किया। न्यायालय की टिप्पणियां कोर्ट ने कहा कि संबंधित मजिस्ट्रेट को आवेदन पर विचार नहीं करना चाहिए, बल्कि संबंधित जांच अधिकारी को एफआईआर के संबंध में स्वतंत्र जांच करने का निर्देश देना चाहिए। इसके बावजूद कोर्ट ने कहा, संबंधित मजिस्ट्रेट ने जांच अधिकारी के आवेदन पर सकारात्मक निर्देश दिए। इसके अलावा, सीआरपीसी की धारा 311ए की स्पष्ट भाषा को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि सीआरपीसी की धारा 311ए में आने वाले शब्द "आरोपी व्यक्ति के अलावा कोई भी व्यक्ति" में पीड़ित या शिकायतकर्ता शामिल नहीं हो सकता है। प्रावधान यह स्पष्ट करता है कि ऐसे व्यक्ति के संबंध में तब तक कोई आदेश नहीं दिया जा सकता जब तक कि उस व्यक्ति को ऐसी जांच या कार्यवाही के संबंध में गिरफ्तार नहीं किया गया हो। कोर्ट ने कहा कि हालांकि शिकायतकर्ता-पीड़ित तत्काल मामले में अपने-अपने स्वीकृत नमूना हस्ताक्षर प्रस्तुत करने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं, फिर भी, संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट, इसके बाद आगे नहीं बढ़ सकते हैं, और संबंधित जांच अधिकारी के समक्ष, या खुद के सामने शिकायतकर्ता को पूर्वोक्त नमूना / स्वीकृत हस्ताक्षर देने के लिए जोर नहीं दे सकते हैं, क्योंकि उसे सीआरपीसी की धारा 311 ए इस तरह के आदेश जारी करने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा, "यदि शिकायतकर्ता (पीड़ित) संबंधित जांच अधिकारी द्वारा किए गए पूर्व अनुरोध का पालन नहीं करते हैं, तो संबंधित जांच अधिकारी इस बात के लिए स्वतंत्र हैं कि वे सीआरपीसी की धारा 173 के तहत तैयार की जाने वाली अपनी रिपोर्ट में उचित उल्लेख करें। हालांकि, वह उसके बाद आरोपी के पहले से एकत्र किए गए नमूने और स्वीकृत हस्ताक्षरों को फर्जी दस्तावेजों के विवादित हस्ताक्षरों के साथ संबंधित हस्तलेखन विशेषज्ञ को भेजने की कार्रवाई के लिए आगे बढ़ सकते हैं।'' केस का शीर्षक - संदीप कौर और अन्य बनाम केंद्र शासित प्रदेश, चंडीगढ़


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