Thursday 29 May 2014

आयुध अधिनियमए 1959

                        आयुध अधिनियमए 1959


इस अधिनियम में धारा 2 के कुछ परिभाषाए धारा 3 एवं 4 धारा 25 धारा 38 धारा 39 मुख्य रूप से दिन प्रतिदिन के लिए उपयोगी होती है जिन्हें समझना आवश्यक है।
1- धारा 2 बी आयुध अधिनियम में ष्ष्गोला बारूदष्ष् या ।उनदंजपवद की परिभाषा दी गई है जिसके अनुसाररू.
गोला बारूद से किसी अग्न्यायुध या फायर आर्म अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत .
1- राकेटए बमए ग्रेनेडए गोला और अन्य अस्त्रए
2- टारपीडो को काम लाने और अन्तःसमुद्री सुरंगें बिछाने के लिए वस्तुए
3- विस्फोटकए स्फूर्जनकारी या विखण्डनीय सामाग्री या अपायकर द्रवए गैस या अन्य ऐसी चीज को रखने वाली वस्तुए चाहे वे फायर आर्म के रूप में उपयोग के योग्य हो या होए
4- अग्न्यायुधों के लिए भरण या चार्ज और ऐसे भरणों या चार्ज के लिए उप साधन या एसेसारिजए
5- फ्यूजेस और घषर्ण नलिकाएंए
6- गोला बारूद के संघटक और उसके निर्माण के लिए मशीनरीए
7- गोला बारूद के ऐसे संघटक जिन्हें केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस निमित विनिर्दिष्ट करें।
2- धारा 2 सी आयुध अधिनियम के अनुसार आयुध या आर्मस से तात्पर्य आक्रमण या प्रतिरक्षा के लिए शस्त्रों के रूप में डिजाईन या अनुकूलित किसी भी वर्णन की वस्तुए और अग्न्यायुधए तीखे धार वाले और अन्य घातक शस्त्रए आयुधों के भाग और उनके विनिर्माण के लिए मशीने आती है किन्तु केवल धरेलू या कृषि उपयोगों के लिए डिजाईन वस्तुए जैसे लाठी या मामूली छड़ी या वे शस्त्र जो खिलोनो से भिन्न रूप में उपयोग में लाये जाने के या काम के शस्त्रों में परिवर्तित किये जाने के लिए अनुपयुक्त हो इसके अंतर्गत नहीं आते है।
3- धारा 2 डी आयुध अधिनियम के अनुसार जिला मजिस्टेª में किसी ऐसे क्षेत्र के संबंध में जिसके लिए पुलिस कमीश्नर नियुक्त किया गया हो उस क्षेत्र का पुलिस कमीश्नर आता है या किसी ऐसे भाग पर अधिकारिता का प्रयोग करने वाला उप पुलिस आयुक्त या डिप्टी कमीश्नर जिसे राज्य सरकार ने ऐसे क्षेत्र या भाग के संबंध में विनिर्दिष्ट किया हो आते है।
4- धारा 2 आयुध अधिनियम के अनुसार अग्न्यायुध या फायर आर्मस से किसी विस्फोटक या अन्य प्रकारों की ऊर्जा की क्रिया से किसी भी प्रकार के प्रोजेक्टिल को चलाने के लिए डिजाईन या अनुकूलित किसी भी वर्णन के शस्त्र आते है तथा:-
1- तोपेए हथ गोलेए रायट.पिस्तोलों या किसी भी अपायकर द्रवए गैस या अन्य ऐसी चीज को छोड़ने के लिए डिजाईन या अनुकूलित किसी भी प्रकार के शस्त्रए
2- किसी भी ऐसे अग्न्यायुध को चलाने से हुई आवाज या चमक को कम करने के लिए डिजाईन या अनुकूलित उसके उप साधन या एसेसारिज।
3- अग्न्यायुधों के भाग और उन्हें बनाने के लिए मशीनरी।
4- तोप को चलानेए उनका परिवहन करने और उन्हें काम में लाने के लिए गाडियाए मंच और आर्टीलरी आते है।
5- धारा 2 एच आयुध अधिनियम के अनुसार ष्ष्प्रतिषिद्ध गोला बारूदष्ष् से किसी भी अपायकर द्रवए गैस या अन्य ऐसी चीज को अंतरविष्ट रखने वाला या अंतरविष्ट रखने के लिए डिजाईन या अनुकूलित कोई भी गोला बारूद अभिप्रेत है और राकेटए बमए ग्रेनेडए गोलाए अस्त्रए टारपीडो को काम में लाने और अतःसमुद्री सुरंगे बिछाने के लिए डिजाईन वस्तुए और ऐसी अन्य वस्तुए जिन्हें केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा प्रतिषिद्ध गोला बारूद होना विनिर्दिष्ट करें इसके अंतर्गत आते है।
6- धारा 2 आई आयुध अधिनियम के अनुसार प्रतिषिद्ध आयुधों के अंतर्गतरू.
1- वे अग्न्यायुध या फायर आर्म जो इस प्रकार डिजाईन या अनुकूलित हो कि यदि घोड़े या ट्रिगर पर दबाव डाला जाएए तो जब तक दबाव ट्रिगर पर से हटा लिया जाएए या अस्त्रों को अंतरविष्ट रखने वाला मैगनीज खाली हो जाएए अस्त्र छूटते रहे अथवा
2- किसी भी वर्णन के वे शस्त्र जो किसी भी अपायकरए द्रवए गैस या ऐसी ही अन्य चीजों को छोड़ने के लिए डिजाईन या अनुकूलित हो अभिप्रेत हैए और इनके अंतर्गत तोपेए वायुयान भेदी और टेंक भेदी अग्न्यायुध और ऐसे अन्य आयुध आते है जैसे केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा प्रतिषिद्ध आयुध होना विनिर्दिष्ट करें।
7- धारा 3 आयुध अधिनियम में फायर आर्मस और एम्यूनेशन के अर्जन और कब्जे के लिए अनुज्ञप्ति के बारे में प्रावधान है। धारा 3 (1) के अनुसार कोई भी व्यक्ति कोई अग्न्यायुध या गोला बारूद अर्थात फायर आर्म या एम्यूनेशन तब तक तो अर्जित करेगा अपने कब्जे में रखेगा और ले कर चलेगा जब तक की इस अधिनियम और इसके अंतर्गत बनाये गये नियमों के अनुसार जारी अनुज्ञप्ति उसके पास होए
परंतु कोई व्यक्ति स्वयं अनुज्ञप्ति धारित किये बिना किसी अग्न्यायुध या गोला बारूद को मरम्मत के लिए या अनुज्ञप्ति के नवीनीकरण के लिए या ऐसे अनुज्ञप्ति के धारक द्वारा उपयोग में लाये जाने के लिएए उस अनुज्ञप्ति के धारक की उपस्थिति में या उसके लिखत प्राधिकार के अधीन लेकर वहन कर सकेगा।
धारा 3 (2)के अनुसार उप धारा 1 में उल्लेखित किसी बात के होते हुये भी कोई व्यक्ति जो उप धारा 3 में उल्लेखित व्यक्ति से भिन्न है किसी भी समय 3 अग्न्यायुधों या फायर आर्मस से अधिक तो अर्जित करेगा अपने कब्जे में रखेगा और लेकर चलेगाए
परंतु ऐसा व्यक्ति जिसके कब्जे में आयुध संशोधन अधिनियमए 1983 के प्रारंभ पर 3 से अधिक फायर आर्मस हैए अपने पास उनमें से कोई 3 फायर आर्मस प्रतिधारित कर सकेगा और शेष को उक्त अधिनियम के प्रारंभ से 90 दिन के भीतर निकटतम पुलिस थाने के भार साधक अधिकारी के पास या धारा 21 की उप धारा 1 के प्रयोजन के लिए विहित शर्तो के अधीन रहते हुये किसी अनुज्ञप्त किसी लाईसेंस डीलर के पास अथवा ऐसा व्यक्ति यदि संद्य के सशस्त्र बलों का सदस्य है वहां किसी यूनिट शस्त्रागार में जमा करेगा।
धारा 3 (3) के अनुसार उप धारा 2 की कोई बात फायर आर्म के किसी लाईसेंस डीलर या ऐसे रायफल क्लब या रायफल एसोसियेशन को जो केन्द्र सरकार द्वारा लायसेंस या मान्यता प्राप्त है और निशाना लगाने के अभ्यास के लिए 22 बोर रायफल या हवाई रायफल का प्रयोग करता हैए किसी सदस्य को लागू नहीं होगी।
धारा 3 (4) के अनुसार धारा 21 कि उप धारा 2 से उप धारा 6 के प्रावधान धारा 3 की उप धारा 2 के बारे में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे 21 के उप धारा 2 के अधीन किसी आयुध या गोला बारूद जमा करवाने के संबंध में लागू होते है।
8- धारा 4 आयुध अधिनियम के अनुसार यदि केन्द्रीय सरकार की राय हो की किसी क्षेत्र में मौजूद परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुयेए लोक हित में यह आवश्यक है कि अग्न्यायुधों से भिन्न आयुधों का अर्जनए कब्जे में रखना या वहन विनियमित किया जाना चाहिए तो वह शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा निर्देश दे सकेगी कि अधिसूचना में विनिर्दिष्ट क्षेत्र को यह धारा लागू होगी और उसके बाद कोई भी व्यक्ति ऐसे वर्ग या वर्णिन के आयुध जैसे उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किये जाये या उस क्षेत्र में तब तक तो अर्जित करेगा अपने कब्जे में रखेगा या लेकर चलेगा जब तक की वह इस अधिनियम और उसके अंतर्गत बनाये गये नियमों के अनुसार दी गई अनुज्ञप्ति इस निमित धारित करता हो।
धारा 4 की अधिसूचना प्रायः नहीं मिल पाती है जिस कारण कठिनाई होती है धारा 4 की अधिसूचना मध्यप्रदेश के राजपत्र में दिनांक 3 जनवरी 1975 को पेज नंबर 20 पर प्रकाशित हुई है वह अधिसूचना इस प्रकार हैः.

ARMS ACT : POSSESSION OF KNIVES ETC. ILLEGAL

Notification No. 6312-6552-II-B(i) Dated The 22nd November, 1974:
Where as the State Government is of the opinion that having regard to the prevailing conditions in the State of Madhya Pradesh, it is necessary and expedient in the public interest that the acquisition possession and carring of sharp edged weapons with a blade more than 6 inches long 2 inches wide and spring actuated knives with a blade of any size in public place should also be regulated.
Now therefore in exercise of the powers conderred by section 4 of the Arms Act, 1959, (No 54 of 1959) read with the Government of India, Ministy of Home Affairs, Notification No. G.S.R. 1309, dated the 1st October 1962, the State Government hereby directs that the said section shall apply with effect from the date of publication of this Notification in the "Madhya Pradesh Gazette" to the whole of the State of Madhya Pradesh in respect of acquisition, possession or carrying of sharp edged weapons with a baled more than - 6 inches long or 2 inches wide and spring actuated knives with a blade of any size in public places only.
(Published in M.P. Rajpatra Pt. I dtd. 03-01-75 Page 20)

9- धारा 25 आयुध अधिनियम दण्ड के संबध् में महत्वपूर्ण प्रावधान करती है जिसमें मुख्य रूप से धारा 3 और धारा 4 के उल्लंघन संबंधी दण्ड ही दिन प्रतिदिन के न्यायिक कार्य में उपयोगी होता है अतः मुख्य रूप से इन्हीं के बारे में विस्तार से विचार करेंगेः.
धारा 25 (1 बी) के अनुसार जो कोई:-
ए- धारा 3 के उल्लंघन में कोई अग्न्यायुध या गोला बारूद अर्थात फायर आर्मस या एम्यूनेशन अर्जित करेगाए अपने कब्जे में रखेगा या लेकर चलेगा।
बी- धारा 4 के अधीन अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट किसी स्थान में ऐसे वर्ग या वर्णिन के जो उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट कर दिये गये है कोई आयुध या आर्मस उस धारा के उल्लंघन में अर्जित करेगाए अपने कब्जे में रखेगा या लेकर चलेगा।
वह कारावास से जिसकी अवधि 1 वर्ष से कम नहीं होगी किन्तु जो 3 वर्ष तक हो सकेगी दण्डनीय होगा तथा जुर्माने से भी दण्डनीय होगाए
परंतु न्यायालय किन्ही पर्याप्त और विशेष कारणों से जो निर्णय में अभिलिखित किये जायेगेए 1 वर्ष से कम अवधि के कारावास का दण्डादेश अधिरोपित कर सकेगा।
10- धारा 38 आयुध अधिनियम के अनुसार इस अधिनियम के अधीन हर अपराध संज्ञेय होगा।
11- धारा 39 आयुध अधिनियम के अनुसार किसी व्यक्ति के विरूद्ध धारा 3 के अधीन किसी भी अपराध के बारे में कोई भी अभियोजन जिला मजिस्टेª की पूर्व मंजूरी के बिना संस्थित नहीं किया जायेगा।
जमानत के बारे में
12- चूंकि अपराध तीन वर्ष तक के कारावास से दण्डनीय है अतः दण्ड प्रक्रिया संहिताए 1973 की प्रथम अनुसूची के अनुसार धारा 25 आयुध अधिनियम का अपराध अजमानतीय होता है।
सामान्यतः इन मामलों में अभियुक्त को मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुये जमानत का लाभ दिया जाना चाहिये जैसे यदि अभियुक्त आदतन अपराधी नहीं है उसके विरूद्ध कोई पूर्व दोषसिद्धि के बारे में कोई तथ्य अभिलेख पर हो तब सामान्यतः इन मामलों में जमानत का लाभ दिया जाता है।
विचारण की विधि
13- इन मामलों में वारंट ट्रायल प्रक्रिया लागू होती है क्योंकि ये वारंट मामले है अतः इन मामलों के विचारण में वारंट मामले प्रक्रिया अपनाना चाहिये।
आरोप के संबंध में
14- आरोप की रचना के समय दण्ड प्रक्रिया संहिताए 1973 की धारा 211 से 224 के प्रावधानों को ध्यान में रखना चाहिये और आरोप पत्र में अपराध किये जाने की तारीखए माहए वर्षए अपराध करने का समय और स्थान का स्पष्ट उल्लेख करना चाहिये।
जब धारा 4 आयुध अधिनियम के उल्लंघन में आयुध या आर्मस रखने का मामला हो तब उक्त अधिसूचना क्रमांक 6312.6552.2.बी (1) दिनांक 22 नवम्बर 1974 के उल्लंघन में आर्मस रखने का उल्लेख आरोप पत्र में अवश्य करना चाहिये।
आरोप पत्र का नमूना
मैं एए बीए सीए न्यायिक मजिस्टे प्रथम श्रेणी तुम आरोपी एक्स पिता वाय पर नीचे लिखे आरोप लगाता हॅ.
1- तुमने दिनांक 02-01-2012 को दिन में 11-00 बजे या उसके लगभग आनंद नगर जबलपुर में अपने आधिपत्य में बिना वैधानिक अनुज्ञप्ति के एक देशी कट्टाध् 12 बोर बंदुक आधिपत्य में रखे और ऐसा करके धारा 3 आयुध अधिनियमए 1959 के प्रावधानों का उल्लंघन किया जो कृत्य धारा 25 (1.बी) (ए) आयुध अधिनियमए 1959 में दण्डनीय अपराध है और जो मेरे प्रसंज्ञान का है और इस न्यायालय द्वारा विचारणीय योग्य है क्या आरोप स्वीकार करते हो या विचारण चाहते हो।

एए बीए सी
न्यायिक मजिस्टे प्रथम श्रेणी जबलपुर
या
मैं एए बीए सीए न्यायिक मजिस्टे प्रथम श्रेणी तुम आरोपी एक्स पिता वाय पर नीचे लिखे आरोप लगाता हॅ.
1- तुमने दिनांक 02-01-2012 को दिन में 11ण्00 बजे या उसके लगभग आनंद नगर जबलपुर में लोक स्थान पर अपने आधिपत्य में बिना वैधानिक अनुज्ञप्ति के एक धारदार तलवार जिसकी लम्बाई 6 इंच से अधिक या चैड़ाई 2 इंच ध्एक खटके दार चाकू आधिपत्य में रखे और ऐसा करके धारा 4 आयुध अधिनियमए 1959 के प्रावधानों के तहत जारी मध्यप्रदेश शासन की अधिसूचना क्रमांक 6312.6552.2.बी (1) दिनांक 22 नवम्बर 1974 राजपत्र में प्रकाशित दिनांक 03-01-1975 पृष्ठ क्रमांक 20 उल्लंघन किया जो कृत्य धारा 25 (1.बी) (बी) आयुध अधिनियमए 1959 में दण्डनीय अपराध है और जो मेरे प्रसंज्ञान का है और इस न्यायालय द्वारा विचारणीय योग्य है क्या आरोप स्वीकार करते हो या विचारण चाहते हो।
एए बीए सी
न्यायिक मजिस्टे प्रथम श्रेणी जबलपुर

न्याय दृष्टांत गुणवंत लाल विरूद्ध स्टेट आफ एमण्पीण्ए एण्आईण्आरण् 1972 एसण्सीण् 1756 तीन न्यायमूर्तिगण की पीठ में यह प्रतिपादित किया गया है कि आरोप पत्र के प्रारूप में दिनांक या उसके पूर्व अर्थात आन आर बीफोर शब्द के बजाय दिनांक या उसके लगभग अर्थात आन आर एबाउट शब्द का प्रयोग करना चाहिये अतः आरोप पत्र के प्रारूप में उक्त न्याय दृष्टांत में प्रतिपादित विधि को ध्यान में रखना चाहिये।
आरोप विरचित करते समय यदि आरोपी अनुपस्थित हो तब न्याय दृष्टांत राज्य विरूद्ध लखन लाल 1960 एमपीएलजे 133 एवं श्रीकृष्ण विरूद्ध राज्य 1991 एमपीएलजे 85 को विचार में लेना चाहिये जिसके अनुसार यदि अभियुक्त अनुपस्थित हो तब भी उसके अभिभाषक के माध्यम से आरोप अस्वीकार करवाया जा सकता है और कार्यवाही आगे बढ़ाई जा सकती है अतः किन्ही अपरिहार्य कारणों से आरोपी यदि अनुपस्थित हो तब भी आरोप विरचित करने की कार्यवाही उसके अभिभाषक के माध्यम से पूर्ण की जा सकती है।
साक्ष्य के समय हथियार की प्रस्तुती
15- सामान्यतः इस तथ्य को ध्यान रखना चाहिये कि जब्तीकर्ता की साक्ष्य के समय हथियार को मालखाना से बुलवाना चाहिये और उस पर आर्टीकल डलवाना चाहिये एक दिन पहले ही ऐसे प्रकरणों को देख लेना चाहिये और मालखाना नाजिर को मालखाना वस्तु अगले दिन प्रातः 11-00 बजे प्रस्तुत करने के निर्देश देना चाहिये।
किसी दिन नियत साक्ष्य के प्रकरणों को एक दिन पहले ही देख लेने की आदत विकसित कर लेना चाहिये ताकि जिन प्रकरणों में साक्ष्य के दौरान मालखाना वस्तु बुलवाना है उसके बारे में एक दिन पहले ही मालखाना नाजिर को निर्देशित किया जा सके मालखाना वस्तुओं पर साक्ष्य के दौरान प्रदर्शन अंकित हो सके ताकि इस संबंध में निर्णय के समय कोई कठिनाई हो।
न्याय दृष्टांत काले बाबू विरूद्ध स्टेट आफ एमपी 2008 (4) एमपीएचटी 397 में यह प्रतिपादित किया गया है कि जब्त आर्टीकल को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं करने से अभियोजन कहानी उसके महत्व को खो देती है और आरेपी दोषमुक्ति का हकदार होता है।
इस नियम का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिये की साक्ष्य में मालखाना वस्तु बुलवाकर प्रदर्शित की जाये।
रोजनामचा के बारे में
16- जब्तीकर्ता की साक्ष्य के समय कार्यवाही दिनांक का रोजनामचा अवश्य बुलवाना चाहिये साक्ष्य में प्रमाणित करवाना चाहिये। जब्तीकर्ता को गवाह संमन करते समय संबंधित थाने से कार्यवाही दिनांक का रोजनामचा बुलाये जाने के निर्देश भी दे देने चाहिये।
अभियोजन चलाने की अनुमति के बारे में
17- अभियोजन चलाने की अनुमति कई बार जिला मजिस्टेª के स्थान पर अतिरिक्त जिला मजिस्टे द्वारा दी होती है और तब यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि ऐसी अनुमति वैधानिक नहीं है इस संबंध में आर्मस रूल्स 1962 का नियम 2 (एफ) (2) अवलोकनीय है जिसके अनुसार जिला मजिस्टे में उस जिले का अतिरिक्त जिला मजिस्टेª या अन्य अधिकारी जिसे राज्य सरकार ने विशेष रूप से सशक्त किया हो शामिल होते है। न्याय दृष्टांत विजय बहादुर उर्फ बहादुर विरूद्ध स्टेट आफ एमपी 2002 (4) एमपीएचटी 167 भी इसी संबंध में अवलोकनीय है जिसमें उक्त नियम की व्याख्या की गई है और यह प्रतिपादित किया गया है कि अतिरिक्त जिला मजिस्टे द्वारा दी गई मंजूरी उक्त नियम के तहत वैध मंजूरी है प्रतिरक्षा के तर्को को अमान्य किया गया अतः जब कभी विचारण के दौरान उक्त स्थिति उत्पन्न हो तभी यह ध्यान रखना चाहिये की जिला मजिस्टेª में अतिरिक्त जिला मजिस्टेª और अन्य अधिकारी यदि राज्य सरकार द्वारा सशक्त किया गया हो तो वह भी शामिल होता है।
18- कई बार ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है कि संबंधित जिला मजिस्टे को अभियोजन चलाने की अनुमति प्रमाणित करने के लिए साक्ष्य में प्रस्तुत नहीं किया गया है इस संबंध में न्याय दृष्टांत माननीय सर्वोच्च न्यायालय का स्टेट आफ एमपी विरूद्ध जीया लाल आईएलआर (2009) एमपी 2487 अवलोकनीय है जिसमें यह प्रतिपादित किया गया है कि अभियोजन चलाने की अनुमति का आदेश स्पष्ट रूप से जिला मजिस्टेª में उसके पदीय कत्र्तव्य के निर्वहन के दौरान जारी किया इस लिए यह उपधारणा की जायेगी की यह कार्य सद्भाविक तरीके से किया गया है जिला मजिस्टे को गवाह के रूप में परिक्षित कराया जाना अभियोजन के लिए आवश्यक नहीं है। यह न्याय दृष्टांत भ्रष्टाचार निवारण अधिनियमए 1988 पर आधारित है लेकिन अभियोजन चलाने की अनुमति के संबंध में इससे मार्गदर्शन लिया जा सकता है और जो वैधानिक स्थिति उक्त अधिनियम के बारे में प्रतिपादित की गई है वहीं आयुध अधिनियम के बारे में भी समान रूप से लागू होती है।
19- न्याय दृष्टांत स्टेट विरूद्ध नरसिम्हाचारी एआईआर 2006 एससी 628 में यह प्रतिपादित किया गया है कि अभियोजन चलाने की अनुमति एक लोक दस्तावेज होता है और इसे धारा 76 से 78 भारतीय साक्ष्य अधिनियम में बतलाये तरीके से प्रमाणित किया जा सकता है न्याय दृष्टांत शिवराज सिंह यादव विरूद्ध स्टेट आफ एमपी 2010 (4) एमपीजेआर 49 डीबी में माननीय 0प्र0 उच्च न्यायालय ने अभियोजन चलाने के आदेश को एक लोक दस्तावेज माना है और उसका प्रस्तुत किया जाना ही उसका प्रमाणित होना माना जायेगा अनुमति देने वाले अधिकारी का परीक्षण करवाना आवश्यक नहीं होगा यह प्रतिपादित किया है।
20- न्याय दृष्टांत स्टेट आफ एमपी विरूद्ध हरिशंकर भगवान प्रसाद त्रिपाठी (2010) 8 एससीसी 655 में यह प्रतिपादित किया गया है कि अभियोजन चलाने की अनुमति देते समय संबंधित अधिकारी के लिए यह आवश्यक नहीं है की वह आदेश में यह इंडिकेट करे की उसने व्यक्तिगत रूप से संबंधित पत्रावली की छानबीन की है और यह संतोष किया है की अनुमति देनी चाहिये।
21- न्याय दृष्टांत सीएस कृष्णामूर्ति विरूद्ध स्टेट आफ कर्नाटका (2005) 4 एससीसी 81 में यह प्रतिपादित किया गया है कि तथ्य जो अपराध गठित करते है वे अनुमति आदेश में रिफर किये गये अभियोजन के लिए यह प्रमाणित करना आवश्यक नहीं है कि सारी सामाग्री अनुमति देने वाले अधिकारी के सामने रखी गई थी।
हलाकि उक्त सभी न्याय दृष्टांत भ्रष्टाचार निवारण अधिनियमए 1988 पर आधारित है लेकिन अनुमति से संबंधित होने से इनसे मार्गदर्शन लिया जा सकता है।
न्याय दृष्टांत गुरूदेव सिंह उर्फ गोगा विरूद्ध स्टेट आफ एमपी आईएलआर (2011) एमपी 2053 में माननीय 0प्र0 उच्च न्यायालय की खण्ड पीठ ने यह प्रतिपादित किया है कि अभियोजन चलाने की मंजूरी लेते समय आयुधों को प्रस्तुत करना आवश्यक नहीं होता है और प्राधिकारी द्वारा उनका परीक्षण भी आवश्यक नहीं होता है। इस न्याय दृष्टांत में न्याय दृष्टांत राजू दुबे विरूद्ध स्टेट आफ एमपी 1998 (1) जेएलजे 236 एवं श्रीमती जसवंत कौर विरूद्ध स्टेट आफ एमपी 1999 सीआरएलआर ;(एमपी) 80 प्रभु दयाल विरूद्ध स्टेट आफ एमपी 2002 सीआरएलआर (एमपी) 192 को इस न्याय दृष्टांत में ओवर रूल्ड कर दिया गया है अतः ये न्याय दृष्टांत यदि इस संबंध में प्रस्तुत होते है कि जब्त सुदा हथियार अभियोजन चलाने की मंजूरी लेते समय प्रस्तुत नहीं किये गये है तो यह प्रतिरक्षा मान्य नहीं की जायेगी क्योंकि जब्त सुदा हथियार का अभियोजन चलाने की मंजूरी लेते समय प्रस्तुत किया जाना आवश्यक नहीं है।
पंच गवाहों द्वारा जब्ती का सर्मथन करने के बारे में
22- कई बार ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है कि पंच साक्षीगण जब्ती का सर्मथन नहीं करते है और अभिलेख पर एक मात्र जब्तीकर्ता की साक्ष्य रहती है इस संबंध में वैधानिक स्थिति यह है कि यदि एक मात्र जब्तीकर्ता की साक्ष्य विश्वास किये जाने योग्य हो तब पंच साक्षीगण की पुष्टि के अभाव में भी उस पर विश्वास किया जा सकता है इस संबंध में न्याय दृष्टांत नाथू सिंह विरूद्ध स्टेट आफ एमपी एआईआर 1973 एससी 2783 अवलोकनीय है जो आर्मस एक्ट पर आधारित मामला है और इसमें यह प्रतिपादित किया गया है कि पंच गवाहों के सर्मथन करने के बाद भी यदि पुलिस साक्षीगण की साक्ष्य विश्वास योग्य हो तो उसे विचार में लिया जाना चाहिये।
न्याय दृष्टांत काले बाबू विरूद्ध स्टेट आफ एमपी 2008 (4) एमपीएचटी 397 में भी यह प्रतिपादित किया गया है कि अन्य साक्षीगण कहानी का सर्मथन नहीं करते मात्र इस कारण पुलिस अधिकारी की गवाह अविश्वसनीय नहीं हो जाती है।
न्याय दृष्टांत करमजीत सिंह विरूद्ध स्टेट देहली एडमीनिशटेशन (2003) 5 एससीसी 297 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह प्रतिपादित किया है कि पुलिस अधिकारी के साक्ष्य को भी अन्य साक्षीगण के साक्ष्य की तरह लेना चाहिये विधि में ऐसा कोई नियम नहीं है की अन्य साक्षीगण की पुष्टि के अभाव में पुलिस अधिकारी के साक्ष्य पर भरोसा नहीं किया जा सकता एक व्यक्ति इमानदारी से कार्य करता है यह उपधारणा पुलिस अधिकारी के पक्ष में भी लेना चाहिये अच्छे आधारों के बिना पुलिस अधिकारी के साक्ष्य पर विश्वास करना और संदेह करना उचित न्यायिक परिपाठी नहीं है लेकिन यह प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
न्याय दृष्टांत बाबू लाल विरूद्ध स्टेट आफ एमपी 2004 (2) जेएलजे 425 में माननीय 0प्र0 उच्च न्यायालय ने यह प्रतिपादित किया है कि पुलिस के गवाहों के साक्ष्य को यांत्रिक तरीके से खारीज करना अच्छी न्यायिक परम्परा नहीं है ऐसी साक्ष्य की भी सामान्य साक्षी की तरह छानबीन करके उसे विचार में लेना चाहिये।
इस तरह जब भी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो की पंच साक्षीगण जब्ती का सर्मथन करे और केवल पुलिस अधिकारी की साक्ष्य अभिलेख पर हो तब उक्त न्याय दृष्टांतों से मार्गदर्शन लेना चाहिये और पुलिस अधिकारीगण की साक्ष्य की सावधानी से छानबीन करना चाहिये और यदि साक्ष्य विश्वास योग्य पाई जाये तो उस पर विश्वास किया जाना चाहिये।
हथियार की जाच
23- प्रायः ऐसे मामलों में एक आर्मोरर भी होता है जो हथियार की जाच करता है और उसके कथन करवाये जाते है जो हथियार की स्थिति के बारे में कथन करता है यह साक्षी केवल धारा 3 आयुध अधिनियम के उल्लंघन के मामले में होता है जिनमें देशी कट्टाए बंदुकए रिवाल्वर आदि हथियार होते है। इस संबंध में दो महत्वपूर्ण न्याय दृष्टांत ध्यान में रखना चाहिये।
न्याय दृष्टांत हरनेक सिंह विरूद्ध स्टेट (1999) 1 एससीसी 132 में यह प्रतिपादित किया गया है कि पिस्तोल 25 जीवित कारतूस का मामला था पिस्तोल लोडेड थी उसे आर्मोरर को जाच हेतु नहीं भेजा था लेकिन जब्तकर्ता पुलिस अधिकारी इस संबंध में साक्ष्य देने में सक्षम थे की पिस्तोल वर्केबल है या नहीं। लोडेड पिस्तोल के बारे में युक्तियुक्त निश्चितता से कहां जा सकता है की वह वर्केबल है।
न्याय दृष्टांत जशपाल सिंह विरूद्ध स्टेट आफ पंजाब 1999 (1) एमपीडब्ल्यूएन 42 (एससी) में यह प्रतिपादित किया गया है कि जब्त सुदा पिस्तोल का चेम्बर खाली था ऐसी साक्ष्य नहीं थी की वह चलने योग्य है ऐसे में अपराध नहीं बनेगा।
न्यायदृष्टात जरनेल सिंह विरूद्ध स्टेट आफ पंजाब एआईआर 1999 एससी 321 में यह प्रतिपादित किया गया है कि पुलिस अधिकारी जो जप्त हथियार जैसे हथियार के प्रयोग के बारे में प्रशिक्षित हो तब उनकी साक्ष्य भी पर्याप्त होती है मामला डबल बैरल गन की जप्ती का था जिसमें विशेषज्ञ साक्षी आर्मोरर का कथन नहीं करवाया गया था माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने प्रतिपादित किया कि विशेषज्ञ साक्षी की साक्ष्य की ऐसे मामलों में आवश्यकता नहीं होती है।
इस तरह प्रत्येक मामले के तथ्यों और प्रस्थितियों के आधार पर इस बारे में प्रस्तुत साक्ष्य पर विचार करके निष्कर्ष निकालना चाहिये और उक्त मार्गदर्शक सिद्धांत ध्यान में रखना चाहिये।
हथियार के आकार के बारे में
24- न्याय दृष्टांत रामप्रकाश विरूद्ध स्टेट आफ एमपी 1993 सीआरएलजे 3078 इस संबंध में मार्गदर्शक है जिसमें हथियार के आकार को निर्धारित करने के बारे में आवश्यक विधि प्रतिपादित की गई है जिसके प्रकाश में हथियार की लंबाई और हत्थे के चैड़ाई के प्रश्न पर विचार करना चाहिये।
अधिसूचना को प्रमाणित करने के बारे में
25- प्रायः यह प्रतिरक्षा ली जाती है कि धारा 4 के तहत जारी अधिसूचना को प्रमाणित नहीं किया गया है और इस संबंध में न्याय दृष्टांत भी प्रस्तुत किये जाते है।
सर्वप्रथम यह ध्यान में रखना चाहिये की आरोप पत्र में अधिसूचना का पूर्ण और स्पष्ट वर्णन और राजपत्र में उसका प्रकाशन दिनांक उल्लेख कर देना चाहिये ताकि किस अधिसूचना का उल्लंघन किया गया है यह स्पष्ट रहे।
न्याय दृष्टांत स्टेट आफ 0प्र0 विरूद्ध रामचरण एआईआर 1977 एमपी 68 पूर्ण पीठ इस संबंध में अवलोकनीय है जिसके अनुसार सभी आदेश और अधिसूचनाए जो वैधानिक शक्तियों के तहत जारी की जाती है और जो लेजिसलेटिव नेचर की होती है वे कानून मानी जाती है और उनके बारे में धारा 57 भारतीय साक्ष्य अधिनियमए 1872 के तहत न्यायालय को उनकी न्यायिक अवेक्षा या ज्यूडिसियल नोटिस लेना होता है इस तरह यदि अधिसूचना कार्यपालक शक्तियों के तहत जारी की गई है तो उसे कानून नहीं माना जायेगा और यदि अधिसूचना विधायीक शक्तियों तहत जारी की गई है तो उसे कानून माना जायेगा इस संबंध में ज्योति जनरल वर्ष 2007 के पेज 164 पर प्रकाशित लेख अवलोकनीय है जिसमें शासन द्वारा जारी अधिसूचनाओं के ज्यूडिसियल नोटिस लेने के संबंध में वैधानिक स्थिति बतलाई गई है।
चंूकि धारा 4 आयुध अधिनियम के तहत उक्त अधिसूचना जारी की गई है अतः न्यायालयों को धारा 57 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत उसकी न्यायिक अवेक्षा करना चाहिये या ज्यूडिसियल नोटिस लेना चाहिये क्योंकि वह विधि के समान बल रखने वाली अधिसूचना है।
प्रथम सूचना लेखक और अनुसंधान अधिकारी के बारे मे
25- कभी कभी ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है कि जप्तीकर्ता एवं प्रथम सूचना लेखक तथा अनुसंधान अधिकारी एक ही व्यक्ति होता है और तब इस संबंध में तर्क किये जाते है ऐसे में न्यायदृष्टांत स्टेट विरूद्ध विजयपाल 2004 एआईआर एससीडब्ल्यू 1762 में प्रतिपादित विधि का ध्यान में रखना चाहिए जिसके अनुसार संज्ञेय अपराध का अनुसंधान वह पुलिस अधिकारी करने में सक्षम है जो किसी सूचना के आधार पर प्रथम सूचना प्रतिवेदन लिखता है और अपराध पंजीबद्ध करता है वह अधिकारी अंतिम प्रतिवेदन भी प्रस्तुत कर सकता है अभियुक्त के हितों पर इससे प्रतिकूल प्रभाव पड़ा यह स्वतः ही अनुमान नहीं लगाया जा सकता यह प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है साथ ही न्यायदृष्टांत एस जीवनाथम विरूद्ध स्टेट एआईआर 2004 एससी 4608 को भी ध्यान में रखना चाहिए जिसमें एक निरीक्षक जिसने तलाशी और जप्ती की थी उसी ने अपराध पंजीबद्ध किया था यह कृत्य उस निरीक्षक ने उसके शासकीय कत्र्तव्यों के निर्वाहन के दौरान किया तथा अनुसंधान करके चार्जशीट प्रस्तुत की उस निरीक्षक को प्रकरण से हितबद्ध व्यक्ति नहीं माना जा सकता।
तलाशी में अनियमितता के बारे में
25बी- कभी.कभी ऐसे प्रश्न उत्पन्न होते है जिसमें तलाशी के संबंध में आवश्यक प्रावधानों का पालन नहीं किया जाता है तब न्यायदृष्टांत स्टेट आफ एमपी विरूद्ध पलटन मल्लाह 2005 वाल्यूम 3 एससीसी 169 से मार्गदर्शन लेना चाहिए जिसमें यह प्रतिपादित किया है कि यदि जप्तीकर्ता पुलिस अधिकारी उसी क्षेत्र के गवाह तलाशी में लिये होए यदि दंण्प्रण्संण् के सामान्य प्रावधानों काए जो मार्गदर्शक होते हैए थोड़ा उल्लंघन हुआ है तब भी न्यायालय को यह विवेकाधिकार है कि वह तय करे की साक्ष्य स्वीकार योग्य है या नहीं।
न्यूनतम से कम दण्ड के बारे में
26- आयुध अधिनियम की धारा 25 में धारा 3 और 4 के उल्लंघन करने पर न्यूनतम एक वर्ष के कारावास और अर्थदण्ड का प्रावधान है कई बार ऐसी परिस्थितिया होती है जिनमें न्यायालय को न्यूनतम से कम दण्ड देने पर विचार करना होता है इस संबंध में धारा 25 में ही यह प्रावधान है की न्यायालय पर्याप्त और विशेष कारण अभिलिखित करने के पश्चात न्यूनतम से कम दण्ड अधिरोपित कर सकते है कुछ मार्गदर्शक मामले निम्न प्रकार से हैः.
आरोपी 80 वर्ष का वृद्ध था धटना वर्ष 1976 की थी ऐसे में एक वर्ष के कारावास को धटाकर अभिरक्षा में बिताई अवधि किया गया इस संबंध में न्याय दृष्टांत 1994 एससीसी (क्रिमिनल) 51 अवलोकनीय है।
न्याय दृष्टांत 1995 एआईआर एससीडब्ल्यू 1518 में 10 वर्ष पुरानी धटना थी आरोपी जेल में भी रहा था अभिरक्षा में गुजारी अवधि को उचित माना गया।
न्याय दृष्टांत 2000 (3) एमपीएलजे 384 एवं 1987 एससीसी क्रिमिनल 631 भी इसी संबंध में अवलोकनीय है।
अतः मामले के तथ्यों और परिस्थियों में यदि न्यूनतम से कम दण्ड देनी की परिस्थितिया हो तो उक्त न्याय दृष्टांतों से मार्गदर्शन लेकर पर्याप्त विशेष कारण लिखते हुये न्यूनतम से कम दण्ड दिया जा सकता है।
मालखाना निस्तारण
27- यदि मालखाना वस्तु बंदुकए पिस्टनए देशी कट्टा कारतूस हो तो उन्हें विधिवत निराकरण के लिये संबंधित जिले के जिला मजिस्टेª को अपील अवधि पश्चात अपील होने की दशा में भेजे जाने का आदेश करना चाहिये।
यदि मालखाना वस्तुए चाकूए तलवारए आदि धारदार हथियार हो तो उन्हें अपील अवधि पश्चात अपील होने की दशा में तोड़कर नष्ट करने के आदेश देना चाहिये।
अपील होने की दशा अपील न्यायालय के आदेशानुसार माल निस्तारण के आदेश देना चाहिये।
विविध तथ्य
28- आरोपी उसके पिता दोनो पर आरोप थे पिता पर यह आरोप था की उसने आरोपी को मृतक पर फायर करने उकसाया। किसी अन्य को शूट करने को कहना अपराध गठित नहीं करता है पिता को दोषमुक्त किया गया था इस संबंध में न्याय दृष्टांत विजय सिंह विरूद्ध स्टेट आफ एमपी 2000 (1) एमपीएचटी 183 अवलोकनीय है।
29- न्याय दृष्टांत काका सिंह विरूद्ध स्टेट आफ पंजाब 1999 (3) क्राइमस 53 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह प्रतिपादित किया है कि आरोपी बिना लाईसेंसी गन और कार्टलेज के साथ अधिसूचित क्षेत्र में पाया गया दोषसिद्धि को उचित माना गया।
30- न्याय दृष्टांत शंकर नारायण विरूद्ध स्टेट आफ महाराष्ट्र एआईआर 2004 एससी 166 में गन आरोपी के पुत्र की थी आरोपी के पास गन रखने का लाईसेंस नहीं था आरोप प्रमाणित माना गया।
31- न्याय दृष्टांत एआईआर 1992 एससी 675 में पुत्र ने पिता की लाईसेंसी गन चलाई जो पिता की रक्षा के लिए चलाई थी जब परिवादी पक्ष ने उसके पिता को लाठी से मारा इससे अवैध आधिपत्य नहीं माना गया और आरोपी को दोषमुक्त किया गया।
32- न्याय दृष्टांत गणवंत लाल विरूद्ध स्टेट आफ एमपी एआईआर 1972 एससी 1756 में तीन न्याय मूर्तिगण की पीठ ने आधिपत्य शब्द को स्पष्ट किया है जिसके अनुसार आधिपत्य में केवल भौतिक आधिपत्य ही नहीं बल्कि कस्टेªक्टिव पाजेशन भी शामिल है जो फायर आर्म पर आरोपी का नियंत्रण या डोमीनियन दर्शाता है। आधिपत्य को समझने के लिए ये न्याय दृष्टांत मार्गदर्शक है
33- न्याय दृष्टांत स्टेट आफ तमिलनाडू विरूद्ध नलिनी एआईआर 1999 एससी 2640 में तीन न्याय मूर्तिगण की पीठ ने यह प्रतिपादित किया है कि आर्मस और एम्यूनेशन आरोपी के घर में छिपाये हुये पाये गये दोषसिद्धि को उचित माना गया।
34- न्याय दृष्टांत प्रवीण विरूद्ध स्टेट आफ एमपी एआईआर 2008 एससी 1846 में बिना अनुज्ञप्ति के पिस्टन का प्रयोग धारा 5 के उल्लंघन में पाये जाने से दोषसिद्ध को उचित माना गया।
35- तलाशी और जब्ती में दण्ड प्रक्रिया संहिताए 1973 के प्रावधान आकर्षित होते है साथ ही धारा 22 और 37 के प्रावधान भी आकर्षित होते है अतः अवैध उद्देश्य के लिये यदि घर में हथियार छिपाने का मामला हो तब विश्वास के आधार अभिलिखित करने के पश्चात ही आवास गृह में प्रवेश करना चाहिए इस संबंध में न्याय दृष्टांत वाहिद खान विरूद्ध स्टेट आफ एमपी आईएलआर (2007) एमपी 1808 अवलोकनीय है।
36- बिना लाईसेंस की कृपाण का कब्जा रखना अपराध है नील विरूद्ध स्टेट एआईआर 1972 एससी 2066 अवलोकनीय है।
37- रिवाल्वर और दो कारतूस का मामलाए जब्त समानों का विवरण और विशेषज्ञ की रिर्पाट का विवरण सामान था पश्चातवर्ती प्रक्रम पर जब्त सामाग्री को टेम्पर करने का बचाव लिया गया जो अमान्य किया गया सामाग्री को मोहर बंद करना महत्वपूर्ण नहीं माना गया इस संबंध में न्याय दृष्टांत बिलाल अहमद विरूद्ध स्टेट आफ आंध्रप्रदेश एआईआर 1997 एससी 348 निर्णय चरण 20 अवलोकनीय है।
38- पिता के पास बंदुक का लाईसेंस था बंदुक घर से बरामद की गई पुत्र को कब्जे के लिए दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता काली विरूद्ध स्टेट (1984) 1 क्राइम्स 428 एसपी
39ण् अनुज्ञप्ति के बिना गिरबीदार द्वारा कब्जा अपराध है स्टेट विरूद्ध रामकिशन एआईआई 1956 राजस्थान 24
40- तालाब में अभियुक्त द्वारा फेकी गई पिस्तोल की बरामदगी की गई इसे कंस्टेªक्टिव कब्जा माना गया छोटे लाल विरूद्ध स्टेट एआईआर 1954 इलाहाबाद 685
41- अलमारी से पिस्तोल बरामदए अभियुक्त द्वारा पेश की गई चाबी द्वारा अलमारी खोली गई थी इसे सचेत कब्जा माना गया महेन्द्र विरूद्ध स्टेटए एआईआर 1973 एससी 2285
इस तरह आयुध अधिनियमए 1959 के मामलों में उक्त अनुसार वारंट विचारण प्रक्रिया अपनाना चाहिये और आरोप विरचित करने के समय संबंधित अधिसूचना का उल्लेख जिसके उल्लंघन में कथित आयुध रखा गया है आरोप पत्र में ही जावे इसका ध्यान रखना चाहिये। साक्ष्य के समय रोजनामचा बुलवानेए मालखाना वस्तु बुलवानेए और उन्हें साक्ष्य में प्रदर्शित करवाने पर ध्यान देना चाहिये जब्ती पंचनामा अपने आप में तात्विक साक्ष्य नहीं होती है बल्कि उसके तथ्य अभिलेख पर आना चाहिये इसका ध्यान रखना चाहिये।




4 comments:

  1. Please give me supreme court judgement on revolver,gun, on aquittal

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  2. कृपया मुझे 4/25,31आर्म्स एक्ट के दंडित केस से बरी के सुप्रीम कोर्ट जजमेंट समझओ

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  3. महोदय मैंने एक रिवॉल्वर / पिस्टल के लाइसेंस का आवेदन किया था ।मैंने अपने शस्त्र आवेदन के साथ संपूर्ण जरूरी कागजात लगाए थे और अपना शस्त्र आवेदन आयुध लिपिक के यहां जमा कर दिया तदुपरांत मेरी तहसील व थाना पुलिस के पास मेरे चरित्र संबंधित रिपोर्ट लगने के लिए फॉर्म आया तहसील की सारी रिपोर्ट मेरे फेवर के लगी जो पुनः वापस होकर मेरी फाइल में लग गई और थाना पुलिस द्वारा मेरे आवेदन पर यह रिपोर्ट लगाई गई की ( आवेदक XYZ निवासी XYZ मूल पते का निवासी है आवेदक द्वारा शस्त्र लाईसेंस का आवेदन किया अपनी जान माल की सुरक्षा हेतु किया गया है गांव में आम शोहरत अच्छी है आवेदक के पिता XYZ पुत्र XYZ के विरूद्ध थाना हाजा में 323, 324 , 504 , 506 आई ०पी० सी व 3(1)10 एस०सी० एस ०टी एक्ट पंजीकृत है जिसमें बाद विवेचना चार्ज शीट नंबर XYZ/XYZ दिनांक 00/00/00 प्रेषित की गई जो माननीय न्यायालय में विचाराधीन है आवेदक के विरूद्ध थाना हाजा में कोई भी अभियोग पंजीकृत नहीं है शास्त्र लाइसेंस बनाए जाने की संस्तुति की जाती है ) महोदय उपरोक्त रिपोर्ट मेरे हल्का दरोगा ने लगाई जिसकी रिपोर्ट पर थाना अध्यक्ष ने भी अपनी संस्तुति के साथ क्षेत्राधिकारी को अग्रसारित कर दिया क्षेत्राधिकारी ने भी उक्त रिपोर्ट पर संस्तुति के साथ जनपद में डी ०सी ०अर० बी (कार्यालय पुलिस अधीक्षक) के यहां अग्रसारित कर दिया जिसपर डी० सी ०आर ०बी ने भी इसबात की संस्तुति कर के की मेरे विरूद्ध जनपद के किसी भी थाने में कोई भी अभियोग पंजीकृत नहीं है उक्त रिपोर्ट को अपर पुलिस अधीक्षक के यहां अग्रसारित कर दिया फिर अपर पुलिस अधीक्षक ने भी उपरोक्त रिपोर्ट पर संस्तुति के साथ पुलिस अधीक्षक के यहां अग्रसारित कर दिया फिर मेरे द्वारा काफी प्रयासों के बाद पुलिस अधीक्षक द्वारा उक्त रिपोर्ट को सिर्फ अग्रसारित किया संस्तुति नहीं किया फिर मेरी पुलिस रिपोर्ट भी आयुध कार्यालय में मेरी फाइल पे जा कर लगा दी गई । मै जिलाधिकारी महोदय से दो बार मिला अपने लाइसेंस के संबंध में और इंतजार किया एक दो माह पर जिलाधिकारी महोदय द्वारा मेरे लाइसेंस नहीं किया गया तो मेरे द्वारा माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद बेंच लखनऊ में एक मंडमस रिट याचिका दायर की गई इस संबंध में की मेरा शास्त्र आवेदन 4-5 माह से जिलाधिकारी महोदय के यहां लंबित है । हाई कोर्ट द्वारा मेरी रिट में सर्टिफाइड कॉपी मिलने से 28 दिन के भीतर गुण दोष के आधार पर मेरे शास्त्र आवेदन को डिसाइड करने के निर्देश दिए मैंने ऑर्डर की कॉपी जिलाधिकारी महोदय को उपलब्ध कराई तो उन्होंने मेरे पिता पर आपराधिक मुकदमा पंजीकृत होने व पारिवारिक आपराधिक इतिहास होने का हवाला दे कर मेरा आवेदन निरस्त कर दिया जबकि मेरे पिता के सिवा कभी किसी पर कोई मुकदमा ही नहीं रहा और मेरे पिता पर भी जो उक्त मुकदमा है वह भी झूठा है इसके बाद मुझे जिलाधिकारी का मेरे आवेदन को निरस्त करने का ऑर्डर जरिए थाना पुलिस तामील करवा दिया गया । जिसपर मैंने जिलाधिकारी महोदय द्वारा मेरे आवेदन को निरस्त करने के आदेश पर आयुक्त महोदय के यहां अपील किया था कुछ माह बात आयुक्त महोदय ने भी जिलाधिकारी के आदेश पर अपनी संतुष्टि जाहिर करते हुए मेरे द्वारा की गई अपील को खारिज कर दिया अब मै माननीय उच्च न्यायालय बेंच लखनऊ में। जिलाधिकारी महोदय व आयुक्त महोदय के आदेश के विरूद्ध चैलेंज करने की तयारी कर रहा हूं क्या मुझे उच्च न्यायालय से कोई राहत मेरे पक्ष में मिलेगी । महोदय मै जनता हूं कि जिलाधिकारी महोदय ने मेरे प्रकरण में अपनी तानाशाही करते हुए विधि विरूद्ध पूर्व कथन जैसा आदेश पारित किया है क्यों की में अपने शास्त्र आवेदन समयावधि के अंदर निस्तारण करने के लिए उच्च न्यायालय से 28 दिवस में आवेदन का निस्तारण करने का आदेश लाया था इस कारण वह चिढ़ भी गए होंगे और मंडला आयुक्त ने भी जिलाधिकारी के आदेश को सही मानते हुए उन्हें बचाते हुए मेरी अपील खारिज की है क्यों की दोनों IAS Brother है महोदय आप मेरे इस प्रकरण पर मुझे सलाह दे की मुझे अब क्या करना चाहिए क्या मेरा लाइसेंस अभी भी हो सकता है। कृपया मुझे जल्द से जल्द सही राय दें और यह भी बताएं कि मेरे आवेदन पर मेरे पिता पर आपराधिक मुकदमा पंजीकृत होने का हवाला देते हुए जिलाधिकारी महोदय द्वारा मेरा आवेदन निरस्त करना विधि विरूद्ध है या नहीं । महोदय इस प्रकरण पर यदि आपके पास कोई विचार या कोई जजमेंट या आर्म्स एक्ट 1959 कि कोई रूलिंग हो तो कृपया मेरी मदद करने कि कृपा करें

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  4. श्री मान जी हमे इक कृषि भूमि के विवाद मै SDM ने स्वत्त्व के आधार पर निराकरण करने को कहा है। तो सिविल न्यायलय में किस आधार पर स्वत्त्व निर्धारण किया जाता है।वकील महोदय ने 1908,7 मै केश डाला है

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