Tuesday 29 April 2014

जमानत विधि S. 439

                   जमानत के बारे में विधि

1 -    उच्च न्यायालय से जमानत निरस्त हो जाने के बाद अधीनरस्थ न्यायालय को जमानत स्वीकार नहीं करना चाहिए यह न्यायिक अनुशासन को प्रभावित करता है इस संबंध में न्यायदृष्टांत सतीश लोधी विरूद्ध स्टेट आफ एम.पी. आई.एल.आर. 2012 एम.पी. 632 अवलोकनीय है ।

2 -    संजय चंद्रा विरूद्ध सी.बी.आई. (2012) 1 एस.सी.सी. 40 के मामले में जमानत देते समय ध्यान रखे जाने योग्य तथा बतलाये हैं जिसमें अभियुक्त के फरार होने की संभावना, अपराध की गंभीरता, गवाहों को प्रभावित करने की संभावना मुख्य तथ्य है ।

3 -    न्याय दृष्टांत दीपक सुभाषचंद्र मेहता विरूद्ध सी.बी.आई ए.आई.आर. 2012 एस.सी. 949 में यहा कहा गया है कि केवल विचारण में विलंब होना एक नियम के रूप में जमानत देने का आधार नहीं हो सकता इस नियम को सभी मामलों में यांत्रिक तरीके से लागू नहीं करना चाहिए ।
 
4 -    धारा 439 दण्ड प्रक्रिया संहिता के आवेदन के लिए अभियुक्त का अभिरक्षा में होना आवश्यक है इस मामले में अभिरक्षा शब्द को स्पष्ट  किया गया है अवलोकन न्याय दृष्टांत बामन नारायण विरूद्ध स्टेट आफ राजस्थान (2009) 2 एस.सी.सी. 281

5 -    यूनियन आफ इंडिया विरूद्ध रतन मलिक 2009 (2) एस.सी.सी. 624 के अनुसार एन.डी.पी.एस. एक्ट के मामले में धारा 439 एवं धारा 37 (1) (बी) एन.डी.पी.एस. एक्ट दोनों में उल्लेखित शर्ते लागू होती    है ।  

6 -    न्याय दृष्टांत गोबर भाई नारायण भाई विरूद्ध स्टेट आफ गुजरात 20858 (3) एस.सी.सी. 775 के अनुसार गंभीर हत्या के अपराध में यह     जमानत के लिए मानने योग्य आधार नहीं हो सकता कि अभियुक्त अभिरक्षा में है और विचारण शुरू होने में अभी समय लगेगा ।
 
7 -    जहाँ मामला मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय हो वहाँ सत्र न्यायालय जमानत के संदर्भ में सक्षम न्यायालय होती है इस संबंध में न्याय दृष्टांत रामकिशोर साकेत विरूद्ध स्टेट आफ एम.पी. अवलोकनीय है ।
 
8 -    न्याय दृष्टांत एन.आर. मोन मोहम्मद नसीमुद्दीन (2008) 6 एस.सी.सी. 721 के अनुसार धारा 37 (1) (बी) एन.डी.पी.एस. एक्ट के अनुसार लोक अभियोजक को सुनवाई का अवसर देना और न्यायालय को इस बारे में संतोष होना कि ऐसा विश्वास करना कि युक्तियुक्त आधार है कि अभियुक्त दोषी नहीं है और वह जमानत पर रहने के बाद अपराध नहीं दोहराएगा इन शर्तो के पूरी होने के बाद ही एन.डी.पी.एस. एक्ट के मामलों में जमानत की जानी चाहिए ।
 
9 -    न्याय दृष्टांत अखिलेश कुमार सिंह विरूद्ध स्टेट आफ यू.पी. (2006) 4 एस.सी.सी. 449 के मामले में प्रथम जमानत आवेदन पत्र निरस्त होने के 19 दिन बाद द्वितीय जमानत आवेदन पत्र परिस्थितियों में किसी परिवर्तन के बिना स्वीकार किया गया जो कारण द्वितीय जमानत आवेदन पत्र में बतलाये गये थे वे ऐसे थे जो प्रथम जमानत आवेदन पत्र में भी बतलाये जा सकते थे । इस प्रकार जमानत स्वीकार करना स्थापित सिद्धांतों के विपरीत पाया गया ।
 
10 -    न्याय दृष्टांत राजेश रंजन यादव विरूद्ध सीबी.आई (2007) 1 एस.सी.सी. 70 के अनुसार अभियुक्त का लंबे समय से अभिरक्षा में होना और इस कारण अपना बचाव न कर पाना जमानत स्वीकार करने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है ।
 
11 -    न्याय दृष्टांत श्रीमती बिमला बाई विरूद्ध स्टेट आफ एम.पी. एम.सी.आर.सी. नम्बर 7393/2005 निर्णय दिनांक 10.11.2005 मेन सीट के अनुसार यदि वरिष्ठ न्यायालय द्वारा यदि सह अभियुक्त को जमानत दे दी जाती है तो समानता के सिद्धांत के आधार पर न्यायिक परिपाठी के अनुसार सह अभियुक्त को जमानत का लाभ दिया जाना चाहिए ।
 
                

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