Tuesday 29 April 2014

अग्रिम जमानत S. 438

                 अग्रिम जमानत के बारे में


1 -    अभियुक्त को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने गिरफ्तारी के विरूद्ध अंतरिम संरक्षा दी । उसके बाद वह पूछताछ के लिए और अनुसंधान के लिए उपलब्ध नहीं हुआ तब उसे फरार घोषित किया गया ऐसे अभियुक्त को अपराध की गंभीरता और प्रकृति को देखते हुये और अभियुक्त के आचरण को देखते हुए अग्रिम जमानत देने से इंकार किया ।
 
2 -    लवेश विरूद्ध स्टेट (2012) 8 एस.सी.सी. 730 धारा 438 दण्ड प्रक्रिया संहिता का आवेदन पत्र सर्वप्रथम सत्र न्यायालय में लगाना चाहिए फिर यदि आवश्यक हो तो माननीय उच्च न्यायालय में लगाना चाहिए इस संबंध में न्याय दृष्टांत प्रिया अग्रवाल विरूद्ध स्टेट आफ एम.पी. आई.एल.आर. 2012 एम.पी. 813 अवलोकनीय   है ।
 
3 -    धारा 438 दण्ड प्रक्रिया संहिता के तहत पारित आदेश की  Life Curtailed नहीं की जा सकती । इस संबंध में न्याय दृष्टांत हरनाम सिंह विरूद्ध स्टेट आफ एम.पी.आई.एल.आर. 2012 एम.पी. एस.एन. 96 अवलोकनीय है ।
 
4 -    माननीय उच्च न्यायालय में जमानत आवेदन सीधे प्रस्तुत किया गया पहले सत्र न्यायालय या विचारण न्यायालय में आवेदन नहीं किया गया क्या ऐसा आवेदन चलने योग्य है ? यदि विशेष असामान्य परिस्थितियां और कारण बतलाये जायेंगे तब ऐसा आवेदन सीधे उच्च न्यायालय में चल सकता है इस संबंध में न्याय दृष्टांत छोटे खान विरूद्ध स्टेट आफ एम.पी. आई.एल.आर. 2012 एम.पी. 1095 अवलाकनीय है ।
 
5 -    न्याय दृष्टांत सिद्धाराम एस मैत्रे विरूद्ध स्टेट आफ महाराष्ट्र ए.आई.आर. 2011 एस.सी. 312 के अनुसार अग्रिम जमानत सीमित अवधि के लिए नहीं दी जा सकती क्योंकि ऐसी जमानत देना धारा 438 दण्ड प्रक्रिया संहिता के तहत विधायिका के आशय के विपरीत है साथ ही भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के भी विपरीत है सामान्यतः अग्रिम जमानत का लाभ प्रकरण के विचारण की समाप्ति तक के लिए होता है जब तक की ऐसी जमानत को अभियुक्त द्वारा जमानत का दुरूपयोग करने के आधार पर निरस्त न कर दिया गया हो ।
 
6 -    अग्रिम जमानत देने या न देने के बारे में कोई स्टेªट जैकेट फार्मूला नहीं बनाया जा सकता लेकिन इसी मामले में अर्थात् उक्त सिद्धाराम एस. मैत्रे विरूद्ध स्टेट आफ महाराष्ट्र में कुछ सिद्धांत बतलाये गये है जो ध्यान में रखना चाहिए ।
 
7 -    न्याय दृष्टांत रवीन्द्र एक्सेना विरूद्ध स्टेट आफ राजस्थान (2010) 1 एस.सी.सी. 684 के अनुसार जब तक अभियुक्त गिरफ्तार नहीं होता तब तक अग्रिम जमानत किसी भी समय दी जा सकती है अभियोग पत्र प्रस्तुत हो चुका है ऐसे तकनीकी आधारों पर किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता से उसे वंचित नहीं किया जा सकता ।
 
8 -    सोनू उर्फ शहजाद विरूद्ध स्टेट आफ एम.पी. 2010 (1) एम.पी.एच.टी. 421 अग्रिम जमानत के बारे में अवलोकनीय न्याय दृष्टांत है जिसके अनुसार:-
    धारा 439 के आवेदन के प्रचलनशील होने के लिए अभियुक्त का अभिरक्षा में होना आवश्यक है । नियमित जमानत आवेदन को त्वरित गति से निराकरण करना चाहिए इस मामले में यह भी कहा गया कि अभियुक्त अग्रिम में अपने समर्पण की तिथि बतला सकता है और उस तिथि पर केस डायरी प्रस्तुत करने के लिए कोई स्थगन नहीं किया जाना चाहिए । न्यायालय अंतिरम जमानत की शक्तियां भी रखते है केस डायरी न आने पर अंतिरम जमानत भी दी सकती है । अंतरिम जमानत की शक्तियों के बारे में न्याय सुखवंत सिंह विरूद्ध स्टेट आफ पंजाब (2009) 7 एस.सी.सी. 559 भी अवलोकनीय है ।
 
9 -    यूनियन आफ इंडिया विरूद्ध पदम् नारायण अग्रवाल ए.आई.आर. 2009 एस.सी. 254 के अनुसार ऐसा आदेश नहीं किया जा सकता की अभियुक्त को 10 दिन का अग्रिम सूचना पत्र दिये बिना गिरफ्तार नहीं किया जायेगा । न्यायालय को ऐसा ठसंदामज व्तकमत करने का क्षेत्राधिकार नहीं है ।
 
10 -    न्याय दृष्टांत फाजीलत मोहम्मद विरूद्ध स्टेट आफ एम.पी. आई.एल.आर. 2008 एम.पी. 7 के अनुसार यदि किसी अभियुक्त को अग्रिम जमानत दी गयी हो और उसकी नियमित जमानत का आवेदन पत्र निरस्त कर दिया गया हो तब वरिष्ठ न्यायालय में अग्रिम जमानत आवेदन पत्र फिर चलने योग्य नहीं होगा लेकिन मामलों के तथ्यों और परिस्थितियों में अग्रिम जमानत की अवधि 45 दिन के लिए बढ़ाई गयी । इस संबंध में न्याय दृष्टांत गोपीचंद्र खत्री विरूद्ध सुशील कुमार आई.एल.आर. 2008 एम.पी.एन.ओ.सी. 85 अवलोकनीय है ।
 
11 -    न्याय दृष्टांत स्टेट आफ पंजाब विरूद्ध रानिंदर सिंह (2008) 1 एस.सी.सी 564 के अनुसार अग्रिम जमानत के न्यायालय ने एक शर्त यह लगायी थी कि अभियुक्त पुलिस के समक्ष पूछताछ के लिए उपस्थित रहेगा उसने इस शर्त को भंग किया राज्य अभियुक्त की जमानत निरस्ती की कार्यवाही कर सकता है ।
 
12 -    न्याय दृष्टांत खुशेन्द्र बोरकर विरूद्ध स्टेट आफ उत्तर प्रदेश 2007 (4) एम.पी.एच.टी. 416 के अनुसार सत्र न्यायालय और उच्च न्यायालय को ट्रांजिटरी अग्रिम जमानत देने की समवर्ती शक्तियाँ  है ।
 
13 -    न्याय दृष्टांत विलास पांडुरंग पवार विरूद्ध स्टेट आफ महाराष्ट्र ए.आई.आर. 2012 एस.सी. 3316 के अनुसार धारा 18 एस.सी.एस.टी. एक्ट के बार के संबंध में अवलोकनीय है । जिसमें यह कहा गया है कि प्रथम दृष्टांत धारा 3 (1) एस.सी.एस.टी. एक्ट का अपराध बनता है या नहीं यह देखना न्यायालय का कर्तव्य है और यदि अपराध नहीं बनता है तब धारा 18 का बार लागू नहीं होता है । इस मामलें में यह भी बतलाया गया है कि इस तथ्य को देखने के लिए साक्ष्य को सीमित उद्देश्य के लिए देखना जाना होता है ।
 
14 -    स्टेट आफ महाराष्ट्र विरूद्ध मोहम्मद शाजिद हुसैन (2008) 1 एस.सी.सी. 213 के मामले में यह कहा गया कि अग्रिम जमानत देते समय अपराध की प्रकृति गंभीरता, अभियुक्त का पूर्वदोष सिद्ध होना, अभियुक्त के फरार होने की संभावना, आदि तथ्य विचार में लेना चाहिए धारा 376 भा.द.स. जैसे गंभीर मामलों में पूरा अनुसंधान हो जाने के बाद ही जमानत दी जाना चाहिए अभियोक्त्रि सहज उपलब्ध महिला थी यह अग्रिम जमानत स्वीकार करने का अधार नहीं हो सकता ।
 
15 -    न्याय दृष्टांत योगेश विरूद्ध स्टेट आफ एम.पी. 2008 (1) एम.पी.एच.टी. 352 के अनुसार जहाँ अपराध मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय हो वहाँ नियमित जमानत के लिए सत्र न्यायालय सक्षम न्यायालय होता है ।
 
16 -    न्याय दृष्टांत दुर्गाशंकर गुप्ता विरूद्ध स्टेट आफ एम.पी. 2007 (2) एम.पी.एल.जे. 233 के अनुसार अपराध का दर्ज होना अग्रिम जमानत आवेदन की प्रचलनशीलता के लिए एक पूर्ववर्ती शर्त नहीं हो सकती ।
 
17 -    अभियुक्त के विरूद्ध चार्जशीट/परिवाद प्रस्तुत होने के बाद जमानती वारंट जारी किया गया तब भी अग्रिम जमानत का आवेदन प्रचलन योग्य होता है इस संबंध में न्याय दृष्टांत हरिओम लोखंडे विरूद्ध एम.पी.एस.ई.बी. 2006 (1) एम.पी.एल.जे. 145 अवलोकनीय  है । न्याय दृष्टांत अरविंदा शूद विरूद्ध रूपाली 2003 (3) एम.पी.एल.जे. 48 के अनुसार मजिस्ट्रेट ने यदि गिरफ्तारी वारंट जारी किया हो तब अग्रिम जमानत आवेदन चलने योग्य होता है ।
 
18 -    न्याय दृष्टांत ब्रजेश गर्ग विरूद्ध स्टेट आफ एम.पी. एम.सी.आर.सी. नम्बर 4984/2005 निर्णय दिनांक 18.08.2005 मुख्य पीठ डी.बी. के अनुसार धारा 439 का आवेदन निरस्त हो जाने के बाद प्रोटेक्टिव अम्ब्रेला समाप्त हो जाता है । इस संबंध में न्याय दृष्टांत सुनील गुप्ता विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी. 2005 (3) एम.पी.एच.टी. 272 भी अवलोकनीय है ।
 
19 -    न्याय दृष्टांत श्रीमती मनीषा नीमा विरूद्ध स्टेट आफ एम.पी. 2003 (2) एम.पी.एल.जे. 587 के अनुसार धारा 438 और 439 की शक्तियां समवर्ती शक्तियां है लेकिन पहले आवेदन सत्र न्यायालय में लगाना चाहिए ।
                
               

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