Monday 18 July 2022

कमियों पर टिप्पणी; अपील की सुनवाई के दौरान सत्र न्यायाधीश के पास ऐसा कोई न्यायिक अधिकार नहीं है जिसके अनुसार वह न्यायिक अधिकारी द्वारा दिए गए निर्णय की कमियां निकाले : इलाहाबाद हाईकोर्ट 10 Jan 2021

कमियों पर टिप्पणी; अपील की सुनवाई के दौरान सत्र न्यायाधीश के पास ऐसा कोई न्यायिक अधिकार नहीं है जिसके अनुसार वह न्यायिक अधिकारी द्वारा दिए गए निर्णय की कमियां निकाले : इलाहाबाद हाईकोर्ट 10 Jan 2021

 इलाहाबाद हाईकोट ने कहा कि संयम, संतुलन और रिर्जव एक न्यायिक अधिकारी के सबसे बड़े गुण हैं और उसे कभी भी इन गुणों को छोड़ना नहीं चाहिए। न्यायमूर्ति आलोक माथुर की खंडपीठ एक न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दायर एक अर्जी पर सुनवाई कर रहे थे। इस मामले में सत्र न्यायाधीश, हरदोई द्वारा उसके खिलाफ की गई टिप्पणी को रद्द करने के लिए न्यायालय के समक्ष प्रार्थना की थी, जबकि राज्य बनाम यमोहन सिंह (क्रिमिनल केस नंबर-909/2019) आपराधिक मामले में हरदोई ने अपना एक अलग फैसला सुनाया। 

         सेशन जज हरदोई ने ट्रायल कोर्ट के फैसले (आवेदक लेखक) को अलग करते हुए कुछ टिप्पणियां की हैं, जिससे नाराज होकर आवेदक ने इस तरह की टिप्पणियों को खारिज करने के लिए उच्च न्यायालय से प्रार्थना की है। कोर्ट ने कहा है कि, यह विचार करना प्रासंगिक है कि : -

(क) क्या जिस पक्ष का प्रश्न है, वह न्यायालय के समक्ष है या स्वयं को समझाने या बचाव करने का अवसर है, (ख) क्या रिकॉर्ड किए गए सबूत असर होने के प्रमाण उचित हैं 

(ग) क्या इस मामले के निर्णय के लिए जुटाए गए सबूत पर्याप्त हैं। यह भी माना गया है कि न्यायिक घोषणाओं को प्रकृति में न्यायिक होना चाहिए, और सामान्य रूप से कुछ अपने संयम, संतुलन और रिर्जव से नहीं हटना चाहिए। 

         मामले की जांच करते हुए हाईकोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई कुछ टिप्पणियों पर भरोसा किया है जहां उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालयों को चेतावनी दी है कि वे अधीनस्थ न्यायिक अधिकारी की आलोचना करने से बचें. उन पर टिप्पणियां न की जाएं। कोर्ट का कहना है कि, "अपील की सुनवाई करते हुए सत्र न्यायाधीश के पास पूर्ण अधिकार और अधिकार क्षेत्र है, ताकि वह असहमति के सबूतों की पुनः सराहना कर सके और ट्रायल कोर्ट के जरिए निष्कर्ष निकाल सके।  लेकिन उनका क्षेत्राधिकार उक्त मामले से निपटने के लिए ट्रायल कोर्ट के कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए आवेदक की कमियों पर टिप्पणी करने से कम हो गया है। उनसे यह उम्मीद नहीं की गई थी कि वह देखे कि *आवेदक ने मुकदमे के अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए न्यायिक अधिकारी से अपेक्षा के अनुरूप निर्णय नहीं लिखा था।*  उक्त टिप्पणी न्यायिक अधिकारी के व्यक्तित्व पर स्पष्ट रूप से प्रतिबिंबित करती हैं। अब, उक्त अपील का फैसला करते हुए सत्र न्यायाधीश से अपेक्षा की गई थी कि वह उस मामले का न्याय करें जो उनके समक्ष था, और न्यायिक अधिकारी के निर्णय पर उनको टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है। न्यायिक अधिकारी का अपना काम करने दिया जाए और आप अपना काम करें।" Also Read - पटना हाईकोर्ट ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, मोतिहारी को निलंबित किया, विवादास्पद जमानत आदेश पारित करने का आरोप अदालत ने आगे कहा कि, "जिला और सत्र न्यायाधीश को अपने अधीनस्थ न्यायिक अधिकारियों पर प्रशासनिक नियंत्रण करने का अधिकार प्राप्त है, लेकिन प्रशासनिक नियंत्रण को अधीक्षण की शक्ति के बराबर नहीं किया जा सकता है जो केवल उच्च न्यायालयों के साथ निहित है।" सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित निर्णय में आवेदक के खिलाफ की गई टिप्पणियों को हटाने के लिए आवेदन की अनुमति देते हुए बेंच ने कहा कि, "वर्तमान मामले में सत्र न्यायाधीश ने पूरे सबूतों की फिर से जांच की है। जांच के बाद इसमें कई तरह के विवाद देखने को मिले हैं, और इसलिए आपराधिक अपील की अनुमति दी गई है। आवेदक पर टिप्पणी करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। फिर भी यदि वह आवेदक की कमियों के बारे में दृढ़ता से महसूस करता है, तो इसके लिए वह अपने प्रशासनिक न्यायाधीश या मुख्य न्यायाधीश को सूचित करे।" आवेदक का प्रतिनिधित्व एडवोकेट प्रदीप कुमार साई ने किया और सहयोगी के रूप में एडवोकेट प्रकाश पांडे, एडवोकेट देवांश मिश्रा, एडवोकेट प्रवीण कुमार शुक्ला और एडवोकेट प्रियांशु सिंह थे। केस का शीर्षक - अलका पांडे बनाम उत्तर प्रदेश और अन्य [केस: U / S 482/378/40 2020 no. 2389 of 2020]


https://hindi.livelaw.in/category/top-stories/the-judicial-officer-who-authored-the-judgment-allahabad-high-cour-168220

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