सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसलों के लिए नया फॉर्मेट तय किया; गवाहों और सबूतों का चार्ट बनाना अनिवार्य
मनोज भाई जेठा भाई परमार (रोहित) बनाम गुजरात राज्य (Manojbhai Jethabhai Parmar (Rohit) vs. State of Gujarat) आपराधिक अपील संख्या 2973/2023 भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक महत्वपूर्ण मामला था, जिसमें हाल ही में फैसला सुनाया गया है।
मामले का विवरण और निर्णय:
न्यायालय: भारत का सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India)।
निर्णय की तिथि: 15 दिसंबर 2025।
अपील: यह अपील गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर की गई थी, जिसमें आरोपी को 2013 के एक POCSO मामले में दोषी ठहराया गया था।
आरोप: आरोपी पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 363, 376(2)(i), 201 और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत आरोप लगाए गए थे।
सर्वोच्च न्यायालय का फैसला: न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने जांच में "गंभीर और दुखद" प्रक्रियात्मक चूकों और "लापरवाही" (investigative apathy) के कारण आरोपी की सजा को रद्द कर दिया और उसे बरी कर दिया।
मुख्य दिशा-निर्देश: इस मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने देश भर की निचली अदालतों के लिए आपराधिक मामलों के फैसलों में गवाहों और सबूतों को सारणीबद्ध (tabulated) रूप में सूचीबद्ध करने के लिए एक मानक प्रारूप निर्धारित किया है, ताकि अपीलीय अदालतों के लिए मामले को समझना आसान हो सके।
वाद शीर्षक: मनोजभाई जेठाभाई परमार (रोहित) बनाम गुजरात राज्य केस संख्या: क्रिमिनल अपील नंबर 2973/2023 कोरम: न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता
लाइव ला का विवरण
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश : आपराधिक मामलों में साक्ष्यों के मानकीकृत अभिलेखीकरण (Standardized Cataloguing of Evidence)
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार, 15 दिसंबर 2025 को देश भर की सभी ट्रायल अदालतों को महत्वपूर्ण निर्देश जारी करते हुए आपराधिक निर्णयों में गवाहों, दस्तावेजी साक्ष्यों तथा भौतिक वस्तुओं (Muddamal) के लिए एक मानकीकृत एवं संरचित प्रारूप अपनाने का आदेश दिया।
यह निर्देश माननीय न्यायमूर्ति विक्रम नाथ एवं न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ द्वारा उस प्रकरण में दिए गए, जिसमें POCSO अधिनियम के अंतर्गत 4 वर्ष की बच्ची के साथ यौन उत्पीड़न के आरोप में दोषसिद्ध व्यक्ति को बरी किया गया।
पीठ ने कहा—
“हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि आपराधिक निर्णयों की पठनीयता और साक्ष्यों की समुचित सराहना के लिए एक अधिक संरचित और एकरूप प्रक्रिया अपनाई जानी आवश्यक है। अतः हम सभी ट्रायल न्यायालयों के लिए निम्नलिखित निर्देश जारी करते हैं, जिनका उद्देश्य गवाहों, दस्तावेजों और भौतिक वस्तुओं के अभिलेखीकरण के लिए एक मानकीकृत प्रणाली को संस्थागत करना है, जिससे अपीलीय न्यायालयों सहित सभी हितधारकों को सुविधा प्राप्त हो।”
जारी किए गए निर्देश
1. सभी आपराधिक निर्णयों में सारणीबद्ध (Tabulated) चार्ट का समावेश
सभी ट्रायल न्यायालय आपराधिक मामलों के निर्णय के अंत में निम्नलिखित का सारणीबद्ध विवरण अनिवार्य रूप से संलग्न करेंगे—
a. परीक्षित गवाहों की सूची
b. प्रदर्शित दस्तावेजों की सूची
c. प्रस्तुत एवं प्रदर्शित भौतिक वस्तुओं (Muddamal) की सूची
यह चार्ट निर्णय का परिशिष्ट (Appendix) या अंतिम भाग होगा तथा स्पष्ट, संरचित एवं आसानी से समझने योग्य प्रारूप में तैयार किया जाएगा।
2. गवाहों का मानकीकृत चार्ट (Standardized Witness Chart)
प्रत्येक आपराधिक निर्णय में गवाहों के लिए निम्न कॉलम युक्त चार्ट होना अनिवार्य होगा—
| क्रमांक | गवाह का नाम | संक्षिप्त विवरण / भूमिका |
|---|---|---|
| PW-1 | श्री X | प्रत्यक्षदर्शी |
| PW-2 | श्री Y | अंतिम बार साथ देखे जाने का गवाह |
| PW-3 | सुश्री Z | चिकित्सकीय विशेषज्ञ |
| PW-4 | श्री A | विवेचक अधिकारी (I.O.) |
| PW-5 | श्री B | परिवादी / प्रथम सूचना दाता |
गवाह की भूमिका संक्षिप्त किन्तु पर्याप्त होनी चाहिए, जिससे उसके साक्ष्य की प्रकृति स्पष्ट हो सके।
3. प्रदर्शित दस्तावेजों का मानकीकृत चार्ट
ट्रायल के दौरान प्रदर्शित सभी दस्तावेजों हेतु पृथक चार्ट तैयार किया जाएगा, जिसमें निम्न विवरण होगा—
a. एग्ज़िबिट क्रमांक
b. दस्तावेज का विवरण
c. दस्तावेज को सिद्ध करने वाला गवाह
नमूना चार्ट
| एग्ज़िबिट क्रमांक | दस्तावेज का विवरण | सिद्ध करने वाला गवाह |
|---|---|---|
| Ex-1 | इनक्वेस्ट पंचनामा | PW-1 |
| Ex-2 | बरामदगी पंचनामा | PW-2 |
| Ex-3 | गिरफ्तारी मेमो | PW-3 |
| Ex-4 | पोस्टमार्टम रिपोर्ट | PW-4 |
| Ex-5 | एफएसएल रिपोर्ट | PW-5 |
यह व्यवस्था भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 / भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 के अनुपालन की जांच में सहायक होगी।
4. भौतिक वस्तुओं (Muddamal) का मानकीकृत चार्ट
जहाँ भी भौतिक वस्तुएँ प्रस्तुत एवं प्रदर्शित की जाती हैं, वहाँ निम्न विवरण वाला चार्ट तैयार किया जाएगा—
a. मटेरियल ऑब्जेक्ट क्रमांक
b. वस्तु का विवरण
c. वस्तु की प्रासंगिकता सिद्ध करने वाला गवाह
नमूना चार्ट
| M.O. क्रमांक | वस्तु का विवरण | सिद्ध करने वाला गवाह |
|---|---|---|
| MO-1 | अपराध में प्रयुक्त हथियार | PW-1 |
| MO-2 | अभियुक्त/पीड़िता के कपड़े | PW-2 |
| MO-3 | मोबाइल फोन / इलेक्ट्रॉनिक वस्तु | PW-3 |
| MO-4 | वाहन | PW-4 |
| MO-5 | पर्स / आभूषण / पहचान पत्र | PW-5 |
5. अत्यधिक साक्ष्य वाले मामलों में विशेष प्रावधान
षड्यंत्र, आर्थिक अपराध या अत्यधिक साक्ष्य वाले मामलों में, जहाँ गवाहों अथवा दस्तावेजों की संख्या बहुत अधिक हो, वहाँ केवल प्रासंगिक एवं भरोसेमंद साक्ष्यों का ही चार्ट तैयार किया जा सकता है, यह स्पष्ट उल्लेख करते हुए कि चार्ट सीमित है।
6. बचाव पक्ष के साक्ष्यों पर भी समान रूप से लागू
उपरोक्त सभी निर्देश बचाव पक्ष द्वारा प्रस्तुत गवाहों एवं साक्ष्यों पर भी समान रूप से लागू होंगे (mutatis mutandis)।
7. सिविल मामलों में संभावित अनुप्रयोग
हालाँकि ये निर्देश मुख्यतः आपराधिक मामलों हेतु हैं, परंतु उच्च न्यायालयों को यह स्वतंत्रता दी जाती है कि वे आवश्यकता अनुसार सिविल मामलों में भी इस प्रकार के प्रारूप अपनाने पर विचार करें।
8. रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश
सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री को निर्देशित किया गया कि इस निर्णय की प्रति सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल को तत्काल भेजी जाए, जिससे पैरा 81 से 90 तक के निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके।
पृष्ठभूमि (Background)
यह मामला जून 2013, कालोल (गुजरात) से संबंधित था, जहाँ एक नाबालिग बच्ची घायल अवस्था में पाई गई। प्रारंभ में अज्ञात व्यक्तियों के विरुद्ध FIR दर्ज की गई। बाद में अभियुक्त को परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर फँसाया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि—
- साक्ष्यों की श्रृंखला (Chain of Custody) प्रमाणित नहीं की गई
- पंच गवाहों के कथनों में विरोधाभास था
- बरामदगी के स्थान का प्रमाण नहीं था
- मेडिकल एवं फॉरेंसिक साक्ष्यों में असंगति थी
न्यायालय ने स्पष्ट किया—
“फॉरेंसिक साक्ष्य का कोई मूल्य नहीं है जब तक कि वस्तुओं को सही प्रकार से सूचीबद्ध, सील, संरक्षित एवं प्रत्येक चरण में ट्रैक न किया जाए।”
इन गंभीर त्रुटियों के कारण परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की श्रृंखला टूट गई और अभियुक्त को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया गया।
प्रकरण शीर्षक
MANOJBHAI JETHABHAI PARMAR (ROHIT) बनाम राज्य गुजरात
उद्धरण
2025 LiveLaw (SC) 1208
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