Thursday, 6 November 2025

156(3) CrPC शिकायत में संज्ञेय अपराध का खुलासा होने पर मजिस्ट्रेट पुलिस को FIR दर्ज करने का निर्देश दे सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट 5 Nov 2025

 156(3) CrPC  शिकायत में संज्ञेय अपराध का खुलासा होने पर मजिस्ट्रेट पुलिस को FIR दर्ज करने का निर्देश दे सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट 5 Nov 2025 

 सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (4 नवंबर) को कहा कि जब शिकायत में आरोपित तथ्य किसी अपराध के घटित होने का खुलासा करते हैं तो मजिस्ट्रेट पुलिस को CrPC की धारा 156(3) (अब BNSS की धारा 175(3)) के तहत FIR दर्ज करने का निर्देश देने के लिए अधिकृत हैं। जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया, जिसमें मजिस्ट्रेट के निर्देश पर CrPC की धारा 156(3) के तहत दर्ज की गई FIR रद्द कर दी गई थी। 

चूंकि मजिस्ट्रेट को दी गई शिकायत में आरोपित तथ्य एक संज्ञेय अपराध के घटित होने का खुलासा करते हैं, इसलिए कोर्ट ने पुलिस जांच के निर्देश देने के मजिस्ट्रेट के आदेश को यह कहते हुए उचित ठहराया कि संज्ञान-पूर्व चरण में मजिस्ट्रेट को केवल यह आकलन करने की आवश्यकता है कि क्या शिकायत एक संज्ञेय अपराध का खुलासा करती है, न कि यह कि आरोप सत्य हैं या प्रमाणित। अपने समर्थन में कोर्ट ने माधव बनाम महाराष्ट्र राज्य, (2013) 5 एससीसी 615 के मामले का हवाला दिया, जहां यह टिप्पणी की गई: - “जब मजिस्ट्रेट को कोई शिकायत प्राप्त होती है तो वह संज्ञान लेने के लिए बाध्य नहीं होता यदि शिकायत में आरोपित तथ्य किसी अपराध के घटित होने का खुलासा करते हैं। मजिस्ट्रेट के पास इस मामले में विवेकाधिकार होता है। 

यदि शिकायत का अध्ययन करने पर वह पाता है कि उसमें आरोपित आरोप एक संज्ञेय अपराध का खुलासा करते हैं और CrPC की धारा 156(3) के तहत जांच के लिए शिकायत को पुलिस को भेजना न्याय के लिए अनुकूल होगा और मजिस्ट्रेट के बहुमूल्य समय को उस मामले की जांच में बर्बाद होने से बचाएगा, जिसकी जांच करना मुख्य रूप से पुलिस का कर्तव्य था तो अपराध का संज्ञान लेने के विकल्प के रूप में उस तरीके को अपनाना उसके लिए उचित होगा।” 

इस मामले में शिकायतकर्ता ने न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (JMFC) से संपर्क किया, क्योंकि पुलिस ने कथित तौर पर हाईकोर्ट को गुमराह करने के लिए इस्तेमाल किए गए जाली किराया समझौते के संबंध में उसकी शिकायत पर कार्रवाई करने में विफल रही। शिकायत और सहायक सामग्री, विशेष रूप से ई-स्टाम्प पेपर के नकली होने की पुष्टि करने वाले आधिकारिक सत्यापन की जांच के बाद JMFC ने CrPC की धारा 156(3) के तहत FIR दर्ज करने का निर्देश दिया। पुलिस ने अनुपालन करते हुए जालसाजी (IPC की धारा 468, 471), धोखाधड़ी (IPC की धारा 420) और आपराधिक षड्यंत्र (IPC की धारा 120बी) सहित अपराधों के लिए एक FIR दर्ज की। हालांकि, हाईकोर्ट ने FIR और मजिस्ट्रेट के आदेश दोनों को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि निर्देश प्रक्रियात्मक त्रुटियों से ग्रस्त है और प्रथम दृष्टया कोई मामला स्थापित नहीं होता। 

हाईकोर्ट के निर्णय से व्यथित होकर शिकायतकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। हाईकोर्ट का निर्णय रद्द करते हुए जस्टिस अमानुल्लाह द्वारा लिखित निर्णय में हाईकोर्ट की इस बात के लिए आलोचना की गई कि उसने जांच के प्रारंभिक चरण में ही हस्तक्षेप किया। इस तथ्य की अनदेखी की कि शिकायत में लगाए गए आरोप एक संज्ञेय अपराध के घटित होने का खुलासा करते हैं। मजिस्ट्रेट के फैसले का समर्थन करते हुए अदालत ने कहा: “तथ्यात्मक स्थिति को देखते हुए JMFC के 18.01.2018 के आदेश में कोई त्रुटि नहीं है। पुलिस द्वारा पूर्ण जांच को उचित ठहराने के लिए पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है। हमारे विचार से JMFC ने मामले को जांच के लिए पुलिस को सौंपना उचित ही किया, क्योंकि JMFC के पास उपलब्ध सामग्री के आधार पर अभियुक्तों के विरुद्ध प्रथम दृष्टया मामला बनता है।” 

तदनुसार, अदालत ने अपील स्वीकार की और आदेश दिया: “इस प्रकार, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों, अभिलेख में उपलब्ध सामग्री और पक्षकारों के वकीलों द्वारा प्रस्तुत तर्कों के समग्र अवलोकन के आधार पर दिनांक 24.07.2019 और 18.11.2021 के प्रथम और द्वितीय आक्षेपित आदेश निरस्त किए जाते हैं। खड़े बाजार पुलिस स्टेशन में दर्ज FIR अपराध संख्या 12/2018 को बहाल किया जाता है। पुलिस को कानून के अनुसार मामले की शीघ्रता से जांच करने का निर्देश दिया जाता है। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि निजी पक्ष पुलिस जांच के दौरान और संबंधित न्यायालय के समक्ष उचित स्तर पर कानून के अनुसार, अपने बचाव/स्थिति को दर्शाने के लिए सामग्री प्रस्तुत करने के लिए स्वतंत्र होंगे।” 

Cause Title: SADIQ B. HANCHINMANI VERSUS THE STATE OF KARNATAKA & ORS.


https://hindi.livelaw.in/supreme-court/s-1563-crpc-once-complaint-discloses-cognizable-offence-magistrate-can-direct-police-to-register-fir-supreme-court-308918

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