Thursday 2 July 2020

प्रताड़ना से ससुराल छोड़ने वाली महिला कहीं से भी दर्ज करा सकती है केस 9 Apr 2019 रूपाली देवी बनाम यूपी

*प्रताड़ना से ससुराल छोड़ने वाली महिला कहीं से भी दर्ज करा सकती है केस 9 Apr 2019* 
*रूपाली देवी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, क्रिमिनल अपील 71 ऑफ 2012*

ससुराल से प्रताड़ित महिलाओं के लिए Supreme Court ने बड़ा फैसला दिया है।

नई दिल्ली। दहेज प्रताड़ना और घरेलु हिंसा की पीड़ित महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई कानून बनाए गए हैं लेकिन कईं बार वक्त पर मामला दर्ज ना होने की वजह से पीड़ित महिला को न्याय नहीं मिल पाता।
लेकिन अब ऐसा नहीं होगा, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि क्रूर व्यवहार या प्रताड़ना के कारण ससुराल छोड़कर मायके आ गई या किसी और जगह शरण लेने वाली महिला जहां शरण लेती है वहीं पर आईपीसी की धारा 498ए (प्रताड़ना) का मुकदमा दर्ज करा सकती है। अब तक महिला को वहीं मामला दर्ज करवाना होता था जहां अपराध हुआ हो।

इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा है कि महिला जहां है वहां की अदालत को उस मुकदमे को सुनने का क्षेत्राधिकार होगा। कोर्ट ने धारा 498ए की व्याख्या करते हुए कहा कि इसमें शारीरिक और मानसिक दोनों प्रताड़नाएं शामिल मानी जाएंगी।

जानकारी के अनुसार, चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ ने दो न्यायाधीशों की पीठों के विरोधाभासी फैसलों के चलते तीन न्यायाधीशों की पीठ को भेजे गए कानूनी सवाल का जवाब देते हुए यह अहम व्यवस्था दी है। रूपाली देवी बनाम उत्तर प्रदेश के इस मामले में कोर्ट ने धारा 498ए की व्याख्या करते हुए उसमें दिए गए क्रूरता के व्यवहार का विश्लेषण किया है।

कोर्ट ने कहा है कि क्रूरता किसी भी तरह की हो सकती है फिर चाहे वो शारीरिक हो या मानसिक। अदालत ने कहा कि 498ए में दी गई क्रूरता की परिभाषा के मद्देनजर ससुराल द्वारा सताई गई महिला के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। पति या रिश्तेदारों की क्रूरता के कारण पत्नी का मानसिक तनाव मायके आने के बाद भी कायम रहता है।
कोर्ट के अनुसार, शारीरिक प्रताड़ना के कारण मिली मानसिक प्रताड़ना, बेइज्जती, गंदी बातें, लड़ाई झगड़े का असर मायके आने के बाद भी महिला पर बना रहता है जबकि वहां उसे शारीरिक प्रताड़ना नहीं मिलती। ऐसे में यह एक अलग अपराध है जो उसके मायके या जहां वह शरण लेती है वहां तक जारी रहता है।

यह अपराध धारा 498ए के तहत क्रूरता माना जाएगा। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के सामने सवाल था कि क्या सताए जाने के कारण ससुराल छोड़ने को मजबूर हुई महिला मायके आकर या जहां वह शरण लेती है वहां सताने वालों के खिलाफ मुकदमा दायर कर सकती है। इस मामले में दो न्यायाधीशों की पीठों के अलग-अलग फैसले थे।

फैसले का यह होगा असर

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के दूरगामी परिणाम होंगे। इससे उन बहुत सी महिलाओं को राहत मिलेगी जो सताए जाने के कारण ससुराल छोड़कर मायके आ जाती हैं। अगर उनका मायका ससुराल से दूर किसी और राज्य में स्थित है तो वे अपने मायके में ससुराल वालों के खिलाफ प्रताड़ना का आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं करा पाती थीं। उन्हें मुकदमा दर्ज कराने के लिए वहीं जाना पड़ता था जहां उनकी ससुराल स्थित होती थी। लेकिन अब सताए जाने के कारण ससुराल छोड़कर मायके या किसी और जगह शरण लेने वाली महिला जहां शरण लेगी वहीं ससुरालियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 498ए (प्रताड़ना) का मुकदमा दर्ज करा सकती है।

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