Monday 22 June 2020

भौतिक तथ्यों को छ‌िपाना वकालत नहीं हैः इलाहाबाद हाईकोर्ट 21 Jun 2020


भौतिक तथ्यों को छ‌िपाना वकालत नहीं हैः इलाहाबाद हाईकोर्ट 21 Jun 2020

 भौतिक तथ्यों को छ‌िपाना वकालत नहीं है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह एक अवमानना ​​अर्जी को खारिज करते हुए कहा कि यह धोखाधड़ी, हेरफेर, पैंतरेबाजी या गलत बयानी है। एक पत्रकार प्रदीप कुमार श्रीवास्तव, और अन्य लोगों ने एक अवमानना ​​आवेदन दायर किया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि वाराणसी विकास प्राधिकरण ने हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच की ओर से पारित आदेश का उल्लंघन किया है, जिसने यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि गंगा के घाटों पर बाढ़ के उच्चतम स्तर से 200 मीटर के भीतर कोई और निर्माण नहीं होगा।  आवेदन पर विचार करते हुए, जस्टिस सूर्य प्रकाश केसरवानी ने कहा कि विचाराधीन कार्य श्री काशी विश्वनाथ विशेष क्षेत्र विकास बोर्ड अधिनियम, 2018 के तहत उचित अनुमति / एनओसी और विशेषज्ञ समिति की सहमति के बाद किया जा रहा है। यह पाया गया है कि इस संबंध में आवेदकों की ओर से तथ्यों को आसानी से छुपा दिया गया है, यह स्वयं अवमानना ​​है। तथ्य के छुपाव को गंभीरता से लेते हुए कोर्ट ने कहा- "जो व्यक्ति अदालत का दरवाजा खटखटाता है, उसे साफ हाथों से आना चाहिए और सभी भौतिक तथ्यों को सामने रखना चाहिए अन्यथा वह अदालत को गुमराह करने का दोषी होगा और उसकी अर्जी या याचिका को खारिज किया जा सकता है। यदि कोई आवेदक गलत बयान देता है, अदालत को गुमराह करने का प्रयास करता है, और भौतिक तथ्यों छुपाता है तो अदालत इसी आधार पर कार्रवाई को खारिज कर सकती है। आवेदक छुपम-छुपाई करने या तथ्यों को मनमाने तरीक से चुनने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।" भौतिक तथ्यों को छ‌िपाना वकालत नहीं है। यह धोखाधड़ी, हेरफेर, पैंतरेबाजी या गलत बयानी है। जनहित में यह नियम निर्लज्ज मुकदमेबाजों को अदालत की प्र‌क्रिया का दुरुपयोग करने से रोकने के लिए बनाया गया है। गंभीर खतरा है फर्जी मुकदमें न्याय‌िक प्रशासन के लिए गंभीर खतरा अदालत ने अवमानना ​​अर्जी को खारिज करते हुए कहा कि इसमें तथ्यों को छुपाय गया है, जो खुद अवमानना की प्रकृति का ​​है। कोर्ट ने कहा कि फर्जी और आधारहीन मुकदमे न्यायिक प्रशासन के लिए एक गंभीर खतरा है। कोर्ट ने कहा, "न्याय‌िक प्रणाली में मुकदमेबाजी से ग्रस्त हैं। हमारे उच्च न्यायालय में नौ लाख पचास हजार से अधिक मामले लंबित हैं। ऐसी स्थिति में, फर्जी और आधारहीन मुकदमें न्यायिक प्रशासन के लिए गंभीर खतरा बन जाता है। वे समय की बर्बादी करते हैं और बुनियादी ढांचे का दुरुपयोग करते हैं। इस प्रकार, जिन संसाधनों को वास्तविक मामलों के निस्तारण के लिए उपयोग किया जाना चाहिए, वे इस मामले की तरह फर्जी और निराधार मामलों को सुनने में बर्बाद हो जाते हैं।"

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