Sunday 7 June 2020

परिसीमा अवधि तब शुरू होती है जब राहत पाने का अधिकार शुरू होता है, न कि उस वक्त जहां से विवाद 'पहली' बार शुरू होता है, लिमिटेशन एक्ट 113 : सुप्रीम कोर्ट


[परिसीमा अधिनियम अनुच्छेद 113] परिसीमा अवधि तब शुरू होती है जब राहत पाने का अधिकार शुरू होता है, न कि उस वक्त जहां से विवाद 'पहली' बार शुरू होता है : सुप्रीम कोर्ट 5 जून 2020 

 सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि परिसीमा अधिनियम के अनुच्छेद 113 के तहत संचालित होने वाले मामलों में परिसीमा अवधि तब शुरू होती है जब राहत पाने का अधिकार शुरू होता है, न कि उस वक्त जहां से विवाद 'पहली'बार शुरू होता है। वादी ने अपने बैंक के खिलाफ एक मुकदमा दायर करके एक अप्रैल 1997 और 31 दिसम्बर 2000 के बीच की अवधि के लिए उसके चालू खाते पर ब्याज की राशि/कमीशन तथा काटी गयी राशि की उचित गणना करने को लेकर एक मुकदमा दायर किया था। अपीलकर्ता ने बैंक द्वारा काटी गयी अत्यधिक राशि वापस दिलाने और उसके खाते में पैसे वापस आने तक की अवधि पर 18 प्रतिशत ब्याज दिलाने का भी अनुरोध किया था। अपीलकर्ता ने 2000 से लेकर उस वक्त बैंक के साथ पत्राचार किया था जब तक बैंक के वरिष्ठ प्रबंधक ने उसे यह नहीं लिखकर भेजा कि बैंक द्वारा सभी कदम नियमों के तहत उठाये गये हैं, इसलिए अपीलकर्ता को आगे इस संबंध में पत्राचार करने की जरूरत नहीं है। बैंक प्रबंधक का यह पत्र अपीलकर्ता को मई और सितम्बर 2002 में भेजा गया था। उसके बाद अपीलकर्ता ने बैंक को कानूनी नोटिस भेजा था, और फिर 2005 में उसने निचली अदालत में मुकदमा दायर किया था। ट्रायल कोर्ट ने नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के नियम 11(डी) के आदेश VII के तहत समय सीमा समाप्त होने संबंधी प्रावधानों के आधार पर मुकदमा खारिज कर दिया था, क्योंकि यह मुकदमा परिसीमा अधिनियम के अनुच्छेद 113 में वर्णित तीन साल की समय सीमा के बाद दायर किया गया था। निचली अदालत ने कहा था कि अपीलकर्ता ने अक्टूबर 2000 में पहली बार मुकदमे का अधिकार प्राप्त होने के बाद की तीन साल की समय सीमा के बाद मुकदमा दायर किया था। निचली अदालत के इसी फैसले को प्रथम अपीलीय अदालत और बाद में हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा था। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विचारनीय मुद्दा यह था कि क्या नागरिक प्रक्रिया संहिता के नियम 11(डी) के आदेश VII का इस्तेमाल करके यह मुकदमा खारिज किया जा सकता है? मुकदमे में किये गये ठोस दावों का उल्लेख करते हुए न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की खंडपीठ ने वादी द्वारा अलग-अलग तारीखों पर बैंक के साथ किये गये पत्राचारों का हवाला दिया। इसके परिप्रेक्ष्य में कोर्ट ने परिसीमा अधिनियम के अनुच्छेद 113 के दायरे पर विचार करना मुनासिब समझा। कोर्ट ने कहा : "ऐसा माना जाता है कि अनुच्छेद 113 में प्रयुक्त अभिव्यक्ति ऐसे मुकदमों से निपटने को लेकर प्रथम खंड के अन्य अनुच्छेदों से अलग है, जैसे- अनुच्छेद 58 (सबसे पहले मुकदमे का अधिकार जब प्राप्त होता है), अनुच्छेद- 59 (जब लेखपत्र या आदेश रद्द करने या निरस्त करने या करार को पहले ही समाप्त करने के बारे में वादी को तथ्यों की जानकारी होती है) और अनुच्छेद 104 (जब वादी को उसके अधिकार से पहली बार वंचित कर दिया जाता है)। ट्रायल कोर्ट द्वारा लिये गये उस दृष्टिकोण में, जिसे पहली अपीलीय अदालत ने और बाद में दूसरी अपील में हाईकोर्ट ने उचित ठहराया है, अनुच्छेद 113 की अभिव्यक्ति को अपरिहार्य बनाया गया होगा कि 'मुकदमा का पहला अधिकार कब प्राप्त होता है?' यह इस प्रावधान को फिर से लिखने तथा विधायी मंशा को अतिक्रमित करने जैसा होगा। हमें यह अवश्य मानना चाहिए कि ऊपर वर्णित प्रावधानों के बीच अंतर को लेकर संसद जागरूक थी और इसीलिए मशविरा के बाद 1963 के अधिनियम के अनुच्छेद 113 में 'मुकदमे का अधिकार कब' की सामान्य अभिव्यक्ति का इस्तेमाल किया था। इसके अलावा यह 1963 के अधिनियम की धारा 22 के तहत आने वाले मुकदमों पर भी लागू होगा।" बेंच ने 'भारत सरकार एवं अन्य बनाम वेस्ट कोस्ट पेपर मिल्स लिमिटेड एवं अन्य (20004)2 एससीसी 747' और 'खत्री होटल्स प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य बनाम भारत सरकार (2011)9 एससीसी 126' में दिये गये अपने पूर्व के दो फैसलों का भी उल्लेख किया। वाद की समीक्षा करते हुए बेंच ने कहा कि वादी ने अंतत: 28 नवम्बर 2003 को और दोबारा सात जनवरी 2005 को कानूनी नोटिस भेजे थे। उसके बाद उसने 23 फरवरी 2005 को मुकदमा दायर किया था। इस तथ्य को भी कार्रवाई के कारण के रूप में लिया जाता है। इसलिए उच्च न्यायालय, प्रथम अपीलीय अदालत और ट्रायल कोर्ट के फैसलों को दरकिनार करते हुए अपील मंजूर की जाती है। केस नं. : सिविल अपील नं. 2514/2020 केस का नाम : शक्ति भोग फुड इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया कोरम: न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी वकील : निश्चल कुमार नीरज और अनुज जैन

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