Wednesday 20 February 2019

सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2018 के पांच महत्वपूर्ण फैसले*- लालाराम मीणा पूर्व न्यायाधीश

*सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2018 के पांच महत्वपूर्ण फैसले* लालाराम मीणा पूर्व न्यायाधीश

        सुप्रीम कोर्ट के लिहाज से यह साल ऐतिहासिक रहा. कोर्ट के कई फैसले समानता और सशक्तिकरण की दिशा में नजीर बने. एक तरफ   *सुप्रीम कोर्ट ने 158 साल पुराने व्यभिचार-रोधी कानून को रद्द कर दिया*  है और कहा है कि व्यभिचार अपराध नहीं है. तो दूसरी तरफ  *धारा 377 को रद्द करते हुए कहा कि अब समलैंगिकता अपराध नहीं है.*  इसके अलावा लंबे समय से आधार की वैधानिकता को लेकर छिड़ी बहस पर भी कोर्ट ने विराम लगा दिया. सुप्रीम कोर्ट ने माना कि आधार आम आदमी की पहचान है और  *कोर्ट ने कुछ बदलावों के साथ आधार की संवैधानिकता को बरकरार रखा.* वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने इस साल एक और ऐतिहासिक फैसला सुनाया.  *कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री पर लगे बैन को हटा दिया.* सियासी दुनिया की बात करें तो विपक्ष राफेल डील को लेकर लंबे समय से सरकार को घेर रहा था, लेकिन  *सुप्रीम कोर्ट ने 14 दिसंबर को राफेल सौदे पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए मोदी सरकार को क्लीन चिट दे दिया.*

*158 साल पुराने व्यभिचार कानून को किया खत्‍म*
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में पांच जजों की संविधान पीठ ने 27 सितंबर को भारतीय आचार दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 497 व्यभिचार (Adultery) कानून को खत्म कर दिया. फैसला सुनाते हुए देश के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश (CJI) दीपक मिश्रा ने कहा, "यह अपराध नहीं होना चाहिए." सुप्रीम कोर्ट ने 158 साल पुराने व्यभिचार-रोधी कानून को रद्द कर दिया है और कहा है कि व्यभिचार अपराध नहीं है.  कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि यह तलाक का आधार हो सकता है, लेकिन यह कानून महिला के जीने के अधिकार पर असर डालता है. कोर्ट ने कहा कि पति महिला का मालिक नहीं है और जो भी व्यवस्था महिला की गरिमा से विपरीत व्यवहार या भेदभाव करती है, वह संविधान के कोप को आमंत्रित करती है. जो प्रावधान महिला के साथ गैरसमानता का बर्ताव करता है, वह असंवैधानिक है. कोर्ट ने कहा कि यह कानून महिला की चाहत और सेक्सुअल च्वॉयस का असम्मान करता है.

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ ने दूसरी बार पलटा अपने पिता का फैसला

*धारा 377 रद्द, SC ने कहा- समलैंगिकता अपराध नहीं*

सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर को एक बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि समलैंगिकता अपराध नहीं है. चीफ़ जस्टिस की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने एकमत से ये फ़ैसला सुनाया. करीब 55 मिनट में सुनाए इस फ़ैसले में धारा 377 को रद्द कर दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को अतार्किक और मनमानी बताते हुए कहा कि LGBT समुदाय को भी समान अधिकार है. धारा 377 के ज़रिए एलजीबीटी की यौन प्राथमिकताओं को निशाना बनाया गया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यौन प्राथमिकता बाइलॉजिकल और प्राकृतिक है. अंतरंगता और निजता किसी की निजी च्वाइस है. इसमें राज्य को दख़ल नहीं देना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि किसी भी तरह का भेदभाव मौलिक अधिकारों का हनन है. धारा 377 संविधान के समानता के अधिकार आर्टिकल 14 का हनन करती है.

*'आधार' की वैधानिकता पर अहम फैसला*
आधार की अनिवार्यता को लेकर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना कि आधार आम आदमी की पहचान है और कोर्ट ने कुछ बदलावों के साथ आधार की संवैधानिकता को बरकरार रखा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार से पैन को जोड़ने का फैसला बरकरार रहेगा. साथ ही कोर्ट ने कहा कि बैंक खाते से आधार को जोड़ना अब जरूरी नहीं. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 38 दिनों तक चली लंबी सुनवाई के बाद 10 मई को मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया था. इसके बाद 26 सितंबर को फैसला सुनाया. अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि मोबाइल और निजी कंपनी आधार नहीं मांग सकती हैं. कोर्ट ने आधार को मोबाइल से लिंक करने का फैसला भी रद्द कर दिया. कोर्ट ने आधार को बैंक खाते से लिंक करने के फैसले को भी रद्द कर दिया और आधार अधिनियम की धारा 57 हटा दी.


*सभी महिलाओं के लिए खोला सबरीमाला मंदिर का दरवाजा*

केरल के सबरीमाला मंदिर (Sabarimala Temple Case) में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने 28 सितंबर को अहम फैसला  सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से अपने फैसले में सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री पर लगे बैन को हटा दिया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब सबरीमाला मंदिर के दरवाजे सभी महिलाओं के लिए खोल दिये गये. फिलहाल 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं थी. फैसला सुनाते हुए जस्टिस चंद्रचूड ने कहा कि क्या संविधान महिलाओं के लिए अपमानजनक बात को स्वीकार कर सकता है ? पूजा से इनकार करना महिला गरिमा से इनकार करना. महिलाओं को भगवान की रचना के छोटे बच्चे की तरह बर्ताव संविधान से आंख मिचौली. वहीं जस्टिस नरीमन में ने कहा कि मंदिर में महिलाओं को भी पूजा का समान अधिकार. ये मौलिक अधिकार है.  जस्टिस चंद्रचूड़ बोले- महिलाओं को भगवान की कमतर रचना मानना संविधान से आंख मिचौली।

*राफेल पर मोदी सरकार को क्लीन चिट*
सुप्रीम कोर्ट ने 14 दिसंबर को राफेल सौदे पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया और मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने क्लीन चिट दे दी है. सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों ने एकमत से अपने फैसले में राफेल सौदे को लेकर सभी याचिकाएं खारिज कर दी हैं और मोदी सरकार को पूरी तरह से क्लीन चिट दे दी है. बता दें कि राफेल पर मोदी सरकार काफी समय से घिरी थी और विपक्ष ने इसे चुनावी हथियार बनाया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस सौदे को लेकर कोई शक नहीं है और कोर्ट इस मामले में अब कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहती है.  विमान खरीद प्रक्रिया पर भी कोई शक नहीं है. कोर्ट ने कहा कि हमने राष्ट्रीय सुरक्षा और सौदे के नियम कायदे दोनों को जजमेंट लिखते समय ध्यान में रखा है. मूल्य और जरूरत भी हमारे ध्यान में हैं. 

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