Wednesday 18 December 2013

लोकपाल बिल



क्या होगा लोकपाल का ढांचा

लोकपाल का एक अध्यक्ष होगा। लोकपाल का अध्यक्ष या तो भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश या फिर सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज या फिर कोई दूसरा महत्वपूर्ण व्यक्ति हो सकता है। लोकपाल में अधिकतम आठ सदस्य हो सकते हैं, जिनमें से आधे न्यायिक पृष्ठभूमि से होंगे। इसके अलावा कम से कम आधे सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ी जाति, अल्पसंख्यकों और महिलाओं में से होने चाहिए। 

कौन नहीं हो सकता लोकपाल का सदस्य?

- संसद सदस्य या किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की विधानसभा का सदस्य। 
- ऐसा व्यक्ति जिसे किसी किस्म के नैतिक भ्रष्टाचार का दोषी पाया गया हो। 
- ऐसा व्यक्ति जिसकी उम्र अध्यक्ष या सदस्य का पद ग्रहण करने तक 45 साल न हुई हो। 
- किसी पंचायत या निगम का सदस्य। 
- ऐसा व्यक्ति जिसे राज्य या केंद्र सरकार की नौकरी से बर्ख़ास्त किया गया हो या हटाया गया हो। 

आगे पढ़ें, लोकपाल की चयन समिति 
लोकपाल की चयन समिति
 
प्रधानमंत्री - अध्यक्ष
लोकसभा के अध्यक्ष - सदस्य
लोकसभा में विपक्ष के नेता - सदस्य
मुख्य न्यायाधीश या उनकी अनुशंसा पर नामित सुप्रीम कोर्ट के एक जज - सदस्य
राष्ट्रपति द्वारा नामित कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति - सदस्य
अध्यक्ष या किसी सदस्य की नियुक्ति इसलिए अवैध नहीं होगी, क्योंकि चयन समिति में कोई पद रिक्त था। 
 
लोकपाल में पद छोड़ने के बाद

- लोकपाल कार्यालय में नियुक्ति ख़त्म होने के बाद अध्यक्ष और सदस्यों पर कुछ काम करने के लिए प्रतिबंध लग जाता है। 
- इनकी अध्यक्ष या सदस्य के रूप में पुनर्नियुक्ति नहीं हो सकती। 
- इन्हें कोई कूटनीतिक ज़िम्मेदारी नहीं दी जा सकती और केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक के रूप में नियुक्ति नहीं हो सकती। इसके अलावा, ऐसी कोई भी ज़िम्मेदारी या नियुक्ति नहीं मिल सकती, जिसके लिए राष्ट्रपति को अपने हस्ताक्षर और मुहर से वारंट जारी करना पड़े। 
- पद छोड़ने के पांच साल बाद तक ये राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, संसद के किसी सदन, किसी राज्य विधानसभा या निगम या पंचायत के रूप में चुनाव नहीं लड़ सकते। 

लोकपाल का कामकाज और अधिकार क्षेत्र

जांच शाखा
- अगर कोई जांच कमेटी मौजूद नहीं है तो भ्रष्टाचार के आरोपी सरकारी कर्मचारी के ख़िलाफ़ शुरुआती जांच के लिए लोकपाल एक जांच शाखा का गठन कर सकता है। इसका नेतृत्व एक निदेशक करेगा। 

- लोकपाल द्वारा गठित ऐसी जांच शाखा के लिए केंद्र सरकार अपने मंत्रालय या विभाग से उतने अधिकारी और कर्मचारी उपलब्ध करवाएगी, जितनी प्राथमिक जांच के लिए लोकपाल को ज़रूरत होगी। 

अभियोजन शाखा

- किसी सरकारी कर्मचारी पर लोकपाल की शिकायत की पैरवी के लिए लोकपाल एक अभियोजन शाखा का गठन करेगा। इसका नेतृत्व एक निदेशक करेगा। 
- लोकपाल द्वारा गठित ऐसी अभियोजन शाखा के लिए केंद्र सरकार अपने मंत्रालय या विभाग से उतने अधिकारी और कर्मचारी उपलब्ध करवाएगी, जितनी प्राथमिक जांच के लिए ज़रूरत होगी। 

अधिकार क्षेत्र
लोकसभा द्वारा 27 दिसंबर, 2011 को पारित विधेयक के अनुसार लोकपाल के क्षेत्राधिकार में प्रधानमंत्री, मंत्री, संसद सदस्य और केंद्र सरकार के समूह ए, बी, सी और डी के अधिकारी और कर्मचारी आते हैं। 
लोकपाल के अधिकार

तलाशी और जब़्तीकरण
- कुछ मामलों में लोकपाल के पास दीवानी अदालत के अधिकार भी होंगे। 
- लोकपाल के पास केंद्र या राज्य सरकार के अधिकारियों की सेवा का इस्तेमाल करने का अधिकार होगा। 

संपत्ति को अस्थाई तौर पर नत्थी (अटैच) करने का अधिकार 
- नत्थी की गई संपत्ति की पुष्टि का अधिकार। 
- विशेष परिस्थितियों में भ्रष्ट तरीक़े से कमाई गई संपत्ति, आय, प्राप्तियों या फ़ायदों को ज़ब्त करने का अधिकार। 
- भ्रष्टाचार के आरोप वाले सरकारी कर्मचारी के स्थानांतरण या निलंबन की सिफ़ारिश करने का अधिकार। 
- शुरुआती जांच के दौरान उपलब्ध रिकॉर्ड को नष्ट होने से बचाने के लिए निर्देश देने का अधिकार। 
- अपना प्रतिनिधि नियुक्त करने का अधिकार। 
- केंद्र सरकार को भ्रष्टाचार के मामलों की सुनवाई के लिए उतनी विशेष अदालतों का गठन करना होगा, जितनी लोकपाल बताए। 
- विशेष अदालतों को मामला दायर होने के एक साल के अंदर उसकी सुनवाई पूरी करना सुनिश्चित करना होगा। 
- अगर एक साल के समय में यह सुनवाई पूरी नहीं हो पाती तो विशेष अदालत इसके कारण दर्ज करेगी और सुनवाई तीन महीने में पूरी करनी होगी। यह अवधि तीन-तीन महीने के हिसाब से बढ़ाई जा सकती है। 
राज्यों में लोकायुक्त
 
- लोकपाल का एक अध्यक्ष होगा। वह राज्य के हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश या फिर हाईकोर्ट का रिटायर जज या फिर कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति हो सकता है। 
 
- लोकायुक्त में अधिकतम आठ सदस्य हो सकते हैं। इनमें से आधे न्यायिक पृष्ठभूमि से होने चाहिए। इसके अलावा कम से कम आधे सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ी जाति, अल्पसंख्यकों और महिलाओं में से होने चाहिए। 
किसी व्यक्ति की लोकायुक्त में नियुक्ति के लिए शर्तें

- न्यायिक सदस्य के रूप में नियुक्ति हो सकती है, अगर वह व्यक्ति हाईकोर्ट के जज हों या रह चुके हों। 

- न्यायिक सदस्य के अलावा सदस्य बनने के लिए पूरी तरह ईमानदार, भ्रष्टाचार निरोधी नीति, पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, सतर्कता, बीमा, बैंकिंग, क़ानून और प्रबंधन के मामलों में कम से कम 25 साल का विशेष ज्ञान और विशेषज्ञता हो। 

कौन नहीं हो सकता

- संसद सदस्य या किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की विधानसभा का सदस्य। 
- ऐसा व्यक्ति जिसे किसी किस्म के नैतिक भ्रष्टाचार का दोषी पाया गया हो। 
- ऐसा व्यक्ति जिसकी उम्र अध्यक्ष या सदस्य का पद ग्रहण करने तक 45 साल न हुई हो। 
- किसी पंचायत या निगम का सदस्य। 
- ऐसा व्यक्ति जिसे राज्य या केंद्र सरकार की नौकरी से बर्ख़ास्त या हटाया गया हो। 
- लोकायुक्त कार्यालय में अपने पद के अलावा किसी लाभ या विश्वास के पद पर हो। 
- किसी राजनीतिक दल से संबंध हो, व्यापार करता हो, पेशेवर के रूप में सक्रिय हो। 
लोकायुक्त की नियुक्ति

मुख्यमंत्री - अध्यक्ष
विधानसभा अध्यक्ष - सदस्य
विधानसभा में विपक्ष के नेता - सदस्य
हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश या उनकी अनुशंसा पर नामित हाईकोर्ट के एक जज - सदस्य
राज्यपाल द्वारा नामित कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति - सदस्य
अध्यक्ष या किसी सदस्य की नियुक्ति इसलिए अवैध नहीं होगी, क्योंकि चयन समिति में कोई पद रिक्त था।
लोकायुक्त की ओर से जांच और अभियोजन
 
- अगर कोई जांच कमेटी मौजूद नहीं है तो भ्रष्टाचार के आरोपी सरकारी कर्मचारी के ख़िलाफ़ शुरुआती जांच के लिए लोकपाल एक जांच शाखा का गठन कर सकता है। इसका नेतृत्व एक निदेशक करेगा। 
- एक जांच निदेशक और एक अभियोजन निदेशक होंगे जो राज्य सरकार में अतिरिक्त सचिव से छोटे पद पर नहीं होंगे। उनका चयन अध्यक्ष राज्य सरकार द्वारा सुझाए गए नामों में से करेंगे। 
- लोकपाल द्वारा गठित ऐसी जांच शाखा के लिए केंद्र सरकार अपने मंत्रालय या विभाग से उतने अधिकारी और कर्मचारी उपलब्ध करवाएगी, जितनी प्राथमिक जांच के लिए लोकपाल को ज़रूरत होगी। 
- अभियोजन शाखा के निदेशक लोकायुक्त की शिकायत पर किसी सरकारी कर्मचारी के ख़िलाफ़ मुक़दमा लड़ेगा। 
 
क्षेत्राधिकार
 
लोकायुक्त भ्रष्टाचार के आरोप लगने पर किसी भी मामले की जांच कर सकता है या करवा सकता है, अगर शिकायत या मामला भ्रष्टाचार से जुड़ा हुआ हो। लोकायुक्त निम्न मामलों में जांच कर सकता हैः
- ऐसा मामला जिसमें वर्तमान मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री शामिल हों। 
- ऐसा मामला जिसमें राज्य सरकार का वर्तमान या पूर्व मंत्री शामिल हो। 
- ऐसा मामला जिसमें राज्य विधानसभा का कोई सदस्य शामिल हो। 
- ऐसा मामला जिसमें राज्य सरकार के अधिकारी या कर्मचारी शामिल हों। 
- ऐसे सभी कर्मचारी राज्य सरकार के कर्मचारी माने जाएंगे जो ऐसे किसी भी संस्थान, बोर्ड, कॉरपोरेशन, अथॉरिटी, कंपनी, सोसायटी, ट्रस्ट या स्वायत्त संस्था में काम करते हों, जिनका गठन संसद या राज्य सरकार के क़ानून द्वारा किया गया हो या राज्य सरकार द्वारा आंशिक या पूर्ण रूप से नियंत्रित या वित्तपोषित हों। 
- ऐसा व्यक्ति शामिल हो जो ऐसी किसी भी सोसायटी, एसोसिएशन का निदेशक, प्रबंधक, सचिव या कोई और अधिकारी हो जो पूर्ण या आंशिक रूप से राज्य सरकार द्वारा वित्तपोषित या अनुदान प्राप्त हो और जिसकी वार्षिक आय सरकार द्वारा तय की गई सीमा से अधिक हो। 
- ऐसा व्यक्ति शामिल हो जो ऐसी किसी भी सोसायटी, एसोसिएशन का निदेशक, प्रबंधक, सचिव या कोई और अधिकारी जिसे जनता से डोनेशन मिलता हो और जिसकी वार्षिक आय राज्य सरकार द्वारा तय की गई सीमा से अधिक हो या या विदेश से प्राप्त होने वाली धनराशि विदेशी चंदा (विनियमन) कानून के तहत 10 लाख रुपए से अधिक हो या फिर केंद्र सरकार द्वारा तय की गई सीमा के अधिक हो। 
 
लोकायुक्त के अधिकार
- लोकायुक्त के पास किसी मामले में जांच एजेंसी के निरीक्षण करने और उसे निर्देश देने का अधिकार है। 
- अगर लोकायुक्त को लगता है कि कोई दस्तावेज़ काम का हो सकता है या किसी जांच से संबंधित हो सकता है तो वह किसी भी जांच एजेंसी को आदेश दे सकता है कि वह उस स्थान की तलाशी ले और उस दस्तावेज़ को ज़ब्त कर ले।

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