Wednesday 9 December 2020

मोटर दुर्घटनाः दावेदार अपने पति की पूरी पेंशन से वंचित हो गई, वह कमाई के नुकसान के लिए मुआवजे की हकदार

 मोटर दुर्घटनाः दावेदार अपने पति की पूरी पेंशन से वंचित हो गई, वह कमाई के नुकसान के लिए मुआवजे की हकदारः इलाहाबाद उच्च न्यायालय 9 Dec 2020 

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि एक दावेदार विधवा, जो अपने पति की पूरी पेंशन से वंचित हो गई, क्योंकि उनकी एक मोटर दुर्घटना में मृत्यु हो गई, वह कमाई के नुकसान के तहत मुआवजे की हकदार है। जस्टिस डॉ कौशल जयेंद्र ठाकर ने कहा कि ट्रिब्यूनल को इस तथ्य पर विचार करना चाहिए था कि अगर उसका पति बच गया होता तो उसे प्रति माह रुपए 28,000/ की राशि मिलती, जो अब आधी हो गई है। यह माना गया कि एक मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण यह नहीं कह सकता है कि चूंकि दावेदार को 'पारिवारिक पेंशन' मिल रही है, इसलिए आय का कोई नुकसान नहीं हुआ है। यह देखना होगा कि यदि उसके पति की घातक दुर्घटना में मृत्यु नहीं हुई होती तो दावेदार को पूरी राशि प्राप्त हो रही होती। 

पृष्ठभूमि सुभद्रा पांडेय ने अतिरिक्त जिला जज, एमएसीटी, कानपुर के आदेश, जिसके तहत मुआवजे के रूप में उन्हें 7% की ब्याज दर के साथ 70,000/- रुपए की राशि प्रदान की गई थी, के खिलाफ एक स‌िविल अपील दायर की थी। अपीलकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता विद्या कांत शुक्ला ने कहा कि दुर्घटना के समय मृतक पति की उम्र 62 वर्ष थी और दावेदार उनकी एकमात्र जीवित कानूनी उत्तराधिकारी है। मृतक एक सेवानिवृत्त रेलवे कर्मचारी था और पेंशन प्राप्त कर रहा था। उनके निधन के बाद, पेंशन आधा हो गई, और अपीलकर्ता को 14,000/ रुपए मिलने लगे, जिससे पता चलता है कि दुर्घटना के कारण उसे 14,000/ रुपए का नुकसान हुआ। 

 शिकायत यह थी कि एमएसीटी ने "बहुत ही अजीब" तरीके से माना था कि चूंक‌ि मृतक को 28,000/ रुपए पेंशन के रूप में मिलते थे, जिसका 50% मृतक पर खुद खर्च होता था और 50% राश‌ि विधवा के लिए उपलब्ध होगी। इस तर्क के आधार पर, अधिकरण ने दावा किया कि दावेदार को अभी भी उक्त 50% पेंशन राशि मिल रही है और इसलिए, उसे कोई नुकसान नहीं हुआ। तदनुसार, इसने कमाई के नुकसान के तहत कोई राशि नहीं दी और 7% ब्याज के साथ केवल 70,000/ रुपए ‌दिए। 

अपीलार्थी ने रामिलाबेन चिनुभाई परमार और अन्य बनाम राष्ट्रीय बीमा कंपनी लिमिटेड और अन्य, 2014 एसीजे 1430 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया। दूसरी ओर उत्तरदाता ने कहा कि आर्थिक लाभ एक अलग मुद्दा है और उक्त निर्णय इस मामले के तथ्यों पर लागू नहीं होगा। जांच - परिणाम उच्च न्यायालय की राय थी कि भले ही वह सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों द्वारा प्रतिपादित निर्भरता के नुकसान के सिद्धांतों का अनुसरण करता है, ट्रिब्यूनल को इस तथ्य पर विचार करना चाहिए कि अपीलकर्ता का पति जीवित होता तो उसे 28,000/ रुपए प्रति माह प्राप्‍त होते, जो अब आधे हो गए हैं। 

 कोर्ट ने कहा, "2013 के आदेश नंबर 3154 (क्षेत्रीय प्रबंधक, यूपीएसआरटीसी बनाम श्रीमती निशा दुबे और अन्य) के प्रथम अपील में इस अदालत के निर्णय के मद्देनजर, पेंशन से किसी कटौती की अनुमति नहीं है। इस मामले में न्यायाधिकरण ने पारिवारिक पेंशन से कटौती के अलावा है, किसी भी राशि की अनुमति नहीं दी है।" खंडपीठ ने अपीलकर्ता को देय मुआवजे की गणना इस प्रकार की- गुणक लागू '7' होगा क्योंकि मृतक 61-65 वर्ष की आयु वर्ग में था। (देखें सरला वर्मा बनाम दिल्ली परिवहन निगम, (2009) 6 एससीसी 121) यदि कच्‍चा आंकड़ा भी माना जाता है, तो भी इसे रुपए 5000 x12x7 = 4,20,000/ रुपए से अधिक माना जा सकता है। इसके अलावा 70,000/ रुपए, जिस पर प्रत्येक तीन वर्षों पर 10% की दर से वृद्धि होगी, यान‌ि 7000 रुपए और। इसलिए, कुल मुआवजा 4,97,000 रुपए होगा। जहां तक ​​ब्याज दर के मुद्दे का सवाल है, न्यायालय ने कहा कि यह राष्ट्रीय बीमा कंपनी लिमिटेड बनाम मन्नत जोहल और अन्य में सुप्रीम कोर्ट नवीनतम निर्णय के मद्देनजर 7.5% होना चाहिए। बेंच ने निष्कर्ष निकाला, "इसलिए, दावा याचिका दायर करने की तारीख से 7.5% की दर से ब्याज के साथ रुपए 4,97,000 की राशि, दावेदार को दी जाती है।" केस टाइटिल: सुभद्रा पांडे बनाम सिद्धार्थ अग्रवाल और अन्य।


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