Sunday 10 May 2020

औपचारिक अपील दायर न करने के बावजूद अभियुक्त सरकार की अपील में दोषसिद्धि को चुनौती दे सकता है : सुप्रीम कोर्ट 10 May 2020


औपचारिक अपील दायर न करने के बावजूद अभियुक्त सरकार की अपील में दोषसिद्धि को चुनौती दे सकता है : सुप्रीम कोर्ट 10 May 2020 

Accused Can Challenge Conviction In Appeal Filed By The State Even If He Did Not Prefer A Formal Appeal: SC सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक अभियुक्त सरकार की अपील में अपराध के तथ्यों एवं अपनी दोषसिद्धि को चुनौती दे सकता है, भले ही उसने औपचारिक तौर पर अपील दायर करने को तरजीह न दी हो। राजस्थान हाईकोर्ट ने हत्या के एक अभियुक्त (मेहराम) को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के बजाय धारा 326 के तहत दोषी करार दिया था। राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के इस निर्णय के खिलाफ अपील दायर की थी और अभियुक्त की दोषसिद्धि आईपीसी की धारा 302 के तहत बहाल करने तथा आजीवन कारावास की सजा दिये जाने का सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया था। Also Read - 'वकीलों को वित्तीय सहायता देने के लिए सरकार को निर्देश नहीं दे सकते', कर्नाटक हाईकोर्ट ने बार काउंसिल को वरिष्ठ अधिवक्ताओं से डोनेशन लेने की सलाह दी अभियुक्त के वकील ने 'चंद्रकांत पाटिल बनाम सरकार (सीबीआई के माध्यम से)', 'सुमेर सिंह बनाम सूरजभान सिंह एवं अन्य' और 'राजस्थान सरकार बनाम रामानन्द' मामलों के निर्णयों तथा दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 377(3) के प्रावधान पर भरोसा जताते हुए दलील दी कि उनके मुवक्किल को आईपीसी की धारा 326 और 148 के तहत दर्ज अपराध के तथ्यों एवं अपनी दोषसिद्धि को चुनौती देने का पूरा अधिकार है, भले ही उसने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ औपचारिक अपील दायर करने को तरजीह न दी हो। न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की खंडपीठ ने इस दलील पर सहमति जताते हुए कहा : Also Read - 'अर्नब गोस्वामी संपादक या पत्रकार नहीं हैं' : भ्रामक जानकारी देने का आरोप लगाते हुए अर्नब के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी अभियुक्त संख्या -5 (मेहराम पुत्र :- छगना राम) की यह दलील न्यायसंगत है कि हाईकोर्ट के संबंधित फैसले के खिलाफ राज्य सरकार की ओर से दायर अपील में भी आईपीसी की धारा 326 एवं 148 के तहत अपराध के तथ्यों एवं दोषसिद्धि को चुनौती देने का उसे हक है। चंद्रकांत पाटिल, सुमेर सिंह और रामानंद मामलों में तय कानून की स्थिति तथा गैर-मुनासिब निर्णय होने की स्थिति में सजा के खिलाफ अपील से संबंधित सीआरपीसी की धारा 377(3) के प्रावधानों के तहत अभियुक्त अपनी रिहाई या सजा कम करने का निवेदन कर सकता है। कोर्ट ने हालांकि, राज्य सरकार की अपील आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 326 के बजाय धारा 304 (पार्ट-1) और धारा 148 के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया। उसे धारा 304 (पार्ट-1) के तहत अपराध के लिए 10 वर्ष के साधारण कारावास और धारा 148 के तहत अपराध के लिए छह माह के साधारण कारावास की सजा सुनाई गयी। केस नं.- क्रिमिनल अपील नं. 1894/2010 केस का नाम : राजस्थान सरकार बनाम मेहराम एवं अन्य कोरम : न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी वकील : सीनियर एडवोकेट डॉ. मनीष सिंघवी और सुशील कुमार जैन

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