बालकों की चोटों के बारे में प्रतिकर मल्लिकार्जुन (मास्टर) मामला - MACT
बालकों
की
चोटों
के
बारे
में
प्रतिकर
-
2013 (iii) दु0मु0प्र0 444 (एस0सी0)
उच्चतम न्यायालय
न्यायमूर्तिगण: माननीय ज्ञान सुधा मिश्रा
माननीय कुरियन जोसेफ
मल्लिकार्जुन (मास्टर)
उच्चतम न्यायालय
न्यायमूर्तिगण: माननीय ज्ञान सुधा मिश्रा
माननीय कुरियन जोसेफ
मल्लिकार्जुन (मास्टर)
बनाम
विभागीय
प्रबंधक,
नेशनल
इंश्योरेन्स
कंपनी
लिमिटेड
एवं
एक
अन्य
{सिविल अपील सं0 7130 वर्ष 2013(वि0अ0या0(सिविल)सं0 1676 वर्ष 2012 से उद्भूत), निर्णीत दिनांक 26 अगस्त 2013 }
मोटर वाहन अधिनियम 1988 - धारा 173- मुआवजा- न्यायोचित तथा उपयुक्त मुवाउजा- अभिवृद्धि- अपीलार्थी उपहृत की आयु 12 वर्ष- उसे अनेक उपहतिया हुयीं- दुर्घटना के परिणामस्वरूप असंख्य निर्योग्यताए विकसित हुयी- दाहिने निचले अंग की निर्योग्यता 34% और संपूर्ण शरीर की निर्योग्यता 18% निर्धारित की गयी- अधिकरण ने रूपये 63,500 का मुवाउजा अधिनिर्णीत किया- उच्च न्यायालय ने मुवाउजे को रूपये 1,09,500 तक वर्द्धित किया- यह अभिवृद्धि ’’ भावी सुविधाओं की क्षति’’ के प्रति रूपये 50,000 के रूप में की गयी जबकि अधिकरण ने केवल रूपये 10,000 निर्धारित किया था- मुवाउजे की अभिवृद्धि के लिये अपील- अभिनिर्धारित, अपीलार्थी की निर्योग्यता 18% निर्धारित की गयी- अतः मुवाउजा रूपये 3,75,000 तक वर्द्धित। {पैरा 3 से 7 एवं 12}
निर्दिष्ट वाद:
(1995) 1 एस.सी.सी. 551: 1996 (स) दु0 मु0 प्र0 83 (एस0 सी0): (2008) 7 एस0 सी0 सी0 613: 2008 (ससस) दु0 मु0 प्र0 433 (एस0 सी0): 2004 ए0 सी0 जे0 1396: जे0 टी0 2013 (3) एस0 सी0 311: 2013 (ससस) दु0 मु0 प्र0 7 (एस0 सी0)निर्णय
कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति- अनुमति प्रदान की गयी।
2. इस मामले में विचारण हेतु उद्भूत होने वाला मुख्य प्रश्न यह है कि मोटर दुर्घटना में निर्योग्यता सहन करने वाले बालक को अधिनिर्णीत किये जाना न्यायोचित और उपयुक्त मुआवजा क्या होगा।
निर्विवादित तथ्य
3. 12 वर्षीय अपीलार्थी को 5 जून, 2006 को एक मोटर साईकिल द्वारा टक्कर मार दी गयी थी। उसे निम्नलिखित उपहतिया हुयी थी:
(क) (दाहिना) निचला 1/3 भाग पांव में रचना विकार, संचलन सीमित, अस्थिभंग का रोग निर्णय
(ख) पीछे की ओर बायीं कुहनी के जोड़ के उपर 4x1 सेमी आकार के दो खरोंच।
(ग) तर्जनी उंगली के नीचे के भाग में दाहिने हाथ में पृष्ठतल पहलू पर खरोंच।
4. मोटर साईकिल सवार की उपेक्षा साबित हो गयी थी। उस बालक का आंतरिक रोगी के रूप में 5 जून, 2006 से 1 अगस्त 2006 तक 58 दिनों तक उपचार किया गया था। 24 जून, 2006 को उसकी शल्यक्रिया की गयी थी। छुट्टी दिये जाने के छह महीने के पश्चात् उपचारोपरान्त चिकित्सक द्वारा उसका परीक्षण किया गया था। साक्ष्य से यह प्रकट है कि रोगी को निम्नलिखित असुविधायें/निर्योग्यतायें हुयी थी, अर्थात्:
(i) रोगी दाहिनी ओर लॅगड़ा कर चलता है।
(ii) (दाहिने) पांव के दोनों ओर शल्यक्रिया के निशानो पाव के 1/3 हिस्से पर चिन्ह।
(iii) दाहिने निचले अंग का 1.5 सेमी छोटा होना।
(iv) दाहिने घुटने के संचलन में 30% की कमी।
(v) दाहिने घुटने ग्रेन iv के विरूद्ध ग्रेन v के चारों ओर मांसपेशियों की शक्ति में कमी।
(vi) रखने के संचलन में 20% की कमी।
(vii) (दाहिने) रखने के चारों ओर मांसपेशियों की शक्ति ग्रेन v के विरूद्ध iv है।
(viii) एक्से-रे सं0 3791 दिनांकित 15 फरवरी, 2007 के परीक्षण पर यह दर्शित होता है कि दाहिने पाव की हडडी का अस्थिभंग ठीक से जुड़ा नहीं है टिबिया फिबुला में अस्थिभंग के जोड़ पर गलत रीति से प्लेट और पंेच के साथ।
5. शल्य चिकित्सक ने दाहिने निचले अंग की निर्योग्यता 34% निर्धारित की थी और संपूर्ण शरीर की निर्योग्यता 18%।
6. दाखिल की गयी याचिका में दावा अभिकरण ने जहा रूपये 4,00,000 के मुआवजे का दावा किया था, निम्नलिखित शीर्षो पर रूपये 63,500 का मुआवजा अधिनिर्णीत किया था:
शीर्ष मुआवजे की राशि
पीड़ा एवं व्यथा रूपये 25,000
माता-पिता को कारित असुविधा रूपये 10,000
चिकित्सा व्यय रूपये 4,500
भावी सुविधाओं की क्षति रूपये 10,000
परिवहन, पौष्टिक आहार व्यय रूपये 4,000
भावी शल्यक्रिया रूपये 10,000
कुल रूपये 63,500
7. उच्च न्यायालय के समक्ष अपील किये जाने पर मुआवजा रूपये 1,09,500 वर्द्धित कर दिया गया था। यह अभिवृद्धि उच्च रीति से ’’ भावी सुविधाओं की क्षति’’ के शीर्ष के अधीन की गयी थी जिसमें अपीलार्थी को रूपये 50,000 अधिनिर्णीत किये गये थे। अपीलार्थी ने अब संतुष्ट न होकर यह विशेष अनुमति याचिका दाखिल की है।
8. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अधिकरण और उच्च न्यायालय दोनों ने इस मामले में उपलब्ध चिकित्सकीय साक्ष्य का उचित मूल्यांकन नहीं किया है। बालक की आयु तथा निर्योग्यता को परिणामित करने वाली उसकी शारीरिक अंग रचना में कमी का उल्लेख नहीं किया जा सका है। जैसे कि आर0 डी0 हत्तंगड़ी बनाम मेसर्स पेस्ट कण्ट्रोल (इंडिया) (प्र0) लि0 एवं अन्य, (1995) 1 एस0 सी0 सी0 551: 1996 (i) दु0 मु0 प्र0 83 (एस0 सी0) के मामले में, इस न्यायालय के द्वारा अभिनिर्धारित किया गया है , और आर्थिक क्षतिपूर्ति का निर्धारण करते समय, एक पीडित बालक के मामले में, मानसिक और शारीरिक आघात, पीड़ा एवं व्यथा जो सहन की गयी है और सहन किये जाने हेतु संभाव्य है, जीवन में सुविधाओं की क्षति के लिए को अग्रेतर क्षतिपूर्ति, जैसे दौड़ने में, संक्रिय खेलकूद इत्यादि के भागीदारी, इत्यादि, असुविधा, कठिनाई, परेशानी, निराशा, कुण्ठा इत्यादि के लिए क्षतिपूर्ति पर विशेष आचरण आवश्यक है। एक बालक के लिए उसके जीवन का उत्तम भाग अभी शेष है। एक पीडित बालक के द्वारा किये गये दावे पर विचार करते समय, एक से अधिक कारणों से, मोटर वाहन अधिनियम की द्वितीय अनुसूची के अनुसार संरचना सूत्र का अनुसरण करना अनुचित और अनुपयुक्त होगा। इस सूत्र में कुल बल आर्थिक क्षतिपूर्ति पर है। बालकों की कोई आय नहीं होती है। अर्जन न करने वाले व्यक्तियो के लिए द्वितीय अनुसूची मे एकमात्र रूपये 15,000 प्रतिवर्ष की कल्पित आय का संकेत है। एक बालक की तुलना ऐसे अर्जन न करने वाले व्यक्ति के साथ नहीं की जा सकेगी। इस कारण मुआवजे की संगणना गैर आर्थिक शीर्षो के अधीन परिगणित किया जाना होगा, उपचार किये गये/ और/ या किये जाने वाले उपचार, परिवहन, परिचर्चा में सहायता इत्यादि के लिए उपगत राशि के अतिरिक्त। बालक पीडित के मामलों में क्षतिपूर्ति के मुख्य तत्व है, पीड़ा, आघात, कुण्ठा, स्वस्थ तथा संचलित हाथ पैरो से जुड़े आनंद और सामान्य आमोद प्रमोद से वंचित किया जाना। अधिनिर्णीत किये गये मुआवजे से बालक कुछ प्राप्त करने योग्य हो सके और ऐसी जीवन शैली विकसित कर सके जो कुछ सीमा तक उस असुविधा या परेशानी को कम कर सके, जो निर्योग्यता से परिणामित हुयी है। निर्योग्यता के लिए युक्तियुक्त मुआवजे से सभी गैर आर्थिक क्षतिपूर्ति की पूर्ति हो जानी चाहिए। अन्य शब्दों में, इस शीर्ष के अतिरिक्त, केवल उपचार हेतु वास्तविक व्ययों, परिचर्चा, परिवहन, इत्यादि के लिए ही दावा शेष रह जाएगा।
9. सपना बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड एवं एक अन्य, (2008) 7 एस0 सी0 सी0 613: 2008 (iii) दु0 मु0 प्र0 433 (एस0 सी0) के मामले में, एक 12 वर्षीय लड़की को उसके बाये पैर में 90% निर्योग्यता हुयी थी। इस न्यायालय ने इस शीर्षों पर रूपये 2,00,000 की एकमुश्त राशि प्रदान की थी।
10. इरन्ना बनाम मोहमदली खादरसाब मुल्ला एवं एक अन्य, 2004 एस0 सी0 जे0 1396 के मामले मे, कर्नाटक उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने 80% स्थायी निर्योग्यता सहन करने वाले बालक को इन शीर्षो पर 4,00,000 की धनराशि अधिनिर्णीत की थी।
11. कु0 मिशाएल बनाम रिजनल मैनेजर, ओरिएण्टल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड एवं एक अन्य, जे0 टी0 2013 (3) एस0 सी0 311: 2013 (iii) दु0 मु0 प्र0 7 (एस0 सी0) के मामलें में, इस न्यायालय ने कुल 16% की स्थायी निर्योग्यता के साथ दोनों पैरों में अस्थिभंग हुए एक आठ वर्षीय बालक के मामले पर विचार किया था। यह अभिनिर्धारित किया गया था कि वह बालक इन मदों पर रूपये 3,80,000 की राशि का हकदार होना चाहिए।
12. यद्यपि मोटर वाहन दुर्घटना के कारण निर्योग्यता सहन करने वाले बालकों के मामले में प्रतीक मुआवजे का निर्धारण करना कठिन होता है, सुसंगत कारकों, दृष्टांतों और विभिन्न उच्च न्यायालय के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए, हमारा अभिमत यह है कि उपचार, परिचर्चा इत्यादि के लिए वास्तविक व्ययों के अतिरिक्त अन्य सभी शीर्षो पर युक्तियुक्त मुआवजा, यदि निर्योग्यता 10% से उपर और संपूर्ण शरीर के लिए 30% तक हो तो तीन लाख रूपये 60% तक चार लाख रूपये, 90% तक 5 लाख रूपये और 90% उसे 6 लाख रूपये होना चाहिए। 10% स्थायी निर्योग्यता तक के लिए उसे एक लाख रूपये होना चाहिए जब तक विभिन्न मापदंड हेतु आपवादिक परिस्थितिया न हों। वर्तमान मामले में निर्योग्यता 18% तक है। अपीलार्थी लगभग दो महीने की लंबी अवधि तक अस्पताल में भर्ती रहा जिससे असुविधा तथा माता पिता को आय की क्षति भी हुयी। अतः अपीलार्थी निम्नानुसार मुआवजा प्राप्त करने की हकदार होगी:
शीर्ष मुआवजे की धनराशि
1- पहले ही सहन की गयी पीड़ा
मोटर वाहन अधिनियम 1988 - धारा 173- मुआवजा- न्यायोचित तथा उपयुक्त मुवाउजा- अभिवृद्धि- अपीलार्थी उपहृत की आयु 12 वर्ष- उसे अनेक उपहतिया हुयीं- दुर्घटना के परिणामस्वरूप असंख्य निर्योग्यताए विकसित हुयी- दाहिने निचले अंग की निर्योग्यता 34% और संपूर्ण शरीर की निर्योग्यता 18% निर्धारित की गयी- अधिकरण ने रूपये 63,500 का मुवाउजा अधिनिर्णीत किया- उच्च न्यायालय ने मुवाउजे को रूपये 1,09,500 तक वर्द्धित किया- यह अभिवृद्धि ’’ भावी सुविधाओं की क्षति’’ के प्रति रूपये 50,000 के रूप में की गयी जबकि अधिकरण ने केवल रूपये 10,000 निर्धारित किया था- मुवाउजे की अभिवृद्धि के लिये अपील- अभिनिर्धारित, अपीलार्थी की निर्योग्यता 18% निर्धारित की गयी- अतः मुवाउजा रूपये 3,75,000 तक वर्द्धित। {पैरा 3 से 7 एवं 12}
निर्दिष्ट वाद:
(1995) 1 एस.सी.सी. 551: 1996 (स) दु0 मु0 प्र0 83 (एस0 सी0): (2008) 7 एस0 सी0 सी0 613: 2008 (ससस) दु0 मु0 प्र0 433 (एस0 सी0): 2004 ए0 सी0 जे0 1396: जे0 टी0 2013 (3) एस0 सी0 311: 2013 (ससस) दु0 मु0 प्र0 7 (एस0 सी0)निर्णय
कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति- अनुमति प्रदान की गयी।
2. इस मामले में विचारण हेतु उद्भूत होने वाला मुख्य प्रश्न यह है कि मोटर दुर्घटना में निर्योग्यता सहन करने वाले बालक को अधिनिर्णीत किये जाना न्यायोचित और उपयुक्त मुआवजा क्या होगा।
निर्विवादित तथ्य
3. 12 वर्षीय अपीलार्थी को 5 जून, 2006 को एक मोटर साईकिल द्वारा टक्कर मार दी गयी थी। उसे निम्नलिखित उपहतिया हुयी थी:
(क) (दाहिना) निचला 1/3 भाग पांव में रचना विकार, संचलन सीमित, अस्थिभंग का रोग निर्णय
(ख) पीछे की ओर बायीं कुहनी के जोड़ के उपर 4x1 सेमी आकार के दो खरोंच।
(ग) तर्जनी उंगली के नीचे के भाग में दाहिने हाथ में पृष्ठतल पहलू पर खरोंच।
4. मोटर साईकिल सवार की उपेक्षा साबित हो गयी थी। उस बालक का आंतरिक रोगी के रूप में 5 जून, 2006 से 1 अगस्त 2006 तक 58 दिनों तक उपचार किया गया था। 24 जून, 2006 को उसकी शल्यक्रिया की गयी थी। छुट्टी दिये जाने के छह महीने के पश्चात् उपचारोपरान्त चिकित्सक द्वारा उसका परीक्षण किया गया था। साक्ष्य से यह प्रकट है कि रोगी को निम्नलिखित असुविधायें/निर्योग्यतायें हुयी थी, अर्थात्:
(i) रोगी दाहिनी ओर लॅगड़ा कर चलता है।
(ii) (दाहिने) पांव के दोनों ओर शल्यक्रिया के निशानो पाव के 1/3 हिस्से पर चिन्ह।
(iii) दाहिने निचले अंग का 1.5 सेमी छोटा होना।
(iv) दाहिने घुटने के संचलन में 30% की कमी।
(v) दाहिने घुटने ग्रेन iv के विरूद्ध ग्रेन v के चारों ओर मांसपेशियों की शक्ति में कमी।
(vi) रखने के संचलन में 20% की कमी।
(vii) (दाहिने) रखने के चारों ओर मांसपेशियों की शक्ति ग्रेन v के विरूद्ध iv है।
(viii) एक्से-रे सं0 3791 दिनांकित 15 फरवरी, 2007 के परीक्षण पर यह दर्शित होता है कि दाहिने पाव की हडडी का अस्थिभंग ठीक से जुड़ा नहीं है टिबिया फिबुला में अस्थिभंग के जोड़ पर गलत रीति से प्लेट और पंेच के साथ।
5. शल्य चिकित्सक ने दाहिने निचले अंग की निर्योग्यता 34% निर्धारित की थी और संपूर्ण शरीर की निर्योग्यता 18%।
6. दाखिल की गयी याचिका में दावा अभिकरण ने जहा रूपये 4,00,000 के मुआवजे का दावा किया था, निम्नलिखित शीर्षो पर रूपये 63,500 का मुआवजा अधिनिर्णीत किया था:
शीर्ष मुआवजे की राशि
पीड़ा एवं व्यथा रूपये 25,000
माता-पिता को कारित असुविधा रूपये 10,000
चिकित्सा व्यय रूपये 4,500
भावी सुविधाओं की क्षति रूपये 10,000
परिवहन, पौष्टिक आहार व्यय रूपये 4,000
भावी शल्यक्रिया रूपये 10,000
कुल रूपये 63,500
7. उच्च न्यायालय के समक्ष अपील किये जाने पर मुआवजा रूपये 1,09,500 वर्द्धित कर दिया गया था। यह अभिवृद्धि उच्च रीति से ’’ भावी सुविधाओं की क्षति’’ के शीर्ष के अधीन की गयी थी जिसमें अपीलार्थी को रूपये 50,000 अधिनिर्णीत किये गये थे। अपीलार्थी ने अब संतुष्ट न होकर यह विशेष अनुमति याचिका दाखिल की है।
8. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अधिकरण और उच्च न्यायालय दोनों ने इस मामले में उपलब्ध चिकित्सकीय साक्ष्य का उचित मूल्यांकन नहीं किया है। बालक की आयु तथा निर्योग्यता को परिणामित करने वाली उसकी शारीरिक अंग रचना में कमी का उल्लेख नहीं किया जा सका है। जैसे कि आर0 डी0 हत्तंगड़ी बनाम मेसर्स पेस्ट कण्ट्रोल (इंडिया) (प्र0) लि0 एवं अन्य, (1995) 1 एस0 सी0 सी0 551: 1996 (i) दु0 मु0 प्र0 83 (एस0 सी0) के मामले में, इस न्यायालय के द्वारा अभिनिर्धारित किया गया है , और आर्थिक क्षतिपूर्ति का निर्धारण करते समय, एक पीडित बालक के मामले में, मानसिक और शारीरिक आघात, पीड़ा एवं व्यथा जो सहन की गयी है और सहन किये जाने हेतु संभाव्य है, जीवन में सुविधाओं की क्षति के लिए को अग्रेतर क्षतिपूर्ति, जैसे दौड़ने में, संक्रिय खेलकूद इत्यादि के भागीदारी, इत्यादि, असुविधा, कठिनाई, परेशानी, निराशा, कुण्ठा इत्यादि के लिए क्षतिपूर्ति पर विशेष आचरण आवश्यक है। एक बालक के लिए उसके जीवन का उत्तम भाग अभी शेष है। एक पीडित बालक के द्वारा किये गये दावे पर विचार करते समय, एक से अधिक कारणों से, मोटर वाहन अधिनियम की द्वितीय अनुसूची के अनुसार संरचना सूत्र का अनुसरण करना अनुचित और अनुपयुक्त होगा। इस सूत्र में कुल बल आर्थिक क्षतिपूर्ति पर है। बालकों की कोई आय नहीं होती है। अर्जन न करने वाले व्यक्तियो के लिए द्वितीय अनुसूची मे एकमात्र रूपये 15,000 प्रतिवर्ष की कल्पित आय का संकेत है। एक बालक की तुलना ऐसे अर्जन न करने वाले व्यक्ति के साथ नहीं की जा सकेगी। इस कारण मुआवजे की संगणना गैर आर्थिक शीर्षो के अधीन परिगणित किया जाना होगा, उपचार किये गये/ और/ या किये जाने वाले उपचार, परिवहन, परिचर्चा में सहायता इत्यादि के लिए उपगत राशि के अतिरिक्त। बालक पीडित के मामलों में क्षतिपूर्ति के मुख्य तत्व है, पीड़ा, आघात, कुण्ठा, स्वस्थ तथा संचलित हाथ पैरो से जुड़े आनंद और सामान्य आमोद प्रमोद से वंचित किया जाना। अधिनिर्णीत किये गये मुआवजे से बालक कुछ प्राप्त करने योग्य हो सके और ऐसी जीवन शैली विकसित कर सके जो कुछ सीमा तक उस असुविधा या परेशानी को कम कर सके, जो निर्योग्यता से परिणामित हुयी है। निर्योग्यता के लिए युक्तियुक्त मुआवजे से सभी गैर आर्थिक क्षतिपूर्ति की पूर्ति हो जानी चाहिए। अन्य शब्दों में, इस शीर्ष के अतिरिक्त, केवल उपचार हेतु वास्तविक व्ययों, परिचर्चा, परिवहन, इत्यादि के लिए ही दावा शेष रह जाएगा।
9. सपना बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड एवं एक अन्य, (2008) 7 एस0 सी0 सी0 613: 2008 (iii) दु0 मु0 प्र0 433 (एस0 सी0) के मामले में, एक 12 वर्षीय लड़की को उसके बाये पैर में 90% निर्योग्यता हुयी थी। इस न्यायालय ने इस शीर्षों पर रूपये 2,00,000 की एकमुश्त राशि प्रदान की थी।
10. इरन्ना बनाम मोहमदली खादरसाब मुल्ला एवं एक अन्य, 2004 एस0 सी0 जे0 1396 के मामले मे, कर्नाटक उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने 80% स्थायी निर्योग्यता सहन करने वाले बालक को इन शीर्षो पर 4,00,000 की धनराशि अधिनिर्णीत की थी।
11. कु0 मिशाएल बनाम रिजनल मैनेजर, ओरिएण्टल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड एवं एक अन्य, जे0 टी0 2013 (3) एस0 सी0 311: 2013 (iii) दु0 मु0 प्र0 7 (एस0 सी0) के मामलें में, इस न्यायालय ने कुल 16% की स्थायी निर्योग्यता के साथ दोनों पैरों में अस्थिभंग हुए एक आठ वर्षीय बालक के मामले पर विचार किया था। यह अभिनिर्धारित किया गया था कि वह बालक इन मदों पर रूपये 3,80,000 की राशि का हकदार होना चाहिए।
12. यद्यपि मोटर वाहन दुर्घटना के कारण निर्योग्यता सहन करने वाले बालकों के मामले में प्रतीक मुआवजे का निर्धारण करना कठिन होता है, सुसंगत कारकों, दृष्टांतों और विभिन्न उच्च न्यायालय के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए, हमारा अभिमत यह है कि उपचार, परिचर्चा इत्यादि के लिए वास्तविक व्ययों के अतिरिक्त अन्य सभी शीर्षो पर युक्तियुक्त मुआवजा, यदि निर्योग्यता 10% से उपर और संपूर्ण शरीर के लिए 30% तक हो तो तीन लाख रूपये 60% तक चार लाख रूपये, 90% तक 5 लाख रूपये और 90% उसे 6 लाख रूपये होना चाहिए। 10% स्थायी निर्योग्यता तक के लिए उसे एक लाख रूपये होना चाहिए जब तक विभिन्न मापदंड हेतु आपवादिक परिस्थितिया न हों। वर्तमान मामले में निर्योग्यता 18% तक है। अपीलार्थी लगभग दो महीने की लंबी अवधि तक अस्पताल में भर्ती रहा जिससे असुविधा तथा माता पिता को आय की क्षति भी हुयी। अतः अपीलार्थी निम्नानुसार मुआवजा प्राप्त करने की हकदार होगी:
शीर्ष मुआवजे की धनराशि
1- पहले ही सहन की गयी पीड़ा
एवं
व्यथा तथा वह जो भविष्य
में सहन करनी पड़ेगी,
मानसिक तथा
शारीरिक आघात, कठिनाई,
असुविधा, इत्यादि और स्थायी
निर्योग्यता के कारण जीवन में
सुविधाओं की
क्षति। रूपये 3,00,000
2-असुविधा, परेशानी और अस्पताल में भर्ती रहने की अवधि के दौरान माता-पिता को आय की क्षति। रूपये 25,000
3- 58 दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहने केदौरान चिकित्सकीय तथा संबंधित व्यय। रूपये 25,000
2-असुविधा, परेशानी और अस्पताल में भर्ती रहने की अवधि के दौरान माता-पिता को आय की क्षति। रूपये 25,000
3- 58 दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहने केदौरान चिकित्सकीय तथा संबंधित व्यय। रूपये 25,000
4-अस्थिभंग के गलत जुड़ने को ठीक
करने हेतु भावी चिकित्सा व्ययों
के साथ ऐसी उपचार हेतु अन्य व्यय रूपये 25,000
कुल 3,75,000
13. एम0 एफ0 ए0 सं0 1146 वर्ष 2008 में उच्च न्यायालय के आक्षेपित निर्णय को तदनुसार उपान्तरित किया जाता है। दावाकर्ता याचिका की तिथि से 6% प्रतिवर्ष की दर पर ब्याज के साथ कुल रूपये 3,75,000 के मुवाउजे की हकदार होगी। प्रथम प्रत्यर्थी-बीमा कंपनी को आज से दो महीनों के भीतर ब्याज के साथ मुआवजे की वर्द्धित राशि को निक्षेप करने का निर्देश दिया जाता है। इस प्रकार निक्षेप किये जाने पर अपीलार्थी प्रत्याहरण हेतु युक्तियुक्त आदेशों के लिए अभिकरण के समक्ष आदेश कर सकेगी। अपील उपरोक्तानुसार अनुज्ञात की जाती है।
14. व्ययों के संबंध में कोई आदेश नहीं होगा।
-अपील अनुज्ञात
कुल 3,75,000
13. एम0 एफ0 ए0 सं0 1146 वर्ष 2008 में उच्च न्यायालय के आक्षेपित निर्णय को तदनुसार उपान्तरित किया जाता है। दावाकर्ता याचिका की तिथि से 6% प्रतिवर्ष की दर पर ब्याज के साथ कुल रूपये 3,75,000 के मुवाउजे की हकदार होगी। प्रथम प्रत्यर्थी-बीमा कंपनी को आज से दो महीनों के भीतर ब्याज के साथ मुआवजे की वर्द्धित राशि को निक्षेप करने का निर्देश दिया जाता है। इस प्रकार निक्षेप किये जाने पर अपीलार्थी प्रत्याहरण हेतु युक्तियुक्त आदेशों के लिए अभिकरण के समक्ष आदेश कर सकेगी। अपील उपरोक्तानुसार अनुज्ञात की जाती है।
14. व्ययों के संबंध में कोई आदेश नहीं होगा।
-अपील अनुज्ञात
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