क्या न्यायालय पुलिस द्वारा किसी अपराध
के संबंध में किये जा रहे अनुसंधान में
हस्तक्षेप कर न्यायालय के मतानुसार
प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के निर्देश दे सकता
है एवं क्या न्यायालय पुलिस को किसी
व्यक्ति को गिरफ्तार करने के निर्देश दे
सकता है ?
किसी संज्ञेय अपराध के संबंध में पुलिस को
अनुसंधान की विधिक अधिकारिता होती है एवं
अन्वेषाधीन प्रकरण में वांछित अभियक्त को
गिरफ्तार करने के संबंध में भी पुलिस को
विवेकाधिकार प्राप्त होता है ।
न्यायालय को किसी अपराध के संबंध में
पुलिस द्वारा किये जा रहे अनुसंधान में
हस्तक्षेप करने की अधिकारिता प्राप्त नहीं है
और न ही न्यायालय किसी अनुसंधानकर्ता
अभिकरण (Investigation Agency)
को यह निर्देश दे सकता है कि वह न्यायालय के
मतानुसार अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करे या
प्रकरण समाप्त कर दे । इस संबंध में
माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्याय दृष्टांत
बिहार राज्य एवं अन्य विरूद्ध जे.ए.
सलदाना एवं अन्य, ए.आई.आर. 1980 सु.
को. 326 एवं एम.सी. अब्राहम एवं अन्य
विरूद्ध महाराष्टं राज्य एवं अन्य,
2003 एस.सी.सी. (क्रि) 628 तथा माननीय
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा न्याय दृष्टांत
गिरराज शर्मा विरूद्ध मध्यप्रदेष राज्य एवं
अन्य, 2006 (3) एम.पी.एच.टी. 4 (एन.ओ.
सी.) में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत अवलोकनीय है ।
इसी प्रकार न्यायालय अन्वेषण के दौरान
किसी अभियुक्त को गिरफ्तार करने का
निर्देश भी नहीं दे सकता है और ऐसा करना
अनुसंधान में अनुचित हस्तक्षेप करने के समान
होगा क्योंकि गिरफ्तार करने की शक्ति
अनुसंधान कर्ता अभिकरण के विवेकाधिकार के
अंतर्गत आती है । (देखिये एम. सी. अब्राहम
अपरोक्तानुसार)
के संबंध में किये जा रहे अनुसंधान में
हस्तक्षेप कर न्यायालय के मतानुसार
प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के निर्देश दे सकता
है एवं क्या न्यायालय पुलिस को किसी
व्यक्ति को गिरफ्तार करने के निर्देश दे
सकता है ?
किसी संज्ञेय अपराध के संबंध में पुलिस को
अनुसंधान की विधिक अधिकारिता होती है एवं
अन्वेषाधीन प्रकरण में वांछित अभियक्त को
गिरफ्तार करने के संबंध में भी पुलिस को
विवेकाधिकार प्राप्त होता है ।
न्यायालय को किसी अपराध के संबंध में
पुलिस द्वारा किये जा रहे अनुसंधान में
हस्तक्षेप करने की अधिकारिता प्राप्त नहीं है
और न ही न्यायालय किसी अनुसंधानकर्ता
अभिकरण (Investigation Agency)
को यह निर्देश दे सकता है कि वह न्यायालय के
मतानुसार अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करे या
प्रकरण समाप्त कर दे । इस संबंध में
माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्याय दृष्टांत
बिहार राज्य एवं अन्य विरूद्ध जे.ए.
सलदाना एवं अन्य, ए.आई.आर. 1980 सु.
को. 326 एवं एम.सी. अब्राहम एवं अन्य
विरूद्ध महाराष्टं राज्य एवं अन्य,
2003 एस.सी.सी. (क्रि) 628 तथा माननीय
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा न्याय दृष्टांत
गिरराज शर्मा विरूद्ध मध्यप्रदेष राज्य एवं
अन्य, 2006 (3) एम.पी.एच.टी. 4 (एन.ओ.
सी.) में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत अवलोकनीय है ।
इसी प्रकार न्यायालय अन्वेषण के दौरान
किसी अभियुक्त को गिरफ्तार करने का
निर्देश भी नहीं दे सकता है और ऐसा करना
अनुसंधान में अनुचित हस्तक्षेप करने के समान
होगा क्योंकि गिरफ्तार करने की शक्ति
अनुसंधान कर्ता अभिकरण के विवेकाधिकार के
अंतर्गत आती है । (देखिये एम. सी. अब्राहम
अपरोक्तानुसार)
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