क्या कृषि भूमि के संबंध में प्रस्तुत वाद में
सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 1 नियम
3-बी के प्रावधानों के अन्तर्गत मध्यप्रदेश
राज्य को पक्षकार बनाये जाने पर धारा 80
(1) सिविल प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत
वांछित सूचना पत्र भेजना जाना आवश्यक
है?
इस संबंध में सिविल प्रक्रिया संहिता (अत्र
पश्चात् ’’संहिता’’) की धारा 80 की उपधारा (4)
के प्रावधान अवलोकनीय है कि यदि आदेश 1
नियम 3-बी में उल्लेखित वाद या कार्यवाही में
राज्य को प्रतिवादी या प्रतिप्रार्थी के रूप में
संयोजित किया जाता है या आदेश 1 नियम 10
(2) के अंतर्गत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते
हुए न्यायालय द्वारा राज्य को प्रतिवादी या
प्रतिप्रार्थी के रूप में संयोजित करने का आदेश
दिया जाता है तो इस स्वरूप की वाद या
कार्यवाही वादी या प्रार्थी द्वारा धारा 80 उपधारा
(1) के अंतर्गत सूचनापत्र देने में लोप के कारण
निरस्त नहीं होगी।
इसके अतिरिक्त इस संबंध में ’संहिता की धारा
80 (1) के प्रावधानों से भी यह स्पष्ट होता है
कि वांछित सूचनापत्र शासन के विरूद्ध या लोक
अधिकारी के विरूद्ध उस दशा में आवश्यक है
जबकि प्रश्नांकित कार्य ऐसे अधिकारी द्वारा
पदीय क्षमता के अंतर्गत किया जाना तात्पर्यित
हो। इस संबंध में न्याय दृष्टांत रेवती मोहन
दास विरूद्ध जतिन्द्र मोहन घोष एवं
अन्य, ए.आई.आर. 1934 पी.सी. 96 में
प्रतिपादित न्याय सिद्धांत अवलोकनीय है।
दूसरे शब्दों में उस स्थिति में सूचनापत्र भेजे
जाने की विधिक आवश्यकता नहीं है जब शासन
या लोक अधिकारी के विरूद्ध कोई वाद कारण
उत्पन्न नहीं हुआ हो और उनके विरूद्ध किसी
सहायता की मांग भी वाद या कार्यवाही में नहीं
की गई हो।
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा इस संबंध में
न्याय दृष्टांत मनमोहन विरूद्ध प्रकाश
चन्द्र एवं अन्य, 1995 एम.पी.एल.जे. नोट
36 में यह व्यक्त किया गया है कि राज्य शासन
को वाद में उचित पक्षकार के रूप में जोड़े जाने
पर राज्य के विरूद्ध किसी सहायता की मांग
नहीं की जाने पर ’संहिता’ की धारा 80 के
अंतर्गत विधिक सूचनापत्र के निर्वाह न होने पर
भी वाद प्रचलन योग्य होगा।
तदानुसार मध्यप्रदेश राज्य के विरूद्ध कोई
सहायता चाहे बिना उसे औपचारिक पक्षकार
के रूप में संयोजित करते हुए संस्थित वाद में
’संहिता’ की धारा 80 (1) के अंतर्गत वांछित
सूचना पत्र दिये जाने की कोई विधिक
आवश्यकता नहीं है।
सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 1 नियम
3-बी के प्रावधानों के अन्तर्गत मध्यप्रदेश
राज्य को पक्षकार बनाये जाने पर धारा 80
(1) सिविल प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत
वांछित सूचना पत्र भेजना जाना आवश्यक
है?
इस संबंध में सिविल प्रक्रिया संहिता (अत्र
पश्चात् ’’संहिता’’) की धारा 80 की उपधारा (4)
के प्रावधान अवलोकनीय है कि यदि आदेश 1
नियम 3-बी में उल्लेखित वाद या कार्यवाही में
राज्य को प्रतिवादी या प्रतिप्रार्थी के रूप में
संयोजित किया जाता है या आदेश 1 नियम 10
(2) के अंतर्गत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते
हुए न्यायालय द्वारा राज्य को प्रतिवादी या
प्रतिप्रार्थी के रूप में संयोजित करने का आदेश
दिया जाता है तो इस स्वरूप की वाद या
कार्यवाही वादी या प्रार्थी द्वारा धारा 80 उपधारा
(1) के अंतर्गत सूचनापत्र देने में लोप के कारण
निरस्त नहीं होगी।
इसके अतिरिक्त इस संबंध में ’संहिता की धारा
80 (1) के प्रावधानों से भी यह स्पष्ट होता है
कि वांछित सूचनापत्र शासन के विरूद्ध या लोक
अधिकारी के विरूद्ध उस दशा में आवश्यक है
जबकि प्रश्नांकित कार्य ऐसे अधिकारी द्वारा
पदीय क्षमता के अंतर्गत किया जाना तात्पर्यित
हो। इस संबंध में न्याय दृष्टांत रेवती मोहन
दास विरूद्ध जतिन्द्र मोहन घोष एवं
अन्य, ए.आई.आर. 1934 पी.सी. 96 में
प्रतिपादित न्याय सिद्धांत अवलोकनीय है।
दूसरे शब्दों में उस स्थिति में सूचनापत्र भेजे
जाने की विधिक आवश्यकता नहीं है जब शासन
या लोक अधिकारी के विरूद्ध कोई वाद कारण
उत्पन्न नहीं हुआ हो और उनके विरूद्ध किसी
सहायता की मांग भी वाद या कार्यवाही में नहीं
की गई हो।
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा इस संबंध में
न्याय दृष्टांत मनमोहन विरूद्ध प्रकाश
चन्द्र एवं अन्य, 1995 एम.पी.एल.जे. नोट
36 में यह व्यक्त किया गया है कि राज्य शासन
को वाद में उचित पक्षकार के रूप में जोड़े जाने
पर राज्य के विरूद्ध किसी सहायता की मांग
नहीं की जाने पर ’संहिता’ की धारा 80 के
अंतर्गत विधिक सूचनापत्र के निर्वाह न होने पर
भी वाद प्रचलन योग्य होगा।
तदानुसार मध्यप्रदेश राज्य के विरूद्ध कोई
सहायता चाहे बिना उसे औपचारिक पक्षकार
के रूप में संयोजित करते हुए संस्थित वाद में
’संहिता’ की धारा 80 (1) के अंतर्गत वांछित
सूचना पत्र दिये जाने की कोई विधिक
आवश्यकता नहीं है।
क्या शासकीय खसरे में पटवारी द्वारा की गयी त्रुटी के लिए उस पर तहसीलदार की पूर्वानुमति के बिना भारतीय दंड संहिता १८६० की धरा ४२०, ४६७ ४६८ के अंतर्गत परिवाद दायर किया जा सकता है . जबकि भू-राजस्व संहिता में धारा ११३, ११५ ११६ में रिकार्ड में हुई त्रुटी के सुधार के लिए तहसीलदार सक्षम अधिकारी है
ReplyDeleteकृपया मार्गदर्शन करें