क्या तलाक शुदा महिला द्वारा धारा 125
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अंतर्गत
भरण पोषण हेतु प्रस्तुत आवेदन प्रकरण में
पति जारता का बचाव ले सकता है ?
धारा 125 (4) दं.प्र.सं. में दो स्पष्टीकरण दिये
गये हैं । सुसंगत स्पष्टीकरण इस प्रकार हैंः-
(ब) ‘‘पत्नी’’ में ऐसी महिला भी सम्मिलित है
जिसे तलाक दिया जा चुका है या जिसने
तलाक लिया और पुर्नविवाह नहीं किया
है ।
धारा 125 (4) दं.प्र.सं. यह प्रावधान करती है
कि कोई पत्नी अपने पति से भरण पोषण पाने
की अधिकारी नहीं होगी यदि वह जारता की
दशा में रह रही है अथवा बगैर किसी पर्याप्त
कारण के अपने पति के साथ रहने से इंकार
करती है अथवा आपसी सहमति से पृथक रह
रही है ।
यदि हम धारा 125 (4) दं.प्र.सं. को देखें तो
ऐसा प्रतीत होगा कि इसमें वर्णित दशाओं में
पत्नी अपने पति से भरण पोषण प्राप्त नहीं
कर सकेगी । परन्तु यदि हम इसकी तह तक
जायें तो पूर्णतः स्पष्ट है कि धारा 125 (4) दं.
प्र.सं. उन परिस्थितियों को आच्छादित करती
है जहां वेैवाहिक संबंध है और पत्नी 125
(4)द.प्र.सं. में वर्णित किसी स्थिति में पायी जाती
है तब निश्चित ही उसे भरण पोषण नहीं मिल
सकता ।
धारा 125 दं.प्र.सं. के अधीन भरण पोषण के
आवेदन इस पर अवलंबित होते हैं कि
पक्षकारों के मध्य वैवाहिक संबंध बरकरार है ।
पत्नी तभी भरण पोषण पायेगी जब कि वह
वैवाहिक धर्म का निवर्हन करती है । धारा
125 (4) के स्पष्टीकरण ‘‘ब’’ के अधीन
आवेदन इस पर आधारित होते हैं कि तलाक
शुदा महिला अपने आप का भरण पोषण करने
में सक्षम नहीं है और उसने दूसरा विवाह नहीं
किया है ।
रोहतास सिंह विरूद्ध श्रीमति रामेन्द्री, जे.
टी. 2000 (4) एस.सी 553 के मामले में
माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह निर्धारित
किया है कि ‘‘जारता’’ किसी स्त्री और पुरूष
के मध्य आपसी लैंगिक संबंध को कहते हैं
जबकि स्त्री किसी तीसरे व्यक्ति से ब्याही हो
। दूसरे शब्दों में जारता वैवाहिक जीवन के
दौरान ही हो सकता है । जहां वैवाहिक
संबंध नहीं हैं वहां जारता का प्रश्न उत्पन्न
नहीं होता। दिलीप सिंह विरूद्ध राजबाला,
2007 (2) क्राइम्स 260 (पंजाब एवं
हरियाणा) के मामले में माननीय उच्च
न्यायालय ने रोहतास सिंह (उपरोक्त) के
मामले का अवलंबन लेते हुए यह निर्धारित
किया है कि तलाकशुदा पत्नी द्वारा प्रस्तुत
भरण पोषण के आवेदन में पति को जारता
का बचाव उपलब्ध नहीं है ।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अंतर्गत
भरण पोषण हेतु प्रस्तुत आवेदन प्रकरण में
पति जारता का बचाव ले सकता है ?
धारा 125 (4) दं.प्र.सं. में दो स्पष्टीकरण दिये
गये हैं । सुसंगत स्पष्टीकरण इस प्रकार हैंः-
(ब) ‘‘पत्नी’’ में ऐसी महिला भी सम्मिलित है
जिसे तलाक दिया जा चुका है या जिसने
तलाक लिया और पुर्नविवाह नहीं किया
है ।
धारा 125 (4) दं.प्र.सं. यह प्रावधान करती है
कि कोई पत्नी अपने पति से भरण पोषण पाने
की अधिकारी नहीं होगी यदि वह जारता की
दशा में रह रही है अथवा बगैर किसी पर्याप्त
कारण के अपने पति के साथ रहने से इंकार
करती है अथवा आपसी सहमति से पृथक रह
रही है ।
यदि हम धारा 125 (4) दं.प्र.सं. को देखें तो
ऐसा प्रतीत होगा कि इसमें वर्णित दशाओं में
पत्नी अपने पति से भरण पोषण प्राप्त नहीं
कर सकेगी । परन्तु यदि हम इसकी तह तक
जायें तो पूर्णतः स्पष्ट है कि धारा 125 (4) दं.
प्र.सं. उन परिस्थितियों को आच्छादित करती
है जहां वेैवाहिक संबंध है और पत्नी 125
(4)द.प्र.सं. में वर्णित किसी स्थिति में पायी जाती
है तब निश्चित ही उसे भरण पोषण नहीं मिल
सकता ।
धारा 125 दं.प्र.सं. के अधीन भरण पोषण के
आवेदन इस पर अवलंबित होते हैं कि
पक्षकारों के मध्य वैवाहिक संबंध बरकरार है ।
पत्नी तभी भरण पोषण पायेगी जब कि वह
वैवाहिक धर्म का निवर्हन करती है । धारा
125 (4) के स्पष्टीकरण ‘‘ब’’ के अधीन
आवेदन इस पर आधारित होते हैं कि तलाक
शुदा महिला अपने आप का भरण पोषण करने
में सक्षम नहीं है और उसने दूसरा विवाह नहीं
किया है ।
रोहतास सिंह विरूद्ध श्रीमति रामेन्द्री, जे.
टी. 2000 (4) एस.सी 553 के मामले में
माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह निर्धारित
किया है कि ‘‘जारता’’ किसी स्त्री और पुरूष
के मध्य आपसी लैंगिक संबंध को कहते हैं
जबकि स्त्री किसी तीसरे व्यक्ति से ब्याही हो
। दूसरे शब्दों में जारता वैवाहिक जीवन के
दौरान ही हो सकता है । जहां वैवाहिक
संबंध नहीं हैं वहां जारता का प्रश्न उत्पन्न
नहीं होता। दिलीप सिंह विरूद्ध राजबाला,
2007 (2) क्राइम्स 260 (पंजाब एवं
हरियाणा) के मामले में माननीय उच्च
न्यायालय ने रोहतास सिंह (उपरोक्त) के
मामले का अवलंबन लेते हुए यह निर्धारित
किया है कि तलाकशुदा पत्नी द्वारा प्रस्तुत
भरण पोषण के आवेदन में पति को जारता
का बचाव उपलब्ध नहीं है ।
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