Saturday, 7 June 2014

क्या न्यायालय आपराधिक प्रकरण में निर्णय लेखन के समय चिकित्सीय पुस्तकों के आधार पर प्रकरण में प्रस्तुत चिकित्सकीय साक्ष्य में विपरीत निष्कर्ष निकाल सकता है?

क्या न्यायालय आपराधिक प्रकरण में निर्णय
लेखन के समय चिकित्सीय पुस्तकों के
आधार पर प्रकरण में प्रस्तुत चिकित्सकीय
साक्ष्य में विपरीत निष्कर्ष निकाल सकता है?

 
अनेकों बार यह देखा जाता है कि निर्णय
लेखन के समय प्रकरण में उपलब्ध
चिकित्सकीय राय को न मानते हुए भेषज
विधि विज्ञान की पुस्तकों में दी गई राय को
मान्यता दी जाती है एवं उसी के अनुसार
प्रकरण का निराकरण किया जाता है ।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने न्यायिक
दृष्टांत सुदंरलाल विरूद्ध मध्यप्रदेश राज्य,
ए.आई.आर. 1954 सु.को. 28 एवं भगवान
विरूद्ध राजस्थान राज्य, ए.आई.आर.
1957 सु.को. 589
में यह स्पष्ट अभिमत
व्यक्त किया है कि भेषज विधि विज्ञान की
पुस्तकों का हवाला निर्णय में लेने के पूर्व
वांछित अंशों का सामना चिकित्सक से उसके
साक्ष्य के दौरान कराया जाना चाहिये । इस
प्रकार यह स्पष्ट है कि भेषज विधि विज्ञान
की पुस्तकों का हवाला सीधे निर्णय में देकर
चिकित्सक की साक्ष्य का खण्डन किया जाना
उचित नहीं होगा एवं ऐसी पुस्तकों का
उपयोग चिकित्सक साक्षी से उन अंशों का
सामना कराया जाकर किया जा सकता है जो
न्यायाधीश के मत में सही एवं तात्विक प्रतीत
होते हैं ।

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