क्या धारा 80 (2) सिविल प्रक्रिया संहिता के
अन्तर्गत वाद प्रस्तुति की अनुमति दिये जाने
पर भी धारा 80 (1) के अंतर्गत शासन को
विहित सूचना पत्र देना आवश्यक है?
सिविल प्रक्रिया संहिता (अत्र पश्चात् मात्र
’’संहिता’’) की धारा 80 (2) की शब्दावली से ही
यह स्पष्ट होता है कि शासन के विरूद्ध
अत्यावश्यक त्वरित या तत्काल स्वरूप की
सहायता की वांछना करते हुए न्यायालय की
अनुमति से कोई वाद धारा 80 उपधारा (1) के
अंतर्गत आवश्यक सूचना पत्र दिये बिना प्रस्तुत
किया जा सकता है। ऐसा कोई प्रावधान संहिता
में नहीं है जिससे उक्तानुसार अनुमति से वाद
प्रस्तुत करने के उपरांत शासन को सूचना पत्र
भेजे जाने की आवश्यकता प्रकट हो।
संहिता की धारा 80 (2) के अंतर्गत सूचना पत्र
दिये बिना वाद प्रस्तुति की अनुमति न्यायालय द्वारा
प्रदान नहीं किये जाने पर वादी के लिये यह
आवश्यक होगा कि धारा 80 (1) के अंतर्गत
विहित सूचना पत्र प्रेषित करें एवं 2 माह की
निर्धारित अवधि व्यतीत होने पर न्यायालय ऐसा
वाद स्वीकार कर सकेगा किन्तु धारा 80 (2) के
अंतर्गत न्यायालय द्वारा वाद प्रस्तुति की अनुमति
प्रदान किये जाने पर वादी के लिये धारा 80 (1)
के अंतर्गत सूचना पत्र प्रेषित करने की कोई
विधिक अनिवार्यता नहीं होगी। इस संबंध में
न्याय दृष्टांत हिमाचल स्टील रि-रोलर्स एवं
फेबिक्रेटर्स विरूद्ध भारत संघ, ए.आई.आर.
1988 इलाहाबाद 191 (खण्डपीठ) तथा
गिरधारी लाल चड्ढा विरूद्ध भारत संघ,
आई.एल.आर. (1983) देहली 630
अवलोकनीय है।
न्याय दृष्टांत संघ शासित क्षेत्र चण्डीगढ़
विरूद्ध पी.के. खन्ना, ए.आई.आर. 1985
पंजाब एवं हरियाणा 32 में यह मत व्यक्त
किया गया है कि संहिता की धारा 80 (2) के
अंतर्गत वांछित सहायता प्रदान नहीं किये जाने
की दशा में न्यायालय को धारा 80 के परन्तुक
के अनुरूप वाद वादी को इस निर्देश के साथ
लौटा देना चाहिये कि धारा 80 (1) के अंतर्गत
आवश्यक सूचना पत्र निर्वाह उपरांत 2 माह की
अवधि पूर्ण होने पर वाद प्रस्तुत किया जाए।
अन्तर्गत वाद प्रस्तुति की अनुमति दिये जाने
पर भी धारा 80 (1) के अंतर्गत शासन को
विहित सूचना पत्र देना आवश्यक है?
सिविल प्रक्रिया संहिता (अत्र पश्चात् मात्र
’’संहिता’’) की धारा 80 (2) की शब्दावली से ही
यह स्पष्ट होता है कि शासन के विरूद्ध
अत्यावश्यक त्वरित या तत्काल स्वरूप की
सहायता की वांछना करते हुए न्यायालय की
अनुमति से कोई वाद धारा 80 उपधारा (1) के
अंतर्गत आवश्यक सूचना पत्र दिये बिना प्रस्तुत
किया जा सकता है। ऐसा कोई प्रावधान संहिता
में नहीं है जिससे उक्तानुसार अनुमति से वाद
प्रस्तुत करने के उपरांत शासन को सूचना पत्र
भेजे जाने की आवश्यकता प्रकट हो।
संहिता की धारा 80 (2) के अंतर्गत सूचना पत्र
दिये बिना वाद प्रस्तुति की अनुमति न्यायालय द्वारा
प्रदान नहीं किये जाने पर वादी के लिये यह
आवश्यक होगा कि धारा 80 (1) के अंतर्गत
विहित सूचना पत्र प्रेषित करें एवं 2 माह की
निर्धारित अवधि व्यतीत होने पर न्यायालय ऐसा
वाद स्वीकार कर सकेगा किन्तु धारा 80 (2) के
अंतर्गत न्यायालय द्वारा वाद प्रस्तुति की अनुमति
प्रदान किये जाने पर वादी के लिये धारा 80 (1)
के अंतर्गत सूचना पत्र प्रेषित करने की कोई
विधिक अनिवार्यता नहीं होगी। इस संबंध में
न्याय दृष्टांत हिमाचल स्टील रि-रोलर्स एवं
फेबिक्रेटर्स विरूद्ध भारत संघ, ए.आई.आर.
1988 इलाहाबाद 191 (खण्डपीठ) तथा
गिरधारी लाल चड्ढा विरूद्ध भारत संघ,
आई.एल.आर. (1983) देहली 630
अवलोकनीय है।
न्याय दृष्टांत संघ शासित क्षेत्र चण्डीगढ़
विरूद्ध पी.के. खन्ना, ए.आई.आर. 1985
पंजाब एवं हरियाणा 32 में यह मत व्यक्त
किया गया है कि संहिता की धारा 80 (2) के
अंतर्गत वांछित सहायता प्रदान नहीं किये जाने
की दशा में न्यायालय को धारा 80 के परन्तुक
के अनुरूप वाद वादी को इस निर्देश के साथ
लौटा देना चाहिये कि धारा 80 (1) के अंतर्गत
आवश्यक सूचना पत्र निर्वाह उपरांत 2 माह की
अवधि पूर्ण होने पर वाद प्रस्तुत किया जाए।
मानो कि यदि किसी बहन ने अपने भाई पर जमीन लेने के लिए धारा80(2)cpc का दावा पेस करती हैं तो जो भी S. T कास्ट से तो उससे बचने का तरीका बताए कि हम उसको किस प्रकार हरा सके नामांकन खुले 50साल हो गए हैं ओर सन् 2020मे किसी के बहकावे मे आके अपना हक जता रही हैं तो सर आप हमे बताये कि किस प्रकार बचे इस धारा से
ReplyDeleteNice
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