सहदायिकी सम्पत्ति का विक्रय प्रतिषिद्ध
करने के लिए व्यादेश जारी करने के बारे
में विधिक स्थिति क्या है?
यद्यपि सहदायिक को सहदायिकी सम्पत्ति में
जन्म से ही अधिकार प्राप्त हो जाता है तथापि
वह ऐसी सम्पति के स्वतंत्र आधिपत्य का
अधिकारी नहीं होता है एवं उसके अधिकार
’कर्ता’ के नियंत्रण से परे नहीं होते है।
सहदायिक को ’कर्ता’ के सम्पत्ति के प्रबंधन
से संबंधित कर्तव्यों में हस्तक्षेप का कोई
अधिकार प्राप्त नहीं होता है।
सहदायिक को यद्यपि यह विधिक अधिकार
प्राप्त है कि वह ’कर्ता’ द्वारा किये गये
अन्तरण को चुनौती दे सके किन्तु उसे
अन्तरण में बाधा पहुंचाने का कोई विधिक
अधिकार नहीं है।
तदानुसार ’कर्ता’ द्वारा किये जा रहे
सहदायिकी सम्पत्ति के विक्रय को प्रतिषिद्ध
करने के लिये सहदायिक के पक्ष में व्यादेश
जारी नहीं किया जा सकता है। विक्रय से
व्यथित सहदायिक पृथक से वाद प्रस्तुत कर
ही ऐसे विक्रय की वैधता को चुनौती दे
सकता है। उक्त विधिक स्थिति के संबंध में
माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्याय दृष्टांत
सुनील कुमार विरूद्ध रामप्रकाश, ए.आई.
आर. 1988 सु.को. 576 में प्रतिपादित
विधिक स्थिति अवलोकनीय है।
करने के लिए व्यादेश जारी करने के बारे
में विधिक स्थिति क्या है?
यद्यपि सहदायिक को सहदायिकी सम्पत्ति में
जन्म से ही अधिकार प्राप्त हो जाता है तथापि
वह ऐसी सम्पति के स्वतंत्र आधिपत्य का
अधिकारी नहीं होता है एवं उसके अधिकार
’कर्ता’ के नियंत्रण से परे नहीं होते है।
सहदायिक को ’कर्ता’ के सम्पत्ति के प्रबंधन
से संबंधित कर्तव्यों में हस्तक्षेप का कोई
अधिकार प्राप्त नहीं होता है।
सहदायिक को यद्यपि यह विधिक अधिकार
प्राप्त है कि वह ’कर्ता’ द्वारा किये गये
अन्तरण को चुनौती दे सके किन्तु उसे
अन्तरण में बाधा पहुंचाने का कोई विधिक
अधिकार नहीं है।
तदानुसार ’कर्ता’ द्वारा किये जा रहे
सहदायिकी सम्पत्ति के विक्रय को प्रतिषिद्ध
करने के लिये सहदायिक के पक्ष में व्यादेश
जारी नहीं किया जा सकता है। विक्रय से
व्यथित सहदायिक पृथक से वाद प्रस्तुत कर
ही ऐसे विक्रय की वैधता को चुनौती दे
सकता है। उक्त विधिक स्थिति के संबंध में
माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्याय दृष्टांत
सुनील कुमार विरूद्ध रामप्रकाश, ए.आई.
आर. 1988 सु.को. 576 में प्रतिपादित
विधिक स्थिति अवलोकनीय है।
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