Tuesday, 3 June 2014

राजेश -राजवीरसिंह (2013) अंत्येष्टि व्यय 25000, सहचार्य व्यय 100000 - MACT

                                         राजेश -राजवीरसिंह (2013) अंत्येष्टि व्यय 25000, सहचार्य व्यय 100000 - MACT                                   
                   अंत्येष्टि व्यय 25000, सहचार्य व्यय 100000 -

        न्यायदृष्टांत राजेश एवं अन्य वि. राजवीरसिंह एवं अन्य (2013) 9 एस.सी.सी. 54 (3 न्यायमूर्तिगण) निर्णय दिनांक-12 अप्रैल, 2013



           दाह संस्कार खर्च या फ्यूनरल एक्सपेंस
 
    माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने उक्त न्याय दृष्टांत राजेश पैरा 21 में यह बतलाया कि वे इस तथ्य का ज्यूडिशियल नोटिस लेते हैं या न्यायिक अवेक्षा करते हैं कि अधिकरण दाह संस्कार खर्च दिलवाने में काफी फ्रूगल या मितव्ययी होते हैं दाह संस्कार खर्च केवल दाह संस्कार का शुल्क चुकाने तक सीमित नहीं है बल्कि प्रत्येक धर्म में किसी व्यक्ति की मृत्यु पर कई खर्च होते हैं अतः बढ़ती कीमतों को देखते हुए इस शीर्ष में कम से कम 25 हजार रूपये दिलाये जावें, यदि अधिक खर्च की कोई साक्ष्य अभिलेख पर न हो।
    जैसा कि हम सब देखते है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु पर उसका 10वा, 11वा, 12वा आदि संस्कार होते हैं अस्थिया विसर्जित करने की प्रथा होती है परिवार के सदस्य मृतक की मोक्ष की कामना में कई क्रियाए करते हैं शहर उज्जैन में सिद्धवट, रामघाट पर जाकर देखा जा सकता है कि वहा किसी व्यक्ति के मृत्यु के बाद 10वें दिन से 12वें दिन तक की जो क्रियाऐं करवायी जाती हैं वे कितनी खर्चीली होती है।
    इसी तरह अलग-अलग धर्म में किसी व्यक्ति की मृत्यु पर इसी प्रकार की क्रियाएं होती है और उनमें भी व्यय होता है।
    एक विद्वान से पूछा गया कि मृत्यु और मोक्ष में क्या अंतर है? विद्वान ने उत्तर दिया कि यदि सांसे खत्म हो जायें और इच्छाएं बाकी रहें तो इसे मृत्यु कहते हैं और इच्छाएं खत्म हो जायें और सांसे बाकी रहें तो इसे मोक्ष कहते हैं।
    मैं सभी विद्वान सदस्य मोटर दुर्घटना दावा अधिकरणों का ध्यान इस नवीनतम न्याय दृष्टांत की ओर दिलवाते हुए निवेदन करूंगा कि वे दाह संस्कार खर्च अवार्ड करते समय इस वैधानिक स्थिति को ध्यान में रखेंगे।

 

                                 साहचर्य की हानि या कन्सोसियम
 
    न्याय दृष्टांत सरला वर्मा निर्णय चरण 9 में साहचर्य की हानि के शीर्ष में 5000 से 10000 रूपये की रेंज में राशि दिलवाने का अभिमत दिया गया था।
    उक्त न्याय दृष्टांत राजेश विरूद्ध राजवीर (2013) 9 एस.सी.सी. 54 में निर्णय चरण 20 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह अभिमत दिया है कि साहचर्य की हानि के शीर्ष में यही केवल न्याय संगत और युक्ति युक्त होगा कि अधिकरण कम से कम एक लाख रूपये अवार्ड करें।
    माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि कन्सोसियम पति-पत्नि का एक ऐसा अधिकार है जो संगति, परवाह या ध्यान रखना, आराम, सुख चैन, सहायता, मार्गदर्शन, सांत्वना, अफेक्शन, लैंगिग संबंध से संबंधित अधिकार है।
    साहचर्य की हानि या कन्सोसियम केवल स्पाउस के मामले में ही दिलवाया जायें यह भी कहा गया है।
    जीवन में कोई भी व्यक्ति सच्चे दोस्त और वफादार पत्नि से अपनी सभी बातें शेयर करता है। कई बार वृद्धावस्था में रात्रि में नींद खुल जाना, अचानक भूख लग जाना आम बात है ऐसे में पति-पत्नि ही उस समय एक दूसरे के सहायक होते हैं।
    अतः मैं सभी विद्वान सदस्य मोटर दुर्घटना दावा अधिकरणों का ध्यान तीन न्यायमूर्ति गण की पीठ के इस न्याय दृष्टांत के पैरा 20 की ओर दिलाते हुए निवेदन करूंगा कि वे जब कभी मृत्यु प्रकरणों में स्पाउस के मामलों में साहचर्य की हानि या कन्सोसियम दिलावे तब इस नवीनतम स्थिति को ध्यान में रखे।

 

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