Friday, 6 June 2014

क्या पश्चातवर्ती शपथपत्र के आधार पर साक्षी को पुनः परीक्षण हेतु आहूत किया जाना विधि सम्मत एवं औचित्यपूर्ण है?

क्या पश्चातवर्ती शपथपत्र के आधार पर
साक्षी को पुनः परीक्षण हेतु आहूत किया
जाना विधि सम्मत एवं औचित्यपूर्ण है?

 

अनेक मामलों में, विशेषतः दाण्डिक प्रकरणों
में, साक्षी का नियमित परीक्षण हो जाने के
बाद न्यायालय के समक्ष उसका शपथपत्र
प्रस्तुत कर उसे साक्ष्य में पुनः प्रति परीक्षण
हेतु आहूत करने की प्रार्थना इस आधार पर
की जाती है कि उसका न्यायालयीन कथन
शपथपत्र में वर्णित तथ्यों से भिन्न है । ऐसी
स्थिति में साक्षी को पुनः प्रतिपरीक्षण हेतु
आहूत किया जाना किस सीमा तक
विधिसम्मत एवं औचित्यपूर्ण है यह एक
महत्वपूर्ण प्रश्न है । मांगीलाल विरूद्ध
मध्यप्रदेश राज्य 1997 (1) एम.पी.
डब्ल्यू.एन. 138 तथा मानसिंह विरूद्ध
मध्यप्रदेश राज्य 2000
(1) एम.पी.एल.जे.
शार्ट नोट 8
के मामलों में पश्चातवर्ती
शपथपत्र के आधार पर साक्षी को पुनः परीक्षण
के लिये बुलाने की प्रार्थना को सही निरूपित
किया गया लेकिन न्याय दृष्टांत याकूब
इस्माईल भाई पटेल विरूद्ध गुजरात
राज्य, ए.आई.आर. 2004 एस.सी. 4209
में
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट रूप
से प्रतिपादित किया है कि साक्षी के एक बार
परीक्षित कर लिये जाने के बाद उसे
न्यायालय में शपथ पर दिए गये कथन से
विरत होने की अनुमति नहीं दी जा सकती है
। इस मामले में पूर्व परीक्षित साक्षी का इस
आशय का शपथपत्र न्यायालय के समक्ष
प्रस्तुत किया गया था कि पूर्व में उसने
न्यायालय के समक्ष पुलिस के दबाव में आकर
कथन दिया था जो सही नहीं था । इस
शपथपत्र के आधार पर साक्षी के पुनः परीक्षण
की प्रार्थना अस्वीकृत किये जाने
को माननीय
सर्वोच्च न्यायालय ने विधिसम्मत ठहराया ।
उक्त परिपेक्ष में यह साफ प्रकट है कि
पश्चातवर्ती शपथत्र के आधार पर साक्षी को
पुनः परीक्षण हेतु बुलाया जाना विधि सम्मत व
औचित्यपूर्ण नहीं है ।

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