धारा 498 (ए.) भारतीय दण्ड संहिता के
अपराध विषयक दाण्डिक मामलों में
न्यायालय की क्षेत्रीय अधिकारिता विषयक
विधिक स्थिति क्या है ?
माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्याय दृष्टांत
वाय. अब्राहम अजीथ विरूद्ध पुलिस
निरीक्षक चेन्नई, ए.आई.आर. 2004 सु.को.
4286 में पूर्व न्याय दृष्टांत बिहार राज्य विरूद्ध
देवकरण, ए.आई.आर. 1973 सु.को. 908 के
आधार पर ’निरन्तर अपराध’ तथा ’एक बार में
किये जाने वाले अपराध’ में अन्तर इंगित करते
हुए प्रकरण के तथ्यों के प्रकाश में धारा 498-(क)
भारतीय दण्ड संहिता के अपराध के विचारण का
क्षेत्राधिकार उस स्थान के न्यायालय को होना
विनिश्चित किया गया है जहां ’परिवाद’ के
अनुसार क्रूर व्यवहार किया गया अर्थात जहां
परिवाद का ’हेतुक’ (Cause of action)
उत्पन्न हुआ।
मानीनय मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा न्याय
दृष्टांत आलोक एवं अन्य विरूद्ध मध्यप्रदेश
राज्य, 2006 (1) एम.पी.एल.जे. 205 तथा
गुरूमीत सिंह विरूद्ध मध्यप्रदेश 2006
(1) एम.पी.एल.जे. 250 में न्याय दृष्टांत वाय.
अब्राहम अजीथ विरूद्ध पुलिस निरीक्षक,
(उपरोक्त) के प्रकाश में धारा 498-क भारतीय
दण्ड संहिता के अपराध को ’निरन्तर अपराध’
(Continuing Offence) नहीं पाते हुए यह
विनिश्चित किया गया कि उक्त अपराध का
विचारण उस स्थान पर होगा जहां अभियोक्त्री
का उत्पीड़न हुआ, उसे त्रास दिया गया और
दहेज की माँग की गई।
अपराध विषयक दाण्डिक मामलों में
न्यायालय की क्षेत्रीय अधिकारिता विषयक
विधिक स्थिति क्या है ?
माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्याय दृष्टांत
वाय. अब्राहम अजीथ विरूद्ध पुलिस
निरीक्षक चेन्नई, ए.आई.आर. 2004 सु.को.
4286 में पूर्व न्याय दृष्टांत बिहार राज्य विरूद्ध
देवकरण, ए.आई.आर. 1973 सु.को. 908 के
आधार पर ’निरन्तर अपराध’ तथा ’एक बार में
किये जाने वाले अपराध’ में अन्तर इंगित करते
हुए प्रकरण के तथ्यों के प्रकाश में धारा 498-(क)
भारतीय दण्ड संहिता के अपराध के विचारण का
क्षेत्राधिकार उस स्थान के न्यायालय को होना
विनिश्चित किया गया है जहां ’परिवाद’ के
अनुसार क्रूर व्यवहार किया गया अर्थात जहां
परिवाद का ’हेतुक’ (Cause of action)
उत्पन्न हुआ।
मानीनय मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा न्याय
दृष्टांत आलोक एवं अन्य विरूद्ध मध्यप्रदेश
राज्य, 2006 (1) एम.पी.एल.जे. 205 तथा
गुरूमीत सिंह विरूद्ध मध्यप्रदेश 2006
(1) एम.पी.एल.जे. 250 में न्याय दृष्टांत वाय.
अब्राहम अजीथ विरूद्ध पुलिस निरीक्षक,
(उपरोक्त) के प्रकाश में धारा 498-क भारतीय
दण्ड संहिता के अपराध को ’निरन्तर अपराध’
(Continuing Offence) नहीं पाते हुए यह
विनिश्चित किया गया कि उक्त अपराध का
विचारण उस स्थान पर होगा जहां अभियोक्त्री
का उत्पीड़न हुआ, उसे त्रास दिया गया और
दहेज की माँग की गई।
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