भविष्य की संभावनायें या फ्यूचर प्रासपेंक्ट्स
न्याय दृष्टांत सरला वर्मा ने जहा मृतक स्थायी नौकरी में हो वहा भविष्य की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए अवार्ड पारित करने का अभिमत दिया गया था।
लेकिन जहा मृतक स्वयं के रोजगार में या निर्धारित वेतन पर कार्य करता हो वहा उसकी वास्तविक आय या एक्चुअल इंकम ही विचार में लेने का मत दिया गया था।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने माह अप्रैल 2013 में इस शीर्ष पर दो मामलों में विचार किया पहला राजेश विरूद्ध राजवीर का उक्त मामला और दूसरा रेशमा कुमारी विरूद्ध मदनमोहन 2013 ए.सी.जे. 1253 का मामला। इन दोनों पर हम क्रम बार विचार करेंगे और यह देखेंगे कि सही वैधानिक स्थिति क्या बनती है।
उक्त न्याय दृष्टांत राजेश विरूद्ध राजवीर में माननीय सर्वोच्च न्यायालय की उक्त तीन न्यायमूर्ति गण की पीठ ने यह अभिमत दिया कि जहा मृतक स्वयं के रोजगार या सेल्फ इंम्पलायमेंट में या निर्धारित वेतन पर कार्यालय को वहा भी भविष्य की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए अवार्ड पारित किया जावे।
वास्तविक आय उस आय को माना गया है जो आयकर को काटने के बाद मिलती है यदि मृतक आयकर दाता हो।
भविष्य की संभावनाओं के बारे में वास्तविक आय का निम्नलिखित प्रतिशत निम्नलिखित उम्र में ध्यान में रखना है:-
ए. मृतक की उम्र यदि 40 वर्ष से कम हो तब उसकी वास्तविक आय का
लेकिन जहा मृतक स्वयं के रोजगार में या निर्धारित वेतन पर कार्य करता हो वहा उसकी वास्तविक आय या एक्चुअल इंकम ही विचार में लेने का मत दिया गया था।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने माह अप्रैल 2013 में इस शीर्ष पर दो मामलों में विचार किया पहला राजेश विरूद्ध राजवीर का उक्त मामला और दूसरा रेशमा कुमारी विरूद्ध मदनमोहन 2013 ए.सी.जे. 1253 का मामला। इन दोनों पर हम क्रम बार विचार करेंगे और यह देखेंगे कि सही वैधानिक स्थिति क्या बनती है।
उक्त न्याय दृष्टांत राजेश विरूद्ध राजवीर में माननीय सर्वोच्च न्यायालय की उक्त तीन न्यायमूर्ति गण की पीठ ने यह अभिमत दिया कि जहा मृतक स्वयं के रोजगार या सेल्फ इंम्पलायमेंट में या निर्धारित वेतन पर कार्यालय को वहा भी भविष्य की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए अवार्ड पारित किया जावे।
वास्तविक आय उस आय को माना गया है जो आयकर को काटने के बाद मिलती है यदि मृतक आयकर दाता हो।
भविष्य की संभावनाओं के बारे में वास्तविक आय का निम्नलिखित प्रतिशत निम्नलिखित उम्र में ध्यान में रखना है:-
ए. मृतक की उम्र यदि 40 वर्ष से कम हो तब उसकी वास्तविक आय का
50 प्रतिशत।
बी. मृतक की उम्र यदि 40 से 50 वर्ष के बीच हो तब उसकी वास्तविक आय
बी. मृतक की उम्र यदि 40 से 50 वर्ष के बीच हो तब उसकी वास्तविक आय
का 30 प्रतिशत।
सी. मृतक की उम्र यदि 50 से 60 वर्ष के बीच हो तब उसकी वास्तविक
सी. मृतक की उम्र यदि 50 से 60 वर्ष के बीच हो तब उसकी वास्तविक
आय का 15 प्रतिशत ?
डी. उसके बाद अर्थात् 60 वर्ष की उम्र के बाद कुछ नहीं ?
डी. उसके बाद अर्थात् 60 वर्ष की उम्र के बाद कुछ नहीं ?
निर्णय चरण 11 एवं 12 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने उक्त राजेश विरूद्ध राजवीर वाले मामले में इस स्थिति को स्पष्ट किया है।
न्याय दृष्टांत संतोष देवी विरूद्ध नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड ए.आई.आर. 2012 एस.सी. 2185 दो न्यायमूर्ति गण की पीठ में यह अभिमत दिया गया कि स्वयं के नियोजन या निर्धारित मजदूरी पर कार्य करने वाले मृतक/आहत के मामले में यह कहना युक्ति युक्त होगा कि उसके आय में 30 प्रतिशत वृद्धि होती है।
न्याय दृष्टांत के.आर. मधुसूधन विरूद्ध एडमिनिस्ट्रेअिव आफीसर ए.आई.आर. 2011 एस.सी. 979 दो न्याय मूर्तिगण की पीठ के अनुसार जहा मृतक 50 वर्ष से अधिक की उम्र का हो और उसकी आमदनी बढ़ने के बारे में स्पष्ट और अकाट्य साक्ष्य हो वहा उक्त सरला वर्मा के मामले में 50 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्तियों में भविष्य की सभावनाऐं न मानने का नियम लागू नहीं होता है।
लेकिन न्याय दृष्टांत रेशमा कुमारी विरूद्ध मदन मोहन 2013 ए.सी.जे. 1253 तीन न्यायमूर्ति गण की पीठ में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने दिनांक 2/4/2013 को निर्णय चरण 36 एवं 40 (5) में यह अभिमत दिया है कि अधिकरण भविष्य की संभावनाओं के बारे में न्याय दृष्टांत सरला वर्मा के निर्णय चरण 11 में जो निष्कर्ष दिये हैं उनको फालो करें निर्णय चरण 36 के अनुसार इस नियम से विचलन तभी न्याय संगत होगा जब बहुत अपवाद स्वरूप मामले हों और असामान्य परिस्थितया हों।
इस निर्णय में यह भी अभिमत दिया गया है सरला वर्मा के मामले में निर्णय चरण 9 में जो प्रतिकर निर्धारण के कदम और दिशा निर्देश बतलाए हैं उन्हें मृत्यु प्रकरणों में प्रतिकर निर्धारण में अधिकरणों को पालन करना है साथ ही व्यक्तिगत जीवन निर्वाह खर्च की कटौती में सरला वर्मा के निर्णय 14 और 15 में दिये गये मानक का पालन सामान्यतः करना है और पैरा 38 में दिये गये आब्जरवेशन भी ध्यान में रखना है।
इस निर्णय में यह भी अभिमत दिया है कि इस मामले में दिये गये अभिमत सभी लंबित मामले पर लागू होंगे।
चूंकि राजेश विरूद्ध राजबीर 2013 ए.सी.जे. 1403 का उक्त निर्णय 12/4/2013 का तीन न्यायमूर्ति गण की पीठ का है जबकि रेशमा कुमारी विरूद्ध मदन मोहन 2013 ए.सी.जे. 1253 का उक्त निर्णय 2/4/2013 का तीन न्यायमूर्ति गण की पीठ का है। दोनों ही निर्णय सर्वोच्च न्यायालय की समान संख्या की पीठ के हैं अतः ला आफ प्रेसीडेंट के अनुसार 2/4/2013 का रेशमा कुमारी विरूद्ध मदन मोहन का निर्णय बंधनकारी है क्योंकि राजेश विरूद्ध राजबीर के मामले में उक्त रेशमा कुमारी विरूद्ध मदन मोहन को विचार में नहीं लिया गया है।
अतः मैं सभी विद्वान सदस्य मोटर दुर्घटना दावा अधिकरणों का ध्यान इस नवीनतम विधिक स्थिति की ओर दिलाते हुए निवेदन करता हॅू जब भी वे भविष्य की संभावनाओं पर विचार करें तब वे उक्त रेशमा कुमारी विरूद्ध मदन मोहन 2013 ए.सी.जे. 1253 के अभिमत को अवश्य ध्यान में रखें एवं वास्तविक आय तथा वास्तविक आय का उ क्त प्रतिशत जोड़कर फिर जो आय आती है उसे मृतक की आय के रूप में विचार में लिया जाना चाहिए एवं केवल नियत वेतन पाने वाले 50 वर्ष की उम्र तक के व्यक्तियों के बारे में ही भविष्य की संभावनाओं का उक्त अनुसार प्रतिशत मूल आय में जोड़ना चाहिए व न्याय दृष्टांत सरला वर्मा में इस बारे में उसके निर्णय चरण 11 में दिये गये निर्देशों को ध्यान में रखने का कष्ट करेंगे जिसके अनुसार यदि
मृतक की उम्र 40 वर्ष से कम हो तब उसकी वास्तिविक आय का 50 प्रतिशत,
मृतक की उम्र 40 से 50 वर्ष के बीच हो तब उसकी वास्तिविक आय का 30 प्रतिशत्,
भविष्य की संभावना या फ्यूचर प्रासपेंक्ट्स के रूप में उक्त राशि मृतक के यदि वह आयकर दाता हो तो आयकर काटने के बाद की आय में और जोड़ देंगे और अपवाद स्वरूप मामलों में और असामान्य परिस्थितियों में ही सरला वर्मा के निर्णय चरण 11 में दिये निर्देशों से विचलन हो सकता है।
न्याय दृष्टांत संतोष देवी विरूद्ध नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड ए.आई.आर. 2012 एस.सी. 2185 दो न्यायमूर्ति गण की पीठ में यह अभिमत दिया गया कि स्वयं के नियोजन या निर्धारित मजदूरी पर कार्य करने वाले मृतक/आहत के मामले में यह कहना युक्ति युक्त होगा कि उसके आय में 30 प्रतिशत वृद्धि होती है।
न्याय दृष्टांत के.आर. मधुसूधन विरूद्ध एडमिनिस्ट्रेअिव आफीसर ए.आई.आर. 2011 एस.सी. 979 दो न्याय मूर्तिगण की पीठ के अनुसार जहा मृतक 50 वर्ष से अधिक की उम्र का हो और उसकी आमदनी बढ़ने के बारे में स्पष्ट और अकाट्य साक्ष्य हो वहा उक्त सरला वर्मा के मामले में 50 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्तियों में भविष्य की सभावनाऐं न मानने का नियम लागू नहीं होता है।
लेकिन न्याय दृष्टांत रेशमा कुमारी विरूद्ध मदन मोहन 2013 ए.सी.जे. 1253 तीन न्यायमूर्ति गण की पीठ में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने दिनांक 2/4/2013 को निर्णय चरण 36 एवं 40 (5) में यह अभिमत दिया है कि अधिकरण भविष्य की संभावनाओं के बारे में न्याय दृष्टांत सरला वर्मा के निर्णय चरण 11 में जो निष्कर्ष दिये हैं उनको फालो करें निर्णय चरण 36 के अनुसार इस नियम से विचलन तभी न्याय संगत होगा जब बहुत अपवाद स्वरूप मामले हों और असामान्य परिस्थितया हों।
इस निर्णय में यह भी अभिमत दिया गया है सरला वर्मा के मामले में निर्णय चरण 9 में जो प्रतिकर निर्धारण के कदम और दिशा निर्देश बतलाए हैं उन्हें मृत्यु प्रकरणों में प्रतिकर निर्धारण में अधिकरणों को पालन करना है साथ ही व्यक्तिगत जीवन निर्वाह खर्च की कटौती में सरला वर्मा के निर्णय 14 और 15 में दिये गये मानक का पालन सामान्यतः करना है और पैरा 38 में दिये गये आब्जरवेशन भी ध्यान में रखना है।
इस निर्णय में यह भी अभिमत दिया है कि इस मामले में दिये गये अभिमत सभी लंबित मामले पर लागू होंगे।
चूंकि राजेश विरूद्ध राजबीर 2013 ए.सी.जे. 1403 का उक्त निर्णय 12/4/2013 का तीन न्यायमूर्ति गण की पीठ का है जबकि रेशमा कुमारी विरूद्ध मदन मोहन 2013 ए.सी.जे. 1253 का उक्त निर्णय 2/4/2013 का तीन न्यायमूर्ति गण की पीठ का है। दोनों ही निर्णय सर्वोच्च न्यायालय की समान संख्या की पीठ के हैं अतः ला आफ प्रेसीडेंट के अनुसार 2/4/2013 का रेशमा कुमारी विरूद्ध मदन मोहन का निर्णय बंधनकारी है क्योंकि राजेश विरूद्ध राजबीर के मामले में उक्त रेशमा कुमारी विरूद्ध मदन मोहन को विचार में नहीं लिया गया है।
अतः मैं सभी विद्वान सदस्य मोटर दुर्घटना दावा अधिकरणों का ध्यान इस नवीनतम विधिक स्थिति की ओर दिलाते हुए निवेदन करता हॅू जब भी वे भविष्य की संभावनाओं पर विचार करें तब वे उक्त रेशमा कुमारी विरूद्ध मदन मोहन 2013 ए.सी.जे. 1253 के अभिमत को अवश्य ध्यान में रखें एवं वास्तविक आय तथा वास्तविक आय का उ क्त प्रतिशत जोड़कर फिर जो आय आती है उसे मृतक की आय के रूप में विचार में लिया जाना चाहिए एवं केवल नियत वेतन पाने वाले 50 वर्ष की उम्र तक के व्यक्तियों के बारे में ही भविष्य की संभावनाओं का उक्त अनुसार प्रतिशत मूल आय में जोड़ना चाहिए व न्याय दृष्टांत सरला वर्मा में इस बारे में उसके निर्णय चरण 11 में दिये गये निर्देशों को ध्यान में रखने का कष्ट करेंगे जिसके अनुसार यदि
मृतक की उम्र 40 वर्ष से कम हो तब उसकी वास्तिविक आय का 50 प्रतिशत,
मृतक की उम्र 40 से 50 वर्ष के बीच हो तब उसकी वास्तिविक आय का 30 प्रतिशत्,
भविष्य की संभावना या फ्यूचर प्रासपेंक्ट्स के रूप में उक्त राशि मृतक के यदि वह आयकर दाता हो तो आयकर काटने के बाद की आय में और जोड़ देंगे और अपवाद स्वरूप मामलों में और असामान्य परिस्थितियों में ही सरला वर्मा के निर्णय चरण 11 में दिये निर्देशों से विचलन हो सकता है।
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