अधिनियम
की
धारा
163
(क)
में
लापरवाही
प्रमाणित
नही
करना
-
आवेदकगण ने ’’अधिनियम’’ की धारा-163 (क) के अन्तर्गत प्रतिकर दिलाये जाने की प्रार्थना की है। ’अधिनियम’ की धारा-163 (क) के अंतर्गत प्रतिकर संबंधित उत्तरदायित्व निर्धारण के लिए यह स्थापित किया जाना पर्याप्त है कि संबंधित वाहन से आवेदक को शारीरिक क्षति कारित हुई अथवा किसी व्यक्ति की मृत्यु हुई । ऐसे मामलों में यह प्रमाणित किया जाना आवश्यक नहीं है कि दुर्घटना किसी की लापरवाही के कारण हुई। संदर्भ- राजस्थन स्टेट रोडवेज कार्पोशन वि. पीडित महिला अनीता आदि 2001 (3) एम.पी.एल.जे. 147. ऐसे मामले में प्रतिकर निर्धारण के लिए अधिनियम के अंतग्रत दी गई अनुसूची का उपयोग किया जाना चाहिए । संदर्भ- कैलाश विरूद्ध ओमप्रकाश यादव- 2003 (3) एम.पी.एच.टी.-58.
2008(2) ए सी सी डी 975 (सु.को.)
न्यायामूर्तिगण: माननीय एस.बी. सिन्हा एवं माननीय वी.एस. सिरपुरकर
पक्षकार: प्रबन्धक निदेशक, बंगलौर महानगर परिवहन निगम बनाम सरोजम्मा एवं एक अन्य {सिविल अपील संख्या 2897 वर्ष 2008 दिनांक-22 अप्रैल, 2008 को विनिश्चित}
मोटर यान अधिनियम, 1988 -धारा 163क एवं द्वितीय अनुसूची-प्रतिकर-धारा 163क के अधीन दावा के लिये चालक की ओर से हुयी उपेक्षा साबित नहीं की जायेगी-मृतक 18 वर्ष की आयु का कुंवारा-अध्यापक और सैन्य अध्यापक प्रशिक्षण संस्थान में प्रवेश-क्या अध्यापक होने की अध्यपेक्षित अन्तःशक्ति थी-उसकी आयु प्रतिमास 3,000 रूपये प्राक्कलित-उसे उच्चतर पक्ष पर होना नहीं कहा जा सकता-द्वितीय अनुसूची के अधीन संरचित सन्नियम-में स्वयं उसके व्यक्तिगत व्ययों के लिये एक तिहाई तक मृतक की आय की कमी नियत-साधारणतया एक तिहाई कटौती ही मृतक की आये से की जानी चाहिये- न कि उसका आधा-किन्तु मानसिक संताप की पीड़ा-ब्याज दर अवधारित करने में सुसंगत कारक नहीं -ब्याज दर में वृद्धि का कोई न्यायोचित्य नहीं-अतः, उसे 10 प्रतिशत से 7 प्रतिशत तक कम किया गया। (पैरा 7 से 14)
आवेदकगण ने ’’अधिनियम’’ की धारा-163 (क) के अन्तर्गत प्रतिकर दिलाये जाने की प्रार्थना की है। ’अधिनियम’ की धारा-163 (क) के अंतर्गत प्रतिकर संबंधित उत्तरदायित्व निर्धारण के लिए यह स्थापित किया जाना पर्याप्त है कि संबंधित वाहन से आवेदक को शारीरिक क्षति कारित हुई अथवा किसी व्यक्ति की मृत्यु हुई । ऐसे मामलों में यह प्रमाणित किया जाना आवश्यक नहीं है कि दुर्घटना किसी की लापरवाही के कारण हुई। संदर्भ- राजस्थन स्टेट रोडवेज कार्पोशन वि. पीडित महिला अनीता आदि 2001 (3) एम.पी.एल.जे. 147. ऐसे मामले में प्रतिकर निर्धारण के लिए अधिनियम के अंतग्रत दी गई अनुसूची का उपयोग किया जाना चाहिए । संदर्भ- कैलाश विरूद्ध ओमप्रकाश यादव- 2003 (3) एम.पी.एच.टी.-58.
2008(2) ए सी सी डी 975 (सु.को.)
न्यायामूर्तिगण: माननीय एस.बी. सिन्हा एवं माननीय वी.एस. सिरपुरकर
पक्षकार: प्रबन्धक निदेशक, बंगलौर महानगर परिवहन निगम बनाम सरोजम्मा एवं एक अन्य {सिविल अपील संख्या 2897 वर्ष 2008 दिनांक-22 अप्रैल, 2008 को विनिश्चित}
मोटर यान अधिनियम, 1988 -धारा 163क एवं द्वितीय अनुसूची-प्रतिकर-धारा 163क के अधीन दावा के लिये चालक की ओर से हुयी उपेक्षा साबित नहीं की जायेगी-मृतक 18 वर्ष की आयु का कुंवारा-अध्यापक और सैन्य अध्यापक प्रशिक्षण संस्थान में प्रवेश-क्या अध्यापक होने की अध्यपेक्षित अन्तःशक्ति थी-उसकी आयु प्रतिमास 3,000 रूपये प्राक्कलित-उसे उच्चतर पक्ष पर होना नहीं कहा जा सकता-द्वितीय अनुसूची के अधीन संरचित सन्नियम-में स्वयं उसके व्यक्तिगत व्ययों के लिये एक तिहाई तक मृतक की आय की कमी नियत-साधारणतया एक तिहाई कटौती ही मृतक की आये से की जानी चाहिये- न कि उसका आधा-किन्तु मानसिक संताप की पीड़ा-ब्याज दर अवधारित करने में सुसंगत कारक नहीं -ब्याज दर में वृद्धि का कोई न्यायोचित्य नहीं-अतः, उसे 10 प्रतिशत से 7 प्रतिशत तक कम किया गया। (पैरा 7 से 14)
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