Monday, 19 May 2014

पूर्व निर्णय के संबंध में दिशा निर्देश

                                    पूर्व निर्णय के संबंध में दिशा निर्देश


                              माननीय म0प्र0 उच्च न्यायालय की विशेष खंडपीठ में पाच जजो ने 2003 भाग-1 जे0एल0जे0 105 में पूर्व निर्णय के संबंध में सिद्धांत अभिनिर्धारित किये है, जिसमें मान्नीय मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा बलवीर सिंह (पूर्वोक्त) के मामले में पूर्ण न्यायपीठ के विनिश्चय में, जिसमें अभिनिर्धारित किया गया हैं कि यदि उच्चतम न्यायालय की दो समान अधिकारयुक्त न्यायपीठो के दृष्टिकोण में विरोध हो तब उच्च न्यायालय द्वारा उस निणर्य का अनुसरण किया जाना होगा जिसमें से प्रतीत हो कि विधि अधिक विस्तृत रूप और अधिक सही और अधिनियम की योजना के अनुरूप अभिकथित हैं, जिसे सही विधि न मानते हुए उसे इस बिंदु पर उलटा गया है । अतः  2001 रा नि 343त्र 2001  (2) एम पी एल जे 644  (पूर्ण न्यायपीठ) द्वारा उलटा गया । 


        इसके बाद ए.आई.आर. 2005 सुप्रीम कोर्ट 752 सेन्ट्र्ल बोर्ड आफ द्विवेदी बोरा कमेटी विरूद्ध महाराष्ट्र् राज्य के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय के पाच न्यायाधीशगण के द्वारा पूर्व निर्णय के संबंध में दिशा निर्देश प्रतिपादित किये गये हैं जिसमें निम्नलिखित सिद्धांत अभिनिर्धारित किए हैं। 

1-        उच्च न्यायालय के बारे में, एकल न्यायपीठ अन्य एकल न्यायपीठ के विनिश्चय से आबद्ध हैं।

2-         यदि एकल न्यायाधीश अन्य एकल न्यायपीठ के दृष्टिकोण से सहमत नहीं हो तब उन्हें उस मामले को बृहत्तर न्यायपीठ को निर्देशित करना चाहिए।

3-         इसी प्रकार खंड न्यायपीठ, पूर्वतर खंड न्यायपीठ के विनिश्चय से आबद्ध हैं ।

4-         यदि वह पूर्वतर खंड न्यायपीठ के विनिश्चय से सहमत नहीं हो तब उसके द्वारा मामला बृहत्तर न्यायपीठ को निर्देशित किया जाना चाहिए। 

5-        समान सामथ्र्य की दो खंड न्यायपीठो के विनिश्चयों में विरोध की दशा में पूर्वतर खंड न्यायपीठ के विनिश्चय का अनुसार किया जाएगा, सिवाय तब जब उसे पश्चात्वर्ती खंड न्यायपीठ द्वारा स्पष्ट किया गया हो , जिस दिशा में पश्चात्वर्ती खंड न्यायपीठ का विनिश्चय बाध्यकर होगा ।


6-        बृहत्तर न्यायपीठ का विनिश्चय, लघुतर न्यायपीठों के लिए बाध्यकर हैं।


7-        उच्चतम न्यायालय के दो विनिश्चयों में विरोध की दशा में, जब न्यायपीठों में न्यायाधीशों की संख्या समान हो तब पूर्वतर न्यायपीठ का विनिश्चय बाध्यकर होता हैं, सिवाय तब जब समान संख्या की पश्चात्वर्ती न्यायपीठ द्वारा स्पष्टीकृत हो, जिस दशा में पश्चात्वर्ती विनिश्चय बाध्यकर होता हैं।


8-         बृहत्तर न्यायपीठ का विनिश्चय लघुतर न्यायपीठों के लिये बाध्यकर होता हैं। अतः पूर्वतर खंड न्यायपीठ का विनिश्चय, जब तब पश्चत्वर्ती खंड न्यायपीठ द्वारा प्रभेदित नहीं हो, उच्च न्यायालयों तथा अधीनस्थ न्यायालयों के लिए बाध्यकर है।


9-         इसी प्रकार, जब खंड न्यायपीठ के विनिश्चय तथा बृहत्तर न्यायपीठ के विनिश्चय विद्यमान हो तब उच्च न्यायालयों तथा अधीनस्थ न्यायालयों पर बृहत्तर न्यायपीठ के विनिश्चय बाध्यकर हैं।

10-        उच्चतम न्यायालय के विभिन्न विनिश्चयों में जो सामान्य सूत्र हैं वह यह हैं कि उस पूर्व निर्णय को अत्यधिक मूल्य दिया जाना होता हैं जो न्यायालय के विनिश्चयों में सामंजस्य तथा सुनिश्चितता के प्रयोजनार्थ न्यायालय द्वारा अनुसरित विनिर्णय के रूप में प्रवर्तित हो गया हैं । जब तक पूर्व निर्णय के रूप में प्रस्तुत किए गए विनिश्चय को न्यायालय द्वारा स्पष्टतः प्रभेदित नहीं किया जा सका हो अथवा वह कुछ ऐसे पूर्व निर्णयों को विचार में लिय बिना,अनवधानता के कारण दिया गया हो जिनसे न्यायालय सहमत हो।

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